राजस्थान के अस्पतालों की बदहाली केंद्र की ताजा रिपोर्ट में फिर से उजागर हुई है। सरकार के मानकों पर राज्य के अधिकतर जिला अस्पताल खरे साबित नहीं हुए हैं। पूरे राज्य में केवल एक अस्पताल केंद्र सरकार के मानकों को पूरा कर पाया है।

दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर में बताया गया है कि नेशनल क्वालिटी एंश्योरेंस स्टेंडर्ड सर्टिफाइड की ताजा रिपोर्ट में राजस्थान के 27 में से 26 जिला अस्पतालों को मानकों के अनुकूल नहीं पाया गया है।
एनक्यूएएस के मानकों के हिसाब से देखें तो राजस्थान पूरे देश के राज्यों में आठवें नंबर पर आया है। एनक्यूएएस 5 हजार से ज्यादा बिंदुओं पर अध्ययन करने के बाद अस्पतालों का चयन करता है और अपनी बदहाली के लिए बदनाम राजस्थान के अधिकतर अस्पताल इन पर दूर-दूर तक नहीं टिकते।
एनक्यूएएस अपने आकलन में एक्सीडेंट इमरजेंसी, इनडोर, आउटडोर, लेबर रूम, ऑपरेशन थिएटर, आईसीयू, एसएससीयू, रेडियोलॉजी विभाग, जांच सुविधाएँ, बिजली-पानी, पार्किंग, कंप्यूटरीकरण जैसी सुविधाओं के निरीक्षण के आधार पर अपने आकलन प्रस्तुत करता है।
एनक्यूएएस का प्रमाण पत्र मिलने पर चयनित अस्पताल को केंद्र से अतिरिक्त मदद भी मिलती है, लेकिन राजस्थान के 27 में से 26 जिला अस्पतालों को इस तरह की मदद नहीं मिल पाएगी। इससे राज्य सरकार की क्षमता और इच्छाशक्ति पर भी सवालिया निशान लग गया है।
राज्य के अस्पतालों में डॉक्टर न होने, मरीजों के इलाज में लापरवाही या समुचित सुविधा न होने की खबरें आए दिन मीडिया में आती रहती हैं, लेकिन सरकार लापरवाह रहती है।
इस महीने की पहली तारीख को ही प्रदेश के जिला अस्पतालों के डॉक्टरों ने हड़ताल कर दी थी। डूंगरपुर के जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने भत्तों और अन्य सुविधाओं की मांग को लेकर प्रदर्शन किया था और मरीज लाइन में खड़े परेशान होते रहे थे।
मालपुरा के सबसे बड़े रेफरल अस्पताल में तो बिजली का ही संकट बना रहता है। मरीजों के लिए पर्याप्त बिस्तरों तक का इंतजाम नहीं है और मरीज या तो बेंचों पर लेटते हैं या जमीन पर।
रेफरल अस्पताल के भर्ती वॉर्ड में प्रतिदिन 60 से 70 मरीज भर्ती होते हैं, जबकि इसमें बिस्तर 25 ही हैं। वॉर्ड प्रभारी कहते हैं, ऐसे में जहां जगह मिलती है,वहीं मरीज का उपचार शुरू करना प्राथमिकता होती है।

दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर में बताया गया है कि नेशनल क्वालिटी एंश्योरेंस स्टेंडर्ड सर्टिफाइड की ताजा रिपोर्ट में राजस्थान के 27 में से 26 जिला अस्पतालों को मानकों के अनुकूल नहीं पाया गया है।
एनक्यूएएस के मानकों के हिसाब से देखें तो राजस्थान पूरे देश के राज्यों में आठवें नंबर पर आया है। एनक्यूएएस 5 हजार से ज्यादा बिंदुओं पर अध्ययन करने के बाद अस्पतालों का चयन करता है और अपनी बदहाली के लिए बदनाम राजस्थान के अधिकतर अस्पताल इन पर दूर-दूर तक नहीं टिकते।
एनक्यूएएस अपने आकलन में एक्सीडेंट इमरजेंसी, इनडोर, आउटडोर, लेबर रूम, ऑपरेशन थिएटर, आईसीयू, एसएससीयू, रेडियोलॉजी विभाग, जांच सुविधाएँ, बिजली-पानी, पार्किंग, कंप्यूटरीकरण जैसी सुविधाओं के निरीक्षण के आधार पर अपने आकलन प्रस्तुत करता है।
एनक्यूएएस का प्रमाण पत्र मिलने पर चयनित अस्पताल को केंद्र से अतिरिक्त मदद भी मिलती है, लेकिन राजस्थान के 27 में से 26 जिला अस्पतालों को इस तरह की मदद नहीं मिल पाएगी। इससे राज्य सरकार की क्षमता और इच्छाशक्ति पर भी सवालिया निशान लग गया है।
राज्य के अस्पतालों में डॉक्टर न होने, मरीजों के इलाज में लापरवाही या समुचित सुविधा न होने की खबरें आए दिन मीडिया में आती रहती हैं, लेकिन सरकार लापरवाह रहती है।
इस महीने की पहली तारीख को ही प्रदेश के जिला अस्पतालों के डॉक्टरों ने हड़ताल कर दी थी। डूंगरपुर के जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने भत्तों और अन्य सुविधाओं की मांग को लेकर प्रदर्शन किया था और मरीज लाइन में खड़े परेशान होते रहे थे।
मालपुरा के सबसे बड़े रेफरल अस्पताल में तो बिजली का ही संकट बना रहता है। मरीजों के लिए पर्याप्त बिस्तरों तक का इंतजाम नहीं है और मरीज या तो बेंचों पर लेटते हैं या जमीन पर।
रेफरल अस्पताल के भर्ती वॉर्ड में प्रतिदिन 60 से 70 मरीज भर्ती होते हैं, जबकि इसमें बिस्तर 25 ही हैं। वॉर्ड प्रभारी कहते हैं, ऐसे में जहां जगह मिलती है,वहीं मरीज का उपचार शुरू करना प्राथमिकता होती है।