लेबर कोड़ रद्द करने सहित निजीकरण के खिलाफ श्रमिक संगठनों की एकजुट हुंकार- दिल्ली चलो

Written by Navnish Kumar | Published on: September 1, 2022
मज़दूर विरोधी चारों श्रम संहिताओं को तत्काल रद्द करो, श्रम कानूनों में मज़दूर-पक्षीय सुधार करो। बैंक, बीमा, कोयला, गैस-तेल, परिवहन, रक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि समस्त सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों और संपत्तियों का किसी भी तरह का निजीकरण बंद करो। बिना शर्त सभी श्रमिकों को यूनियन गठन व हड़ताल-प्रदर्शन का मौलिक व जनवादी अधिकार दो। छटनी-बंदी-ले ऑफ गैरकानूनी घोषित करो। ठेका प्रथा ख़त्म करो, फिक्स्ड टर्म व नीम ट्रेनी आदि संविदा आधारित रोजगार बंद करो। सभी मज़दूरों के लिए 60 साल तक स्थायी नौकरी, पेंशन-मातृत्व अवकाश सहित सभी सामाजिक सुरक्षा और कार्यस्थल पर सुरक्षा की गारंटी दो। गिग-प्लेटफ़ॉर्म वर्कर, आशा-आंगनवाड़ी-मिड डे मिल आदि स्कीम वर्कर, आईटी, घरेलू कामगार आदि को 'कर्मकार' का दर्जा व समस्त अधिकार दो। देश के सभी मज़दूरों के लिए न्यूनतम दैनिक मजदूरी ₹1000 ( ₹26000 मासिक) और प्रति माह ₹15000 का बेरोजगारी भत्ता लागू करो। समस्त ग्रामीण मज़दूरों को पूरे साल कार्य की उपलब्धता की गारंटी दो। प्रवासी व ग्रामीण मज़दूरों सभी के लिए कार्य स्थल से नजदीक पक्का आवास-पानी-शिक्षा-स्वास्थ्य-क्रेच की सुविधा और सार्वजनिक राशन सुविधा सुनिश्चित करो।



जी हां, मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (MASA) के उत्तर भारत के मजदूर कन्वेंशन में इन्हीं सब मांगों को लेकर श्रमिक संगठनों ने एकजुटता की हुंकार भरी और मजदूर विरोधी नीतियों तथा निजीकरण के खिलाफ 13 नवंबर को दिल्ली राष्ट्रपति भवन कूच करने के लिए मेहनतकश आवाम का आह्वान किया। 28 अगस्त को राजेंद्र भवन दिल्ली में आयोजित मज़दूर कन्वेंशन ऐसे समय में हुआ जब 2 दिन पूर्व ही आंध्र प्रदेश के तिरुपति में मालिकों के हित में लेबर कोड को लागू करने की कवायद के चलते देशभर के श्रम मंत्रियों का सम्मेलन संपन्न हो चुका था। 

जनज्वार न्यूज पोर्टल के अनुसार, मजदूर कन्वेंशन में लंबे संघर्षों से अर्जित 44 श्रम कानूनों को खत्म करके लाई गई 4 श्रम संहिताओं (लेबर कोड) को रद्द करने और मज़दूरों के हित मे क़ानूनों में संशोधन करने; जनता के खून-पसीने से खड़ी देश की सरकारी सार्वजनिक संपत्तियों को बेचने-निजीकरण पर लगाम लगाने; ठेका प्रथा, नीम ट्रेनी-फिक्स टर्म जैसे धोखाधड़ी वाले रोजगार को समाप्त कर सबको स्थायी रोजगार देने; न्यूनतम दैनिक मज़दूरी ₹1000 तय करने; सभी श्रेणी के मज़दूरों को यूनियन बनाने, आंदोलन करने आदि अधिकारों को बहाल करने आदि मांगे बुलंद हुईं। कन्वेंशन में तिरुपति में श्रम मंत्रियों के सम्मेलन के दौरान ट्रेड यूनियन कर्मियों और मज़दूरों के ऊपर हुए दमन की मुखालफत की गई और हर प्रकार के दमन का विरोध करते हुए कई प्रस्ताव पारित किए गए।

कन्वेंशन में सैकड़ों मज़दूरों व मज़दूर प्रतिनिधियों के बीच MASA के घटक संगठनों व सहयोगी प्रतिनिधियों ने आज के हालात, धर्म-जाति-राष्ट्र के घातक माहौल बनाकर मज़दूर अधिकारों पर हुए तेज हमलों, चारों लेबर कोड्स आदि पर विस्तार से चर्चा की और निरन्तरता में एक जुझारू व निर्णायक संघर्ष को तेज करने का आह्वान किया। 

