"किसान नेताओं के अनुसार, पांच फसलों पर एमएसपी देंगे तो बाकी किसानों का क्या होगा? हमारी मांग है कि पूरे देश में किसानों की 23 फसलों पर एमएसपी दी जाए। दूसरा, सरकार ने स्वामीनाथन फॉर्मूले के अनुरूप एमएसपी, किसान कर्ज माफी आदि जैसी मांगों पर भी कुछ नहीं कहा है। उलटे जो प्रस्ताव रखा है, उससे संकेत मिलता है कि इसके जरिए वह कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को ही प्रोत्साहित करना चाहती है। जबकि 2020 के किसान आंदोलन में कांट्रैक्ट फॉर्मिंग का विरोध एक प्रमुख पहलू था।"
सरकार और किसानों के बीच चौथी बातचीत के बाद सरकार ने 5 फसलों पर 5 साल के लिए MSP पर गारंटी देने की बात कही है। किसानों ने सरकार के ऑफर को ठुकरा दिया है। किसानों की तरफ से कहा गया है कि वो अब 21 फरवरी को 'दिल्ली कूच' करेंगे। सरकार ने अपने प्रस्ताव में कहा था कि मक्का, तूर, अरहर, उड़द और कपास की फसल को MSP पर पांच साल तक सरकार खरीदेगी। NCCF और NAFED जैसे कोआपरेटिव सोसायटी किसानों के साथ करार करेंगी। किसान नेताओं ने सरकार के प्रस्ताव को सोमवार को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इसमें किसानों की एमएसपी की मांग को ‘‘भटकाने और कमजोर करने'' की कोशिश की गई है और वे स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में अनुशंसित एमएसपी के लिए 'सी -2 प्लस 50 प्रतिशत' फार्मूला से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे। किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल ने कहा, ‘‘हमने (केंद्र के प्रस्ताव पर) चर्चा करने के बाद यह निर्णय लिया है कि केंद्र का प्रस्ताव किसानों के हित में नहीं है और हम इस प्रस्ताव को अस्वीकार करते हैं।''
केंद्र का प्रस्ताव मुख्य मांगों से भटकाने वाला
सरकार के प्रस्ताव (एमएसपी गारंटी पर) को खारिज करने के कारण की बाबत दल्लेवाल ने कहा कि उन्होंने (केंद्रीय प्रतिनिधियों) बैठक के दौरान कहा था कि वे देश की सभी फसलें खरीदेंगे, लेकिन बाहर प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने बिल्कुल अलग बात कही। इसका मतलब यह है कि यह किसानों के साथ एक तरह का अन्याय है। उन्होंने कहा कि दालों पर एमएसपी सुनिश्चित करने के लिए 1.5 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। लेकिन हमारे विशेषज्ञ ने कहा कि यह पूरी तरह से गलत है, पूरी फसल 1.75 लाख करोड़ रुपये में खरीदी जा सकती है। 21 फरवरी के लिए हम सरकार से शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन (दिल्ली तक मार्च) करने देने का अनुरोध करते हैं।
किसान नेताओं ने केंद्र के 5 साल के MSP कॉन्ट्रैक्ट प्रस्ताव को “किसानों की मुख्य मांगों को भटकाने वाला” बताते हुए इसकी आलोचना की और 2014 के आम चुनाव से पहले भाजपा के घोषणापत्र में किए गए वादे के अनुसार गारंटीशुदा खरीद के साथ “सभी फसलों (उपरोक्त पांच सहित 23) की खरीद से कम कुछ भी नहीं” पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि पांच फसलों पर एमएसपी देंगे तो बाकी किसानों का क्या होगा? हमारी मांग है कि पूरे देश में किसानों की 23 फसलों पर एमएसपी दी जाए।
21 को दिल्ली कूच, कुछ हुआ तो सरकार की जिम्मेवारी: सरवन सिंह पंधेर
किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने साफ किया है कि अगर सरकार किसानों से बातचीत के जरिये समस्या का हल निकालना चाहती है तो हमें दिल्ली की तरफ बढ़ने से ना रोका जाए। पंधेर ने आगे कहा कि जब हम दिल्ली की ओर बढ़े तो गोलाबारी हुई। ट्रैक्टरों के टायरों पर कई गोलियां भी लगीं हैं। वहीं, हरियाणा के डीजीपी ने कहा कि वे किसानों पर आंसू गैस का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। पंधेर ने आंसू गैस का इस्तेमाल करने वालों के लिए सजा की मांग की है। कहा कि गलत बयान दिए जा रहे हैं जिसके चलते हरियाणा में अब कश्मीर जैसे हालात बन गए हैं। पंधेर ने कहा कि सरकार ने हमें एक प्रस्ताव दिया है ताकि हम अपनी मूल मांगों से पीछे हट जाएं। लेकिन अब हम 21 फरवरी को दिल्ली की ओर कूच करेंगे। कहा कि अब जो भी होगा उसके लिए सरकार ही जिम्मेदार होगी।
कांट्रैक्ट फार्मिंग को ही प्रोत्साहित कर रही केंद्र सरकार?
