ताजमहल के लिए हवेली दान करने के बदले में शाहजहां द्वारा राजा जयसिंह को कई संपत्तियां (हवेलियां) लौटाई गई थीं। दस्तावेज बताते हैं कि अपने दादा राजा मानसिंह की रिहायशी हवेली जो ताजमहल बनाने के लिए स्वेच्छा से दान की गई थी, के बदले में शाहजहां द्वारा चार हवेलियां राजा जयसिंह को वापस की गई थीं।
मस्जिदों के निर्माण के लिए कथित तौर पर तोड़े और अपवित्र किए गए हिंदू मंदिरों की बहाली को लेकर मचे बवाल के बीच, किसी को भी दो समुदायों, जिनका वास्तव में सह-अस्तित्व का एक समृद्ध इतिहास है, के बीच दरार पैदा करने के निहित स्वार्थवश निर्मित और प्रचारित इतिहास को आंख मूंदकर नहीं मानना चाहिए।
हाईकोर्ट द्वारा ताजमहल के बंद कमरे खोलने के लिए याचिका को रद्द करने और याचिकाकर्ता को पहले "रिसर्च (पीएचडी) करने" के लिए कहने के अगले ही दिन, एक पुराना दस्तावेज सामने आया है जो बताता है कि कैसे मुगल राजाओं ने वास्तव में हिंदू राजाओं को उनकी संपत्ति वापस कर दी थी।
28 दिसंबर, 1633 का एक दस्तावेज बताता है कि कैसे सम्राट शाहजहाँ, जो उस समय ताजमहल का निर्माण करा रहे थे, ने दान की सद्भावना के चलते हिंदू राजा जयसिंह की भूमि और संपत्तियों को बहाल कर दिया था। खास है कि राजा जय सिंह ने अपने दादा राजा मानसिंह की एक रिहायशी हवेली को, मकबरे (ताजमहल) के निर्माण के लिए दान में दिया था।
17 जून, 1631 को बुरहानपुर में अपने 14वें बच्चे के जन्म के बाद, प्रसवोत्तर जटिलताओं के चलते मुमताज महल की मृत्यु हो गई थी, उन्हें बुरहानपुर में ही अस्थायी रूप से दफनाया गया था और दिसंबर 1631 में उनके पार्थिव शरीर को आगरा में यमुना के तट पर एक छोटी सी इमारत में ले जाया गया था। ताजमहल जिसके बनने में 20 वर्षों से ज्यादा का समय लग गया था, उनका अंतिम विश्राम स्थल रहा। शाहजहाँ को भी उसकी प्रिय पत्नी के बगल में ताजमहल में दफनाया गया था।
दस्तावेज़ बताते हैं कि कैसे मुगल शासकों ने अपने मूल मालिकों, हिंदू शासकों से ली गई भूमि और संपत्तियों को वापस कर दिया था, एक राजसी फरमान (शाही आज्ञा पत्र) है जो राजा जय सिंह को अकबराबाद में चार संपत्तियों का स्वामित्व प्रदान करता है। वी बेगली और जेडए देसाई द्वारा लिखित ताजमहल: द इल्यूमिनेटेड टॉम्ब नामक पुस्तक के पृष्ठ 171 पर लिखे इस शाही फरमान का अनुवाद इस प्रकार है।
"सौहार्द के तानेबाने से बंधे यह गौरवशाली फरमान, आपसी सम्मान और गरिमा (बड़प्पन) को दर्शाते हैं, तो वहीं हवेली के व्यापक समर्थन के साथ, उनकी निर्भरता को भी दर्शाते हैं खासकर राजशाही संपत्तियों को लेकर जिन्हें इस्लामी शासकों द्वारा जागीरदार के रूप में मित्र राजाओं को सौंप दिया जाता था और उनके स्वामित्व में स्थानांतरित कर दिया जाता है। उस वक्त मुगलों की पूरी मनसबदारी व्यवस्था में जयपुर राजघराने (राजा मानसिंह व जयसिंह आदि) का ऊंचा ओहदा था। जमीन के लिए शाहजहां ने 28 दिसम्बर 1633 को आमेर नरेश राजा जयसिंह के नाम एक फरमान (राजपत्र-आदेश) जारी किया था।
