"सरकार को चाहिये था टेक्नोलॉजी का उपयोग करके ऐसी पारदर्शी योजना बनाती जिससे सभी प्रभावित किसानों को सीधा लाभ मिल सके। लेकिन सरकार ने मुआवजा देने के लिये प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना नाम से ऐसी योजना बनाई कि जिससे किसानों को नही, बीमा कंपनियों को लाभ मिल रहा है। आम किसान खाली हाथ, और कंपनियों पर करोड़ों लुटाए जा रहे हैं। जिन कंपनियों का खेती से दूर-दूर तक संबंध नही है, ऐसी कंपनियों को केवल मुआवजा बांटने भर की एवज में बडा लाभ पहुंचाया जा रहा है। जो किसानों का हक है, उसे फसल बीमा कंपनियों के हवाले किया जा रहा है। इसी सब से बीमा क्लेम को लेकर हरियाणा के किसान आंदोलन की राह पर है।"
सिरसा-हिसार के बाद फतेहाबाद में किसानों का आंदोलन
हिसार और सिरसा जिलों में बीमा क्लेम के लिए किसानों के आंदोलन के बाद अब फतेहाबाद में भी जिले के बाढ़ प्रभावित किसानों ने मुआवजे की मांग को लेकर राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। किसानों के संगठन पगड़ी संभाल जट्टा संघर्ष समिति ने आज फतेहाबाद शहर के लघु सचिवालय में अनिश्चितकालीन धरना शुरू किया और जिला प्रशासन के सामने अपनी 21 सूत्रीय मांगें रखीं। समिति ने लघु सचिवालय में पक्का मोर्चा लगाया और कहा कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होंगी, वे धरना नहीं उठाएंगे।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मुख्य मांगों में बाढ़ से फसल नुकसान के लिए 50 हजार रुपये प्रति एकड़ मुआवजा, क्षतिग्रस्त मकान, दुकान, ट्यूबवेल और जानवरों के लिए मुआवजा, जलजमाव वाले क्षेत्रों से पानी की निकासी, बीमा कंपनियों द्वारा फसल बर्बादी का बीमा क्लेम तुरंत जारी करना व ऋण माफी आदि शामिल है। समिति अध्यक्ष मनदीप नथवान ने कहा कि फतेहाबाद जिले में बड़ी संख्या में किसानों को बाढ़ का सामना करना पड़ा और जलभराव के कारण उनकी फसलें और घर क्षतिग्रस्त हो गए। “किसानों की फसलें बर्बाद हो गईं, घर क्षतिग्रस्त हो गए, ट्यूबवेल बंद हो गए, यहां तक कि कई किसानों को पशुधन की भी हानि हुई। लेकिन उन्हें सरकार की ओर से कोई मुआवजा नहीं मिला है। कहा कि आर्थिक सहायता प्रदान करके राहत देने के बजाय, राज्य सरकार ने एक वेब पोर्टल लॉन्च करके प्रक्रिया को और जटिल बना दिया है, जिसे किसान संचालित करने में असमर्थ हैं।” किसान नेता के अनुसार, जहां सरकार किसानों को मुआवजा नहीं दे पा रही है, वहीं विपक्ष भी इस मुद्दे पर सरकार पर दबाव बनाने में नाकाम साबित हो रहा है।
जल-जमाव से बुरी तरह प्रभावित
पिछले महीने हरियाणा में बाढ़ के कारण फतेहाबाद सबसे अधिक प्रभावित जिलों में से एक है, क्योंकि बाढ़ के पानी के कारण 127 गांव प्रभावित हुए थे। फतेहाबाद जिला प्रशासन के मुताबिक, 41,940 हेक्टेयर में पानी भर गया है, जहां खरीफ फसलों को भारी नुकसान हुआ है। इसके अलावा, जुलाई में बाढ़ के पानी और अत्यधिक बारिश के कारण मुख्य रूप से ढाणियों में स्थित 2,370 घर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गए थे। हालांकि राज्य सरकार ने बाढ़ प्रभावित लोगों से 25 अगस्त तक ई-क्षतिपूर्ति पोर्टल पर नुकसान के अपने दावे जमा करने को कहा है और प्रभावित व्यक्तियों को मुआवजे के भुगतान के लिए दावों का सत्यापन 31 अगस्त तक किया जाएगा।