सरकार ने किसानों को प्रस्ताव दिया है कि अगर किसान इसे मान लें, तो जमीन के नीचे जलस्तर घटने की समस्या का भी समाधान हो जाएगा। सवाल है कि क्या किसान आंदोलन जल स्तर की इस समस्या के समाधान के लिए चलता रहा है? सरकार ने कहा है कि अगर किसान इस प्रस्ताव को मान लें, तो पंजाब में खेती धान और गेहूं पर ही केंद्रित नहीं रह जाएगी। इस तरह जमीन के नीचे जलस्तर घटने की समस्या का समाधान होगा। मगर प्रश्न यह है कि क्या किसान आंदोलन पंजाब की इस समस्या के समाधान के लिए चल रहा है? खास है कि केंद्रीय प्रतिनिधिमंडल और मध्यस्थ पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की तरफ से यह सारा समाधान पंजाब- हरियाणा को ध्यान में रखते हुए सुझाया गया था। ऐसे में अगर एक बारी इसे मान भी लें तो भी बाकी प्रदेशों और किसानों का क्या होगा?। यही नहीं, केंद्र सरकार ने स्वामीनाथन फॉर्मूले के अनुरूप एमएसपी, किसान कर्ज माफी आदि जैसी मांगों पर कुछ नहीं कहा है। उलटे जो प्रस्ताव रखा है, उससे संकेत मिलता है कि इसके जरिए वह कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को ही प्रोत्साहित करना चाहती है। जबकि 2020 के किसान आंदोलन में इसका विरोध भी एक प्रमुख पहलू था।
एसकेएम ने अब तक हुई चार दौर की वार्ताओं में पारदर्शिता की कमी को लेकर भी सरकार की आलोचना की और सरकार से अन्य मांगों पर भी बात आगे बढ़ाए जाने की मांग की है। जिसमें ऋण माफी, बिजली दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं और 2020/21 के विरोध प्रदर्शन के दौरान दर्ज किए गए पुलिस मामलों को वापस लेना शामिल है। एसकेएम ने कहा कि व्यापक सार्वजनिक क्षेत्र की फसल बीमा योजना और 60 वर्ष से अधिक उम्र के किसानों को 10,000 रुपये की मासिक पेंशन जैसी मांगों पर भी कोई प्रगति नहीं हुई है। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसानों की मौत के मामले में गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी पर मुकदमा चलाने की मांग का भी समाधान नहीं हुआ है।
MSP के अलावा ये हैं किसानों की प्रमुख मांगें
सरकार और किसानों के बीच चौथी बातचीत के बाद सरकार ने 5 फसलों पर 5 साल के लिए MSP पर गारंटी देने की बात कही है। किसानों ने सरकार के ऑफर को ठुकरा दिया है। किसानों की तरफ से कहा गया है कि वो अब 21 फरवरी को 'दिल्ली कूच' करेंगे। सरकार ने अपने प्रस्ताव में कहा था कि मक्का, तूर, अरहर, उड़द और कपास की फसल को MSP पर पांच साल तक सरकार खरीदेगी। NCCF और NAFED जैसे कोआपरेटिव सोसायटी किसानों के साथ करार करेंगी। किसान नेताओं ने सरकार के प्रस्ताव को सोमवार को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इसमें किसानों की एमएसपी की मांग को ‘‘भटकाने और कमजोर करने'' की कोशिश की गई है और वे स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में अनुशंसित एमएसपी के लिए 'सी -2 प्लस 50 प्रतिशत' फार्मूला से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे। किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल ने कहा, ‘‘हमने (केंद्र के प्रस्ताव पर) चर्चा करने के बाद यह निर्णय लिया है कि केंद्र का प्रस्ताव किसानों के हित में नहीं है और हम इस प्रस्ताव को अस्वीकार करते हैं।''
