क्या आपने कभी देखा या सुना है कि 65 हजार से भी बड़ी आबादी वाला गांव राजस्व विभाग के नक्शे पर ही नहीं है। जी हां, 90 साल से ज्यादा समय से बसे नैनीताल के वन गांव बिंदुखत्ता में स्कूल, कॉलेज, बाजार, सड़क, बिजली, पानी, हैल्थ सेंटर सब कुछ है लेकिन लोग जिस जमीन पर रह रहे हैं, उसका मालिकाना हक (भूमि स्वामित्व) उनके पास नहीं हैं। नाम तो दूर, परिवार रजिस्टर तक नहीं बना है। लोकसभा विधानसभा में वोट देंगे, पर अपना प्रतिनिधि (प्रधान) नहीं चुन सकते हैं। वन अधिकार कानून- 2006 आने के बाद लोगों को ये सब हक हकूक मिलने की आस जगी। और आखिरकार सालों के लंबे संघर्ष के बाद लोगों की जीत हुई। जी हां उत्तराखंड ही नहीं, संभवतः देश के सबसे बड़े गांव नैनीताल के बिंदुखत्ता गांव के राजस्व गांव बनने का रास्ता साफ हो गया है। नैनीताल प्रशासन ने राजस्व गांव का प्रस्ताव पास कर शासन को भेज दिया है।
सालों के लंबे संघर्ष के बाद बिंदुखत्ता के लोगों की जीत हुई है। हजारों परिवारों को भूमि अधिकार मिलने का रास्ता साफ हो गया है। पीढ़ियों पहले से वन भूमि पर बसे बिंदुखत्ता के लोग इसे राजस्व गांव बनाने की मांग करते रहे हैं जिस पर वनाधिकार अधिनियम 2006 के तहत जिला स्तरीय वनाधिकार समिति द्वारा अपनी बैठक में सर्वसम्मति देते हुए, जिलाधिकारी नैनीताल ने 19 जून को राजस्व दर्जे के अनुमोदन के लिए पत्रावली, उत्तराखंड शासन को भेज दी है। जहां से इसे राजस्व परिषद द्वारा राज्यपाल को अधिसूचना जारी करने हेतु भेजा जाएगा।
खास है कि लगभग 3470 हैक्टेयर वन भूमि पर बसे बिंदुखत्ता की (2011 में हुई जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या 56,130) की आबादी करीब 65 हजार है और यहां के कुल मतदाताओं की संख्या 34046 होने से यह क्षेत्र अभी तक सभी राजनीतिक दलों के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी ही बनकर रह गया था लेकिन अब वन अधिकार अधिनियम के तहत गठित ग्राम स्तरीय वनाधिकार समिति की पेशबंदी से प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी इस क्षेत्र को राजस्व गांव बनाने की घोषणा की है। इसी आधार पर डीएम नैनीताल ने पत्रावली शासन को भेज दी है।
यह पहला मौका है जब बिंदुखत्ता की दशकों पुरानी मांग पर विधिवत कार्यवाही हुई है। इससे लोगों में काफी हर्ष का माहौल बना हुआ है। जिलाधिकारी वंदना सिंह ने गत दिनों प्रभागीय वनाधिकारी, उपजिलाधिकारी हल्द्वानी, सहायक समाज कल्याण अधिकारी व अन्य सरकारी अमले की उपस्थिति में वन अधिकार समिति बिंदुखत्ता के सदस्यों से करीब दो घंटे तक विस्तृत चर्चा भी की थी। इस दौरान उन्होंने ग्रामीणों से चर्चा करते हुए कहा कि शासन स्तर पर पत्रावली पर आशानुरूप परिणाम प्राप्त करने के लिए यदि कोई पूरक प्रस्ताव प्रदेश शासन को भेजने की जरूरत होगी तो एक सप्ताह में ग्राम स्तरीय, खंड तथा जिला स्तरीय वनाधिकार समिति की संयुक्त बैठक आयोजित कर वह भी किया जाएगा।
