व्हॉट्सएप यूनिवर्सिटी का पोस्टमॉर्टम
(इधर संघी प्रोपोगेंडा गॉयबल्स का नया संदेश व्हॉट्सएप पर वायरल है, जो भगत सिंह की फांसी को लेकर है। इसकी पोल-खोल है, आज के संघी झूठ के पोस्टमॉर्टम में।)
शहीदे आजम भगतसिंह को फाँसी कब दी गई,क्यों दी गई ?
उनकी विचारधारा क्या थी ऐसी ढेर सारी बातें उनलोगों को नहीं मालूम जिन्हें यह पता है कि महात्मा गांधी चाहते तो भगतसिंह की फाँसी रुक सकती थी लेकिन उन्होंने नहीं चाहा।
यह एक बहुत महत्वपूर्ण सवाल है कि किन तत्वों ने इन गलत बातों को प्रचारित और प्रसारित किया?
अंग्रेजी हुक्मरानों को भी अपने इस षड्यंत्र के सफलता की इतनी उम्मीद नहीं थी ,सत्तर सालों बाद भी उनके द्वारा रोपा गया विषवेल फलफूल रहा है।
सुभाष चन्द्र बोस ने अपनी किताब "भारत का स्वाधीनता संघर्ष" में लिखा है--"महात्मा जी ने भगत सिंह को फाँसी से बचाने की पूरी कोशिश की।अंग्रेजों को गुप्तचर एजेंसियों से पता चला कि यदि भगतसिंह को फांसी दे दी जाये और उसके फलस्वरूप हिंसक आंदोलन उभरेगा ,अहिंसक गांधी खुलकर हिंसक आंदोलन का पक्ष नहीं ले पाएंगे तो युवाओं में आक्रोश उभरेगा वे कांग्रेस और गांधी से अलग हो जायेंगे।इसका असर भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन को समाप्त कर देगा।
पर शुक्र है उससमय भारतीय जनता ने अंग्रेजी साम्राज्यवादी चाल को विफल कर दिया कुछ नवयुवकों ने आक्रोश में आकर काले झण्डों के साथ प्रदर्शन पर उसके बाद ही हिंसक आंदोलन का अंत हो गया।
यह सच है कि अपने जीवन में पहली बार किसी व्यक्ति -भगतसिंह की सजा कम करने के लिए कहने वाले गांधी जी की बात यदि अंग्रेजी हुकूमत द्वारा मान ली गई होती तो इसका सबसे अधिक लाभ गांधी जी का होता ,उनकी अहिंसा की विजय होती।"
अंग्रेजों की यह साजिश थी कि ऐसी रणनीति बनाई जाये कि अवाम को ऐसा लगे महात्मा के अपील पर फाँसी रुक जायेगी,महात्मा ने स्वयं वाइसराय से मिलकर लिखित रूप में अपील की कि भगतसिंह की फाँसी रोक दी जाये।
लेकिन अचानक समय से पहले ही करांची में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन प्रारम्भ होने से पहले ही फांसी देने का एक मात्र मकसद था गांधी के प्रति नवयुवकों में विद्रोह पैदा करना।
♂♂ भगतसिंह स्वयं फांसी के पूर्व अपने वकील से मिलने पर कहा था - मेरा बहुत बहुत आभार पँ नेहरू और सुभाष बोस को कहियेगा ,जिन्होंने हमारी फाँसी रुकवाने के लिए इतने प्रयत्न किया।
♂♂ इतना ही नहीं भगतसिंह के पिता सरदार किशन सिंह जी जिन्होंने 23 मार्च को अपना पुत्र खोया था 26 मार्च को कांग्रेस अधिवेशन में लोगों से अपील कर रहे थे--आप सबों से आपलोगों को अपने जेनरल महात्माजी का और सभी कांग्रेस नेताओं का साथ जरूर देनी चाहिए।सिर्फ तभी आप देश की आजादी प्राप्त करेंगे।
इस पिता के उदगार के बाद पूरा पंडाल सिसकियों में डूब गया था।पँ नेहरू ,पटेल,मालवीय जी के आँखों से आंसू गिर रहे थे।
◆◆◆◆◆◆◆
वैसे एक सवाल हम भी पूछ लेते हैं - जब भगत सिंह को फाँसी हो रही थी तो हेडगेवार, गोलवलकर, सावरकर, मुंजे उसे रुकवाने के लिए क्या कर रहे थे? जवाब ज़ाहिर तौर पर यही है कि कुछ नहीं। तो उस समय शाखा खेलकर पूड़ी सब्ज़ी खाकर सो रहे संघी आज किस मुंह सर्टिफिकेट बांट रहे हैं?
