वर्तमान में धार्मिक नहीं, चुनावी मुद्दा है हिजाब विवाद

Written by Dr. Amrita Pathak | Published on: February 14, 2022
देश के 5 राज्यों में चुनाव हो रहा है. पूरी संवेदनशीलता और जिम्मेदारी के साथ इन राज्यों में लोगों द्वारा चुनाव में सहयोग दिया जा रहा है लेकिन धर्म और सम्प्रदाय की राजनीति करने वाली पार्टियों के लिए यह अवस्था असहज कर देने वाला रहा है. ऐसे हालात को जानबूझकर धार्मिक मुद्दों की तरफ ले जाया गया. सर्वविदित है कि भारत की सत्ताधारी भाजपा धर्म आधारित राजनीति करने के लिए जानी जाती है लेकिन इस विवाद की जड़ दुनिया भर में पितृसत्ता के क्रूरतम चरित्र से भी जुड़ा हुआ है जिसकी चर्चा अलग से की जा सकती है. इस चुनाव में गाय-गोबर, गोडसे-सावरकर, देशभक्ति-देशद्रोही, हिंसा-नफरत, से परे होकर लोग मुलभुत मुद्दों पर टिके नजर आ रहे थे जिसे विचलित कर व् भावनाओं को भड़का कर वोट लेने के लिए यह हिजाब विवाद माकूल परिस्थिति तैयार करता है. हिजाब विवाद नें भाजपा सरकार के फीके पड़ते साम्प्रदयिक राजनीति को एक बार फिर तूल देने का काम किया है. 



क्या है हिजाब विवाद:
जनवरी 2022 में कर्नाटक के उडुपी के सरकारी कॉलेज की छात्राओं को हिजाब लगाकर क्लास में जाने से रोका गया तो उन्होंने इसका विरोध शुरू किया. जनवरी से शुरू हुए इस विरोध को देशभर में समर्थन मिला और अब यह बहुत बड़ा रूप धारण कर चुका है. उडुपी कर्नाटक राज्य के उन जिलों में शामिल है जो साम्प्रदायिक तौर पर संवेदनशील है. स्थानीय प्रशासन, कॉलेज प्रशासन में छात्राओं के परिजनों से बातचीत करके उस समय समाधान निकालने की कोशिश की गई लेकिन समाधान निकलने की बजाय आज यह एक बड़ा मामला बन चुका है या यूं कहें कि बड़ा मामला बनाया गया है. हिजाब पहनने से रोके जाने पर मामले को हाई कोर्ट तक ले जाया गया है जिसकी आगे की सुनवाई आज सोमवार को होनी है. 

विवाद का देश भर में विस्तार:
उडुपी कॉलेज में प्रदर्शन कर रहे विद्याथियों की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी इसके बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में कॉलेजों में हिंदू छात्रों ने भगवा शॉल पहनना शुरू कर दिया जिसे अधिकारियों द्वारा मना किया गया. देश के अलग-अलग हिस्सों में हिंदू छात्र-छात्राओं द्वारा भी हिजाब पहनने के खिलाफ प्रदर्शन किया गया. कई जगह जमकर पत्थरबाजी व् आगजनी की घटनाएं भी सामने आई हैं लेकिन इस विवाद ने तूल तब पकड़ा जब मांड्या जिले में हिजाब पहने एक छात्रा को भगवा गमछा वाले युवकों की एक भीड़ ने घेरा और लगातार “जय श्रीराम” के नारे लगाए. इसके जवाब में मुस्कान नाम की इस छात्रा ने तेज आवाज में “अल्लाह हू अकबर” का नारा लगाया. यह वीडियो देखते ही देखते देश-विदेश में वायरल हो गया. 

चुनाव को ध्यान में रखते हुए वर्तमान में कर्नाटक राज्य में विद्यार्थियों के दो समूह बन चुके हैं जिसे एक तरफ हिंदूवादी समूह में और दूसरी तरफ अन्य में बांटा जा चुका है. एक तरफ के लोग हिजाब का समर्थन कर रहे हैं और दूसरे हिंदूवादी नारों के साथ भगवा गमछा धारण कर सड़कों पर उतर चुके हैं. हालांकि कर्नाटक के शिक्षा मंत्री नागेश बीसी नें कॉलेज प्रशासन का समर्थन करते हुए कहा है कि परिसर में भगवा गमछे व् हिजाब  दोनों ही पर रोक लगनी चाहिए लेकिन फिलहाल यह मामला चुनावी हथियार है.

