महामारी बनने की तरफ़ बढ़ रही महंगाई पर विफल होती सरकार

Written by Dr. Amrita Pathak | Published on: July 19, 2021
महंगाई को लेकर अर्थशास्त्र का एक सामान्य नियम है कि जब बाजार में वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है तो महंगाई बढ़ जाती है. लेकिन बाज़ार में वस्तु की मांग नहीं होने के बावजूद भी यदि महंगाई बढ़ रही है तो इसे सरकारी तंत्र में विफलता और गड़बड़ी माना जाता है. कोरोना काल में बर्बाद हुई अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए सरकार यदि महंगाई बढ़ा रही है तो यह समाज के लिए और भी घातक है. बढ़ती महंगाई मांग को कम कर देती है जिससे अर्थव्यवस्था को नुकसान ही होता है. 



फिलहाल कोरोना से ध्वस्त हो चुके भारतीय बाज़ार में वस्तु की मांग काफ़ी कम हो चुकी है फिर भी भारत महंगाई की गंभीर स्थिति को झेल रहा है. यह महंगाई मौसमी नहीं है बल्कि लगभग हरेक क्षेत्र में है. खाने के तेल से लेकर पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस, बिजली, दाल, सब्जी, दूध, मोटरसाइकल, मेडिकल बीमा, रोजमर्रा से लेकर तमाम निर्माण विनिर्माण क्षेत्र में उपयोग किए जा रहे वस्तुओं के मूल्य में बढ़ोतरी हुई है. यह बढ़ोतरी असंगठित क्षेत्र के लोगों को सर्वाधिक प्रभावित कर रहा है जिसकी भागीदारी भारतीय श्रम में 94 प्रतिशत तक है. भारत की अर्थव्यवस्था में महंगाई और कमाई का वर्तमान चरित्र एक विचित्र स्थिति को पैदा कर चुका है. मई और जून 2021 में खुदरा महंगाई दर 6 फ़ीसदी से ऊपर रही है और फिलहाल कुछ वक्त तक इसके कम होने की सम्भावना भी नहीं है. 2010 के बाद पहली बार थोक मूल्य सूचकांक (WPI) पर आधारित महंगाई दर दो अंकों में दर्ज की गयी है. थोक मूल्य सूचकांक में यह वृद्धि वस्तु के खुदरा महंगाई दर को और बढ़ाएगी और यह बढ़त आने वाले समय में लोगों के लिए, ख़ासकर गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के लिए मुश्किल होने वाला है. अर्थशास्त्र में सामान्य तौर पर महंगाई की बढ़त को विकासशील देश के लिए अच्छा माना है बशर्ते यह मांग पर आधरित हो. बाज़ार में मांग बढ़ने का मतलब है लोगों के पास वस्तु के उपभोग को करने के लिए पर्याप्त कमाई है लेकिन जब उपभोग घट चुका है और महंगाई फिर भी बढ़ रही हो तो ऐसी अर्थव्यवस्था आत्मघाती परिस्थिति पैदा कर सकती है. 

बहरहाल, सवाल यह है कि जब बाजार में वस्तु की मांग बहुत कम हो गयी है तो उसके बावजूद भी कीमत क्यूँ बढ़ रही हैं? अर्थशास्त्री अरुण कुमार के अनुसार, इसकी कई वजहें हैं. सबसे बड़ा कारण आपूर्ति श्रृंखला का कमजोर होना है. फ़सल 2020-21 में खाद्यान का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ और 2.66 फ़ीसदी की वृद्धि के साथ यह रिकॉर्ड 30.5 करोड़ टन की ऊँचाई पर पहुँच गया है. इस रिकॉर्ड स्तर की पैदावार के बावजूद भी यदि खाद्य पदार्थों के मूल्य बढ़ रहे हैं तो साफ़ है कि बाज़ार में उनकी आपूर्ति नहीं हो रही है. यही हाल फल और सब्जियों का भी है जिसके बारे में कहा जा रहा है कि जमाखोरों द्वारा भण्डारण किए जाने से यह स्थिति पैदा हुई है. अर्थव्यवस्था में पेट्रो केमिकल पदार्थों का गणित अलग है. हमारी सरकार ने इन उत्पादों पर कई तरह के टैक्स लगा रखे हैं जबकि यह जगजाहिर तथ्य है कि पेट्रो उत्पादों की कीमतों और महंगाई में सीधा सम्बन्ध होता है. पेट्रोल-डीजल के मूल्य बढ़ते ही सभी उपभोक्ता वस्तुओं के मूल्य में बढ़ोतरी हो जाता है. 

