(जिन आशा वर्कर्स पर है राज्य के तमाम स्वास्थ्य अभियानों का बोझ, उन्हें न्यूनतम मजदूरी भी नहीं दे रही है सरकार. और यह उस राज्य में हो रहा है जिसका स्वास्थ्य मानदंडों पर रेकॉर्ड बेहद बुरा है)
Photo: Frank Bienewald/LightRocket/Getty Images
22 अक्टूबर को वडोदरा में रोड शो के दौरान नरेंद्र मोदी ने इस घटना की कल्पना भी नहीं की होगी. उनकी गाड़ियों का काफिला वूडा सर्किल के पास से गुजर रहा था. भीड़भाड़ खास नहीं थी. नरेंद्र मोदी अपनी गाड़ी से बाहर निकलकर खड़े थे और सड़क किनारे खड़े लोगों का हाथ हिलाकर अभिवादन कर रहे थे.
तभी भीड़ से एक महिला निकलकर आती है और नरेंद्र मोदी की ओर चूड़ियां उछाल देती हैं. नरेंद्र मोदी हतप्रभ रह जाते हैं. सुरक्षाकर्मी चौंक उठते हैं. नरेंद्र मोदी गाड़ी के अंदर बैठ जाते हैं और काफिल आगे बढ़ जाता है.
वह औरत आशा वर्कर थी. यानी एक्रिडिटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट. गुजरात में स्वास्थ्य सेवाओं का काफी बोझ इन आशा वर्कर्स पर है. प्रदेश में कुल 45,000 आशा वर्कर हैं.
गुजरात की आशा वर्कर्स इन दिनों सरकार से सख्त नाराज हैं.
आप जानकर चकित रह जाएंगे कि आशा वर्कर्स का गुजरात में प्रति माह वेतन सिर्फ 1,000 रुपए है. कैंप वगैरह में जाने या कैंपेन में शामिल होने पर उन्हें कुछ भत्ते मिलते हैं और एक आशा वर्कर प्रतिमाह औसतन तीन से साढ़े तीन हजार रुपए कमा पाती है. उसमें भी अगर वह किसी कैंप में नहीं पहुंच पाई, या किसी रिपोर्ट को ऊपर तक पहुंचाने में चूक हो गई तो उनका वेतन काट लिया जाता है.
गुजरात में आशा वर्कर अपना वेतन 1,000 रुपए सेबढ़ाकर 6,000 रुपए कराने के लिए आंदोलन चला रही हैं.
यह आंदोलन प्रदेश भर में चल रहा है. उन्होंने भूख हड़ताल की, विधायकों का घेराव किया, मोर्चा निकाला. आंदोलन का हर तरीका वे पिछले एक महीने में आजमा चुकी हैं. सरकार अब कह रही है कि आशा वर्कर का वेतन बढ़ाकर 1,500 रुपए कर दिया जाएगा. जाहिर है कि आंदोलनकारी आशा वर्कर्स इस आश्वासन से संतुष्ट नहीं हैं. यह आंदोलन अब भी जारी है.
यह उस राज्य में हो रहा है जिसका स्वास्थ्य मानदंडों पर रेकॉर्ड बेहद बुरा है. पिछले साल आई यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात के 41.6 फीसदी बच्चों के शरीर का पर्याप्त विकास नहीं हो पा रहा है. अवरुद्ध विकास वाले बच्चों का राष्ट्रीय औसत 38.8 फीसदी है. गुजरात में 33.5 फीसदी बच्चों का वजन उनकी लंबाई के हिसाब से कम है. जबकि राष्ट्रीय औसत 29.4 फीसदी है.
बच्चों के स्वास्थ्य और उनके पोषणा की जिम्मेदारी सरकार की भी है और यह जिम्मेदारी आशा वर्कर्स के जरिए ही पूरी होती है. जाहिर है कि गुजरात सरकार के लिए जनता का स्वास्थ्य, प्राथमिकता में काफी नीचे हैं.
उसी तरह, बच्चे के जन्म के समय माताओं की मौत के मामले में भी गुजरात एक बदनाम राज्य है. यहां माताओं की मौत की दर लगातार बढ़ रही है. सीएजी की गुजरात विधानसभा में पेश रिपोर्ट के मुताबिक, माताओं की मृत्य दर 2013-14 में प्रति लाख 72 थी जो 2015-16 में बढ़कर 85 हो गई है. जाहिर है कि मैटरनल मॉरटिलिटी का 67 का लक्ष्य हासिल करना गुजरात के लिए मुश्किल होता जा रहा है.
