मानव विकास इंडेक्स: मोदी राज में लाइफ एक्सपेक्टेंसी दर हुई और ज्यादा खराब, 191 देशों में 132वां स्थान

Written by Navnish Kumar | Published on: September 9, 2022
भारत में मानव विकास (Human development) मामले में गिरावट जारी है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक 2021 के मानव विकास सूचकांक (HDI) में भारत 191 देशों में 132वें पायदान पर खिसक गया है। 2020 में भारत 131वें पायदान था। भारत का 0.6333 का HDI मान देश को मध्यम मानव विकास श्रेणी में रखता है जो 2020 की रिपोर्ट में इसके 0.645 से भी खराब है। 2020 में भारत की स्थिति दो पायदान नीचे खिसकी थी। 



यह मानव विकास सूचकांक, मानव विकास के तीन प्रमुख आयामों स्वस्थ और लंबा जीवन (लाइफ एक्सपेक्टेंसी), शिक्षा तक पहुंच (एजुकेशन लेवल) और जीवन गुणवत्ता (स्टैंडर्ड्स आफ लिविंग) को मापता है। इनकी गणना चार प्रमुख संकेतकों जीवन प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेक्टेंसी), औसत स्कूली शिक्षा व स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष और प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय पर आधारित है। इस सूची में स्विटजरलैंड, नॉर्वे और आइसलैंड टॉप पर हैं। 

संयुक्त राष्ट्र की “ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट 2021/22” बताती है कि पिछले 32 वर्षों में यह पहली बार है जब इस इंडेक्स में इतनी ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है। शिक्षा स्वास्थ्य और औसत आय को मापने के पैमाने की दृष्टि से मानव विकास में लगातार दो साल 2020 और 2021 में गिरावट दर्ज होना शुभ संकेत नहीं है। भारत के लिए एक ही अच्छी बात है कि यह सिर्फ भारत में ही नहीं है दुनिया के 90 फीसदी देशों ने इस बार जारी मानव विकास सूचकांक में गिरावट दर्ज की है। 

"डाउन टू अर्थ" में छपी रिपोर्ट की मानें तो इसके लिए कोविड-19, यूक्रेन में जारी युद्ध और जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण से जुड़े कारक जिम्मेवार हैं। इन सबने मिलकर लोगों के जीवन पर व्यापक असर डाला है और मानव विकास की दिशा में हो रही दशकों की प्रगति को पलट दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक राजनितिक, वित्तीय और जलवायु से जुड़े संकटों ने कोरोना की मार झेल रही आबादी को संभलने का मौका ही नहीं दिया।

पिछले दो वर्षों में भारत की औसत जीवन प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) दर में ढाई वर्षों की गिरावट दर्ज की गई है। मानव विकास सूचकांक में आई हालिया गिरावट में जीवन प्रत्याशा का बहुत बड़ा हाथ रहा। आंकड़ों के अनुसार जहां वैश्विक स्तर पर 2019 में एक व्यक्ति की औसत आयु 72.8 वर्ष थी वो 2021 में 1.4 वर्षों की गिरावट के साथ घटकर 71.4 वर्ष रह गई है। भारत से जुड़े आंकड़ों में भी यह स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। जहां 2019 में देश में प्रति व्यक्ति औसत जीवन प्रत्याशा 69.7 थी वो 2021 में 2.5 वर्षों की गिरावट के साथ 67.2 वर्ष रह गई थी। इसी तरह भारत में स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष 11.9 वर्ष हैं और स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष 6.7 हैं। वहीं यदि देश में प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय को देखें तो वो करीब 6,590 डॉलर है।

भारत में यूएनडीपी प्रतिनिधि शोको नोडा का कहना है कि वैश्विक स्तर पर मानव विकास में हो रही प्रगति पलट गई है, भारत भी गिरावट की इसी प्रवृत्ति को दर्शाता है। लेकिन इन सबके बीच अच्छी खबर यह है कि 2019 की तुलना में मानव विकास में व्याप्त असमानता का प्रभाव कम हुआ है। दुनिया की तुलना में भारत पुरुषों और महिलाओं के बीच मानव विकास की खाई को तेजी से पाट रहा है।

दुनिया के अन्य देशों की बात करें तो इस साल ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में स्विटज़रलैंड को कुल 0.962 अंकों के साथ पहले स्थान पर जगह दी गई है। जहां औसत जीवन प्रत्याशा 84 वर्ष है। यही नहीं, वहां व्यक्ति औसतन 13.9 वर्ष शिक्षा ग्रहण करता है जबकि स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष 16.5 वर्ष हैं। इसी तरह वहां प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 66,933 डॉलर है। इस इंडेक्स में दक्षिण सूडान को सबसे निचले 191वें पायदान पर जगा दी गई है। दक्षिण सूडान में औसत जीवन प्रत्याशा 55 वर्ष है, जबकि प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय केवल 768 डॉलर है। इसी तरह दक्षिण सूडान में एक बच्चा औसतन 5.7 वर्ष स्कूल जाता है।

लोगों में बढ़ रहा है तनाव, उदासी, चिंता और गुस्सा

वैश्विक स्तर पर जहां कुछ देशों में जीवन वापस ढर्रे पर लौट रहा है वहीं कुछ देशों की स्थिति में अब भी कोई खास बदलाव नहीं आया है। साथ ही मानव विकास में असमानताओं की खाई और चौड़ी हुई है। 2021 में आए महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार के बावजूद दुनिया के कई देशों में स्वास्थ्य संकट कहीं ज्यादा गहरा गया है। इन दो वर्षों में दुनिया के दो-तिहाई देशों ने जन्म के समय जीवन प्रत्याशा में और भी कमी दर्ज की है। महामारी ने न केवल लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाया है साथ ही इसने अर्थव्यवस्थाओं को भी तबाह कर दिया है। इसकी वजह से लैंगिक असमानता में भी वृद्धि दर्ज की गई है। गौरतलब है कि इस दौरान वैश्विक  लैंगिक असमानता में 6.7 फीसदी की वृद्धि हुई है।

रिपोर्ट के अनुसार, इन्हीं सब से पिछले एक दशक से लोगों में तनाव, उदासी, गुस्सा और चिंता बढ़ रही है, जो अब रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। ऐसे में अनिश्चितता से भरी इस दुनिया में हमें एक दूसरे से जुड़ी इन चुनौतियों से निपटने के लिए हमें वैश्विक एकजुटता की भावना की जरुरत है।

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