केंद्र का प्रस्ताव मुख्य मांगों से भटकाने वाला
सरकार के प्रस्ताव (एमएसपी गारंटी पर) को खारिज करने के कारण की बाबत दल्लेवाल ने कहा कि उन्होंने (केंद्रीय प्रतिनिधियों) बैठक के दौरान कहा था कि वे देश की सभी फसलें खरीदेंगे, लेकिन बाहर प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने बिल्कुल अलग बात कही। इसका मतलब यह है कि यह किसानों के साथ एक तरह का अन्याय है। उन्होंने कहा कि दालों पर एमएसपी सुनिश्चित करने के लिए 1.5 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। लेकिन हमारे विशेषज्ञ ने कहा कि यह पूरी तरह से गलत है, पूरी फसल 1.75 लाख करोड़ रुपये में खरीदी जा सकती है। 21 फरवरी के लिए हम सरकार से शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन (दिल्ली तक मार्च) करने देने का अनुरोध करते हैं।
किसान नेताओं ने केंद्र के 5 साल के MSP कॉन्ट्रैक्ट प्रस्ताव को “किसानों की मुख्य मांगों को भटकाने वाला” बताते हुए इसकी आलोचना की और 2014 के आम चुनाव से पहले भाजपा के घोषणापत्र में किए गए वादे के अनुसार गारंटीशुदा खरीद के साथ “सभी फसलों (उपरोक्त पांच सहित 23) की खरीद से कम कुछ भी नहीं” पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि पांच फसलों पर एमएसपी देंगे तो बाकी किसानों का क्या होगा? हमारी मांग है कि पूरे देश में किसानों की 23 फसलों पर एमएसपी दी जाए।
21 को दिल्ली कूच, कुछ हुआ तो सरकार की जिम्मेवारी: सरवन सिंह पंधेर
किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने साफ किया है कि अगर सरकार किसानों से बातचीत के जरिये समस्या का हल निकालना चाहती है तो हमें दिल्ली की तरफ बढ़ने से ना रोका जाए। पंधेर ने आगे कहा कि जब हम दिल्ली की ओर बढ़े तो गोलाबारी हुई। ट्रैक्टरों के टायरों पर कई गोलियां भी लगीं हैं। वहीं, हरियाणा के डीजीपी ने कहा कि वे किसानों पर आंसू गैस का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। पंधेर ने आंसू गैस का इस्तेमाल करने वालों के लिए सजा की मांग की है। कहा कि गलत बयान दिए जा रहे हैं जिसके चलते हरियाणा में अब कश्मीर जैसे हालात बन गए हैं। पंधेर ने कहा कि सरकार ने हमें एक प्रस्ताव दिया है ताकि हम अपनी मूल मांगों से पीछे हट जाएं। लेकिन अब हम 21 फरवरी को दिल्ली की ओर कूच करेंगे। कहा कि अब जो भी होगा उसके लिए सरकार ही जिम्मेदार होगी।
कांट्रैक्ट फार्मिंग को ही प्रोत्साहित कर रही केंद्र सरकार?
