बीएचयू: 94 शिक्षकों को नोटिस के पीछे मोदी की खराब होती इमेज की खिसियाहट या फिर प्रो.ओमशंकर का अनशन?

Written by विजय विनीत | Published on: June 10, 2024
उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में 94 शिक्षकों को नोटिस जारी किए जाने के मामले में कुलपति प्रो.एसके जैन सवालों के घरे में आ गए हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन इसे सेंट्रल सिविल सर्विस, 2006 के 'कोड ऑफ कंडक्ट' का उल्लंघन बता रहा है तो जनहित के मुद्दों पर आमरण अनशन करने वाले हृदय रोग विभाग के अध्यक्ष प्रो.ओमशंकर लोकसभा चुनाव में मोदी की गिरती साख पर बदले की कार्रवाई मान रहे हैं। प्रो.शंकर ने करीब बीस दिनों तक आमरण अनशन किया था और पूरे चुनाव के दौरान यह मुद्दा सोशल मीडिया में सुर्खियों में छाया रहा।


अनशन के दौरान मरीजों को देखते प्रोफेसर ओमशंकर, फोटो साभार: अमर उजाला

आम जनता की जिंदगी और मरीजों को सस्ता व सुलभ इलाज के लिए लड़ाई लड़ने वाले हृदय रोग विभाग के अध्यक्ष रहे प्रो.ओमशंकर का समर्थन करने वाले 94 शिक्षकों को बीएचयू प्रशासन ने ने धमकी भरा नोटिस जारी किया है। नोटिस पाने वालों में आईएमएस के अलावा बीएचयू के प्रोफेसर और शिक्षक शामिल हैं। अचरज की बात यह है कि अंग्रेजी हुकूमत के दौरान अपनी स्वायत्तता और गरिमा को बरकरार रखने वाला बीएचयू इन दिनों सत्तारूढ़ दल के समाने घुटनों पर खड़ा नजर आ रहा है। इसके चलते इस शैक्षणिक संस्थान की गौरवशाली परंपराएं धूमिल होती जा रही हैं।

बीएचयू के हृदय रोग विभाग के अध्यक्ष प्रो ओमशंकर के आमरण अनशन का बीएचयू के 94 शिक्षकों ने समर्थन किया था। नोटिस पाने वाले वो शिक्षक हैं जिन्होंने कुलपति प्रो.एसके जैन को खत भेजकर प्रोफेसर ओमशंकर का आमरण अनशन खत्म कराने और मरीजों के हित में जल्द से जल्द फैसला लेने की अपील की थी। बीएचयू प्रशासन ने इन शिक्षकों को नोटिस जारी करते हुए एक हफ्ते के अंदर जवाब मांगा है। जनहित के इस मुद्दे को विश्वविद्यालय प्रशासन ने नियमों की अवहेलना माना है। संतोषजनक जवाब नहीं देने पर इन्हें कार्रवाई के लिए अल्टीमेटम दिया गया है। नोटिस पाने वालों में आईएमएस के अलावा बीएचयू के कई संकायों के प्रोफेसर और शिक्षक भी शामिल है।

बीएचयू के हृदय रोग विभाग के अध्यक्ष प्रो.ओमशंकर आईएमएस बीएचयू में सुपरस्पेशियलिटी ब्लॉक का चौथा तल और पांचवां आधा तल हृदय रोगियों के लिए आवंटित करने की लगातार मांग उठा रहे हैं। कुछ महीने पहले बीएचयू प्रशासन ने उनकी डिमांड पूरी करने लिए लिखित तौर पर वादा किया था। प्रो.ओमशंकर ने जब वादा पूरा करने के लिए बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल प्रशासन को चिट्ठी लिखी तो कुलपति प्रो.एसके जैन और चिकित्सा अधीक्षक प्रो.केके गुप्ता नाराज हो गए। सुपरस्पेशियलिटी ब्लॉक में खाली पड़े चौथे तल के बिस्तरों को दूसरे विभाग को आवंटित कर दिया। इस बीच मरीजों की जान जाने लगी तो प्रो.ओमशंकर ने अस्पताल प्रशासन के अड़ियल रवैये के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी।

11 मई 2024 को प्रोफेसर ओमशंकर ने अपने विभाग में ही आमरण अनशन शुरू कर दिया था। इनका अनशन 30 मई 2024 तक चला। इस बीच सपा, कांग्रेस सहित तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं के अलावा सामाजिक संगठनों ने उनके आंदोलन को समर्थन दिया। बीएचयू परिसर में छात्रों और शिक्षकों ने जुलूस निकाला, प्रदर्शन किया। इस मुद्दे को लेकर बीएचयू प्रशासन ने पुलिस की मदद से छात्र आंदोलन को कुचलने की कोशिश की, लेकिन वो कामयाब नहीं हो सके। इनके आंदोलन का चुनाव पर खासा असर पड़ा। पिछले दो चुनाव में जीत का रिकार्ड बनाने वाले नरेंद्र मोदी अबकी पिछड़कर विजेता सांसदों की रेस में 116वें स्थान पर चले गए।