इंकलाबी मज़दूर केंद्र के कॉमरेड खीमानन्द ने श्रम मंत्रियों के सम्मेलन द्वारा लेबर कोड थोपने की तैयारी, विरोध करने वाले ट्रेड यूनियन कर्मियों के दमन की चर्चा के बीच देश भर में क्रांतिकारी एकजुटता का प्रभाव बनाम बुर्जवा एकजुटता पर बात रखी और सत्ता के खेल को नाकामयाब करने के निरंतर प्रयास पर जोर दिया। स्थापित केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों की रस्म अदायगी से ऊपर उठकर MASA को और व्यापक करने की आवश्यकता को स्पष्ट किया। टीयूसीआई से कामरेड उदय झा ने श्रम संहिताओं के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए उसके खतरनाक पहलुओं को उजागर किया। कहा केन्द्र सरकार फासीवादी सरकार है और इस हेतु वो श्रम संहिताएं लाकर मज़दूर वर्ग की ताकत को कमजोर करना चाहती है। उन्होंने फासीवादी और पूंजीवादी दमन के खिलाफ एकजुट होकर लड़ाई लड़ने की जरुरत को बताया। 

आइएफटीयू से कॉमरेड एसबी राव ने कहा कि रेलवे में चाय बेचने वाला आज रेलवे बेच रहा है। उन्होंने निजीकरण, देश की सार्वजनिक संपत्ति की लूट को उजागर किया, कोयला क्षेत्र सहित आंध्र-तेलंगाना के मज़दूर आंदोलनों की चर्चा की। कहा किसान आंदोलन की तरह ही लेबर कोड़ के खिलाफ जुझारू आंदोलन खड़ा करना होगा। आइएफटीयू सर्वहारा से कामरेड सिद्धांत ने कहा कि श्रम सहिताओं को लाने का सरकार का उद्देश्य साफ़ है और इसको लागू होने की संभावना स्पष्ट है। कहा कि केवल नाम की श्रम संहिता है जिसमे मजदूरों के लिए कुछ नहीं है, जैसे कृषि कानून में किसानों के लिये कुछ नहीं था। 

कर्नाटका श्रमिक शक्ति से कामरेड सुषमा ने मज़दूरों की आम समस्याओं का जिक्र किया। 1972 के कॉन्ट्रैक्ट लेबर एक्ट पर चर्चा की। 1990 के दशक में आई नवउदारवादी नीतियों पर प्रकाश डाला। किसान आंदोलन से सीखने की बात करते हुए कहा कि हमें सड़को पर आकर संघर्ष करने की जरुरत है। कहा आज पूँजीपतियों और उनकी सरकार के खिलाफ आमने-सामने के संघर्ष की जरूरत है। 

आल इंडिया वर्कर्स काउंसिल से कामरेड ओपी सिन्हा ने कहा कि संघर्ष केवल श्रम कानून तक नहीं, नया समाज बनाना हमारा लक्ष्य है। उन्होंने आज के दौर में विचारहीनता की समस्या पर बल दिया, जिसका सीधा असर मज़दूर वर्ग पर भी है। उन्होंने कहा कि वैचारिक काम को रचनात्मक ढंग से पूर्ण करना होगा। वर्ग के रूप में संगठित होना जरुरी है। 

ग्रामीण मज़दूर यूनियन से गौरव ने कहा कि आपदा को अवसर में बदलने वाली सरकार लगातार हथकंडे अपना रही है। श्रम कोड के ख़िलाफ़ संघर्ष को राजनीतिक आंदोलन के तहत लड़ना होगा। उन्होंने आज के दौर में फासीवादी हमले की चर्चा करते हुए कहा कि कल्याणकारी राज्य हमारा लक्ष्य नही है। लेबर कोड को कानूनी चश्मे से नहीं देखना चाहिए।

टेक्सटाइल और हौजरी कामगार यूनियन से राजविन्दर ने एक बड़ी तैयारी की जरूरत को रेखांकित किया। उन्होंने लुधियाना के औद्योगिक क्षेत्र में मज़दूरों के हालात को रखा और बताया कि कैसे इन कानूनों के मौजूद रहते मज़दूरों के बेहद खराब हालात बन गए हैं। कोरोना-पाबंदियों के दौर में सारा कहर मज़दूरों ने झेला। नए कानून मज़दूरों के शोषण के लिए मालिकों को खुली छूट देंगे। ऐसे में मज़दूरों की व्यापक गोलबंदी के साथ बड़ी लड़ाई में जुटाना होगा। यह नव उदारवादी नीतियों और फासीवाद के खिलाफ लड़ाई है। 

