बुद्ध, फुले, आंबेडकर, मार्क्स और स्त्री-मुक्तीवादी विचारक, संत साहित्य और वारकरी तत्वज्ञान की शोधकर्ता-लेखिका, परित्यक्ता स्त्री और स्त्री मुक्ति आंदोलन, आदिवासी, दलित, श्रमिक के लिए लड़ने वाली डॉ. गेल ऑमवेट का आज 25 अगस्त 2021 को 81 साल की उम्र में निधन हो गया।

2 अगस्त 1941 को अमेरिका के मिनीपोलिस-मिनेसोटा शहर में जन्मी सुश्री गेल ओमवेट ने कैलिफोर्निया स्थिति बर्कले विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
एक शोध के अध्ययन के लिए वे भारत आईं और फिर यहीं की होकर रह गईं। पूँजीवादी, साम्राज्यवादी और नस्लीय सोच रखने वाले अमेरिका के बजाय लोकतांत्रिक भारत में रहना पसंद करते हुए उन्होंने भारत के महाराष्ट्र राज्य को अपनी कर्मस्थली के रूप में चुना। उन्होंने बाक़ायदा भारत की नागरिकता ली और उस समय अपनी एम.डी.की पढ़ाई छोड़ सामाजिक कार्य करने वाले डॉ. भरत पाटणकर से प्रेम विवाह किया और 1978 से वे उन्ही के साथ भारत में रह रही थीं। उनकी एक बेटी प्राची पाटणकर हैं जो इस समय अमेरिका में रहती हैं।
अकाल और बांध निर्माण के साथ विभिन्न गतिविधियों में बढ़ चढ़कर सहभागी बनने वाली डॉ. गेल पश्चिम महाराष्ट्र की क्रांति वीरांगना इंदूताई पाटणकर के नेतृत्व में परित्यक्ता स्त्रियों के आंदोलन की सक्रिय हिस्सेदार बनीं।
डॉ. गेल ने देशभर के विविध विद्यापीठ में प्राध्यापक बनकर पढ़ाया। पुणे विद्यापीठ में फुले- आंबेडकर चेअर प्रमुख, समाजशास्त्र विभाग की प्राध्यापक, निस्वास, उड़ीसा में आंबेडकर चेअर की प्रोफेसर, नोर्डीक में अतिथि प्राध्यापक, इन्स्टिट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज कोपनहेगन, नेहरू मेमोरिअल म्युझियम और लाइब्रेरी नवी दिल्ली, शिमला के इन्स्टिट्यूट में बतौर प्रोफेसर काम किया। FAO, UNDP, NOVIB की सलाहकार रहीं। ICSSR के माध्यम से भक्ति, विषय पर शोध किया। शोध पत्र और लेख लिखती रहीं।
डॉ. गेल की 25 से अधिक किताबें प्रकाशित हैं। ‘कल्चरल रीवोल्ट इन कोलोनियल सोसायटी- द नॉन ब्राम्हीण मूवमेंट इन वेस्टर्न इंडिया’, ‘सिकिंग बेगमपुरा’, ‘बुद्धिज़म इन इंडिया’, ‘डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर’, ‘महात्मा जोतीबा फुले’, ‘दलित एंड द डेमॉक्रॅटिक रिव्ह्यूलेशन’, ‘अंडरस्टँडिंग कास्ट’, ‘वुई विल स्मॅश दी प्रिझन’, ‘न्यू सोशल मूवमेंट इन इंडिया।
गेल के निधन से हमने एक बेहतरीन लेखक, मानवीय मूल्यों, बहुजन समाज और फुले अंबेडकर विचारधारा के लिए पूरी तरह से समर्पित विद्वान को खो दिया है।
गेल ओमवेट अपने असाधारण काम के लिए भारतीय क्षितिज पर हमेशा एक चमकते सितारे की तरह चमकती रहेंगी। फुले अम्बेडकर-भक्ति परंपराओं में रुचि रखने वाले किसी भी अध्येता के लिए उनका लिखा निश्चय ही सबसे महत्वपूर्ण रहेगा..."

2 अगस्त 1941 को अमेरिका के मिनीपोलिस-मिनेसोटा शहर में जन्मी सुश्री गेल ओमवेट ने कैलिफोर्निया स्थिति बर्कले विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
एक शोध के अध्ययन के लिए वे भारत आईं और फिर यहीं की होकर रह गईं। पूँजीवादी, साम्राज्यवादी और नस्लीय सोच रखने वाले अमेरिका के बजाय लोकतांत्रिक भारत में रहना पसंद करते हुए उन्होंने भारत के महाराष्ट्र राज्य को अपनी कर्मस्थली के रूप में चुना। उन्होंने बाक़ायदा भारत की नागरिकता ली और उस समय अपनी एम.डी.की पढ़ाई छोड़ सामाजिक कार्य करने वाले डॉ. भरत पाटणकर से प्रेम विवाह किया और 1978 से वे उन्ही के साथ भारत में रह रही थीं। उनकी एक बेटी प्राची पाटणकर हैं जो इस समय अमेरिका में रहती हैं।
अकाल और बांध निर्माण के साथ विभिन्न गतिविधियों में बढ़ चढ़कर सहभागी बनने वाली डॉ. गेल पश्चिम महाराष्ट्र की क्रांति वीरांगना इंदूताई पाटणकर के नेतृत्व में परित्यक्ता स्त्रियों के आंदोलन की सक्रिय हिस्सेदार बनीं।
डॉ. गेल ने देशभर के विविध विद्यापीठ में प्राध्यापक बनकर पढ़ाया। पुणे विद्यापीठ में फुले- आंबेडकर चेअर प्रमुख, समाजशास्त्र विभाग की प्राध्यापक, निस्वास, उड़ीसा में आंबेडकर चेअर की प्रोफेसर, नोर्डीक में अतिथि प्राध्यापक, इन्स्टिट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज कोपनहेगन, नेहरू मेमोरिअल म्युझियम और लाइब्रेरी नवी दिल्ली, शिमला के इन्स्टिट्यूट में बतौर प्रोफेसर काम किया। FAO, UNDP, NOVIB की सलाहकार रहीं। ICSSR के माध्यम से भक्ति, विषय पर शोध किया। शोध पत्र और लेख लिखती रहीं।
डॉ. गेल की 25 से अधिक किताबें प्रकाशित हैं। ‘कल्चरल रीवोल्ट इन कोलोनियल सोसायटी- द नॉन ब्राम्हीण मूवमेंट इन वेस्टर्न इंडिया’, ‘सिकिंग बेगमपुरा’, ‘बुद्धिज़म इन इंडिया’, ‘डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर’, ‘महात्मा जोतीबा फुले’, ‘दलित एंड द डेमॉक्रॅटिक रिव्ह्यूलेशन’, ‘अंडरस्टँडिंग कास्ट’, ‘वुई विल स्मॅश दी प्रिझन’, ‘न्यू सोशल मूवमेंट इन इंडिया।

गेल के निधन से हमने एक बेहतरीन लेखक, मानवीय मूल्यों, बहुजन समाज और फुले अंबेडकर विचारधारा के लिए पूरी तरह से समर्पित विद्वान को खो दिया है।
गेल ओमवेट अपने असाधारण काम के लिए भारतीय क्षितिज पर हमेशा एक चमकते सितारे की तरह चमकती रहेंगी। फुले अम्बेडकर-भक्ति परंपराओं में रुचि रखने वाले किसी भी अध्येता के लिए उनका लिखा निश्चय ही सबसे महत्वपूर्ण रहेगा..."