किसान जान गया है कि कॉरपोरेट के तोते में मोदी सरकार की जान बसी है !

Written by Navnish Kumar | Published on: December 11, 2020
नरेंद्र मोदी सरकार के रूख से साफ है कि वह कृषि कानूनों को रद्द करने पर राजी नहीं है। दरअसल व्यापक विचार विमर्श या लोकतांत्रिक आलोचना के आगे झुकना, मोदी सरकार की कार्यशैली का हिस्सा नहीं है। यह बात पिछले साल नागरिकता संशोधन कानून के संदर्भ में भी साफ हुई थी। लेकिन चूंकि तब विवाद में एक तत्व मुसलमान था, तो सत्ताधारी जमात ने उस मुद्दे पर हो रही गोलबंदी को अपने लिए फायदेमंद समझा। सरकार के दुष्प्रचार, सख्ती और कोरोना महामारी की मार के कारण वो आंदोलन समाप्त हो गया। अब काफी कुछ वही नजरिया किसान आंदोलन के सिलसिले में देखने को मिल रहा है। इस बार चूंकि बात किसानों की है और उसे मध्य वर्ग का भी बड़ा समर्थन मिला है, इसलिए बातचीत का दिखावा किया जा रहा है। लेकिन अब तक सरकार ने कोई ऐसी ठोस बात नहीं की है, जिसके आधार पर समझौता हो सके।



होना तो यह चाहिए था कि सरकार किसानों के व्यापक राय मशविरे से ही कानून बनाती लेकिन अभी भी वह इन अनचाहे कानूनों पर अमल को सस्पेंड कर, व्यापक राय-मशविरे से इन्हें नया रूप देती। लेकिन इसके विपरीत सत्ताधारी पार्टी के एक नेता ने तो यहां तक कह दिया है कि अगर कानून लागू नहीं हुए तो कॉरपोरेट सेक्टर नाराज हो जाएगा। इससे किसान और भड़के हैं। एक मंत्री चीन पाकिस्तान की साज़िश बता रहे लेकिन अब कृषि मंत्री ने साफ कर दिया है कि कृषि राज्य का विषय है और उन्होंने कृषि के लिए नहीं, बल्कि ट्रेडिंग के लिए ही कानून बनाया है। यानि मामला कारपोरेट का ही ज्यादा है, किसान तो बरायेनाम हैं।  

किसान संगठन भी कानूनों के पीछे की इस मंशा को भलीभांति जान व समझ गए हैं और इसकी पोल भी बखूबी खोल दे रहे हैं कि कैसे कानून आने से पहले सरकार के दो क्रोनी पूंजीपतियों अंबानी और अडानी ने कृषि से जुड़े कारोबारों में घुसने और उन पर कब्जा करने का ब्लूप्रिंट बनाया हुआ था। ये कानून उसी ब्लूप्रिंट पर अमल का दस्तावेज है। तभी किसानों ने ऐलान किया है कि अंबानी-अडानी-भाजपा का बहिष्कार करेंगे। यह भी देश के लोकतांत्रिक इतिहास में पहली बार हुआ है जब आंदोलनकारी किसानों ने क्रोनी पूंजीपतियों के साथ सत्तारूढ़ दल का नाम जोड़कर उसके बहिष्कार का ऐलान किया है।

किसान जान गया है कि कॉरपोरेट के तोते में मोदी सरकार की जान बसी है। कॉरपोरेट टेक्स में भारी भरकम कटौती के साथ बड़े कॉरपोरेट की लाखों करोड़ की कर्जमाफ़ी व निजीकरण के रास्ते चुनिंदा कॉरपोरेट को सब कुछ बेच देने की जल्दबाजी से भी साफ है कि सरकार इस तोते की सेहत के लिए किस कदर फिक्रमंद हैं। 

यही नहीं, नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत का यह बयान कि भारत में ज़्यादा लोकतंत्र विकास रोक रहा है, के पीछे भी कॉरपोरेट की ही चिंता झलकती है। जबकि प्लानिंग कमीशन का काम एक बैलेंस के साथ योजनाओं का खाका खींचना होता है। 

मोदी सरकार के साथ, उसके नीति आयोग की यही एकतरफा सोच, कृषि कानूनों की अनचाही सौगात के पीछे काम कर रही है। यही कारण है कि किसानों के निशाने पर सरकार के साथ कॉरपोरेट भी आ गया है। मोदी के साथ अंबानी अडानी के पुतले फूंकने और इनके बहिष्कार के ऐलान के पीछे भी यही सच छिपा है कि मोदी कॉरपोरेट के पीएम हैं। 

पंजाब में तो किसानों ने अब खुलकर अंबानी और अडानी घरानों के प्रतिष्ठानों के खिलाफ असहयोग की आवाज बुलंद कर दी है। किसानों ने कई जगहों पर रिलायंस पेट्रोल पंप पर ठप हो गए हैं और टेलीकॉम सेवा जियो के बहिष्कार का आह्वान किया है। मोगा जिले में अडानी समूह को अपना ऑपरेशन बंद करने पर मजबूर कर दिया है। दोआबा क्षेत्र में भी रिलायंस के पेट्रोल पंपों और जियो का बहिष्कार शुरु हो गया है।”

अडानी समूह को भी किसानों के गुस्से का शिकार होना पड़ा है। पंजाब के मोगा जिले में करीब 500 किसानों ने पिछले दो सप्ताह से अडानी समूह के प्रतिष्ठान का कामकाज ठप करा रखा है। 

किसान जान गए हैं कि अडानी अडानी को बहिष्कार के असहयोग के रास्ते पर चलकर ही हराया जा सकता है। यही कारण है कि किसान आंदोलन एक बड़ा सांस्कृतिक आंदोलन बनता जा रहा है जिसमें हर आदमी उस कॉरपोरेट के खिलाफ खड़ा होता जा रहा है जो संसाधनों का दोहन कर रहा है और बाजार पर कब्जा कर रहा है।

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