- राष्ट्रीय सत्यशोधक समाज (RSS)
(इधर संघी प्रोपोगेंडा गॉयबल्स का नया संदेश व्हॉट्सएप पर वायरल है, जो भगत सिंह की फांसी को लेकर है। इसकी पोल-खोल है, आज के संघी झूठ के पोस्टमॉर्टम में।)
उनकी विचारधारा क्या थी ऐसी ढेर सारी बातें उनलोगों को नहीं मालूम जिन्हें यह पता है कि महात्मा गांधी चाहते तो भगतसिंह की फाँसी रुक सकती थी लेकिन उन्होंने नहीं चाहा।
यह एक बहुत महत्वपूर्ण सवाल है कि किन तत्वों ने इन गलत बातों को प्रचारित और प्रसारित किया?
अंग्रेजी हुक्मरानों को भी अपने इस षड्यंत्र के सफलता की इतनी उम्मीद नहीं थी ,सत्तर सालों बाद भी उनके द्वारा रोपा गया विषवेल फलफूल रहा है।
सुभाष चन्द्र बोस ने अपनी किताब "भारत का स्वाधीनता संघर्ष" में लिखा है--"महात्मा जी ने भगत सिंह को फाँसी से बचाने की पूरी कोशिश की।अंग्रेजों को गुप्तचर एजेंसियों से पता चला कि यदि भगतसिंह को फांसी दे दी जाये और उसके फलस्वरूप हिंसक आंदोलन उभरेगा ,अहिंसक गांधी खुलकर हिंसक आंदोलन का पक्ष नहीं ले पाएंगे तो युवाओं में आक्रोश उभरेगा वे कांग्रेस और गांधी से अलग हो जायेंगे।इसका असर भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन को समाप्त कर देगा।
पर शुक्र है उससमय भारतीय जनता ने अंग्रेजी साम्राज्यवादी चाल को विफल कर दिया कुछ नवयुवकों ने आक्रोश में आकर काले झण्डों के साथ प्रदर्शन पर उसके बाद ही हिंसक आंदोलन का अंत हो गया।
यह सच है कि अपने जीवन में पहली बार किसी व्यक्ति -भगतसिंह की सजा कम करने के लिए कहने वाले गांधी जी की बात यदि अंग्रेजी हुकूमत द्वारा मान ली गई होती तो इसका सबसे अधिक लाभ गांधी जी का होता ,उनकी अहिंसा की विजय होती।"
अंग्रेजों की यह साजिश थी कि ऐसी रणनीति बनाई जाये कि अवाम को ऐसा लगे महात्मा के अपील पर फाँसी रुक जायेगी,महात्मा ने स्वयं वाइसराय से मिलकर लिखित रूप में अपील की कि भगतसिंह की फाँसी रोक दी जाये।
लेकिन अचानक समय से पहले ही करांची में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन प्रारम्भ होने से पहले ही फांसी देने का एक मात्र मकसद था गांधी के प्रति नवयुवकों में विद्रोह पैदा करना।
♂♂ भगतसिंह स्वयं फांसी के पूर्व अपने वकील से मिलने पर कहा था - मेरा बहुत बहुत आभार पँ नेहरू और सुभाष बोस को कहियेगा ,जिन्होंने हमारी फाँसी रुकवाने के लिए इतने प्रयत्न किया।
♂♂ इतना ही नहीं भगतसिंह के पिता सरदार किशन सिंह जी जिन्होंने 23 मार्च को अपना पुत्र खोया था 26 मार्च को कांग्रेस अधिवेशन में लोगों से अपील कर रहे थे--आप सबों से आपलोगों को अपने जेनरल महात्माजी का और सभी कांग्रेस नेताओं का साथ जरूर देनी चाहिए।सिर्फ तभी आप देश की आजादी प्राप्त करेंगे।
इस पिता के उदगार के बाद पूरा पंडाल सिसकियों में डूब गया था।पँ नेहरू ,पटेल,मालवीय जी के आँखों से आंसू गिर रहे थे।
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वैसे एक सवाल हम भी पूछ लेते हैं - जब भगत सिंह को फाँसी हो रही थी तो हेडगेवार, गोलवलकर, सावरकर, मुंजे उसे रुकवाने के लिए क्या कर रहे थे? जवाब ज़ाहिर तौर पर यही है कि कुछ नहीं। तो उस समय शाखा खेलकर पूड़ी सब्ज़ी खाकर सो रहे संघी आज किस मुंह सर्टिफिकेट बांट रहे हैं?
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