यह दिखा रहा है कि गुजरात में आशा वर्कर्स की अवहेलना एक बड़ी बीमारी का लक्षण भर है. गुजरात में स्वास्थ्य सेवाओं का कुल हाल बेहद बुरा है और इसकी सबसे ज्यादा मार बच्चों और औरतों पर पड़ रही है.
Photo: Frank Bienewald/LightRocket/Getty Images
22 अक्टूबर को वडोदरा में रोड शो के दौरान नरेंद्र मोदी ने इस घटना की कल्पना भी नहीं की होगी. उनकी गाड़ियों का काफिला वूडा सर्किल के पास से गुजर रहा था. भीड़भाड़ खास नहीं थी. नरेंद्र मोदी अपनी गाड़ी से बाहर निकलकर खड़े थे और सड़क किनारे खड़े लोगों का हाथ हिलाकर अभिवादन कर रहे थे.
तभी भीड़ से एक महिला निकलकर आती है और नरेंद्र मोदी की ओर चूड़ियां उछाल देती हैं. नरेंद्र मोदी हतप्रभ रह जाते हैं. सुरक्षाकर्मी चौंक उठते हैं. नरेंद्र मोदी गाड़ी के अंदर बैठ जाते हैं और काफिल आगे बढ़ जाता है.
वह औरत आशा वर्कर थी. यानी एक्रिडिटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट. गुजरात में स्वास्थ्य सेवाओं का काफी बोझ इन आशा वर्कर्स पर है. प्रदेश में कुल 45,000 आशा वर्कर हैं.
गुजरात की आशा वर्कर्स इन दिनों सरकार से सख्त नाराज हैं.
आप जानकर चकित रह जाएंगे कि आशा वर्कर्स का गुजरात में प्रति माह वेतन सिर्फ 1,000 रुपए है. कैंप वगैरह में जाने या कैंपेन में शामिल होने पर उन्हें कुछ भत्ते मिलते हैं और एक आशा वर्कर प्रतिमाह औसतन तीन से साढ़े तीन हजार रुपए कमा पाती है. उसमें भी अगर वह किसी कैंप में नहीं पहुंच पाई, या किसी रिपोर्ट को ऊपर तक पहुंचाने में चूक हो गई तो उनका वेतन काट लिया जाता है.
गुजरात में आशा वर्कर अपना वेतन 1,000 रुपए सेबढ़ाकर 6,000 रुपए कराने के लिए आंदोलन चला रही हैं.
यह आंदोलन प्रदेश भर में चल रहा है. उन्होंने भूख हड़ताल की, विधायकों का घेराव किया, मोर्चा निकाला. आंदोलन का हर तरीका वे पिछले एक महीने में आजमा चुकी हैं. सरकार अब कह रही है कि आशा वर्कर का वेतन बढ़ाकर 1,500 रुपए कर दिया जाएगा. जाहिर है कि आंदोलनकारी आशा वर्कर्स इस आश्वासन से संतुष्ट नहीं हैं. यह आंदोलन अब भी जारी है.
यह उस राज्य में हो रहा है जिसका स्वास्थ्य मानदंडों पर रेकॉर्ड बेहद बुरा है. पिछले साल आई यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात के 41.6 फीसदी बच्चों के शरीर का पर्याप्त विकास नहीं हो पा रहा है. अवरुद्ध विकास वाले बच्चों का राष्ट्रीय औसत 38.8 फीसदी है. गुजरात में 33.5 फीसदी बच्चों का वजन उनकी लंबाई के हिसाब से कम है. जबकि राष्ट्रीय औसत 29.4 फीसदी है.
बच्चों के स्वास्थ्य और उनके पोषणा की जिम्मेदारी सरकार की भी है और यह जिम्मेदारी आशा वर्कर्स के जरिए ही पूरी होती है. जाहिर है कि गुजरात सरकार के लिए जनता का स्वास्थ्य, प्राथमिकता में काफी नीचे हैं.
उसी तरह, बच्चे के जन्म के समय माताओं की मौत के मामले में भी गुजरात एक बदनाम राज्य है. यहां माताओं की मौत की दर लगातार बढ़ रही है. सीएजी की गुजरात विधानसभा में पेश रिपोर्ट के मुताबिक, माताओं की मृत्य दर 2013-14 में प्रति लाख 72 थी जो 2015-16 में बढ़कर 85 हो गई है. जाहिर है कि मैटरनल मॉरटिलिटी का 67 का लक्ष्य हासिल करना गुजरात के लिए मुश्किल होता जा रहा है.
यह दिखा रहा है कि गुजरात में आशा वर्कर्स की अवहेलना एक बड़ी बीमारी का लक्षण भर है. गुजरात में स्वास्थ्य सेवाओं का कुल हाल बेहद बुरा है और इसकी सबसे ज्यादा मार बच्चों और औरतों पर पड़ रही है.
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