महंगाई बढ़ने की एक वजह लोगों का स्वास्थ्य ख़र्च बढ़ना भी है क्यूंकि महामारी की वजह से इलाज और दवाओं पर लोगों के ख़र्च बढ़ गए हैं. विडंबना यह है कि महंगाई सूचकांक में इस क्षेत्र की नाममात्र की गिनती होती है. महंगाई दर में जो वृद्धि दिखाई जाती है असलियत में वह आम जनता पर कहीं अधिक भारी पड़ती है. कोरोना महामारी के दौर में बेतहासा बेरोजगारी का बढ़ना, उनका सस्ते श्रमिक में तब्दील होना और कारोबारियों द्वारा श्रमिकों का शोषण करने के बाद भी दिखावटी रुदन किया जा रहा है. अनिवार्य वस्तुओं की खरीदारी तमाम मुश्किल स्थितियों के बाद भी बनी हुई है जबकि कारोबारियों को सस्ते श्रमिक आसानी से उपलब्ध हैं ऐसे हालत में उनका रुदन महज दिखावा ही है और इसपर सरकार द्वारा लगाम लगायी जानी चाहिए. कोरोना काल में निजी उपभोग में गिरावट का रुख है जिसमें आने वाले वर्ष में भी गिरावट बने रहने का अनुमान है. 

अमेरिकी शोध समूह ‘पेव रिसर्च सेंटर’ के अनुमान के मुताबिक़, भारत में डेढ़ सौ रूपये से कम कमाई करने वाले गरीबों की संख्या महामारी में साल भर के भीतर 6 करोड़ से बढ़ कर 13 करोड़ हो गयी है. सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनोमी (CMII) के अनुसार कोरोना महामारी की दूसरी लहर के कारण 1 करोड़ लोग बेरोजगार हो गए और 97 प्रतिशत परिवारों की कमाई घट गयी. जून में बेरोजगारी दर में सुधार जरुर हुआ जिसे 9.17 फ़ीसदी दर्ज किया गया जो मई में 11.90 फ़ीसदी हो गयी थी. अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सस्टेनेबल इम्प्लायमेंट (CSE) के अध्यन के अनुसार 23 करोड़ भारतीय गरीबी रेखा के नीचे जा चुके हैं. सरकार ने महंगाई दर को 2026 तक 2 फ़ीसदी से 6 फ़ीसदी बनाए रखने के निर्देश दिए हैं. आरबीआई ने पिछले महीने मौद्रिक नीति समिति (MPC) की अपनी बैठक में मौजूदा वित्त वर्ष के लिए 5.1 प्रतिशत महंगाई दर के रहने का अनुमान जताया था लेकिन हालात कुछ अलग ही सामने आए.

मोटे तौर पर कहा जाए तो महंगाई पर नियंत्रण दो तरीके से किया जा सकता है- मौद्रिक और राजकोषीय उपाय. मौद्रिक उपाय में आरबीआई बाज़ार से तरलता खींच कर मांग घटाने की कोशिश करता है. राजकोषीय उपाय में भी सरकार कर बाधा की मांग को घटाने की कोशिश करती है. लेकिन वर्तमान परिस्थिति मांग को घटाने की अनुमति नहीं देती है क्यूंकि बाज़ार में पहले से ही वस्तु की मांग बहुत कम हो चुकी है. सरकार अगर चाहे तो उन अरबपतियों के ऊपर विशेष कर लगा सकती है जिनकी सम्पति कोरोना काल के दौरान 35 फ़ीसदी तक बढ़ चुकी है. इसके अलावा आवश्यक वस्तुओं के निर्यात पर रोक भी लगायी जा सकती है. 

भारत में महंगाई एक महामारी बन कर न उभर जाए इससे पहले इसे रोकने की जरुरत है. फ़िलहाल सरकार की तरफ़ से इस दिशा में कुछ पहल होते हुए नहीं दिख रही है और न ही महंगाई को समाप्त करना इनकी प्राथमिकता में शामिल है. बढ़ती महंगाई को रोकने के लिए सबसे पहले बाज़ार तक खाद्य पदार्थों की आपूर्ति सुनिश्चित करनी होगी. पेट्रो उत्पादों पर बढ़ाकर लगाए गए टैक्स को भी कम करना होगा. इस मसले पर सरकार यह कह सकती है कि टैक्स कम करने से सरकारी आमदनी कम हो जाएगी लेकिन इच्छाशक्ति हो तो इस मसले का हल निकाला जा सकता है. यदि अर्थव्यवस्था को संभालना प्राथमिकता हो जाए तो मांग और आपूर्ति को संतुलित कर बाज़ार में स्थिरता कायम की जा सकती है. 

Related:
डीजल पेट्रोल के भाव से सिर्फ वाहन वालों को फर्क नहीं पड़ता, आलू, तेल, पनीर खरीदने वाले भी प्रभावित होते हैं
जीएसटी और नोटबंदी ने बर्बाद कर दिया देश
पेट्रोल डीजल पर एक्साइज ड्यूटी के मामले में 2014 वाली कहानी ही दोहरा रही मोदी सरकार

बाकी ख़बरें