क्या कहता है संविधान
भारतीय संविधान के अनुसार हिजाब को लेकर चल रहा विवाद धर्म से अधिक व्यक्तिगत अधिकार का मुद्दा है. संविधान नागरिकों को कुछ व्यक्तिगत अधिकार देता है. इन व्यक्तिगत अधिकारों में निजता का अधिकार, धर्म का अधिकार, जीवन जीने का अधिकार, समानता का अधिकार शामिल है. बराबरी के अधिकार की व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इसमें मनमानी के खिलाफ अधिकार भी शामिल हैं कोई भी मनमाना कानून संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मिले समानता के अधिकार का उल्लंघन है.

हैदराबाद के कानून विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर ‘फैजान मुस्तफा’ की बीबीसी से की गई बातचीत के अनुसार स्कूल या कॉलेज को अधिकार है कि वह अपना कोई भी ड्रेस कोड निर्धारित करें लेकिन इसे निर्धारित करने में वह किसी के मौलिक अधिकार का हनन नहीं कर सकता है. वह कहते हैं कि एजुकेशन एक्ट के तहत संस्थान को यूनिफॉर्म निर्धारित करने का अधिकार नहीं है अगर कोई संस्थान नियम बनाता है तो वह नियम कानून के दायरे के बाहर नहीं हो सकते हैं.

सवाल संविधान के तहत मिले धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का भी है जिसकी एक सीमा होती है इस सीमा को बताते हुए फैजान मुस्तफा कहते हैं कि धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की सीमा यह है कि जनहित में नैतिकता में और स्वास्थ्य के आधार पर उसे सीमित किया जा सकता है. सवाल ये उठता है कि क्या हिजाब पहनने से ऐसी किसी सीमा का उल्लंघन होता है इस पर फैजान मुस्तफा करते हैं ‘यह जाहिर है कि किसी का हिजाब पहना कोई अनैतिक काम नहीं है ना ही किसी जनहित के खिलाफ है और ना ही यह किसी और मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. 

चुनावी समय में बढ़ाया जा रहा है हिजाब विवाद
हिजाब को लेकर विवाद कर्नाटक के उडुपी से देश भर में फैल गया है दिल्ली के शाहीन बाग से लेकर उत्तरी भारत के कई इलाकों में प्रदर्शन किए जा रहे हैं साथ ही दिल्ली के शाहीन बाग में महिलाओं द्वारा बड़ा प्रदर्शन किया गया है. जगह-जगह हिजाब और भगवा गमछे को लेकर वीडियो वायरल हो रहा है यह लड़ाई पहचान की बिल्कुल भी नहीं है यह अधिकार की लड़ाई जरुर है लेकिन वर्तमान परिवेश में इसे हथियार की तरह उपयोग किया जा रहा है.

यह धार्मिक स्वतंत्रता के साथ-साथ निजी स्वतंत्रता का विषय भी है देश में एनआरसी का मुद्दा हो या हिजाब विवाद का मुद्दा शाहीन बाग से लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में मुसलमान महिलाओं ने अपने संवैधानिक अधिकार को हाल के वर्षों में मजबूती से प्रदर्शित करने की कोशिश की है. हिजाब पर विवाद का मामला फिलहाल अदालत में है और सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में है. इस बीच कई सारे प्रतिबंध राज्य सरकारों द्वारा अपने अपने राज्यों में लगाए जा चुके हैं जिसमें पूर्वाग्रह से ग्रसित निर्णय साफ़ नजर आता है. 

भारत आज ऐसी स्थिति में पहुँच चुका है जहाँ बातों से देश को तोड़ा जा सकता है, कपड़ों से उकसाने की कोशिश हो सकती है. यहां संविधान के सवाल व् व्यक्तिगत अधिकार के सवाल को आमने सामने किया जा रहा है. ऐसे में देश और देश की धर्मनिरपेक्षता का सवाल, एकता और अखंडता का सवाल धूमिल होते दिख रहा है. सत्ताधारी मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद देश के संवैधानिक मूल्य पर लगातार हमले हो रहे हैं यह धार्मिक हमला भी उसी का एक पहलू है जिसे चुनावी समय में मुद्दा बनाकर राजनीतिक फायदे के लिए हथियार की तरह उपयोग किया जा रहा है. वर्तमान में देश भर में सभी धर्म जाति क्षेत्र संकाय के लोग मोदी सरकार से त्रस्त हो चुके हैं बेरोजगारी भुखमरी गरीबी अशिक्षा लगभग हर घर तक पहुंच चुका है. आधारभूत सवालों पर आज भी सरकार बात करने को तैयार नहीं है. हालात यह है कि सरकार विवादों में मस्त है और आम जन जीवन वीभत्स जिन्दगी जीने के लिए अभिशप्त है.   

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