खास है कि हरियाणा के सिरसा में बीमा क्लेम की मांग को लेकर किसान 100 दिन से ज्यादा से आंदोलनरत है। पिछले 10 दिन से चार किसान 110 फुट ऊंची टंकी पर चढ़े हुए हैं और 13 किसान आमरण अनशन पर बैठे हुए हैं। हालांकि 2 दिन पहले इन किसानों ने सरकार के बीमा क्लेम देने के आश्वासन पर, अपना 100 दिन से भी ज्यादा पुराना धरना समाप्त कर दिया है। लेकिन अब फतेहाबाद में किसान आंदोलन शुरू हो गया है।
खरीफ 2022 की फसलों का नहीं मिला बीमा क्लेम
भारतीय किसान यूनियन के युवा अध्यक्ष रवि आजाद, सुरेश ढाका, सुभाष सरपंच माखोसरानी, सरपंच सुभाष बैनीवाल, संजय सहारण संदीप सिंवर, अमन बैनीवाल, रविन्द्र कासनियां ने नारायण खेड़ा धरनास्थल पर सांझी पत्रकार वार्ता में बताया कि किसान 100 दिन से ज्यादा से नाथूसरी चौपटा और अब नारायण खेड़ा जलघर में धरना दे रहे हैं अपने हकों की लड़ाई लड़ रहे किसानों की सरकार लगातार अनदेखी कर रही है। तेरह किसान पिछले 11 दिन से आमरण अनशन पर बैठे हुए हैं जिनमें 77 वर्षीय नंदलाल ढिल्लों, ओमप्रकाश झुरिया, और सरपंच एसोसिएशन की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष संतोष बैनीवाल की तबीयत लगातार बिगड़ती जा रही है।
इसके अलावा पिछले 12 दिन से चार किसान भरत सिंह झाझड़ा, दीवान सहारण, जयप्रकाश और नरेंद्र पाल सहारण 110 फीट ऊंची टंकी पर चढ़े हुए हैं। सरकार को किसी भी किसान की कोई फिक्र नहीं है। इसी को लेकर रविवार को किसान कमेटी की बैठक आयोजित की गई। जिसमें फैसला किया गया कि सरकार को झुकाने और किसान आंदोलन को जीतने के लिए कड़ा कदम उठाना पड़ेगा। इसी के तहत नेशनल हाईवे नंबर 9 पर भावदीन टोल प्लाजा को बंद किया जाएगा और वहां पर अनिश्चितकालीन धरना शुरू किया जाएगा। संदीप सिंवर ने अपील कि की 16 अगस्त को भावदीन टोल प्लाजा पर ज्यादा से ज्यादा किसान पहुंचे।
बता दें कि सिरसा के चोपटा क्षेत्र में नारायणखेड़ा गांव में किसान 100 दिनों से ज्यादा समय से धरने पर बैठे हैं क्योंकि जिले के 1.32 लाख किसानों की खरीफ 2022 की फसलों की 641 करोड़ की मुआवजा राशि अटकी हुई है। हालांकि धरने के दौरान कंपनी ने 4011 किसानों को 18 करोड़ 29 लाख 37,554 रुपए जारी कर दिए थे लेकिन इस बीमा क्लेम पर कंपनी ने ऑब्जेक्शन लगाया था। यह मामला भारत सरकार की टेक्निकल कमेटी में जाकर अटक गया। खरीफ 2022 में फसल खराबे के बीमा क्लेम की राशि के भुगतान का इंतजार है। हालांकि 2 दिन पहले किसानों से समझौता हो गया है।
फसल बीमा का किसानों की बजाय बीमा कंपनियों को मिल रहा फायदा
प्राकृतिक आपदा में राहत पहुंचाने के लिए घोषित फसल बीमा योजना का लाभ, किसानों की बजाय, बीमा कंपनियों को ज्यादा पहुंच रहा है। एक अनुमान के अनुसार, फसल बीमा कंपनियों को केवल मुआवजा बांटने के लिये 7 साल में 60 हजार से भी ज्यादा करोड रुपये मिले हैं।
