बिलासपुर के कांग्रेस भवन में घुसकर पुलिस ने महिला कांग्रेसियों को घसीटते हुए बाहर निकाला. प्रदेश महामंत्री को इस कदर पीटा कि अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.
कांग्रेसी कार्यकर्ता आज बिलासपुर में बीजेपी के केन्द्रीय मंत्री अमर अग्रवाल के बंगले का घेराव करने पहुचे थे. प्रदर्शन समाप्त कर कार्यकर्ता जब कांग्रेस भवन वापस लौटे तो कुछ ही देर में भारी पुलिस बल भी उनकी गिरफ़्तारी करने वहां पहुच गया. पुलिस के इस दल को एएसपी नीरज चंद्राकर लीड कर रहे थे. पुलिस ने बिना किसी चेतावनी के ही लाठी डंडो से प्रदर्शनकारियों को बेतहाशा पीटना शरू कर दिया.
मामला क्या है
बीजेपी के केन्द्रीय मंत्री अमर अग्रवाल ने अपने भाषण में कांग्रेस पार्टी को कचरा कहा. विरोध स्वरुप कांग्रेसियों ने मंत्री के बंगले का घेराव करने का ऐलान किया. सुरक्षा के मद्देनज़र सुबह से ही बीजेपी मंत्री के बंगले पर बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात था. कांग्रेसियों ने प्रदर्शन किया और विरोध स्वरुप बंगले में कचरा फ़ेंक आए. 15 सालों से सत्ता में राजा की तरह काबिज़ छतीसगढ़ की बीजेपी सरकार को विरोध प्रदर्शन वैसे भी पसन्द नहीं है लिहाज़ा मंत्री जी का इगो हर्ट हो गया और उनकी वफ़ादार पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को पीटकर अपने नंबर भी बढ़ा लिए.
पुलिस अब पुलिस नहीं रह गई है
इस घटना में पुलिस के जवान और आला अधिकारी जिस तन्मयता से डंडा भांज रहे थे, ऐसा लग रहा था कि पुलिस नहीं, किसी माफ़िया के पण्डे, लोगों को मार रहे हैं. पुलिस से बयान लेना चाहा तो एएसपी नीरज चंद्राकर ने मीडिया कर्मियों को ही कांग्रेसी होने का हवाला देते हुए कह दिया कि “जो छापना है छाप लो, मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता”. ये कहते हुए वे अपनी छाती ठोंक रहे थे, मानो बड़ी बहादुरी का काम कर रहे हों.
छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री अटल श्रीवास्तव के सिर पर एक पुलिस कर्मी ने डंडे से हमला किया, वो ज़मीन पर गिरे फिर लात और डंडे दोनों चले. हालत इतनी बिगड़ी कि उन्हें सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया है. प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल ने राजधानी रायपुर में प्रेस वार्ता कर घटना की निंदा की है. बिलासपुर के पत्रकारों ने आईजी को ज्ञापन सौंपा है और एएसपी चंद्राकर को बर्ख़ास्त करने की मांग की है.
छतीसगढ़ में विपक्ष
छत्तीसगढ़ में विपक्षी दल यानि कांग्रेस राजनीतिक रूप से हमेशा ही कमज़ोर नज़र आया है. घोटालों और मुद्दों की भरमार होने के बावजूद, छुटपुट रैलियों और हल्की फुल्की नारेबाजियों के अलवा, सत्ता का विरोध कहा जा सकने वाला कोई प्रदर्शन छत्तीसगढ़ में कभी देखने को नहीं मिला. कई कांग्रेसियों पर तो बीजेपी से ही वफ़ादारी के आरोप लगते रहे हैं. झीरम घाटी हत्याकाण्ड ने प्रदेश कांग्रेस की कमर ही तोड़ दी थी.
सत्ता के लिए फाएदेमंद साबित होने वाले विपक्ष की भूमिका प्रदेश कांग्रेस बखूबी निभाती आ रही है. लेकिन बीते कुछ वर्षों में कमज़ोर होते लोकतंत्र के ख़तरे को हर किसी ने भांपा है, छत्तीसगढ़ के लोगों ने भी. घोटालों की अति ने अब यहां भी बीजेपी नेताओं की ख़ामियों के चर्चों को आम कर दिया है. इस घटना के बाद भी कांग्रेसी मज़बूती से सड़कों पर उतरते और विरोध को लोगों तक ले जाते नज़र नहीं आए हैं.
कांग्रेसी नेताओं की गिरफ़्तारी या उनकी पिटाई इस घटना को ख़ास नहीं बनाती हैं. इस घटना को चिंताजनक बनाता है पुलिस का वहशी और बेलगाम रवैय्या. विरोध, लोकतंत्र में लोक का अधिकार है. ये विरोध लोकतंत्र के बने रहने के लिए ज़रूरी है. विरोध प्रदर्शनों पर इस तरह बौखलाने वाली बीजेपी तो नहीं ही लगती. हां, तानाशाही भरपूर लगती है. और तानाशाह सभी के लिए तानाशाह ही होता है लोगों के लिए भी और प्रतिद्वन्दी के लिए भी. वरना पुलिस को ये दुस्साहस कहां से मिलता है कि वो किसी को भी सिर फूटने तक पीटने लग जाती है.