ताजमहल के बंद दरवाजों को खोलने की मांग को लेकर याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट की बेंच ने याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार लगायी है।
ताजमहल के बंद दरवाजों को खोलने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने याचिकाकर्ता से कहा कि जाइए एमए करिए और उसके बाद पीएचडी के लिए ऐसा विषय चुनिए। अगर कोई संस्थान आपको रोकता है तो हमारे पास आइए।
ताजमहल के बंद 20 दरवाजों को खोलने की गुजारिश वाली याचिका पर बृहस्पतिवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में सुनवाई हुई। न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने आज अपराह्न सवा दो बजे मामले की सुनवाई करते हुए याचिका को खारिज कर दिया। याचिका अयोध्या के डॉ. रजनीश सिंह ने दायर की थी। याचिका में इतिहासकार पीएन ओक की किताब ताजमहल का हवाला देते हुए दावा किया गया कि ताजमहल वास्तव में तेजोमहालय है, जिसका निर्माण 1212 एडी में राजा परमार्दी देव ने कराया था।
याचिका में यह भी दावा किया गया कि ताजमहल के बंद दरवाजों के भीतर भगवान शिव का मंदिर है। याचिका में अयोध्या के जगतगुरु परमहंस के वहां जाने और उन्हें भगवा वस्त्रों के कारण रोके जाने संबंधी हालिया विवाद का भी जिक्र किया गया। याची ने ताजमहल के संबंध में एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी (तथ्यों का पता लगाने वाली समिति) बनाकर अध्ययन करने और ताजमहल के बंद करीब 20 दरवाजों को खोलने के निर्देश जारी करने का आग्रह किया है।
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में सुनवाई में याचिकाकर्ता रजनीश सिंह के वकील ने कहा कि देश के नागरिकों को ताजमहल के बारे में सच जानने की जरूरत है। याचिकाकर्ता ने कहा- मैं कई आरटीआई लगा चुका हूं। मुझे पता चला है कि कई कमरे बंद हैं और प्रशासन की ओर से बताया गया कि ऐसा सुरक्षा कारणों की वजह से किया गया है।
इसके जवाब में यूपी सरकार के वकील ने कहा कि इस मामले में आगरा में पहले से ही मुकदमा दर्ज है और याचिकाकर्ता का इस पर कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। वहीं याचिकाकर्ता ने कहा कि मैं इस तथ्य पर बात ही नहीं कर रहा कि वह जमीन भगवान शिव से जुड़ी है या अल्लाह से। मेरा मुख्य मुद्दा वो बंद कमरें हैं और हम सभी को जानना चाहिए कि आखिर उन कमरों के पीछे क्या है।
इसके बाद दो न्यायाधीशों की बेंच ने याचिकाकर्ता से कहा कि जाइए एमए करिए और उसके बाद ऐसा विषय चुनिए। अगर कोई संस्थान आपको रोकता है तो हमारे पास आइए। अदालत ने पूछा कि आप किससे सूचना मांग रहे हैं? इसके जवाब में याचिकाकर्ता ने कहा कि प्रशासन से। इस पर कोर्ट ने कहा- अगर वो कह चुके हैं कि सुरक्षा कारणों से कमरे बंद हैं तो वही सूचना है।
अगर आप संतुष्ट नहीं हैं तो इसको चुनौती दीजिए। आप एमए करिए और फिर नेट, जेआरएफ करिए और अगर कोई यूनिवर्सिटी आपको इस विषय पर शोध करने से रोके तो हमारे पास आइए। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता अपनी याचिका तक ही सीमित रहे।
याचिकाकर्ता ने कहा कि हमें उन कमरों में जाने की अनुमित दीजिए। इस पर कोर्ट ने तंज कसा कि कल को आप कहेंगे हमें माननीय न्यायाधीशों के चेंबर में जाना है। पीआईएल सिस्टम का मजाक मत बनाइए। याचिकाकर्ता ने कहा कि मुझे थोड़ा वक्त दें, मैं इस पर कुछ फैसले दिखाना चाहता हूं। इस पर अदालत ने कहा कि यह याचिका मीडिया में चर्चा का विषय बनी हुई है और अब आप ये सब कर रहे हैं। इस मुद्दे पर आप मेरे घर आइए और हम इस पर बहस करेंगे लेकिन अदालत में नहीं।
