प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने बिहार की विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के तहत अंतिम मतदाता सूची से करीब 47 लाख नाम हटाने के कारणों और इनमें पाए गए विदेशी ‘अवैध प्रवासियों’ की संख्या के बारे में जानकारी नहीं दी। उन्होंने बताया कि इस संबंध में पूरी जानकारी प्रत्येक इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ईआरओ) और जिलाधिकारी के पास उपलब्ध है।

बिहार में एसआईआर (विशेष गहन पुनरीक्षण) के बाद जारी की गई अंतिम मतदाता सूची में राज्य के मतदाताओं की संख्या में लगभग 6% की कमी दर्ज की गई है।
हालांकि, रविवार 5 अक्टूबर को मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह स्पष्ट नहीं किया कि मतदाता सूची से लगभग 47 लाख नाम हटाने के पीछे क्या कारण हैं या हटाए गए इन नामों में कितने लोग विदेशी ‘अवैध प्रवासी’ थे।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने केवल इतना कहा कि मतदाता सूची से संबंधित पूरा डेटा जिलाधिकारियों के पास मौजूद है और उन्होंने यह जानकारी जिला स्तर पर राजनीतिक दलों को उपलब्ध करा दी है। उन्होंने यह भी बताया कि यदि राजनीतिक दल चाहें तो नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि से दस दिन पहले तक हटाए गए नामों को लेकर दावे और आपत्तियां दर्ज करा सकते हैं।
उन्होंने यह भी स्पष्ट नहीं किया कि उन घरों की जांच कैसे की गई, जहां एक ही पते पर दर्जनों मतदाताओं के नाम दर्ज थे, और यह भी नहीं बताया कि क्या देशभर में चल रहे विशेष पुनरीक्षण के दौरान आधार कार्ड को प्रमाण दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जाएगा।
पटना में बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों के सिलसिले में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने बताया कि मतदाता सूची तैयार करने की जिम्मेदारी इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ईआरओ) की होती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जिन नामों को सूची से हटाया गया है, उनमें गैर-भारतीय नागरिक, मृतक, एक से अधिक स्थानों पर पंजीकृत मतदाता और वे लोग शामिल हैं जो स्थायी रूप से कहीं और स्थानांतरित हो चुके हैं।
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा, “कितने नाम हटाए गए, यह सवाल बार-बार पूछा जा रहा है। जैसा कि आप सभी जानते हैं, प्रत्येक इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ईआरओ) ने अपने-अपने क्षेत्र में दावे और आपत्तियों की प्रक्रिया पूरी करने के बाद मतदाता सूची का सत्यापन किया। इस प्रक्रिया के तहत राज्य में लगभग 65 लाख नाम हटाए गए और इसके बाद अतिरिक्त 3.66 लाख नाम और हटाए गए। इन सभी मतदाताओं को संबंधित ईआरओ द्वारा अयोग्य पाया गया। यदि किसी को इस पर आपत्ति है, तो वे अब भी जिलाधिकारी के समक्ष अपील कर सकते हैं।”
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण के बाद प्रकाशित अंतिम मतदाता सूची में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि हटाए गए 47 लाख नामों के पीछे क्या कारण थे, कितने नए मतदाताओं को जोड़ा गया, कितनों को दस्तावेजों की कमी के आधार पर हटाया गया और कितने विदेशी ‘अवैध प्रवासी’ पाए गए।
यह जानकारी तब भी सार्वजनिक नहीं की गई है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त को निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया था कि वह अपनी वेबसाइट पर ड्राफ्ट मतदाता सूची से हटाए गए नामों का कारण सहित विवरण जारी करे।
कुमार ने बताया कि जिला स्तर पर राजनीतिक दलों को हटाए गए नामों की सूची दे दी गई है। यदि किसी दल को इनमें कोई त्रुटि या विसंगति लगती है, तो वे संबंधित इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ईआरओ) से संपर्क कर आवश्यक सुधार करवा सकते हैं।
उन्होंने कहा, “हर जिले के जिलाधिकारी द्वारा राजनीतिक दलों को हटाए गए नामों की सूची प्रदान की जा चुकी है। अब यह राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है कि वे सूची की जांच करें और यदि कोई त्रुटि या कमी पाई जाती है तो संबंधित अधिकारियों से उसका सुधार कराएं। साथ ही, राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे मतदान केंद्रों और मतगणना केंद्रों पर अपने एजेंट नियुक्त करने के साथ-साथ अंतिम मतदाता सूची की भी गंभीरता से समीक्षा करें।”
मुख्य चुनाव आयुक्त ने फिर स्पष्ट किया कि हटाए गए नामों में मृतक, गैर-भारतीय नागरिक, एक से अधिक स्थानों पर पंजीकृत मतदाता और वे व्यक्ति शामिल हैं जो स्थायी रूप से स्थानांतरित हो चुके हैं। उन्होंने यह भी बताया कि इस संबंध में पूरा डेटा प्रत्येक इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ईआरओ) और जिलाधिकारी के पास उपलब्ध है।