फरमान में राजा जयसिंह को एक गौरवशाली सरदार बताया गया। वहीं, इस फरमान में राजा जयसिंह द्वारा अपने दादा राजा मानसिंह की हवेली के मुमताज महल बेगम के मकबरे के लिए दान देने और उसके बदले में शाहजहां द्वारा कई संपत्तियां बहाल करने का जिक्र है। दुनियाभर में अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर मुगल साम्राज्ञी और बेगम मुमताज महल के मकबरे के लिए राजा जय सिंह ने स्वेच्छा से खुशी खुशी, हवेली दान कर दी थी। मुमताज महल, आदम और हव्वा की पवित्र संतान के रूप में सम्मानित होने के साथ साथ धर्म, शालीनता, ईश्वरीय दया और क्षमा की भी प्रतिमूर्ति थी।
फरमान पर पृष्ठांकित तथ्य बताते हैं:
"राजा जय सिंह जो कि मुगल राजाओं के प्रमुख मनसबदार और राज्य के प्रमुख स्तंभ ('उमदत-अल-मुल्क) थे, ने मुमताज महल के प्रबुद्ध मकबरे के लिए, खुशी खुशी स्वेच्छा से उपहार स्वरूप (पेशकश नमुदंड) दान दी थी। एतद्द्वारा उक्त राजा को बदले में हमारे द्वारा कई संपत्तियां प्रदान की गई थी और उस पर पूर्ण स्वामित्व बहाल कर दिया गया था।
पृष्ठ यहां देखे जा सकते हैं:
यह दो चीजें दिखाता है:
1) मकबरे के निर्माण के लिए जो हवेली दी गई थी, उसे राजा जय सिंह के परिवार ने स्वेच्छा से दान किया था।
2) सम्राट शाहजहाँ ने इस हवेली के बदले में जय सिंह को कई अन्य राज्य व संपत्तियों को बहाल कर दिया था।
वर्तमान में जारी मंदिर-मस्जिद विवादों जैसे ज्ञानवापी मस्जिद, जो काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी है और जिसे शाहजहाँ और मुमताज के बेटे औरंगजेब ने तोड़ा था, को देखें तो ये दोनों तथ्य खासे महत्वपूर्ण हैं।
हिंदुत्व के दक्षिणपंथी अतिवादी समूह जो व्हाट्सएप ग्रुप और ट्विटर पर अति सक्रिय रहते हैं, मुगल इतिहास के केवल एक पक्ष, औरंगजेब की क्रूरता को पेश करके नफरत फैलाने में व्यस्त हैं। लेकिन उन्होंने कभी यह नहीं बताया कि मुगल और राजपूत राजाओं के बीच किस कदर सौहार्द्र पूर्ण संबंध थे, या उस समय अंतर-धार्मिक विवाह कैसे आम थे, जिससे हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे के रिश्तेदार बन गए। वे (दक्षिणपंथी) केवल इस बारे में बात करते हैं कि कैसे "मुस्लिम आक्रमणकारियों" द्वारा हिंदू राजाओं की भूमि पर विजय प्राप्त की गई या हड़प लिया गया, लेकिन कभी भी इस बारे में बात नहीं करते कि कितने हिंदू राजाओं ने स्वेच्छा से मुगलों के साथ आम दुश्मनों को हराने के लिए गठबंधन किया, क्योंकि यह एक राजनीतिक मामला था। धर्म के साथ इसका कोई लेना देना नहीं है।
प्रसिद्ध गंगा-जमुनी तहज़ीब का जन्म, जिसे अब हम उत्तर प्रदेश राज्य कहते हैं, भारत की बहुलतावादी और समन्वित संस्कृति की आधारशिला रही है। हिंदू और मुसलमान देश के इस समृद्ध सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने को मिलकर बुनते हैं।
