रायपुर। छत्तीसगढ़ के सुकमा में 24 अप्रैल को हुए नक्सली हमले में 25 जवानों के शहीद होने की घटना के बाद सहायक जेल अधीक्षक वर्षा डोंगरे ने फेसबुक पर पोस्ट डालकर बस्तर की स्थितियों को लेकर सरकार को कठघरे में खड़ा किया था। इसके बाद छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार ने वर्षा डोंगरे को निलम्बित कर दिया। दरअसल उनकी पोस्ट से प्रशासनिक हल्कों में हडकंप मच गया था। इस पर जेल प्रशासन ने उन्हें कारण बताओ नोटिस देकर स्पष्टीकरण मांगा था।
रायपुर सेंट्रल जेल की डिप्टी जेलर वर्षा डोंगरे ने पिछले सप्ताह फेसबुक पर एक टिप्पणी करते हुए बस्तर में सुरक्षा बलों के ख़िलाफ़ कई गंभीर आरोप लगाये थे। वर्षा ने बस्तर में रहने के दौरान के अपने अनुभव फ़ेसबुक पर साझा किए थे। इसके पहले भी वर्षा छत्तीसगढ़ में पीएससी परीक्षाफल में गड़बड़ी को लेकर भी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में सरकार को कठघरे में खड़ा कर चुकी हैं।
वर्षा ने ये लिखा था पोस्ट में-
मुझे लगता है, एक बार हम सबको अपना गिरेबान झांकना चाहिए। सच्चाई खुद-ब-खुद सामने आ जाएगी। घटना में दोनों तरफ से मरने वाले अपने देशवासी हैं, भारतीय हैं, इसलिए कोई भी मरे तकलीफ हम सबको होती है। पूंजीवादी व्यवस्था को आदिवासी क्षेत्रों में लागू करवाना, उनके जल-जंगल-जमीन को बेदखल करने के लिए गांव का गांव जला देना, आदिवासी महिलाओं के साथ दुष्कर्म, आदिवासी महिला नक्सली हैं या नहीं, यह जानने के लिए उनके स्तनों को निचोड़कर देखा जाता है।
टाइगर प्रोजेक्ट के नाम पर आदिवासियों को उनके जल-जंगल-जमीन से बेदखल करने की रणनीति बनती है, जबकि संविधान की पांचवी अनुसूची के अनुसार किसी सैनिक या सरकार को इसे हड़पने का हक नहीं है। आखिर ये सब कुछ क्यों हो रहा है? नक्सलवाद का खात्मा करने के लिए... लगता नहीं।
जगदलपुर जेल में करीब चार साल पदस्थ रहीं वर्षा ने लिखा, मैंने खुद बस्तर में 14 से 16 साल की आदिवासी बच्चियों को देखा था, जिन्हें थाने में महिला पुलिस को बाहर कर निर्वस्त्र किया गया और प्रताडऩा दी गई। उनके दोनों हाथों की कलाइयों और स्तनों पर करंट लगाए गए। मैं सिहर उठी थी कि इन छोटी-छोटी आदिवासी बच्चियों पर थर्ड डिग्री टॉर्चर किसलिए? मैंने डॉक्टर से उचित उपचार और आवश्यक कार्रवाई के लिए कहा।
सच तो यह है, प्राकृतिक संसाधन इन्हीं जंगलों में हैं, जिसे पूंजीपतियों को बेचने के लिए खाली करवाना है। आदिवासी जल-जंगल-जमीन खाली नहीं करेंगे, क्योंकि यह उनकी मातृभूमि है। वे माओवाद का अंत तो चाहते हैं, लेकिन जिस तरह से देश के रक्षक ही उनकी बहू-बेटियों की इज्जत उतार रहे हैं, उनके घर जला रहे हैं, उन्हें फर्जी केसों में चारदीवारी में सडऩे के लिए भेजा जा रहा है, आखिर वो न्याय के लिए कहां जाए? ये सब मैं नहीं कह रही, बल्कि सीबीआई रिपोर्ट कहती है। सुप्रीम कोर्ट कहती हैं। जो भी आदिवासियों की समस्या का समाधान की कोशिश करते हैं, चाहे वह मानवाधिकार कार्यकर्ता हों, चाहे पत्रकार, उन्हें फर्जी माओवादी केसों में जेल में ठूंस दिया जाता है।