मज़दूर सहायता समिति से मोहित ने ठेका प्रथा व असंगठित मज़दूरों के भयावह स्थितियों की चर्चा की। 1990 से जारी देश में आर्थिक बदलाव की चर्चा करते हुए कहा कि श्रम विभाग ने 1990 से पहले बोला कि ठेका प्रथा अमानवीय है लेकिन 1990 के बाद से ही ठेका प्रथा के पक्ष में है। उन्होंने एंगेलस की पुस्तक इंग्लैंड में मज़दूर वर्ग की दशा की चर्चा करते हुए बताया कि उस समय के इंग्लैंड के मज़दूरों की दशा और आज भारत के मज़दूरों की दशा एक जैसी है। एसडब्लूसीसी पश्चिम बंगाल के अमिताभ भट्टाचार्य ने 6 साल पहले मासा की स्थापना से अबतक के इस साझा सफर के बारे में बताया। उन्होंने तिरुपति में हुए श्रम मंत्रियों के राष्ट्रीय सम्मेलन द्वारा लेबर कोड लागू करने के सरकार के प्रयासों को रखा। उन्होंने मज़दूरों के अंदर नई चेतना पैदा करने पर जोर देते हुए मासा की सभी मांगों को मूलभूत बताया। 13 नवंबर के प्रतिरोध के लिए मज़दूरों और मज़दूर अंदोलन में लगे कार्यकर्ताओं से इस मुहिम को तेज करने की अपील की। 

आइएमके (पंजाब) के सुरिंदर ने कहा कि मज़दूरों को अपनी बात को अपनी झोपड़ी तक सीमित नही रखना चाहिए। बिजली विधेयक बिल मज़दूरों-किसानों के ऊपर सीधा हमला है। कहा अपने बुनियादी अधिकारों को छीन कर लेना होगा। फासीवाद का हमला गंभीर हमला है। उन्होंने डिजिटल कृषि के प्रभाव की चर्चा की और किसान आंदोलन से सबक लेकर आगे बढ़ने का आह्वान किया। जन संघर्ष मंच हरियाणा के पाल सिंह ने मानरेगा मज़दूरों के हालात व दुर्दशा को रखा। उन्होंने भाजपा-आरएसएस के कारनामों की चर्चा करते हुए हिन्दुत्व के नाम पर जनता को खून-खराबे में उलझाकर उसके बुनियादी अधिकारों को खत्म करने के खतरे को पहचानकर संघर्ष तेज करने की अपील की। जुझारु, निरंतर और निर्णायक लड़ाई पर बल दिया। 

लाल झंडा मज़दूर यूनियन से सौमेंदु गांगुली ने बताया कि नए लेबर कोड क्या हैं और क्यों ये मज़दूरों को बंधुआ बनाएंगी। स्थाई नौकरी खत्म होगी, न्यूनतम मज़दूरी का हक़, यूनियन बनने व आंदोलन करने के रास्ते कठिन होंगे। साथ ही मोदी सरकार के देश बेचो अभियान की स्थितियों को भी रखा। कहा कि हर रोज मज़दूर लड़ाई लड़ रहा है, उसे परिवर्तनकमी संघर्ष में बदलने की जरूरत है।

मज़दूर सहयोग केंद्र से अमित ने कहा कि आज केंद्रीय हमलों के सामने केंद्रीय ताकत की जरुरत। कहा कि स्थापित ट्रेड यूनियनों नें वास्तविक संघर्ष के रास्ते को छोड़कर कुछ एक सालाना हड़तालों तक सीमित करके मज़दूर आंदोलन को कमजोर करके सरकार व मालिकों को मजबूत किया है। इसलिए संघर्षशील ताकतों को आगे आकार आर-पार के संघर्ष में उतरना पड़ेगा। 

अंत में MASA की ओर से मुकुल ने कन्वेन्शन का समाहार किया। उन्होंने बताया कि कैसे नोटबंदी के साथ नीम ट्रेनी और फिक्स टर्म को मोदी सरकार ने लागू कर अपने मालिक पक्षीय एजेंडे को आगे बढ़ाया। संघ-भाजपा ने मेहनतकश व आम जनता को मानसिक तौर पर गुलाम बना दिया है। उन्होंने मासा के 6 केन्द्रीय माँगों को रखा और 13 नवंबर को राष्ट्रपति भवन कूच करने का आह्वान किया। कहा कि जनाब मोदी ने अमृतकाल की घोषणा की है। मज़दूरों को उनके अमृत को विश में बदलकर अपना सच्चा अमृत काल लाना होगा। अंत में मासा की ओर से प्रस्ताव प्रस्तुत किया जो आम सहमति से पारित हुआ।