प्राकृतिक आपदा के कारण खेती में फसलों को हर साल बडा नुकसान होता है। ऐसी स्थिति में फसलों को हुये नुकसान के लिये किसानों को मुआवजा देना सरकार की जिम्मेदारी है। मुआवजे के लिये केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर कृषि बजट में हरसाल लगभग 20 से 25 हजार करोड रुपयों का प्रावधान करती है। इसके लिए सरकार को चाहिये था कि वह टेक्नोलॉजी का उपयोग करके ऐसी पारदर्शी योजना बनाती जिससे सभी प्रभावित किसानों को सीधा लाभ मिल सके। लेकिन सरकार ने मुआवजा देने के लिये प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना नाम से ऐसी योजना बनाई कि जिससे किसानों को नही, बीमा कंपनियों को लाभ मिल रहा है। जिन कंपनियों का खेती से दूर-दूर तक संबंध नही है, ऐसी कंपनियों को केवल मुआवजा बांटने के लिये बडा लाभ पहुंचाया जा रहा है। जो किसानों का हक है, उसे बीमा कंपनियों के हवाले किया जा रहा है।
डाउन टू अर्थ में छपे लेख में राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति के संयोजक और किसान नेता विवेकानंद माथने कहते है कि फसल बीमा योजना के तहत मुआवजा देने के लिये 7 साल में किसानों का 28,847 करोड़ रुपये मिलाकर केंद्र और राज्य सरकारों ने 1 लाख 96 हजार 228 करोड रुपयें फसल बीमा कंपनियों को सौपे, जिसमें से स्वीकृत दावों के अनुसार किसानों को 1 लाख 36 हजार 154 करोड रुपये मुआवजा दिया गया। फसल बीमा कंपनियों को केवल मुआवजा बांटने के लिये 7 साल में 60 हजार 73 करोड रुपये मिले हैं।
इन सालों में 46.92 करोड़ किसान फसल बीमा योजना में शामिल हुये। जिसमें से केवल 12.98 करोड किसानों को मुआवजा मिला है। इसमें करोड़ो किसानों को बहुत कम मुआवजा मिला। 33.94 करोड किसानों को कुछ भी नही मिला। उल्टा इन किसानों को हरसाल जमा किये गये बीमा हफ्ते का नुकसान उठाना पडा है।
सात साल में 60 हजार करोड़ की लूट!
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत 2016 में हुई है। 2016-17 से 2022-23 के उपलब्ध सरकारी आंकडे स्पष्ट करते है कि फसल बीमा कंपनियों ने प्रतिवर्ष 8 से 10 हजार करोड रुपये के हिसाब से 7 साल में 60 हजार करोड रुपये लूटे हैं। महाराष्ट्र से 12,484 करोड रुपये, राजस्थान से 10,524 करोड रुपये, मध्यप्रदेश से 9,777 करोड रुपये और गुजरात से 6,628 करोड रुपये लूटे गये हैं। किसान नेता के अनुसार ऐसा दिखाई देता है कि इस बड़ी लूट के लिये फसल बीमा कंपनियां किसान मतदाताओं को प्रभावित करने के इरादे से चुनाव में सरकार को लाभ पहुंचाने का काम करती है। केवल चुनावी सालों में मुआवजा बांटने काम किया जाता है। मध्यप्रदेश में वर्ष 2017-18 में 5894 करोड रुपये, वर्ष 2019-20 में 5812 करोड रुपये और वर्ष 2020-21 में 7791 करोड रुपये मुआवजा दिया गया है। जो उस वर्ष में कंपनियों को प्राप्त बीमा से ज्यादा है। मध्यप्रदेश में नवम्बर 2018 में विधानसभा चुनाव, मई 2019 में लोकसभा के चुनाव और नवम्बर 2020 में 28 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव हुये है।