वर्षा ने पोस्ट में सुझाव देते हुए लिखा, कानून किसी को यह हक नहीं देता कि किसी के साथ अत्याचार करें, इसलिए सभी को जागना होगा। राज्य में पांचवीं अनुसूची लागू होनी चाहिए। आदिवासियों का विकास आदिवासियों के हिसाब से होना चाहिए। उन पर जबरदस्ती विकास न थोपा जाए। जवान हो या किसान, सब भाई-भाई हैं। एक-दूसरे को मारकर न ही शांति स्थापित होगी और न ही विकास। वर्षा ने लिखा, हम भी सिस्टम के शिकार हुए, लेकिन अन्याय के खिलाफ जंग लड़े। षडयंत्र रचकर तोडऩे की कोशिश की गई। प्रलोभन और रिश्वत का ऑफर भी दिया गया। हमने सारे इरादे नाकाम कर दिए और सत्य की विजय हुई।
जानें कौन हैं वर्षा
कबीर धाम ज़िले के एक दलित परिवार में जन्मी 35 साल की वर्षा डोंगरे ने जीव विज्ञान में स्नातक की पढाई की है। मां शिक्षिका के पद से सेवानिवृत हैं और पिता वकालत के पेशे में रहे हैं। परिवार में दो बहनें और एक भाई शिक्षक हैं, जबकि एक भाई सरकारी अस्पताल में डॉक्टर हैं। पढ़ाई में हमेशा अच्छे अंक लाने वाली वर्षा ने 2003 में छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की परीक्षा दी थी, लेकिन उनका चयन नहीं हुआ। इसके बाद की परीक्षा में वे सफल हुईं और उन्हें डिप्टी जेलर की पोस्ट मिली।
वर्षा डोंगरे पहली बार उस समय चर्चा में आई थीं, जब उन्होंने छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की 2003 में आयोजित राज्य सेवा आयोग की परीक्षा में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की। वर्षा ने इस मामले में लंबी अदालती लड़ाई लड़ी है।
(संपादन- भवेंद्र प्रकाश)
Courtesy: National Dastak
रायपुर सेंट्रल जेल की डिप्टी जेलर वर्षा डोंगरे ने पिछले सप्ताह फेसबुक पर एक टिप्पणी करते हुए बस्तर में सुरक्षा बलों के ख़िलाफ़ कई गंभीर आरोप लगाये थे। वर्षा ने बस्तर में रहने के दौरान के अपने अनुभव फ़ेसबुक पर साझा किए थे। इसके पहले भी वर्षा छत्तीसगढ़ में पीएससी परीक्षाफल में गड़बड़ी को लेकर भी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में सरकार को कठघरे में खड़ा कर चुकी हैं।
वर्षा ने ये लिखा था पोस्ट में-
मुझे लगता है, एक बार हम सबको अपना गिरेबान झांकना चाहिए। सच्चाई खुद-ब-खुद सामने आ जाएगी। घटना में दोनों तरफ से मरने वाले अपने देशवासी हैं, भारतीय हैं, इसलिए कोई भी मरे तकलीफ हम सबको होती है। पूंजीवादी व्यवस्था को आदिवासी क्षेत्रों में लागू करवाना, उनके जल-जंगल-जमीन को बेदखल करने के लिए गांव का गांव जला देना, आदिवासी महिलाओं के साथ दुष्कर्म, आदिवासी महिला नक्सली हैं या नहीं, यह जानने के लिए उनके स्तनों को निचोड़कर देखा जाता है।
टाइगर प्रोजेक्ट के नाम पर आदिवासियों को उनके जल-जंगल-जमीन से बेदखल करने की रणनीति बनती है, जबकि संविधान की पांचवी अनुसूची के अनुसार किसी सैनिक या सरकार को इसे हड़पने का हक नहीं है। आखिर ये सब कुछ क्यों हो रहा है? नक्सलवाद का खात्मा करने के लिए... लगता नहीं।