कन्वेंशन में पारित प्रस्ताव- 

मोदी सरकार द्वारा लाए मजदूर विरोधी चार लेबर कोड को समस्त देश में लागू करने के एजेंडा के साथ विगत 25-26 अगस्त को तिरुपति, आंध्र प्रदेश में राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन का आयोजन किया गया था जिसका उद्घाटन स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा किया गया और जिसमें केंद्रीय श्रममंत्री के साथ विभिन्न राज्यों के श्रम मंत्रियों की भागीदारी रही। इसके मद्देनजर लेबर कोड के खिलाफ देश भर में मज़दूर संगठनों व ट्रेड यूनियनों ने विरोध प्रदर्शन आयोजित किए। तिरुपति में इस विरोध को कुचलने के लिए पहले से तैनात 2000 पुलिस बल द्वारा प्रदर्शनकारियों पर बर्बरतापूर्वक बल प्रयोग करते हुए उन्हें गिरफ्तार किया गया। MASA आंध्र सरकार के इस अन्यायपूर्ण गैर जनवादी रवैये और मोदी सरकार द्वारा देश भर के मज़दूरों पर लेबर कोड थोपने की तमाम कोशिशों पर अपना पुरजोर विरोध दर्ज करता है। 

इसी के साथ देश भर में मज़दूर संगठनों, सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों, और जनपक्षीय प्रगतिशील आवाजों को राजकीय दमनतंत्र के तहत कुचलने की बढ़ती कोशिशों का भी MASA विरोध करता है तो वहीं लेबर कोड, निजीकरण, ठेका प्रथा व सभी मज़दूर विरोधी नीतियों व हमलों के खिलाफ देश भर में मज़दूरों को एक निरंतर, निर्णायक व जुझारू आंदोलन खड़ा करने और 13 नवंबर को राष्ट्रपति भवन तक मज़दूर आक्रोश रैली को सफल बनाने का आह्वान करता है। 

कन्वेंशन का संचालन कॉमरेड सोमनाथ, कॉमरेड विक्रम व कॉमरेड मुकुल ने किया। इस दौरान एमएसएस, आईएमके, जन संघर्ष मंच हरियाणा व एमएसके की टीमों ने क्रांतिकारी गीत प्रस्तुत किए। जोरदार नारों और 13 नवंबर को राष्ट्रपति भवन कूच करने की तैयारियों में जुटने के संकल्प के साथ कन्वेन्शन समाप्त हुआ। खास है कि 13 नवंबर आक्रोश रैली की मुहिम के क्रम में 2 जुलाई को पूर्वी भारत का कोलकाता में और 31 जुलाई को दक्षिण भारत का हैदराबाद में कन्वेन्शन किया गया था। 

मांगें 

1. मज़दूर विरोधी चार श्रम संहिताएं तत्काल रद्द करो! श्रम कानूनों में मज़दूर-पक्षीय सुधार करो! 2. बैंक, बीमा, कोयला, गैस-तेल, परिवहन, रक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि समस्त सार्वजनिक क्षेत्र-उद्योगों-संपत्तियों का किसी भी तरह का निजीकरण बंद करो! 3. बिना शर्त सभी श्रमिकों को यूनियन गठन व हड़ताल-प्रदर्शन का मौलिक व जनवादी अधिकार दो! छटनी-बंदी-ले ऑफ गैरकानूनी घोषित करो! 4. ठेका प्रथा ख़त्म करो, फिक्स्ड टर्म-नीम ट्रेनी आदि संविदा आधारित रोजगार बंद करो – सभी मज़दूरों के लिए 60 साल तक स्थायी नौकरी, पेंशन-मातृत्व अवकाश सहित सभी सामाजिक सुरक्षा और कार्यस्थल पर सुरक्षा की गारंटी दो! गिग-प्लेटफ़ॉर्म वर्कर, आशा-आंगनवाड़ी-मिड डे मिल आदि स्कीम वर्कर, आई टी, घरेलू कामगार आदि को 'कर्मकार' का दर्जा व समस्त अधिकार दो! 5. देश के सभी मज़दूरों के लिए दैनिक न्यूनतम मजदूरी ₹1000 (मासिक ₹26000) और बेरोजगारी भत्ता महीने में ₹15000 लागू करो! 6. समस्त ग्रामीण मज़दूरों को पूरे साल कार्य की उपलब्धता की गारंटी दो! प्रवासी व ग्रामीण मज़दूर सहित सभी मज़दूरों के लिए कार्य स्थल से नजदीक पक्का आवास-पानी-शिक्षा-स्वास्थ्य-क्रेच की सुविधा और सार्वजनिक राशन सुविधा सुनिश्चित करो! आदि-आदि।

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