कृषि कानून लागू करने की सिफारिश: कांग्रेसी सांसदों ने खुद को रिपोर्ट से अलग किया

Written by Sabrangindia Staff | Published on: March 22, 2021
नई दिल्ली। कांग्रेस के तीन सांसदों ने शनिवार को संसद की एक स्थायी समिति की उस रिपोर्ट से खुद को अलग कर लिया, जिसमें केंद्र सरकार से ‘आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम-2020’ को लागू करने की अनुशंसा की गई है।



उल्लेखनीय है कि यह अधिनियम उन तीन कृषि कानूनों में से एक है, जिनके खिलाफ किसान संगठन तीन महीने से अधिक समय से दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा पर आरोप लगाया है कि नियमों को उल्लंघन किया गया और समिति के नियमित अध्यक्ष सुदीप बंदोपाध्याय की गैरमौजूदगी में इस रिपोर्ट को आगे बढ़ा दिया गया। तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बंदोपाध्याय इन दिनों पश्चिम बंगाल चुनाव में व्यस्त हैं।

कांग्रेस के तीन सांसदों- सप्तगिरी उलाका, राजमोहन उन्नीथन और वी। वैथिलिंगम ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को अलग-अलग पत्र लिखकर आग्रह किया है कि वह इस मामले में संज्ञान लें और उन्हें लिखित असहमति दर्ज कराने की अनुमति दें। भाजपा सांसद अजय मिश्रा टेनी की कार्यवाहक अध्यक्षता में खाद्य एवं उपभोक्ता संबंधी स्थायी समिति की रिपोर्ट गत 19 मार्च को लोकसभा के पटल पर रखी गई। उलाका ने लोकसभा अध्यक्ष को लिखे पत्र में कहा, ‘कृपया इस मामले का संज्ञान लें और मुझे इस रिपोर्ट में आधिकारिक रूप से असहमति दर्ज कराने का अवसर प्रदान करें।’

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने पत्र में कहा, ‘मैं आपको विषय- आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम-2020 (कारण और प्रभाव), पर स्थायी समिति की 11वीं रिपोर्ट, उपभोक्ता मामलों और सार्वजनिक वितरण पर खुद को अलग करने के लिए लिखता हूं, जिसे 18/03/2021 को अपनाया गया और संसद में दोनों सदनों में 19/03/2021 को रखा गया था।’

20 मार्च को लिखा गया उलाका का दो पेज का पत्र राज्यसभा सभापति और खाद्य, उपभोक्ता मामले और सार्वजनिक वितरण संबंधी स्थायी समिति के अध्यक्ष को भी भेजा है। उलाका ने कहा, ‘वास्तव में 16/12/2020 को बैठक के दौरान मैंने माननीय अध्यक्ष और समिति के सदस्यों के सामने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ अपना विरोध व्यक्त किया था।’ उन्होंने कहा कि उनकी असहमति की राय दर्ज किए बिना संसद में रिपोर्ट पेश की गई। उन्होंने कहा, जब रिपोर्ट को अपनाया गया तो मैं मौजूद नहीं था, क्योंकि बैठक को केवल 15 घंटे के शॉर्ट नोटिस में बुलाया गया था।

उलाका ने कहा, ‘इसलिए यह नियम के खिलाफ है कि इस तरह की एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट को बहुत ही कम सूचना पर प्रसारित किया गया था और किसी भी असहमतिपूर्ण राय को दर्ज किए बिना संसद में पेश किया गया था।’ लोकसभा की वेबसाइट पर मौजूद रिपोर्ट में उलाका का नाम उन लोगों की सूची में शामिल है जो 18 मार्च की समिति की बैठक में शामिल हुए थे, जिस दिन रिपोर्ट को स्वीकार किया गया था। कासरगोड से कांग्रेस के लोकसभा सांसद राजमोहन उन्नीथन ने भी लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा के सभापति और खाद्य, उपभोक्ता मामलों और सार्वजनिक वितरण संबंधी स्थायी समिति के अध्यक्ष को पत्र लिखा है।

उन्नीथन ने बताया, ‘मैंने अध्यक्ष को रिपोर्ट से खुद को अलग करने के लिए लिखा है।’ हालांकि, भाजपा के सदस्य टेनी ने कहा, ‘समिति के किसी भी सदस्य ने मुझे असहमति नोट नहीं दिया। रिपोर्ट को सभी सदस्यों की सहमति से अपनाया गया था।’ वहीं, कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा, ‘कांग्रेस पार्टी के सांसदों ने आवश्यक वस्तु अधिनियम लागू करने की मांग नहीं की थी। स्थायी समिति की रिपोर्ट एक गलत बयानी है।’

टीएमसी के डेरेक ओ ब्रायन ने ट्वीट कर कहा, ‘यह भाजपा के सस्ते और बेहूदा विभाग की कारस्तानी है। यह चोरी तब की गई जब संसदीय समिति के अध्यक्ष बैठक में मौजूद नहीं थे। कृषि कानूनों और आवश्यक वस्तु अधिनियम पर टीएमसी की स्थिति स्पष्ट है। काले कानूनों को वापस लो।’

वहीं, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शनिवार को ही शाम 4:39 बजे ट्वीट कर एक बार फिर कहा, ‘कृषि विरोधी सरकार को तीनों कानून वापस लेने ही होंगे। 56 छोड़ो, हम एक इंच भी पीछे नहीं हटेंगे!’ उल्लेखनीय है कि खाद्य, उपभोक्ता मामले और सार्वजनिक वितरण संबंधी स्थायी समिति ने केंद्र सरकार से अनुशंसा की है कि ‘आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम-2020’ को ‘अक्षरश:’ लागू किया जाए।

इस 30 सदस्यीय समिति में संसद के दोनों सदनों के 13 दलों के सदस्य शामिल हैं जिसमें आप, भाजपा, कांग्रेस, डीएमके, जदयू, नगा पीपुल्स फ्रंट, नेशनल कॉन्फ्रेंस, एनसीपी, पीएमके, शिवसेना, सपा, टीएमसी और वाईएसआरसीपी शामिल हैं। इसके अलावा एक सदस्य नामित हैं। अध्यक्ष सुदीप बंद्योपाध्याय 18 मार्च को समिति की अंतिम बैठक में कुछ विशेष कारणों के कारण उपस्थित नहीं हो सके थे। बैठक ने भाजपा के कार्यवाहक अध्यक्ष अजय मिश्रा टेनी के तहत रिपोर्ट को स्वीकार किया।

बता दें कि केंद्र सरकार तीनों कानूनों को कृषि क्षेत्र में ऐतिहासिक सुधार के रूप में पेश कर रही है। हालांकि, प्रदर्शनकारी किसानों ने यह आशंका व्यक्त की है कि नए कानून न्यूनतम समर्थन मूल्य की सुरक्षा और मंडी प्रणाली को खत्म करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे तथा उन्हें बड़े कॉरपोरेट की दया पर छोड़ देंगे।

नए कृषि कानूनों को रद्द करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कानूनी गारंटी की मांग को लेकर दिल्ली के- सिंघू, टीकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर किसान पिछले साल नवंबर के अंत से धरना दे रहे हैं। इनमें अधिकतर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान हैं। आठ दिसंबर के बाद किसान एक बार फिर से 26 मार्च को भारत बंद की तैयारी कर रहे हैं। इसके साथ ही वे चुनावी राज्यों के साथ देशभर में घूम-घूमकर केंद्र में सत्ताधारी भाजपा को वोट न देने की अपील कर रहे हैं।

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