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ताजमहल के बंद 20 दरवाजों को खोलने की गुजारिश वाली याचिका पर बृहस्पतिवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में सुनवाई हुई। न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने आज अपराह्न सवा दो बजे मामले की सुनवाई करते हुए याचिका को खारिज कर दिया। याचिका अयोध्या के डॉ. रजनीश सिंह ने दायर की थी। याचिका में इतिहासकार पीएन ओक की किताब ताजमहल का हवाला देते हुए दावा किया गया कि ताजमहल वास्तव में तेजोमहालय है, जिसका निर्माण 1212 एडी में राजा परमार्दी देव ने कराया था।
याचिका में यह भी दावा किया गया कि ताजमहल के बंद दरवाजों के भीतर भगवान शिव का मंदिर है। याचिका में अयोध्या के जगतगुरु परमहंस के वहां जाने और उन्हें भगवा वस्त्रों के कारण रोके जाने संबंधी हालिया विवाद का भी जिक्र किया गया। याची ने ताजमहल के संबंध में एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी (तथ्यों का पता लगाने वाली समिति) बनाकर अध्ययन करने और ताजमहल के बंद करीब 20 दरवाजों को खोलने के निर्देश जारी करने का आग्रह किया है।
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में सुनवाई में याचिकाकर्ता रजनीश सिंह के वकील ने कहा कि देश के नागरिकों को ताजमहल के बारे में सच जानने की जरूरत है। याचिकाकर्ता ने कहा- मैं कई आरटीआई लगा चुका हूं। मुझे पता चला है कि कई कमरे बंद हैं और प्रशासन की ओर से बताया गया कि ऐसा सुरक्षा कारणों की वजह से किया गया है।
इसके जवाब में यूपी सरकार के वकील ने कहा कि इस मामले में आगरा में पहले से ही मुकदमा दर्ज है और याचिकाकर्ता का इस पर कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। वहीं याचिकाकर्ता ने कहा कि मैं इस तथ्य पर बात ही नहीं कर रहा कि वह जमीन भगवान शिव से जुड़ी है या अल्लाह से। मेरा मुख्य मुद्दा वो बंद कमरें हैं और हम सभी को जानना चाहिए कि आखिर उन कमरों के पीछे क्या है।
इसके बाद दो न्यायाधीशों की बेंच ने याचिकाकर्ता से कहा कि जाइए एमए करिए और उसके बाद ऐसा विषय चुनिए। अगर कोई संस्थान आपको रोकता है तो हमारे पास आइए। अदालत ने पूछा कि आप किससे सूचना मांग रहे हैं? इसके जवाब में याचिकाकर्ता ने कहा कि प्रशासन से। इस पर कोर्ट ने कहा- अगर वो कह चुके हैं कि सुरक्षा कारणों से कमरे बंद हैं तो वही सूचना है।
अगर आप संतुष्ट नहीं हैं तो इसको चुनौती दीजिए। आप एमए करिए और फिर नेट, जेआरएफ करिए और अगर कोई यूनिवर्सिटी आपको इस विषय पर शोध करने से रोके तो हमारे पास आइए। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता अपनी याचिका तक ही सीमित रहे।
याचिकाकर्ता ने कहा कि हमें उन कमरों में जाने की अनुमित दीजिए। इस पर कोर्ट ने तंज कसा कि कल को आप कहेंगे हमें माननीय न्यायाधीशों के चेंबर में जाना है। पीआईएल सिस्टम का मजाक मत बनाइए। याचिकाकर्ता ने कहा कि मुझे थोड़ा वक्त दें, मैं इस पर कुछ फैसले दिखाना चाहता हूं। इस पर अदालत ने कहा कि यह याचिका मीडिया में चर्चा का विषय बनी हुई है और अब आप ये सब कर रहे हैं। इस मुद्दे पर आप मेरे घर आइए और हम इस पर बहस करेंगे लेकिन अदालत में नहीं।
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