किसान आंदोलन: कृषि कानूनों के विरोध में 17 जनवरी से दिल्ली-लोनी बॉर्डर को भी बंद करेंगे किसान

Written by Navnish Kumar | Published on: January 16, 2021
नई दिल्ली। कृषि कानूनों के विरोध में सिंघु, टिकरी व गाजीपुर बॉर्डर के बाद अब कल 17 जनवरी से किसान दिल्ली-लोनी बॉर्डर को भी बंद करेंगे। शुक्रवार को खेकड़ा बागपत के मोहल्ला मुंडाला में खाप चौधरी जितेंद्र धामा के आवास पर किसानों की पंचायत में यह निर्णय लिया गया। खाप पंचायत में 17 जनवरी से लोनी बॉर्डर पर भी धरना शुरू करने और उसे पूरी तरह से बंद करने का निर्णय लिया गया। वक्ताओं ने कहा कि जब तक कृषि कानून वापस नहीं लिए जाते तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा।



खास है कि खेकड़ा गांव में हुई पंचायत की अध्यक्षता धामा खाप के चौधरी जितेंद्र धामा और संचालन सुनील धामा सांकरौद ने किया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वक्ताओं ने कहा कि सिंघु बॉर्डर के बंद होने से सारे वाहन दिल्ली-शामली राजमार्ग से होते हुए लोनी बॉर्डर से ही दिल्ली जा रहे हैं।

इसलिए अब किसान 17 जनवरी से लोनी बॉर्डर को भी पूरी तरह से धरना देकर बंद करेंगे। उन्होंने कहा कि जब तक कृषि कानून वापस नहीं लिए जाते तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा। पंचायत में रालोद के जिला उपाध्यक्ष ब्रह्मपाल सिंह, नीरज धामा, सुधीर चौधरी, देवेंद्र सिंह, नेपाल मास्टर, महिपाल, ओमवीर सभासद, हरपाल सिंह, राममेहर सिंह, किरणपाल, जयसिंह आदि रहे।



उधर, किसान आंदोलन में सरकार से नौवें दौर की ‘वार्ता’ बेनतीजा रही और ‘डेडलॉक’ के बीच ‘डायलॉग’ के लिए अगली तारीख 19 जनवरी मुकर्रर हुई है। अगली वार्ता से पहले 16 जनवरी शनिवार को संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में आंदोलन और रणनीति के अगले रोडमैप पर मंथन होने वाला है। 

नौवें दौर की वार्ता में सुप्रीम कोर्ट से तीनों कानूनों के अमल पर रोक, बनाए गए पैनल व पैनल के एक सदस्य भाकियू (मान) के भूपिंदर सिंह मान के अलग होने के बाद के हालात पर बात हुई। सरकार की ओर से कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि फिलहाल तीनों कानूनों के अमल पर सुप्रीम कोर्ट की रोक है और हम फैसले का सम्मान करते हैं, इसलिए खुले मन से चर्चा हो। कृषि मंत्री के किसानों को सुप्रीम कोर्ट के पैनल के सामने भी अपना पक्ष रखने के जवाब में, किसान संगठनों ने एक स्वर से जता दिया कि वे सुप्रीम कोर्ट के पैनल के सामने अपना पक्ष नहीं रखने वाले हैं। वे अपनी बात सरकार के सामने ही रखेंगे और पहले दिन से ही उनकी, तीनों कृषि कानूनों की वापसी और न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी की ही मांग है। 

कृषि मंत्री ने किसान संगठनों के सामने, सुप्रीम कोर्ट के पैनल से इतर सरकार और किसान संगठनों का एक अनौपचारिक पैनल (कमेटी) बनाकर विवादित मुद्दों पर औपचारिक चर्चा का नया प्रस्ताव भी रखा जिसे भी किसान संगठनों ने यह कहकर ठुकरा दिया कि, हम चर्चा ही तो कर रहे हैं। कृषि मंत्री तोमर का कहना था कि 7 या 11 सदस्यीय अनौपचारिक पैनल (छोटी समिति) बनाकर बात की जाए। इस पर किसान नेताओं ने कहा कि 400-500 किसान संगठनों के इस आंदोलन में, वार्ता में महज 41 किसान संगठनों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं तो इससे छोटी समिति और क्या हो सकती है। 

किसान नेताओं ने, एक तरफ वार्ता करने और दूसरी तरफ किसान आंदोलन का दमन करने का मुद्दा भी उठाया। किसान नेताओं ने हाल की हरियाणा की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेश, राजस्थान में न केवल आंदोलनकारी किसानों पर बल प्रयोग किया गया बल्कि अकेले हरियाणा में ही 800-900 किसानों पर मामले दर्ज किए गए हैं। किसानों पर धारा-302 के तहत मामले दर्ज किए गए हैं। यही नहीं, आंदोलन के दौरान अलग-अलग वजहों से मृत किसानों के परिजनों को आर्थिक मदद (50-50 हजार) देने वाले मददगारों (आढ़तिये आदि) पर आयकर-ईडी के छापे डाले जा रहे हैं। उनसे फंडिंग को लेकर सवाल किए जा रहे हैं। महिलाओं को आंदोलन में लाने वाले ट्रांसपोर्टरों पर मुकदमे दर्ज किए गए हैं। 

किसान नेताओं ने सवाल उठाए कि एक तरफ, दमनात्मक कार्रवाई की जा रही है, तो दूसरी तरफ फिर वार्ता की तारीख दी जा रही है। कृषि मंत्री तोमर ने भरोसा दिया कि वह हरियाणा सरकार से बात कर आगे बताने की स्थिति में होंगे। लगे हाथ सरकार ने भी अपील की कि वार्ता और सुप्रीम कोर्ट से हल तक आंदोलन वापस ले लिया जाए। बहरहाल, दावों-प्रतिदावों के बीच दोनों पक्ष के तेवर नरम नहीं पड़े हैं। अगली वार्ता 19 को है लेकिन उससे एक दिन पहले 18 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई है।

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