उन्होंने उप जिलाधिकारी को निर्देशित किया कि बिंदुखत्ता के ग्रामीणों का परिवार रजिस्टर बनाने के लिए तीन-चार टीमें गठित करके घर-घर जाकर पारिवारिक डाटा एकत्र किया जाए। इसके साथ ही प्रभागीय वनाधिकारी पूर्वी तराई वन प्रभाग को बिंदुखत्तावासियों को निजी उपयोग हेतु गौला नदी में रेता-बजरी के परमिट जारी करने के भी निर्देश दिए।
विदित रहे कि पिछले कई दशकों से बिंदुखत्तावासी राजस्व गांव की मांग को लेकर आंदोलित रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। केंद्र सरकार द्वारा 2006 में बनाए गए वन अधिकार अधिनियम के तहत बिंदुखत्तावासियों ने क्षेत्रीय विधायक डॉ. मोहन सिंह बिष्ट के सक्रिय सहयोग से राजस्व गांव की पत्रावली तैयार कर दावा पुराने सरकारी दस्तावेजों सहित उपखंड स्तरीय वनाधिकार समिति के समक्ष पिछले साल जुलाई में पेश किया था। जिसने लंबे समय तक कागजातों की जांच कर पत्रावली नियमानुसार जिला स्तरीय वनाधिकार समिति को भेज दी थी।
विगत मार्च माह में जिला स्तरीय वनाधिकार समिति ने बिंदुखत्ता को राजस्व गांव बनाने पर सहमति जताते हुए अपनी मोहर लगा दी थी। इसी बीच प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी अपनी घोषणा में बिंदुखत्ता को वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत राजस्व गांव बनाने की घोषणा कर दी। अंतत: उक्त पत्रावली में जिलाधिकारी नैनीताल द्वारा सकारात्मक कार्यवाही कर 19 जून को प्रकरण शासन को भेज दिया है। जिस पर यहां सभी लोगों ने जिलाधिकारी का आभार जताया।
वन अधिकार समिति के संरक्षक श्याम सिंह रावत ने कहा कि बिंदुखत्ता के लिए खुशी का दिन है। यह ऐतिहासिक रूप से यह पहला मौका है जब पूरे देश में इतने बड़े भूभाग को राजस्व गांव का दर्जा मिलने वाला है। उन्होंने कहा कि हमारे जनप्रतिनिधि उक्त कार्य के लिए लगातार संघर्षरत रहे हैं जिसका हमें यह सुखद परिणाम मिला है। वन अधिकार समिति के अध्यक्ष अर्जुन नाथ गोस्वामी ने सभी अधिकारी व जनप्रतिनिधि तथा ग्राम वन अधिकार समिति के पदाधिकारी बिंदुखत्तावासियों का आभार जताते हुए कहा कि बिंदुखत्तावासियो ने वन अधिकार अधिनियम की कार्यवाही पर समिति का सहयोग दिया जिससे यह सब संभव हो पाया है।
*अंग्रेजों ने बसाया था बिंदुखत्ता*
मूल रूप से वन ग्राम के रूप में नामित नैनीताल जिले का बिंदुखत्ता गांव, अंग्रेजों ने मवेशी पालन और पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए वन भूमि को साफ करने के बाद बसाया था। वन ग्राम के दर्जे के साथ, बिंदुखत्ता के निवासियों को आरक्षित वन से काटी गई भूमि पर सामुदायिक अधिकार प्राप्त हुए थे लेकिन व्यक्तिगत अधिकार मिलने का रास्ता अब राजस्व गांव बनने के साथ होगा।