निर्वाचन आयोग ने 24 जून को विशेष गहन पुनरीक्षण की घोषणा करते हुए कहा था कि इस प्रक्रिया का एक उद्देश्य मतदाता सूची में शामिल ‘विदेशी अवैध प्रवासियों’ की पहचान करना भी है। हालांकि, आयोग ने अब तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि इस प्रक्रिया के दौरान कितने ऐसे व्यक्तियों की पहचान हुई है।
एसआईआर को लेकर यह भी आलोचना हुई है कि इसे बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लागू किया गया। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कुमार ने बताया कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के अनुसार, चुनाव से पहले मतदाता सूची में संशोधन की प्रक्रिया पूरी की जा सकती है।
उन्होंने कहा, “यदि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम को देखा जाए तो चुनाव से पहले संशोधन कराना पूरी तरह वैध है। यह कहना कि संशोधन चुनाव के बाद ही होना चाहिए, कानून के अनुरूप सही नहीं है।”
राज्य के कुछ इलाकों में एक ही पते पर सैकड़ों मतदाताओं के नाम दर्ज होने की शिकायतों पर कुमार ने कहा कि जिन लोगों के पास अपना घर नहीं है या जिनके घरों को नंबर नहीं मिला है, उन्हें पड़ोसी घर का नंबर या ‘0’ नंबर दिया जाता है।
उन्होंने आगे बताया कि जब बूथ लेवल अधिकारी (बीएलओ) किसी भी घर में जाकर मतदाता विवरण दर्ज करते हैं, तो राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि भी मौजूद रहते हैं, ताकि दावे और आपत्तियां उसी समय दर्ज की जा सकें।
उन्होंने कहा, ‘बिहार में राजनीतिक दलों की ओर से 1.6 लाख से अधिक बूथ लेवल एजेंट नियुक्त किए गए हैं।’
एसआईआर के दौरान आधार कार्ड को पहचान दस्तावेज के रूप में स्वीकार करने के मुद्दे पर भी निर्वाचन आयोग को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। शुरू में आधार को 11 मान्य दस्तावेजों की सूची से बाहर रखा गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद इसे 12वां दस्तावेज मान्यता दी गई और सूची में शामिल किया गया।
इस पर ज्ञानेश कुमार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वीकार किया है कि आधार कार्ड नागरिकता या आयु का प्रमाण नहीं है, बल्कि केवल एक पहचान दस्तावेज के रूप में ही मान्यता प्राप्त है।
उन्होंने कहा, “यदि किसी ने 2023 के बाद आधार कार्ड प्राप्त किया है या डाउनलोड किया है, तो उस पर स्पष्ट लिखा होता है कि यह नागरिकता या आयु का प्रमाण नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा है कि इसे पहचान के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है और हम उसी आदेश का पालन कर रहे हैं। हम पहले भी इसे पहचान दस्तावेज के रूप में स्वीकार करते थे और अब भी कर रहे हैं।”
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हालांकि, रविवार 5 अक्टूबर को मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह स्पष्ट नहीं किया कि मतदाता सूची से लगभग 47 लाख नाम हटाने के पीछे क्या कारण हैं या हटाए गए इन नामों में कितने लोग विदेशी ‘अवैध प्रवासी’ थे।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने केवल इतना कहा कि मतदाता सूची से संबंधित पूरा डेटा जिलाधिकारियों के पास मौजूद है और उन्होंने यह जानकारी जिला स्तर पर राजनीतिक दलों को उपलब्ध करा दी है। उन्होंने यह भी बताया कि यदि राजनीतिक दल चाहें तो नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि से दस दिन पहले तक हटाए गए नामों को लेकर दावे और आपत्तियां दर्ज करा सकते हैं।
उन्होंने यह भी स्पष्ट नहीं किया कि उन घरों की जांच कैसे की गई, जहां एक ही पते पर दर्जनों मतदाताओं के नाम दर्ज थे, और यह भी नहीं बताया कि क्या देशभर में चल रहे विशेष पुनरीक्षण के दौरान आधार कार्ड को प्रमाण दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जाएगा।
पटना में बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों के सिलसिले में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने बताया कि मतदाता सूची तैयार करने की जिम्मेदारी इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ईआरओ) की होती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जिन नामों को सूची से हटाया गया है, उनमें गैर-भारतीय नागरिक, मृतक, एक से अधिक स्थानों पर पंजीकृत मतदाता और वे लोग शामिल हैं जो स्थायी रूप से कहीं और स्थानांतरित हो चुके हैं।
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा, “कितने नाम हटाए गए, यह सवाल बार-बार पूछा जा रहा है। जैसा कि आप सभी जानते हैं, प्रत्येक इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ईआरओ) ने अपने-अपने क्षेत्र में दावे और आपत्तियों की प्रक्रिया पूरी करने के बाद मतदाता सूची का सत्यापन किया। इस प्रक्रिया के तहत राज्य में लगभग 65 लाख नाम हटाए गए और इसके बाद अतिरिक्त 3.66 लाख नाम और हटाए गए। इन सभी मतदाताओं को संबंधित ईआरओ द्वारा अयोग्य पाया गया। यदि किसी को इस पर आपत्ति है, तो वे अब भी जिलाधिकारी के समक्ष अपील कर सकते हैं।”