जबकि मध्यप्रदेश में कुल 6 सालों में कंपनियों को 35,506 करोड़ रुपये बीमा प्राप्त हुआ। इसमें से किसानों को 25,729 करोड रुपयें मुआवजा दिया गया और कंपनियो ने 9,777 करोड रुपये लूटे है। इसका अर्थ यह भी है कि दूसरे सालों में मुआवजा नही के बराबर मिला। अब महाराष्ट्र सरकार एक रुपये में फसल बीमा योजना शुरू कर रही है। इसमें भले ही किसानों का लाभ दिखाई देता है लेकिन यहां किसानों का बीमा हप्ता कृषि बजट में कटौती करके ही कंपनियों को दिया जाना है। इसलिये इससे भी किसानों को अंतिमत: नुकसान ही होगा।
अब भले सरकार दावा करती हो कि वह किसानों को लूटने वाले दलालों को हटाना चाहती है लेकिन यहां सरकार ने खुद कारपोरेट दलाल पैदा किये है। जो केवल मुआवजा बांटने के लिये हर साल 10 हजार करोड रुपये कमाते है। इस लूट में भी निजी बीमा कंपनियां अग्रसर है। पंजाब, बिहार और पश्चिम बंगाल ने पहले ही खुद को योजना से बाहर किया है। अब दावों के कम भुगतान के कारण आंध्र प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना और झारखंड ने भी इस योजना को बंद किया है।
बीमा कंपनियों को एजेंट न बनाकर कृषि विभाग खुद दे मुआवजा
सरकार के किसान विरोधी नीतियों के चलते खेती में पहले से ही किसानों का शोषण हो रहा है। फसलों के न्यायोचित्त दाम देने और लागत खर्च में कंपनियों द्वारा होने वाली लूट रोकने के लिये सरकार ने कोई उपाय नहीं किये बल्कि किसानों का शोषण करने के लिये उद्योगपतियों और व्यापारियों को लूट की खुली छूट दी गई है। और अब प्राकृतिक आपदा में नुकसान भरपाई देने का काम कंपनियों को सौपकर केंद्र सरकार बीमा कंपनियों को लाभ पहुंचा रही है।
किसान नेता के अनुसार, सैद्धांतिक रुप से नुकसान भरपाई देने के लिये बीमा योजना लागू करना गलत है। जिसके कारण कृषि बजट का बडा हिस्सा हर साल कंपनियों को मिलता है और किसानों को नुकसान उठाना पडता है। मुआवजा बांटने के लिये बीमा कंपनियों को एजेंट बनाने के बजाए कृषि विभाग की मदद से सीधा तरीका अपनाया होता तो देश के किसानों को 60 हजार करोड रुपये ज्यादा मिल सकते थे। बशर्ते कि कृषि विभाग का भ्रष्टाचार दूर करना होगा।
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सिरसा-हिसार के बाद फतेहाबाद में किसानों का आंदोलन
हिसार और सिरसा जिलों में बीमा क्लेम के लिए किसानों के आंदोलन के बाद अब फतेहाबाद में भी जिले के बाढ़ प्रभावित किसानों ने मुआवजे की मांग को लेकर राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। किसानों के संगठन पगड़ी संभाल जट्टा संघर्ष समिति ने आज फतेहाबाद शहर के लघु सचिवालय में अनिश्चितकालीन धरना शुरू किया और जिला प्रशासन के सामने अपनी 21 सूत्रीय मांगें रखीं। समिति ने लघु सचिवालय में पक्का मोर्चा लगाया और कहा कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होंगी, वे धरना नहीं उठाएंगे।