जगदलपुर जेल में करीब चार साल पदस्थ रहीं वर्षा ने लिखा, मैंने खुद बस्तर में 14 से 16 साल की आदिवासी बच्चियों को देखा था, जिन्हें थाने में महिला पुलिस को बाहर कर निर्वस्त्र किया गया और प्रताडऩा दी गई। उनके दोनों हाथों की कलाइयों और स्तनों पर करंट लगाए गए। मैं सिहर उठी थी कि इन छोटी-छोटी आदिवासी बच्चियों पर थर्ड डिग्री टॉर्चर किसलिए? मैंने डॉक्टर से उचित उपचार और आवश्यक कार्रवाई के लिए कहा।
सच तो यह है, प्राकृतिक संसाधन इन्हीं जंगलों में हैं, जिसे पूंजीपतियों को बेचने के लिए खाली करवाना है। आदिवासी जल-जंगल-जमीन खाली नहीं करेंगे, क्योंकि यह उनकी मातृभूमि है। वे माओवाद का अंत तो चाहते हैं, लेकिन जिस तरह से देश के रक्षक ही उनकी बहू-बेटियों की इज्जत उतार रहे हैं, उनके घर जला रहे हैं, उन्हें फर्जी केसों में चारदीवारी में सडऩे के लिए भेजा जा रहा है, आखिर वो न्याय के लिए कहां जाए? ये सब मैं नहीं कह रही, बल्कि सीबीआई रिपोर्ट कहती है। सुप्रीम कोर्ट कहती हैं। जो भी आदिवासियों की समस्या का समाधान की कोशिश करते हैं, चाहे वह मानवाधिकार कार्यकर्ता हों, चाहे पत्रकार, उन्हें फर्जी माओवादी केसों में जेल में ठूंस दिया जाता है।
वर्षा ने पोस्ट में सुझाव देते हुए लिखा, कानून किसी को यह हक नहीं देता कि किसी के साथ अत्याचार करें, इसलिए सभी को जागना होगा। राज्य में पांचवीं अनुसूची लागू होनी चाहिए। आदिवासियों का विकास आदिवासियों के हिसाब से होना चाहिए। उन पर जबरदस्ती विकास न थोपा जाए। जवान हो या किसान, सब भाई-भाई हैं। एक-दूसरे को मारकर न ही शांति स्थापित होगी और न ही विकास। वर्षा ने लिखा, हम भी सिस्टम के शिकार हुए, लेकिन अन्याय के खिलाफ जंग लड़े। षडयंत्र रचकर तोडऩे की कोशिश की गई। प्रलोभन और रिश्वत का ऑफर भी दिया गया। हमने सारे इरादे नाकाम कर दिए और सत्य की विजय हुई।
जानें कौन हैं वर्षा
कबीर धाम ज़िले के एक दलित परिवार में जन्मी 35 साल की वर्षा डोंगरे ने जीव विज्ञान में स्नातक की पढाई की है। मां शिक्षिका के पद से सेवानिवृत हैं और पिता वकालत के पेशे में रहे हैं। परिवार में दो बहनें और एक भाई शिक्षक हैं, जबकि एक भाई सरकारी अस्पताल में डॉक्टर हैं। पढ़ाई में हमेशा अच्छे अंक लाने वाली वर्षा ने 2003 में छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की परीक्षा दी थी, लेकिन उनका चयन नहीं हुआ। इसके बाद की परीक्षा में वे सफल हुईं और उन्हें डिप्टी जेलर की पोस्ट मिली।
वर्षा डोंगरे पहली बार उस समय चर्चा में आई थीं, जब उन्होंने छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की 2003 में आयोजित राज्य सेवा आयोग की परीक्षा में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की। वर्षा ने इस मामले में लंबी अदालती लड़ाई लड़ी है।
(संपादन- भवेंद्र प्रकाश)
Courtesy: National Dastak