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण के बाद प्रकाशित अंतिम मतदाता सूची में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि हटाए गए 47 लाख नामों के पीछे क्या कारण थे, कितने नए मतदाताओं को जोड़ा गया, कितनों को दस्तावेजों की कमी के आधार पर हटाया गया और कितने विदेशी ‘अवैध प्रवासी’ पाए गए।
यह जानकारी तब भी सार्वजनिक नहीं की गई है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त को निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया था कि वह अपनी वेबसाइट पर ड्राफ्ट मतदाता सूची से हटाए गए नामों का कारण सहित विवरण जारी करे।
कुमार ने बताया कि जिला स्तर पर राजनीतिक दलों को हटाए गए नामों की सूची दे दी गई है। यदि किसी दल को इनमें कोई त्रुटि या विसंगति लगती है, तो वे संबंधित इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ईआरओ) से संपर्क कर आवश्यक सुधार करवा सकते हैं।
उन्होंने कहा, “हर जिले के जिलाधिकारी द्वारा राजनीतिक दलों को हटाए गए नामों की सूची प्रदान की जा चुकी है। अब यह राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है कि वे सूची की जांच करें और यदि कोई त्रुटि या कमी पाई जाती है तो संबंधित अधिकारियों से उसका सुधार कराएं। साथ ही, राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे मतदान केंद्रों और मतगणना केंद्रों पर अपने एजेंट नियुक्त करने के साथ-साथ अंतिम मतदाता सूची की भी गंभीरता से समीक्षा करें।”
मुख्य चुनाव आयुक्त ने फिर स्पष्ट किया कि हटाए गए नामों में मृतक, गैर-भारतीय नागरिक, एक से अधिक स्थानों पर पंजीकृत मतदाता और वे व्यक्ति शामिल हैं जो स्थायी रूप से स्थानांतरित हो चुके हैं। उन्होंने यह भी बताया कि इस संबंध में पूरा डेटा प्रत्येक इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ईआरओ) और जिलाधिकारी के पास उपलब्ध है।
निर्वाचन आयोग ने 24 जून को विशेष गहन पुनरीक्षण की घोषणा करते हुए कहा था कि इस प्रक्रिया का एक उद्देश्य मतदाता सूची में शामिल ‘विदेशी अवैध प्रवासियों’ की पहचान करना भी है। हालांकि, आयोग ने अब तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि इस प्रक्रिया के दौरान कितने ऐसे व्यक्तियों की पहचान हुई है।
एसआईआर को लेकर यह भी आलोचना हुई है कि इसे बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लागू किया गया। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कुमार ने बताया कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के अनुसार, चुनाव से पहले मतदाता सूची में संशोधन की प्रक्रिया पूरी की जा सकती है।
उन्होंने कहा, “यदि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम को देखा जाए तो चुनाव से पहले संशोधन कराना पूरी तरह वैध है। यह कहना कि संशोधन चुनाव के बाद ही होना चाहिए, कानून के अनुरूप सही नहीं है।”
राज्य के कुछ इलाकों में एक ही पते पर सैकड़ों मतदाताओं के नाम दर्ज होने की शिकायतों पर कुमार ने कहा कि जिन लोगों के पास अपना घर नहीं है या जिनके घरों को नंबर नहीं मिला है, उन्हें पड़ोसी घर का नंबर या ‘0’ नंबर दिया जाता है।
उन्होंने आगे बताया कि जब बूथ लेवल अधिकारी (बीएलओ) किसी भी घर में जाकर मतदाता विवरण दर्ज करते हैं, तो राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि भी मौजूद रहते हैं, ताकि दावे और आपत्तियां उसी समय दर्ज की जा सकें।
उन्होंने कहा, ‘बिहार में राजनीतिक दलों की ओर से 1.6 लाख से अधिक बूथ लेवल एजेंट नियुक्त किए गए हैं।’
एसआईआर के दौरान आधार कार्ड को पहचान दस्तावेज के रूप में स्वीकार करने के मुद्दे पर भी निर्वाचन आयोग को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। शुरू में आधार को 11 मान्य दस्तावेजों की सूची से बाहर रखा गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद इसे 12वां दस्तावेज मान्यता दी गई और सूची में शामिल किया गया।
इस पर ज्ञानेश कुमार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वीकार किया है कि आधार कार्ड नागरिकता या आयु का प्रमाण नहीं है, बल्कि केवल एक पहचान दस्तावेज के रूप में ही मान्यता प्राप्त है।
उन्होंने कहा, “यदि किसी ने 2023 के बाद आधार कार्ड प्राप्त किया है या डाउनलोड किया है, तो उस पर स्पष्ट लिखा होता है कि यह नागरिकता या आयु का प्रमाण नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा है कि इसे पहचान के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है और हम उसी आदेश का पालन कर रहे हैं। हम पहले भी इसे पहचान दस्तावेज के रूप में स्वीकार करते थे और अब भी कर रहे हैं।”
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