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मुख्य मांगों में बाढ़ से फसल नुकसान के लिए 50 हजार रुपये प्रति एकड़ मुआवजा, क्षतिग्रस्त मकान, दुकान, ट्यूबवेल और जानवरों के लिए मुआवजा, जलजमाव वाले क्षेत्रों से पानी की निकासी, बीमा कंपनियों द्वारा फसल बर्बादी का बीमा क्लेम तुरंत जारी करना व ऋण माफी आदि शामिल है। समिति अध्यक्ष मनदीप नथवान ने कहा कि फतेहाबाद जिले में बड़ी संख्या में किसानों को बाढ़ का सामना करना पड़ा और जलभराव के कारण उनकी फसलें और घर क्षतिग्रस्त हो गए। “किसानों की फसलें बर्बाद हो गईं, घर क्षतिग्रस्त हो गए, ट्यूबवेल बंद हो गए, यहां तक कि कई किसानों को पशुधन की भी हानि हुई। लेकिन उन्हें सरकार की ओर से कोई मुआवजा नहीं मिला है। कहा कि आर्थिक सहायता प्रदान करके राहत देने के बजाय, राज्य सरकार ने एक वेब पोर्टल लॉन्च करके प्रक्रिया को और जटिल बना दिया है, जिसे किसान संचालित करने में असमर्थ हैं।” किसान नेता के अनुसार, जहां सरकार किसानों को मुआवजा नहीं दे पा रही है, वहीं विपक्ष भी इस मुद्दे पर सरकार पर दबाव बनाने में नाकाम साबित हो रहा है।
जल-जमाव से बुरी तरह प्रभावित
पिछले महीने हरियाणा में बाढ़ के कारण फतेहाबाद सबसे अधिक प्रभावित जिलों में से एक है, क्योंकि बाढ़ के पानी के कारण 127 गांव प्रभावित हुए थे। फतेहाबाद जिला प्रशासन के मुताबिक, 41,940 हेक्टेयर में पानी भर गया है, जहां खरीफ फसलों को भारी नुकसान हुआ है। इसके अलावा, जुलाई में बाढ़ के पानी और अत्यधिक बारिश के कारण मुख्य रूप से ढाणियों में स्थित 2,370 घर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गए थे। हालांकि राज्य सरकार ने बाढ़ प्रभावित लोगों से 25 अगस्त तक ई-क्षतिपूर्ति पोर्टल पर नुकसान के अपने दावे जमा करने को कहा है और प्रभावित व्यक्तियों को मुआवजे के भुगतान के लिए दावों का सत्यापन 31 अगस्त तक किया जाएगा।
खास है कि हरियाणा के सिरसा में बीमा क्लेम की मांग को लेकर किसान 100 दिन से ज्यादा से आंदोलनरत है। पिछले 10 दिन से चार किसान 110 फुट ऊंची टंकी पर चढ़े हुए हैं और 13 किसान आमरण अनशन पर बैठे हुए हैं। हालांकि 2 दिन पहले इन किसानों ने सरकार के बीमा क्लेम देने के आश्वासन पर, अपना 100 दिन से भी ज्यादा पुराना धरना समाप्त कर दिया है। लेकिन अब फतेहाबाद में किसान आंदोलन शुरू हो गया है।
खरीफ 2022 की फसलों का नहीं मिला बीमा क्लेम
भारतीय किसान यूनियन के युवा अध्यक्ष रवि आजाद, सुरेश ढाका, सुभाष सरपंच माखोसरानी, सरपंच सुभाष बैनीवाल, संजय सहारण संदीप सिंवर, अमन बैनीवाल, रविन्द्र कासनियां ने नारायण खेड़ा धरनास्थल पर सांझी पत्रकार वार्ता में बताया कि किसान 100 दिन से ज्यादा से नाथूसरी चौपटा और अब नारायण खेड़ा जलघर में धरना दे रहे हैं अपने हकों की लड़ाई लड़ रहे किसानों की सरकार लगातार अनदेखी कर रही है। तेरह किसान पिछले 11 दिन से आमरण अनशन पर बैठे हुए हैं जिनमें 77 वर्षीय नंदलाल ढिल्लों, ओमप्रकाश झुरिया, और सरपंच एसोसिएशन की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष संतोष बैनीवाल की तबीयत लगातार बिगड़ती जा रही है।
इसके अलावा पिछले 12 दिन से चार किसान भरत सिंह झाझड़ा, दीवान सहारण, जयप्रकाश और नरेंद्र पाल सहारण 110 फीट ऊंची टंकी पर चढ़े हुए हैं। सरकार को किसी भी किसान की कोई फिक्र नहीं है। इसी को लेकर रविवार को किसान कमेटी की बैठक आयोजित की गई। जिसमें फैसला किया गया कि सरकार को झुकाने और किसान आंदोलन को जीतने के लिए कड़ा कदम उठाना पड़ेगा। इसी के तहत नेशनल हाईवे नंबर 9 पर भावदीन टोल प्लाजा को बंद किया जाएगा और वहां पर अनिश्चितकालीन धरना शुरू किया जाएगा। संदीप सिंवर ने अपील कि की 16 अगस्त को भावदीन टोल प्लाजा पर ज्यादा से ज्यादा किसान पहुंचे।