हालांकि, 1985 से ही यहां के निवासी बिंदुखत्ता को 'राजस्व गांव' का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं। राजस्व गांव एक छोटी प्रशासनिक इकाई होती है जिसकी एक निश्चित सर्वेक्षण सीमा होती है और यहां के निवासियों को व्यक्तिगत भूमि स्वामित्व अधिकार प्राप्त होते हैं। वर्तमान में, उनके पास कोई व्यक्तिगत भूमि स्वामित्व या रजिस्ट्री के कागजात नहीं हैं। राज्य सरकार ने 2014 में बिंदुखत्ता निवासियों को भूमि अधिकार और राजस्व गांव का दर्जा देने का वादा किया था, लेकिन कोई आधिकारिक आदेश नहीं दिया गया। बाद में बिंदुखत्ता को नगर पालिका बनाने का भी फैसला किया गया, लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के बाद सरकार ने यह फैसला वापस ले लिया। 2022 तक राज्य सरकार ने गांव के विद्युतीकरण पर 16 साल से लगी रोक हटा ली है।
*अन्य परंपरागत वन निवासी होने के चलते लंबा रहा संघर्ष*
अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन से जुड़े वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के तरुण जोशी बताते हैं कि बिंदुखत्ता के लिए लंबा संघर्ष चला है। दो साल से तो लोग लगभग निरंतर प्रदर्शन कर रहे थे। दरअसल, ये कोई आदिवासी या टोंगिया गांव नहीं है, यहां सभी लोग अन्य परंपरागत वन निवासी की कैटेगरी में आते हैं लिहाजा 75 साल से रहने के सबूत आदि की शर्ते पूर्ण की गई और लोगों ने एकजुट संघर्ष किया और जीते। कहा उन्हें उम्मीद है कि शासन से भी जल्द ही बिंदुखत्ता के राजस्व दर्जे पर मुहर लग जाएगी।
उधर, अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन की राष्ट्रीय महासचिव रोमा ने कहा कि यह लोगों के संघर्ष और संगठन की जीत है। बिंदुखत्ता को राजस्व गांव में बदलने के संघर्ष में 2 साल के बाद सफलता मिली है। इससे उतराखंड में अन्य वन गावों के राजस्व गांव बनने के लिए भी रास्ता खुलने की संभावना बनी है...। लोगों के संघर्ष को उनका लाल सलाम।
Related:
बहराइच: वन निवासियों का उत्पीड़न रोकने को प्रमुख हथियार बना वनाधिकार कानून- 2006
उत्तराखंड में पांच साल में ढाई हजार हेक्टेयर से अधिक वन भूमि कथित विकास के लिए हस्तांतरित
असम: वनों पर निर्भर समुदायों के खिलाफ बढ़ रहे 'हिंसा' और 'फर्जी मुठभेड़' के मामले, CNAPA, AIUFWP ने निंदा की
सालों के लंबे संघर्ष के बाद बिंदुखत्ता के लोगों की जीत हुई है। हजारों परिवारों को भूमि अधिकार मिलने का रास्ता साफ हो गया है। पीढ़ियों पहले से वन भूमि पर बसे बिंदुखत्ता के लोग इसे राजस्व गांव बनाने की मांग करते रहे हैं जिस पर वनाधिकार अधिनियम 2006 के तहत जिला स्तरीय वनाधिकार समिति द्वारा अपनी बैठक में सर्वसम्मति देते हुए, जिलाधिकारी नैनीताल ने 19 जून को राजस्व दर्जे के अनुमोदन के लिए पत्रावली, उत्तराखंड शासन को भेज दी है। जहां से इसे राजस्व परिषद द्वारा राज्यपाल को अधिसूचना जारी करने हेतु भेजा जाएगा।
खास है कि लगभग 3470 हैक्टेयर वन भूमि पर बसे बिंदुखत्ता की (2011 में हुई जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या 56,130) की आबादी करीब 65 हजार है और यहां के कुल मतदाताओं की संख्या 34046 होने से यह क्षेत्र अभी तक सभी राजनीतिक दलों के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी ही बनकर रह गया था लेकिन अब वन अधिकार अधिनियम के तहत गठित ग्राम स्तरीय वनाधिकार समिति की पेशबंदी से प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी इस क्षेत्र को राजस्व गांव बनाने की घोषणा की है। इसी आधार पर डीएम नैनीताल ने पत्रावली शासन को भेज दी है।