Trans: Navnish Kumar
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मस्जिदों के निर्माण के लिए कथित तौर पर तोड़े और अपवित्र किए गए हिंदू मंदिरों की बहाली को लेकर मचे बवाल के बीच, किसी को भी दो समुदायों, जिनका वास्तव में सह-अस्तित्व का एक समृद्ध इतिहास है, के बीच दरार पैदा करने के निहित स्वार्थवश निर्मित और प्रचारित इतिहास को आंख मूंदकर नहीं मानना चाहिए।
हाईकोर्ट द्वारा ताजमहल के बंद कमरे खोलने के लिए याचिका को रद्द करने और याचिकाकर्ता को पहले "रिसर्च (पीएचडी) करने" के लिए कहने के अगले ही दिन, एक पुराना दस्तावेज सामने आया है जो बताता है कि कैसे मुगल राजाओं ने वास्तव में हिंदू राजाओं को उनकी संपत्ति वापस कर दी थी।
28 दिसंबर, 1633 का एक दस्तावेज बताता है कि कैसे सम्राट शाहजहाँ, जो उस समय ताजमहल का निर्माण करा रहे थे, ने दान की सद्भावना के चलते हिंदू राजा जयसिंह की भूमि और संपत्तियों को बहाल कर दिया था। खास है कि राजा जय सिंह ने अपने दादा राजा मानसिंह की एक रिहायशी हवेली को, मकबरे (ताजमहल) के निर्माण के लिए दान में दिया था।
17 जून, 1631 को बुरहानपुर में अपने 14वें बच्चे के जन्म के बाद, प्रसवोत्तर जटिलताओं के चलते मुमताज महल की मृत्यु हो गई थी, उन्हें बुरहानपुर में ही अस्थायी रूप से दफनाया गया था और दिसंबर 1631 में उनके पार्थिव शरीर को आगरा में यमुना के तट पर एक छोटी सी इमारत में ले जाया गया था। ताजमहल जिसके बनने में 20 वर्षों से ज्यादा का समय लग गया था, उनका अंतिम विश्राम स्थल रहा। शाहजहाँ को भी उसकी प्रिय पत्नी के बगल में ताजमहल में दफनाया गया था।
दस्तावेज़ बताते हैं कि कैसे मुगल शासकों ने अपने मूल मालिकों, हिंदू शासकों से ली गई भूमि और संपत्तियों को वापस कर दिया था, एक राजसी फरमान (शाही आज्ञा पत्र) है जो राजा जय सिंह को अकबराबाद में चार संपत्तियों का स्वामित्व प्रदान करता है। वी बेगली और जेडए देसाई द्वारा लिखित ताजमहल: द इल्यूमिनेटेड टॉम्ब नामक पुस्तक के पृष्ठ 171 पर लिखे इस शाही फरमान का अनुवाद इस प्रकार है।
"सौहार्द के तानेबाने से बंधे यह गौरवशाली फरमान, आपसी सम्मान और गरिमा (बड़प्पन) को दर्शाते हैं, तो वहीं हवेली के व्यापक समर्थन के साथ, उनकी निर्भरता को भी दर्शाते हैं खासकर राजशाही संपत्तियों को लेकर जिन्हें इस्लामी शासकों द्वारा जागीरदार के रूप में मित्र राजाओं को सौंप दिया जाता था और उनके स्वामित्व में स्थानांतरित कर दिया जाता है। उस वक्त मुगलों की पूरी मनसबदारी व्यवस्था में जयपुर राजघराने (राजा मानसिंह व जयसिंह आदि) का ऊंचा ओहदा था। जमीन के लिए शाहजहां ने 28 दिसम्बर 1633 को आमेर नरेश राजा जयसिंह के नाम एक फरमान (राजपत्र-आदेश) जारी किया था।