बता दें कि सिरसा के चोपटा क्षेत्र में नारायणखेड़ा गांव में किसान 100 दिनों से ज्यादा समय से धरने पर बैठे हैं क्योंकि जिले के 1.32 लाख किसानों की खरीफ 2022 की फसलों की 641 करोड़ की मुआवजा राशि अटकी हुई है। हालांकि धरने के दौरान कंपनी ने 4011 किसानों को 18 करोड़ 29 लाख 37,554 रुपए जारी कर दिए थे लेकिन इस बीमा क्लेम पर कंपनी ने ऑब्जेक्शन लगाया था। यह मामला भारत सरकार की टेक्निकल कमेटी में जाकर अटक गया। खरीफ 2022 में फसल खराबे के बीमा क्लेम की राशि के भुगतान का इंतजार है। हालांकि 2 दिन पहले किसानों से समझौता हो गया है।
फसल बीमा का किसानों की बजाय बीमा कंपनियों को मिल रहा फायदा
प्राकृतिक आपदा में राहत पहुंचाने के लिए घोषित फसल बीमा योजना का लाभ, किसानों की बजाय, बीमा कंपनियों को ज्यादा पहुंच रहा है। एक अनुमान के अनुसार, फसल बीमा कंपनियों को केवल मुआवजा बांटने के लिये 7 साल में 60 हजार से भी ज्यादा करोड रुपये मिले हैं।
प्राकृतिक आपदा के कारण खेती में फसलों को हर साल बडा नुकसान होता है। ऐसी स्थिति में फसलों को हुये नुकसान के लिये किसानों को मुआवजा देना सरकार की जिम्मेदारी है। मुआवजे के लिये केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर कृषि बजट में हरसाल लगभग 20 से 25 हजार करोड रुपयों का प्रावधान करती है। इसके लिए सरकार को चाहिये था कि वह टेक्नोलॉजी का उपयोग करके ऐसी पारदर्शी योजना बनाती जिससे सभी प्रभावित किसानों को सीधा लाभ मिल सके। लेकिन सरकार ने मुआवजा देने के लिये प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना नाम से ऐसी योजना बनाई कि जिससे किसानों को नही, बीमा कंपनियों को लाभ मिल रहा है। जिन कंपनियों का खेती से दूर-दूर तक संबंध नही है, ऐसी कंपनियों को केवल मुआवजा बांटने के लिये बडा लाभ पहुंचाया जा रहा है। जो किसानों का हक है, उसे बीमा कंपनियों के हवाले किया जा रहा है।
डाउन टू अर्थ में छपे लेख में राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति के संयोजक और किसान नेता विवेकानंद माथने कहते है कि फसल बीमा योजना के तहत मुआवजा देने के लिये 7 साल में किसानों का 28,847 करोड़ रुपये मिलाकर केंद्र और राज्य सरकारों ने 1 लाख 96 हजार 228 करोड रुपयें फसल बीमा कंपनियों को सौपे, जिसमें से स्वीकृत दावों के अनुसार किसानों को 1 लाख 36 हजार 154 करोड रुपये मुआवजा दिया गया। फसल बीमा कंपनियों को केवल मुआवजा बांटने के लिये 7 साल में 60 हजार 73 करोड रुपये मिले हैं।
इन सालों में 46.92 करोड़ किसान फसल बीमा योजना में शामिल हुये। जिसमें से केवल 12.98 करोड किसानों को मुआवजा मिला है। इसमें करोड़ो किसानों को बहुत कम मुआवजा मिला। 33.94 करोड किसानों को कुछ भी नही मिला। उल्टा इन किसानों को हरसाल जमा किये गये बीमा हफ्ते का नुकसान उठाना पडा है।
सात साल में 60 हजार करोड़ की लूट!
