महापंचायतों में किसानों की स्वतः स्फूर्त लामबंदी ने बढ़ाई मोदी सरकार की चिंता

Written by Navnish Kumar | Published on: February 2, 2021
मौजूदा किसान आंदोलन का हश्र चाहे जो हो, लेकिन इसने मौजूदा सरकार के तहत, क्रोनी कैपिटलिज्म के सामने आए बदनुमा चेहरे को बेनकाब कर दिया है। यही नहीं, आंदोलन ने साफ संकेत दिया है कि राजनीतिक कथानक पर मौजूदा शासनतंत्र का जो कंट्रोल था, उसमें सेंध लग गई है। वरना, राकेश टिकैत के आंसू इतनी जल्दी इतना प्रभाव पैदा नहीं करते कि 26 जनवरी की घटनाओं से मनोबल को लगी चोट से आंदोलन उबर जाता। 



दरअसल लाल किला प्रकरण के बाद किसान आंदोलन और सिखों को बदनाम करने की जो साज़िश रची गई उसे देख एनसीआर और उससे जुड़े यूपी व हरियाणा में रातोंरात जबरदस्त प्रतिक्रिया देखने को मिली है। लोग स्वतः स्फूर्त लामबंद होते चले गए। इससे आंदोलन का केंद्र भी पंजाब से थोड़ा खिसकते हुए उत्तर प्रदेश व हरियाणा की तरफ हो गया है। जिसके चलते आंदोलन को सिखों और उनके बहाने खालिस्तानी प्रभाव जैसे प्रचार से जोड़ना भी अब मुश्किल हो गया है।

बात वेस्ट यूपी की ही करें तो मुजफ्फरनगर, मथुरा, बड़ौत के बाद बिजनौर में हुई महापंचायत में उमड़े स्वतः स्फूर्त जनसैलाब (लामबंदी) से साफ है कि पासा पलट गया है। अब सरकार की अगली बाजी क्या होगी, यह देखने की बात होगी।

सोमवार को बिजनौर में भारतीय किसान यूनियन के बैनर तले किसान सम्मान महापंचायत में भारी संख्या में किसान जमा हुए। भाकियू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत, रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी समेत तमाम दिग्गज नेता महापंचायत में हिस्सा लेने पहुंचे। हालांकि किसी भी राजनीतिक दल को मंच पर जगह नहीं दी गई। सपा जिलाध्यक्ष राशिद हुसैन, विधायक नईम उल हसन, तस्लीम अहमद व मनोज पारस, पूर्व मंत्री स्वामी ओमवेश व मूलचंद चौहान किसानों के बीच ही बैठे। वक्ताओं ने कहा कि किसानों ने अपना हक मांग लिया तो आज उन्हें गद्दार कहा जा रहा है। राकेश टिकैत के आंसुओं ने पूरे देश के किसानों की आंखें खोल दी हैं। अब देश का किसान किसी से पीछे हटने वाला नहीं है।

वहीं, रविवार को दिल्ली-सहारनपुर हाईवे पर बड़ौत में सर्वखाप चौधरियों की अगुवाई में महापंचायत हुई। जिसमें किसानों पर लाठीचार्ज, गाजीपुर बॉर्डर पर भाजपा विधायक की हरकत पर कड़ी नाराजगी जाहिर की। पांच घंटे चली महापंचायत में हजारों लोगों की भीड़ उमड़ी। देशखाप के चौधरी सुरेंद्र सिंह, चौगामा खाप के चौधरी कृषिपाल राणा, चौबीसी खाप के चौधरी सुभाष, थांबेदार यशपाल चौधरी, जयपाल चौधरी, ब्रजपाल चौधरी, पंवार खाप चौधरी धर्मवीर सिंह पंवार ने ऐलान किया कि गाजीपुर बॉर्डर पर सर्वजातीय और सर्वसमाज के किसान पूरी ताकत झोंक देंगे।

दरअसल, गुस्सा किसान आंदोलन को बदनाम करने की कोशिशों को लेकर ज्यादा है। सरकार ने किसानों के सेक्युलर संघर्ष के सामने ख़ालिस्तान नैरेटिव लाने की कोशिश की और कुछ हद तक इसमें कामयाब भी हुई। शुरुआत में यह लगा भी कि इस नैरेटिव से काफ़ी नुक़सान होगा। हौसला भी जरूर कुछ कमज़ोर पड़ा। जिसका फ़ायदा उठाते हुए सरकार ने संघर्ष को ख़त्म करने के प्रयास भी शुरू कर दिए थे। कई बार प्रदर्शन स्थलों को ख़ाली कराने की कोशिश की गई, लेकिन राकेश टिकैत के उस भावुक वीडियो ने प्रदर्शन को नई ऊर्जा देने का काम किया है। दो मिनट के उस वीडियो ने सरकार के ख़िलाफ़ संषर्घ को दोबारा खड़ा करने का प्रयास ही नहीं किया है, बल्कि पहले से चले आ रहे प्रदर्शन को चिंगारी दे दी है और इससे प्रदर्शन की आग और धधक उठी है। अब गांव गांव आवाज बुलंद हो रही हैं कि प्रदर्शन तब तक वापस नहीं लिया जाएगा, जब तक सरकार क़ानून को रद्द नहीं कर देती। यानि किसान आंदोलन को एक नई ऊर्जा मिल गई हैं। 

इससे मोदी सरकार की भी चिंता बढ़ गई हैं। 'टेलीग्राफ' में छपी ख़बर के मुताबिक, प्रधानमंत्री मोदी ने शनिवार को जो बयान दिया, उससे संकेत मिलता है कि सरकार की चिंताएं बढ़ गई हैं क्योंकि गणतंत्र दिवस के दिन हुई हिंसा से किसानों की साख पर उठे सवाल कमज़ोर पड़ते जा रहे हैं और किसान आंदोलन दोबारा मज़बूत होता नज़र आ रहा है। ख़बर में कहा गया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने 150 से अधिक किसानों की धरने के दौरान हुई मौत के बावजूद प्रदर्शनकारी किसानों की तरफ़ हाथ नहीं बढ़ाया, लेकिन अब उनका रुख़ बदला हुआ लग रहा है।

कुछ समय पहले तक मोदी सरकार को लग रहा था कि किसान आंदोलन पंजाब केंद्रित है जिसे कुछ समर्थन हरियाणा से भी मिल रहा है। लेकिन अब सरकार के कान खड़े हो रहे हैं क्योंकि उत्तर प्रदेश में अगले साल चुनाव होना है। बीजेपी के भीतर भी कई लोगों को लग रहा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश किसान आंदोलन का प्रमुख केंद्र बन सकता है जो योगी सरकार के लिए अच्छी ख़बर नहीं होगी।

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