सरकार ने किसानों को प्रस्ताव दिया है कि अगर किसान इसे मान लें, तो जमीन के नीचे जलस्तर घटने की समस्या का भी समाधान हो जाएगा। सवाल है कि क्या किसान आंदोलन जल स्तर की इस समस्या के समाधान के लिए चलता रहा है? सरकार ने कहा है कि अगर किसान इस प्रस्ताव को मान लें, तो पंजाब में खेती धान और गेहूं पर ही केंद्रित नहीं रह जाएगी। इस तरह जमीन के नीचे जलस्तर घटने की समस्या का समाधान होगा। मगर प्रश्न यह है कि क्या किसान आंदोलन पंजाब की इस समस्या के समाधान के लिए चल रहा है? खास है कि केंद्रीय प्रतिनिधिमंडल और मध्यस्थ पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की तरफ से यह सारा समाधान पंजाब- हरियाणा को ध्यान में रखते हुए सुझाया गया था। ऐसे में अगर एक बारी इसे मान भी लें तो भी बाकी प्रदेशों और किसानों का क्या होगा?। यही नहीं, केंद्र सरकार ने स्वामीनाथन फॉर्मूले के अनुरूप एमएसपी, किसान कर्ज माफी आदि जैसी मांगों पर कुछ नहीं कहा है। उलटे जो प्रस्ताव रखा है, उससे संकेत मिलता है कि इसके जरिए वह कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को ही प्रोत्साहित करना चाहती है। जबकि 2020 के किसान आंदोलन में इसका विरोध भी एक प्रमुख पहलू था।
एसकेएम ने अब तक हुई चार दौर की वार्ताओं में पारदर्शिता की कमी को लेकर भी सरकार की आलोचना की और सरकार से अन्य मांगों पर भी बात आगे बढ़ाए जाने की मांग की है। जिसमें ऋण माफी, बिजली दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं और 2020/21 के विरोध प्रदर्शन के दौरान दर्ज किए गए पुलिस मामलों को वापस लेना शामिल है। एसकेएम ने कहा कि व्यापक सार्वजनिक क्षेत्र की फसल बीमा योजना और 60 वर्ष से अधिक उम्र के किसानों को 10,000 रुपये की मासिक पेंशन जैसी मांगों पर भी कोई प्रगति नहीं हुई है। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसानों की मौत के मामले में गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी पर मुकदमा चलाने की मांग का भी समाधान नहीं हुआ है।
MSP के अलावा ये हैं किसानों की प्रमुख मांगें
- मनरेगा में हर साल 200 दिन का काम मिले। इसके लिए 700 रुपये की दिहाड़ी तय हो।
- डॉ. स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के हिसाब से MSP की कीमत तय हो।
- किसान और खेतिहर मजदूरों का कर्जा माफ हो, उन्हें पेंशन दिया जाए।
- भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 दोबारा लागू किया जाए।
- लखीमपुर खीरी कांड के दोषियों को सजा मिले।
- मुक्त व्यापार समझौते पर रोक लगाई जाए।
- विद्युत संशोधन विधेयक 2020 को रद्द किया जाए।
- किसान आंदोलन में मृतक किसानों के परिवारों को मुआवजा मिले और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी मिले।
- नकली बीज, कीटनाशक, दवाइयां और खाद वाली कंपनियों पर सख्त कानून बनाया जाए।
- मिर्च, हल्दी और अन्य मसालों के लिए राष्ट्रीय आयोग का गठन किया जाए।
- संविधान की सूची 5 को अलग कर आदिवासियों की जमीन की लूट बंद की जाए।
पंजाब सरकार पर भी सवाल
पंजाब सरकार के एनडीए के साथ मिले होने के आरोपों पर सरवन सिंह पंधेर ने कहा कि हम पंजाब सरकार से यह स्पष्ट करना चाहते हैं। पंधेर ने कहा कि पंजाब के 7 जिलों में इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दी गई हैं। पंजाब सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि क्या उन्होंने भी अनुमति दी है, क्या वे भी चाहते हैं...क्या आपका ऑपरेशन हरियाणा के साथ मिलकर चल रहा है? पंजाब में इंटरनेट बंद नहीं किया जाना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि केंद्र ने राज्य सरकार से पूछे बिना ऐसा किया है। किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल ने कहा कि बॉर्डर पर किसानों के साथ जिस तरह का व्यवहार किया गया, वह निंदनीय है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को बैठकों में आमंत्रित करने का मुख्य कारण सीमा पर बैरिकेडिंग का मुद्दा उठाना था और उनके राज्य (पंजाब) के लोगों को पड़ोसी राज्य से आंसू गैस की गोलाबारी का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने स्थिति पर ध्यान देने की गारंटी दी, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्हें यह मुद्दा मंत्रियों के सामने रखना चाहिए था। और आज हरियाणा के डीजीपी ने अपने बयान में कहा कि हमने पैलेट गन और आंसू गैस का इस्तेमाल नहीं किया है। हम सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध करते हैं कि जिन लोगों ने यह कृत्य किया है, उनके खिलाफ स्वत: संज्ञान लिया जाए।
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