नई दिल्ली। CAG द्वारा संसद में पेश की गई रिपोर्ट में मोदी सरकार द्वारा बगैर संसद की अनुमति के साढ़े ग्यारह सौ करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च करने का मामला सामने आया है। कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी सरकार ने संसद की पूर्व अनुमति के बिना ही विभिन्न मदों में 1,156.80 करोड़ रुपए खर्च कर दिए। कैग की रिपोर्ट में वित्त मंत्रालय की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए गए हैं। CAG की रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2017-18 के सिलसिले में यह बात कही गई है।
बता दें कि केंद्र सरकार संसद की मंजूरी के बिना बजट में निर्धारित राशि से ज्यादा खर्च नहीं कर सकती है। CAG की रिपोर्ट को मंगलवार (12 फरवरी, 2019) को ‘फायनेंशियल ऑडिट ऑफ द अकाउंट्स ऑफ द यूनियन गवर्नमेंट’ के नाम से संसद में पेश किया गया। मालूम हो आम बजट को पेश करने के बाद सरकार को वित्त और विनियोग विधेयकों को संसद से पास कराना होता है।
वित्त मंत्रालय की कार्यप्रणाली पर उठाए सवाल: CAG की रिपोर्ट में वित्त मंत्रालय की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए गए हैं। CAG की ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त मंत्रालय उचित तंत्र (नई सेवाओं के संदर्भ में) विकसित करने में असफल रहा, जिसके चलते अतिरिक्त खर्च हुआ।
इसके अलावा मंत्रालय के अधीन आने वाला आर्थिक मामलों का विभाग भी पूर्व में स्वीकृत खर्च (प्रोविजन) को बढ़ाने के मामले में मंजूरी लेने में विफल रहा। रिपोर्ट में कहा गया है,’निर्धारित दिशा-निर्देशों के तहत ग्रांट्स-इन-एड, सब्सिडी और नई सेवाओं के लिए किए गए प्रोविजन (खर्च के लिए निर्धारित राशि) में वृद्धि के लिए संसद की मंजूरी लेने की जरूरत होती है।’
लोक लेखा समिति भी जता चुकी है आपत्ति: संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) अपनी 83वीं रिपोर्ट में ग्रांट्स-इन-एड और सब्सिडी के मद में पूर्व में तय रकम को बढ़ाने के मामले पर गंभीर आपत्ति जता चुकी है। पीएसी ने इस रिपोर्ट में कहा था कि इस तरह की गंभीर खामियां इस बात को दर्शाती हैं कि संबंधित मंत्रालय या विभाग के बजट का आकलन त्रुटिपूर्ण है।
साथ ही वित्तीय नियमों और प्रावधानों की जानकारी का भी अभाव है। सीएजी ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा कि वित्तीय स्थिति को दुरुस्त रखने के लिए वित्त मंत्रालय द्वारा एक प्रभावी तंत्र विकसित करने की जरूरत है।
बता दें कि केंद्र सरकार संसद की मंजूरी के बिना बजट में निर्धारित राशि से ज्यादा खर्च नहीं कर सकती है। CAG की रिपोर्ट को मंगलवार (12 फरवरी, 2019) को ‘फायनेंशियल ऑडिट ऑफ द अकाउंट्स ऑफ द यूनियन गवर्नमेंट’ के नाम से संसद में पेश किया गया। मालूम हो आम बजट को पेश करने के बाद सरकार को वित्त और विनियोग विधेयकों को संसद से पास कराना होता है।
वित्त मंत्रालय की कार्यप्रणाली पर उठाए सवाल: CAG की रिपोर्ट में वित्त मंत्रालय की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए गए हैं। CAG की ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त मंत्रालय उचित तंत्र (नई सेवाओं के संदर्भ में) विकसित करने में असफल रहा, जिसके चलते अतिरिक्त खर्च हुआ।
इसके अलावा मंत्रालय के अधीन आने वाला आर्थिक मामलों का विभाग भी पूर्व में स्वीकृत खर्च (प्रोविजन) को बढ़ाने के मामले में मंजूरी लेने में विफल रहा। रिपोर्ट में कहा गया है,’निर्धारित दिशा-निर्देशों के तहत ग्रांट्स-इन-एड, सब्सिडी और नई सेवाओं के लिए किए गए प्रोविजन (खर्च के लिए निर्धारित राशि) में वृद्धि के लिए संसद की मंजूरी लेने की जरूरत होती है।’
लोक लेखा समिति भी जता चुकी है आपत्ति: संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) अपनी 83वीं रिपोर्ट में ग्रांट्स-इन-एड और सब्सिडी के मद में पूर्व में तय रकम को बढ़ाने के मामले पर गंभीर आपत्ति जता चुकी है। पीएसी ने इस रिपोर्ट में कहा था कि इस तरह की गंभीर खामियां इस बात को दर्शाती हैं कि संबंधित मंत्रालय या विभाग के बजट का आकलन त्रुटिपूर्ण है।
साथ ही वित्तीय नियमों और प्रावधानों की जानकारी का भी अभाव है। सीएजी ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा कि वित्तीय स्थिति को दुरुस्त रखने के लिए वित्त मंत्रालय द्वारा एक प्रभावी तंत्र विकसित करने की जरूरत है।