ड्राफ्ट सीड्स बिल 2025 से कॉरपोरेट्स को मिली मनमानी मूल्य निर्धारण की खुली छूट, खेती की लागत बढ़ेगी : AIKS

Written by sabrang india | Published on: November 20, 2025
“एनडीए सरकार भारत के बीज क्षेत्र के निगमीकरण और बीज-स्वायत्तता को समाप्त करने का बड़ा षड्यंत्र रच रही है।”



अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) ने बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार द्वारा लाए गए ड्राफ्ट सीड्स बिल 2025 की कड़ी निंदा की है। किसान सभा ने इसे किसान-विरोधी और कॉरपोरेट-समर्थित बिल बताया है। उसका कहना है कि यह बिल आरएसएस-बीजेपी की उस व्यापक राजनीतिक परियोजना का हिस्सा है जिसके तहत छोटे किसानों को उनकी जमीन से बेदखल कर भारत की बीज-स्वायत्तता को कुछ घरेलू और बहुराष्ट्रीय कॉरपोरेट समूहों के हाथों सौंपा जा रहा है।

AIKS ने एक विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा कि “सरकार ऐसे समय में यह कॉरपोरेट-हितैषी बिल आगे बढ़ा रही है जब भारत में कृषि संकट लगातार गहराता जा रहा है। कई वैज्ञानिक अध्ययनों ने स्पष्ट किया है कि कृषि पर बढ़ता कॉरपोरेट नियंत्रण इस संकट को और तेज करेगा और किसानों की आत्महत्या के मामलों में वृद्धि करेगा। ड्राफ्ट बिल में ऐसे प्रावधान शामिल हैं जो किसानों को और अधिक निचोड़ने और उनकी लूट को तेज करने की संभावनाएं बनाते हैं। उदाहरण के लिए, यह बिल बड़ी कॉरपोरेट मोनोपोली कंपनियों को प्रतिस्पर्धा समाप्त करने के उद्देश्य से बीजों के लुभावने (predatory) मूल्य निर्धारण के लिए अनुकूल माहौल उपलब्ध कराता है।”

AIKS ने आगे कहा कि उसका दृढ़ मत है कि बीजों से संबंधित कोई भी नया कानून — जैसे कि ड्राफ्ट सीड्स बिल 2025 — पहले से मौजूद प्रगतिशील कानूनी प्रावधानों, विशेषकर पीपीवीएफआर (प्लांट वेरायटी प्रोटेक्शन एंड फार्मर्स राइट्स) अधिनियम 2001 तथा भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं — सीबीडी (कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी) और आईटीपीजीआरएफए (इंटरनेशनल ट्रीटी ऑन प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज फ़ॉर फ़ूड एंड एग्रीकल्चर) — के साथ टकराव में नहीं होना चाहिए, बल्कि उन्हें मजबूत करना चाहिए। ये राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताएं सामूहिक रूप से जैविक संसाधनों पर राष्ट्रीय संप्रभुता सुनिश्चित करती हैं, स्वदेशी किस्मों की रक्षा करती हैं, किसानों को प्रजनक, संरक्षक और जैव-विविधता के वैध अभिरक्षक के रूप में मान्यता देती हैं, और उन्हें बीज बचाने, इस्तेमाल करने, अदला-बदली करने और बेचने के अधिकार देती हैं।

इसके उलट, ड्राफ्ट सीड्स बिल 2025 एक अत्यधिक केंद्रीकृत और कॉरपोरेट-केंद्रित विनियामक ढांचा प्रस्तुत करता है, जो किसान-केंद्रित संरक्षण को कमजोर करने और जैव-विविधता तथा किसानों के अधिकारों से जुड़े भारत के मौजूदा कानूनी ढांचे को हल्का करने का जोखिम पैदा करता है। यह ड्राफ्ट बाजार-नियंत्रण और बीज प्रणाली के कठोर औपचारिककरण को बढ़ावा देता दिखाई देता है, जिससे स्वदेशी किस्में, सार्वजनिक संस्थान और राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय बीज नेटवर्क हाशिये पर जा सकते हैं।

स्पष्ट शब्दों में कहें तो सीड्स बिल 2025 का यह नया मसौदा भारत की बीज-विनियामक संरचना को पीपीवीएफआर अधिनियम 2001 के प्रावधानों से काफी दूर ले जाता है और बीज क्षेत्र में संतुलन को बड़े कॉरपोरेट समूहों के पक्ष में झुका देता है।

Related

जब संरक्षण की आड़ में दमन हो: खीरी के थारुओं पर ढाई जाने वाली ख़ामोश हिंसा

चुनावों में नफ़रत की कोई जगह नहीं: CJP ने BJP सांसद अश्विनी चौबे के साम्प्रदायिक भाषण के खिलाफ राज्य चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज की 

बाकी ख़बरें