फरमान में राजा जयसिंह को एक गौरवशाली सरदार बताया गया। वहीं, इस फरमान में राजा जयसिंह द्वारा अपने दादा राजा मानसिंह की हवेली के मुमताज महल बेगम के मकबरे के लिए दान देने और उसके बदले में शाहजहां द्वारा कई संपत्तियां बहाल करने का जिक्र है। दुनियाभर में अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर मुगल साम्राज्ञी और बेगम मुमताज महल के मकबरे के लिए राजा जय सिंह ने स्वेच्छा से खुशी खुशी, हवेली दान कर दी थी। मुमताज महल, आदम और हव्वा की पवित्र संतान के रूप में सम्मानित होने के साथ साथ धर्म, शालीनता, ईश्वरीय दया और क्षमा की भी प्रतिमूर्ति थी।
फरमान पर पृष्ठांकित तथ्य बताते हैं:
"राजा जय सिंह जो कि मुगल राजाओं के प्रमुख मनसबदार और राज्य के प्रमुख स्तंभ ('उमदत-अल-मुल्क) थे, ने मुमताज महल के प्रबुद्ध मकबरे के लिए, खुशी खुशी स्वेच्छा से उपहार स्वरूप (पेशकश नमुदंड) दान दी थी। एतद्द्वारा उक्त राजा को बदले में हमारे द्वारा कई संपत्तियां प्रदान की गई थी और उस पर पूर्ण स्वामित्व बहाल कर दिया गया था।
पृष्ठ यहां देखे जा सकते हैं:
यह दो चीजें दिखाता है:
1) मकबरे के निर्माण के लिए जो हवेली दी गई थी, उसे राजा जय सिंह के परिवार ने स्वेच्छा से दान किया था।
2) सम्राट शाहजहाँ ने इस हवेली के बदले में जय सिंह को कई अन्य राज्य व संपत्तियों को बहाल कर दिया था।
वर्तमान में जारी मंदिर-मस्जिद विवादों जैसे ज्ञानवापी मस्जिद, जो काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी है और जिसे शाहजहाँ और मुमताज के बेटे औरंगजेब ने तोड़ा था, को देखें तो ये दोनों तथ्य खासे महत्वपूर्ण हैं।
हिंदुत्व के दक्षिणपंथी अतिवादी समूह जो व्हाट्सएप ग्रुप और ट्विटर पर अति सक्रिय रहते हैं, मुगल इतिहास के केवल एक पक्ष, औरंगजेब की क्रूरता को पेश करके नफरत फैलाने में व्यस्त हैं। लेकिन उन्होंने कभी यह नहीं बताया कि मुगल और राजपूत राजाओं के बीच किस कदर सौहार्द्र पूर्ण संबंध थे, या उस समय अंतर-धार्मिक विवाह कैसे आम थे, जिससे हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे के रिश्तेदार बन गए। वे (दक्षिणपंथी) केवल इस बारे में बात करते हैं कि कैसे "मुस्लिम आक्रमणकारियों" द्वारा हिंदू राजाओं की भूमि पर विजय प्राप्त की गई या हड़प लिया गया, लेकिन कभी भी इस बारे में बात नहीं करते कि कितने हिंदू राजाओं ने स्वेच्छा से मुगलों के साथ आम दुश्मनों को हराने के लिए गठबंधन किया, क्योंकि यह एक राजनीतिक मामला था। धर्म के साथ इसका कोई लेना देना नहीं है।
प्रसिद्ध गंगा-जमुनी तहज़ीब का जन्म, जिसे अब हम उत्तर प्रदेश राज्य कहते हैं, भारत की बहुलतावादी और समन्वित संस्कृति की आधारशिला रही है। हिंदू और मुसलमान देश के इस समृद्ध सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने को मिलकर बुनते हैं।
Trans: Navnish Kumar
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