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत 2016 में हुई है। 2016-17 से 2022-23 के उपलब्ध सरकारी आंकडे स्पष्ट करते है कि फसल बीमा कंपनियों ने प्रतिवर्ष 8 से 10 हजार करोड रुपये के हिसाब से 7 साल में 60 हजार करोड रुपये लूटे हैं। महाराष्ट्र से 12,484 करोड रुपये, राजस्थान से 10,524 करोड रुपये, मध्यप्रदेश से 9,777 करोड रुपये और गुजरात से 6,628 करोड रुपये लूटे गये हैं। किसान नेता के अनुसार ऐसा दिखाई देता है कि इस बड़ी लूट के लिये फसल बीमा कंपनियां किसान मतदाताओं को प्रभावित करने के इरादे से चुनाव में सरकार को लाभ पहुंचाने का काम करती है। केवल चुनावी सालों में मुआवजा बांटने काम किया जाता है। मध्यप्रदेश में वर्ष 2017-18 में 5894 करोड रुपये, वर्ष 2019-20 में 5812 करोड रुपये और वर्ष 2020-21 में 7791 करोड रुपये मुआवजा दिया गया है। जो उस वर्ष में कंपनियों को प्राप्त बीमा से ज्यादा है। मध्यप्रदेश में नवम्बर 2018 में विधानसभा चुनाव, मई 2019 में लोकसभा के चुनाव और नवम्बर 2020 में 28 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव हुये है।
जबकि मध्यप्रदेश में कुल 6 सालों में कंपनियों को 35,506 करोड़ रुपये बीमा प्राप्त हुआ। इसमें से किसानों को 25,729 करोड रुपयें मुआवजा दिया गया और कंपनियो ने 9,777 करोड रुपये लूटे है। इसका अर्थ यह भी है कि दूसरे सालों में मुआवजा नही के बराबर मिला। अब महाराष्ट्र सरकार एक रुपये में फसल बीमा योजना शुरू कर रही है। इसमें भले ही किसानों का लाभ दिखाई देता है लेकिन यहां किसानों का बीमा हप्ता कृषि बजट में कटौती करके ही कंपनियों को दिया जाना है। इसलिये इससे भी किसानों को अंतिमत: नुकसान ही होगा।
अब भले सरकार दावा करती हो कि वह किसानों को लूटने वाले दलालों को हटाना चाहती है लेकिन यहां सरकार ने खुद कारपोरेट दलाल पैदा किये है। जो केवल मुआवजा बांटने के लिये हर साल 10 हजार करोड रुपये कमाते है। इस लूट में भी निजी बीमा कंपनियां अग्रसर है। पंजाब, बिहार और पश्चिम बंगाल ने पहले ही खुद को योजना से बाहर किया है। अब दावों के कम भुगतान के कारण आंध्र प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना और झारखंड ने भी इस योजना को बंद किया है।
बीमा कंपनियों को एजेंट न बनाकर कृषि विभाग खुद दे मुआवजा
सरकार के किसान विरोधी नीतियों के चलते खेती में पहले से ही किसानों का शोषण हो रहा है। फसलों के न्यायोचित्त दाम देने और लागत खर्च में कंपनियों द्वारा होने वाली लूट रोकने के लिये सरकार ने कोई उपाय नहीं किये बल्कि किसानों का शोषण करने के लिये उद्योगपतियों और व्यापारियों को लूट की खुली छूट दी गई है। और अब प्राकृतिक आपदा में नुकसान भरपाई देने का काम कंपनियों को सौपकर केंद्र सरकार बीमा कंपनियों को लाभ पहुंचा रही है।
किसान नेता के अनुसार, सैद्धांतिक रुप से नुकसान भरपाई देने के लिये बीमा योजना लागू करना गलत है। जिसके कारण कृषि बजट का बडा हिस्सा हर साल कंपनियों को मिलता है और किसानों को नुकसान उठाना पडता है। मुआवजा बांटने के लिये बीमा कंपनियों को एजेंट बनाने के बजाए कृषि विभाग की मदद से सीधा तरीका अपनाया होता तो देश के किसानों को 60 हजार करोड रुपये ज्यादा मिल सकते थे। बशर्ते कि कृषि विभाग का भ्रष्टाचार दूर करना होगा।
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