न नामों पर ग़ौर कीजिए: लिल्ली पिल्ली, वग्गा वग्गा, आगा भागा, तुल्ला मारिन, मरविल लुम्बा, इंदूरू पिल्ला...

Written by हसन पाशा | Published on: January 28, 2021
लिल्ली पिल्ली, वग्गा वग्गा ,आगा भागा, तुल्ला मारिन, मरविल लुम्बा, इंदूरू पिल्ला, वूलूनगब्बा , वूलूविन, ब्लूम्बा, बम्बालाम्बा. ...



ये नाम ऑस्ट्रेलिया की बस्तियों, जंगलों और पहाड़ियों के हैं. ये सैकड़ों या शायद हज़ारों साल पुराने ऐब ओरिजिनल यानी आदिवासी नाम हैं. उस वक़्त ऑस्ट्रेलिया पर आदिवासियों की सत्ता थी. तक़रीबन दो सौ साल पहले यहां गोरे सिपाही और क़ैदी आये. फिर और गोरे आये. और फिर ख़ूनी लड़ाइयों के बाद इस ज़मीन पर गोरों की सत्ता क़ायम हो गयी.

ऑस्ट्रेलिया आज एक आधुनिक देश है जहां संभवतया दुनिया में सबसे ज़्यादा ऑटोमेशन है. गोरी जनता और सरकार कह सकती थी कि अब तो यहां हमारी चलती है, इन उलूल जुलूल नामों को हटाओ, हमारे अपने नाम रक्खो. मगर ऐसा कभी नहीं सोचा गया. और आज भी सोचा नहीं जा रहा है. 

यहां स्कूलों के समारोह ऐब ओरिजिनल अनुष्ठानों से शुरू होते हैं. कभी किसी ने एतराज़ नहीं किया.

26 जनवरी को धूम धाम से ऑस्ट्रेलिया डे मनाया जाता है. ये ऑस्ट्रेलिया में गोरी सत्ता की शुरुआत का सूचक है. इसके अगले ही शहरों की सड़कों पर आदिवासियों द्वारा विरोध दिवस मनाया जाता है... ये विरोध ऑस्ट्रेलिया पर अंग्रेज़ों के कब्ज़े का है. इन पर पुलिस गोली या लाठी नहीं चलाती है. कोई इन्हें राष्ट्र विरोधी नहीं कहता. सभी मानते हैं कि इन्हें भी अपनी बात कहने और अपना पक्ष रखने का हक़ है. बहुत सारे ग़ैर आदिवासी भी उनके साथ शामिल होते हैं.

इसमें शक नहीं कि कई दूसरे देशों की तरह नस्लवाद ऑस्ट्रेलिया में भी है. कॉरपोरेट तथा दूसरे संस्थानों में अश्वेतों को, ख़ासकर बाहर से आने वालों को, गोरे लोगों के मुक़ाबले में मुश्किल से तरक़्क़ी मिलती है. ज़्यादा महत्व की पोज़िशंस में भी गोरों को वरीयता दी जाती है. 
पिछले दिनों भारत -ऑस्ट्रेलिया मैच के दौरान कुछ गोरे युवकों ने भारतीय खिलाड़ियों के लिए ग़लत सम्बोधन इस्तेमाल किये. शिकायत मिलते ही पुलिस आयी और उन्हें पकड़ कर बाहर ले गयी. ऑस्ट्रेलिया सरकार ने भी इसका संज्ञान लिया. ग़लत तत्व कहीं भी हो सकते हैं, किसी भी देश में. बाहर के खिलाड़ियों को हमारे यहाँ भी जम कर हूट किया जाता है. उन पर काग़ज़ की गेंदें और बोतलें फेंकी जाती हैं. हुल्लड़ मचाने के मामले में पाकिस्तानी खिलाड़ियों का ट्रैक रिकार्ड तो शायद सबसे बुरा है. 

बसों, ट्रेनों और रास्तों में भी गोरे युवकों द्वारा अश्वेतों के साथ ग़लत रवैये की शिकायतें भी आया करती हैं. उन पर व्यंग्य किये जाते हैं. इसके बावजूद आज दुनिया भर से लोग ऑस्ट्रेलिया सबसे पहले आना चाहते हैं. जो लोग खुद अपने देशों में धर्म, जाति और समूह के आधार पर सताए गए हैं वो अपने आप को यहां सुरक्षित महसूस करते हैं. जबकि यहां नौकरियां भी बहुत ज़्यादा नहीं हैं.

अपने अपने तजुर्बे की बात भी है. रास्तों में कितने ही गोरे अजनबी मुझे मिले जिन्होंने मुस्कुरा कर मुझे "विश" किया. इनमें बूढ़े, जवान, औरत, मर्द सब थे. ऐसा तजुर्बा तो, कमसे कम इस स्तर पर तो मुझे अपने यहां भी नहीं हुआ.

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