यह पहला मौका है जब बिंदुखत्ता की दशकों पुरानी मांग पर विधिवत कार्यवाही हुई है। इससे लोगों में काफी हर्ष का माहौल बना हुआ है। जिलाधिकारी वंदना सिंह ने गत दिनों प्रभागीय वनाधिकारी, उपजिलाधिकारी हल्द्वानी, सहायक समाज कल्याण अधिकारी व अन्य सरकारी अमले की उपस्थिति में वन अधिकार समिति बिंदुखत्ता के सदस्यों से करीब दो घंटे तक विस्तृत चर्चा भी की थी। इस दौरान उन्होंने ग्रामीणों से चर्चा करते हुए कहा कि शासन स्तर पर पत्रावली पर आशानुरूप परिणाम प्राप्त करने के लिए यदि कोई पूरक प्रस्ताव प्रदेश शासन को भेजने की जरूरत होगी तो एक सप्ताह में ग्राम स्तरीय, खंड तथा जिला स्तरीय वनाधिकार समिति की संयुक्त बैठक आयोजित कर वह भी किया जाएगा।
उन्होंने उप जिलाधिकारी को निर्देशित किया कि बिंदुखत्ता के ग्रामीणों का परिवार रजिस्टर बनाने के लिए तीन-चार टीमें गठित करके घर-घर जाकर पारिवारिक डाटा एकत्र किया जाए। इसके साथ ही प्रभागीय वनाधिकारी पूर्वी तराई वन प्रभाग को बिंदुखत्तावासियों को निजी उपयोग हेतु गौला नदी में रेता-बजरी के परमिट जारी करने के भी निर्देश दिए।
विदित रहे कि पिछले कई दशकों से बिंदुखत्तावासी राजस्व गांव की मांग को लेकर आंदोलित रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। केंद्र सरकार द्वारा 2006 में बनाए गए वन अधिकार अधिनियम के तहत बिंदुखत्तावासियों ने क्षेत्रीय विधायक डॉ. मोहन सिंह बिष्ट के सक्रिय सहयोग से राजस्व गांव की पत्रावली तैयार कर दावा पुराने सरकारी दस्तावेजों सहित उपखंड स्तरीय वनाधिकार समिति के समक्ष पिछले साल जुलाई में पेश किया था। जिसने लंबे समय तक कागजातों की जांच कर पत्रावली नियमानुसार जिला स्तरीय वनाधिकार समिति को भेज दी थी।
विगत मार्च माह में जिला स्तरीय वनाधिकार समिति ने बिंदुखत्ता को राजस्व गांव बनाने पर सहमति जताते हुए अपनी मोहर लगा दी थी। इसी बीच प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी अपनी घोषणा में बिंदुखत्ता को वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत राजस्व गांव बनाने की घोषणा कर दी। अंतत: उक्त पत्रावली में जिलाधिकारी नैनीताल द्वारा सकारात्मक कार्यवाही कर 19 जून को प्रकरण शासन को भेज दिया है। जिस पर यहां सभी लोगों ने जिलाधिकारी का आभार जताया।
वन अधिकार समिति के संरक्षक श्याम सिंह रावत ने कहा कि बिंदुखत्ता के लिए खुशी का दिन है। यह ऐतिहासिक रूप से यह पहला मौका है जब पूरे देश में इतने बड़े भूभाग को राजस्व गांव का दर्जा मिलने वाला है। उन्होंने कहा कि हमारे जनप्रतिनिधि उक्त कार्य के लिए लगातार संघर्षरत रहे हैं जिसका हमें यह सुखद परिणाम मिला है। वन अधिकार समिति के अध्यक्ष अर्जुन नाथ गोस्वामी ने सभी अधिकारी व जनप्रतिनिधि तथा ग्राम वन अधिकार समिति के पदाधिकारी बिंदुखत्तावासियों का आभार जताते हुए कहा कि बिंदुखत्तावासियो ने वन अधिकार अधिनियम की कार्यवाही पर समिति का सहयोग दिया जिससे यह सब संभव हो पाया है।
