ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपुल (AIUFWP) ने उत्तराखंड की राजधानी देहरादून और उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में 14 दिसंबर को केंद्र द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों का विरोध करते हुए देश के किसानों के साथ एकजुटता दिखाई।
एआईयूएफडब्लूपी के महासचिव अशोक चौधरी ने कहा, राष्ट्रव्यापी आंदोलन प्रभावशाली गति से आगे बढ़ रहा है और मध्यम वर्ग के लोग भी किसानों के साथ जुड़ रहे हैं। मुझे लगता है कि आजादी के बाद यह पहली बार है जब केंद्र सरकार किसान विद्रोह के कारण बैकफुट पर आ गई है। किसानों और जनता के रूप में जिन्होंने सरकारी अथॉरिटी का विरोध किया है वो आदिवासी किसान की दुर्दशा को भी जानते हैं और उनके साथ खड़े रहने का वादा करते हैं।
देहरादून शहर में महिला कार्यकर्ताओं और अखिल भारतीय किसान सभा के सदस्यों सहित लगभग 200 लोग इकट्ठे हुए और तीनों अध्यादेशों (मूल्य आश्वासन पर किसान (संरक्षण एवं सशक्तिकरण) समझौता और कृषि सेवा, आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन,कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश) के खिलाफ प्रदर्शन किया।
इसी तरह सहारनपुर में भी जिला कलेक्ट्रेट के बाहर भी कानूनों का विरोध करने के लिए प्रदर्शनकारी इकट्ठा हुए। चौधरी के अनुसार, समूह बड़ा होता लेकिन समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेताओं को पहले नजरबंद कर दिया गया। बहरहाल, उन्होंने कहा कि पुलिस ने इकट्ठे आंदोलनकारियों को परेशान नहीं किया।
चौधरी ने कंपनियों पर सीधे हमला करने के लिए किसानों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि यह सरकार भारत के लोगों के बजाय कॉरपोरेट्स की है। इसलिए, यह अच्छा है कि लोग सरकार को नागरिक की इच्छा के बारे में याद दिला रहे हैं। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि आदिवासी समूहों ने 15 दिसंबर को 'वन अधिकार दिवस' पर आंदोलन तेज करने की योजना बनाई है।
उन्होंने कहा, "हमारे घरों को जलाने और हमारी भूमि के दोहन की निंदा करने के लिए वन अधिकार दिवस मनाते हुए, हम एक बार फिर किसान आंदोलन के लिए अपना समर्थन देंगे।"
एआईयूएफडब्लूपी के महासचिव अशोक चौधरी ने कहा, राष्ट्रव्यापी आंदोलन प्रभावशाली गति से आगे बढ़ रहा है और मध्यम वर्ग के लोग भी किसानों के साथ जुड़ रहे हैं। मुझे लगता है कि आजादी के बाद यह पहली बार है जब केंद्र सरकार किसान विद्रोह के कारण बैकफुट पर आ गई है। किसानों और जनता के रूप में जिन्होंने सरकारी अथॉरिटी का विरोध किया है वो आदिवासी किसान की दुर्दशा को भी जानते हैं और उनके साथ खड़े रहने का वादा करते हैं।
देहरादून शहर में महिला कार्यकर्ताओं और अखिल भारतीय किसान सभा के सदस्यों सहित लगभग 200 लोग इकट्ठे हुए और तीनों अध्यादेशों (मूल्य आश्वासन पर किसान (संरक्षण एवं सशक्तिकरण) समझौता और कृषि सेवा, आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन,कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश) के खिलाफ प्रदर्शन किया।
इसी तरह सहारनपुर में भी जिला कलेक्ट्रेट के बाहर भी कानूनों का विरोध करने के लिए प्रदर्शनकारी इकट्ठा हुए। चौधरी के अनुसार, समूह बड़ा होता लेकिन समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेताओं को पहले नजरबंद कर दिया गया। बहरहाल, उन्होंने कहा कि पुलिस ने इकट्ठे आंदोलनकारियों को परेशान नहीं किया।
चौधरी ने कंपनियों पर सीधे हमला करने के लिए किसानों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि यह सरकार भारत के लोगों के बजाय कॉरपोरेट्स की है। इसलिए, यह अच्छा है कि लोग सरकार को नागरिक की इच्छा के बारे में याद दिला रहे हैं। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि आदिवासी समूहों ने 15 दिसंबर को 'वन अधिकार दिवस' पर आंदोलन तेज करने की योजना बनाई है।
उन्होंने कहा, "हमारे घरों को जलाने और हमारी भूमि के दोहन की निंदा करने के लिए वन अधिकार दिवस मनाते हुए, हम एक बार फिर किसान आंदोलन के लिए अपना समर्थन देंगे।"