*अंग्रेजों ने बसाया था बिंदुखत्ता*
मूल रूप से वन ग्राम के रूप में नामित नैनीताल जिले का बिंदुखत्ता गांव, अंग्रेजों ने मवेशी पालन और पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए वन भूमि को साफ करने के बाद बसाया था। वन ग्राम के दर्जे के साथ, बिंदुखत्ता के निवासियों को आरक्षित वन से काटी गई भूमि पर सामुदायिक अधिकार प्राप्त हुए थे लेकिन व्यक्तिगत अधिकार मिलने का रास्ता अब राजस्व गांव बनने के साथ होगा।
हालांकि, 1985 से ही यहां के निवासी बिंदुखत्ता को 'राजस्व गांव' का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं। राजस्व गांव एक छोटी प्रशासनिक इकाई होती है जिसकी एक निश्चित सर्वेक्षण सीमा होती है और यहां के निवासियों को व्यक्तिगत भूमि स्वामित्व अधिकार प्राप्त होते हैं। वर्तमान में, उनके पास कोई व्यक्तिगत भूमि स्वामित्व या रजिस्ट्री के कागजात नहीं हैं। राज्य सरकार ने 2014 में बिंदुखत्ता निवासियों को भूमि अधिकार और राजस्व गांव का दर्जा देने का वादा किया था, लेकिन कोई आधिकारिक आदेश नहीं दिया गया। बाद में बिंदुखत्ता को नगर पालिका बनाने का भी फैसला किया गया, लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के बाद सरकार ने यह फैसला वापस ले लिया। 2022 तक राज्य सरकार ने गांव के विद्युतीकरण पर 16 साल से लगी रोक हटा ली है।
*अन्य परंपरागत वन निवासी होने के चलते लंबा रहा संघर्ष*
अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन से जुड़े वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के तरुण जोशी बताते हैं कि बिंदुखत्ता के लिए लंबा संघर्ष चला है। दो साल से तो लोग लगभग निरंतर प्रदर्शन कर रहे थे। दरअसल, ये कोई आदिवासी या टोंगिया गांव नहीं है, यहां सभी लोग अन्य परंपरागत वन निवासी की कैटेगरी में आते हैं लिहाजा 75 साल से रहने के सबूत आदि की शर्ते पूर्ण की गई और लोगों ने एकजुट संघर्ष किया और जीते। कहा उन्हें उम्मीद है कि शासन से भी जल्द ही बिंदुखत्ता के राजस्व दर्जे पर मुहर लग जाएगी।
उधर, अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन की राष्ट्रीय महासचिव रोमा ने कहा कि यह लोगों के संघर्ष और संगठन की जीत है। बिंदुखत्ता को राजस्व गांव में बदलने के संघर्ष में 2 साल के बाद सफलता मिली है। इससे उतराखंड में अन्य वन गावों के राजस्व गांव बनने के लिए भी रास्ता खुलने की संभावना बनी है...। लोगों के संघर्ष को उनका लाल सलाम।
Related:
बहराइच: वन निवासियों का उत्पीड़न रोकने को प्रमुख हथियार बना वनाधिकार कानून- 2006
उत्तराखंड में पांच साल में ढाई हजार हेक्टेयर से अधिक वन भूमि कथित विकास के लिए हस्तांतरित
असम: वनों पर निर्भर समुदायों के खिलाफ बढ़ रहे 'हिंसा' और 'फर्जी मुठभेड़' के मामले, CNAPA, AIUFWP ने निंदा की