आईएमएस बीएचयू के चिकित्सकों के अलावा महिला महाविद्यालय, विधि और कला संकायों के करीब 94 शिक्षकों ने प्रो.ओमशंकर के आंदोलन के पक्ष में एक समर्थन-पत्र तैयार कराया और 20 मई 2024 को कुलपति प्रो.जैन को सौंपा था। पत्रक में प्रोफेसर ओमशंकर के खराब होते जा रहे स्वास्थ्य का हवाला देते हुए अनशन खत्म कराने की गुहार लगाई। प्रो.ओमशंकर ने कोरोना के बाद हृदय रोगियों की तादाद बढ़ने का मुद्दा उठाते हुए हृदय सुपरस्पेशियलिटी ब्लॉक में खाली पड़े चौथे तल के बिस्तरों को आवंटित करने की मांग उठाई थी। बीएचयू के डिप्टी रजिस्ट्रार विजिलेंस एंड कांफिडिशियल सेक्शन ने 06 जून 2024 को 94 शिक्षकों को नोटिस जारी करते हुए एक सप्ताह में  जवाब तलब किया है। बीएचयू प्रशासन ने कहा है कि शिक्षकों का यह कदम सेंट्रल सिविल सर्विस, 2006 के 'कोड ऑफ कंडक्ट' के खिलाफ है। नोटिस में यह भी पूछा है कि किन शिक्षकों के दस्तखत हैं और किसके नहीं हैं?

बीएचयू के शिक्षकों को नोटिस मिलने के बाद हड़कंप जैसी स्थिति है। नोटिस पाने वाले शिक्षकों ने आईएमएस निदेशक के 08 मार्च 2024 के उस पत्र का भी हवाला दिया है जिसमें उन्होंने प्रो ओमशंकर को एसएसबी का चौथा तल, पांचवा आधा तल मरीजों के लिए देने की बात लिखी थी। उस पत्र पर आईएमएस के निदेशक और डीन के दस्तखत हैं। उस समय निदेशक ने सर सुंदर लाल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक प्रो. केके गुप्ता के खिलाफ सबूतों के आधार पर एक्शन लेने की बात भी कही थी। बीएचयू प्रशासन ने कहा है कि किसी विरोध करने वाले के समर्थन में इस तरह से संयुक्त रूप से लेटर देना विश्वविद्यालय के कानून और सेंट्रल सिविल सर्विस के नियम के खिलाफ है। ऐसे कृत्य को कदाचार की श्रेणी में रखा गया है।

बीएचयू प्रशासन की ओर से नोटिस जारी करने को लेकर शिक्षकों में गहरी नाराजगी है। इनका कहना है कि जनहित के मुद्दों को उठाना गलत नहीं है। कोरोना के बाद जिस तरह से हृदय रोगियों की मौतें हो रही हैं, वह हैरान करने वाली हैं। मरीजों की सुविधाएं बढ़ाने की डिमांड करना कोई गुनाह नहीं है। अगर यह गुनाह था तो आईएमएस के निदेशक ने प्रो.ओमशंकर को बेड बढ़ाने के लिए लिखित आश्वासन क्यों दिया था। जनहित के मामले में नोटिस जारी करना गलत नहीं है। बीएचयू के शिक्षकों के साथ छात्रों और कर्मचारियों ने प्रशासन के इस फैसले के विरोध में सड़क पर उतरने की योजना बनाई है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा गरम हो सकता है। बीएचयू प्रशासन अगर जोर-जबरिया करने का निर्णय लिया तो बीएचयू एक बार फिर सुलग सकता है।
 
छोटी जीत पर शत्रुओं जैसा व्यवहार
 
इस बीच, उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने सोशल मीडिया एक्स पर एक ट्विट जारी करते हुए कहा है, "बनारस के बीएचयू में हृदय रोग विभाग के एचओडी डा. ओमशंकर पिछले कई महीने से हृदय रोगियों के लिए बेड बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। इनके लिए वह 20 दिनों तक भूख हड़ताल पर भी बैठे, पर सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगी। बीएचयू के 94 शिक्षकों ने जब उनके समर्थन में कुलपति को पत्र लिखा तो उन समस्याओं संज्ञान लेने की जगह कुलपति ने उन्हें ही नोटिस थमा दिया। वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है, लेकिन वो इतने बड़े और गंभीर मुद्दे पर मौन हैं। मानते हैं कि वाराणसी की जनता ने आपको सूक्ष्म जीत प्रदान की है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप उनके साथ शत्रुओं जैसा व्यवहार करेंगे।"

बनारस के  वरिष्ठ पत्रकार राजीव मौर्य कहते हैं, "शिक्षकों को नोटिस देने के पीछे सबसे बड़ी वजह लोकसभा चुनाव का नतीजा है, जिसमें नरेंद्र मोदी की नैतिक रूप से हार है। एक तरफ चुनाव चल रहा था और दूसरी ओर प्रो.ओमशंकर हृदय रोगियों के लिए सुपरस्पेशियलिटी ब्लॉक में खाली पड़े चौथा बिस्तरों को आवंटित करने की मांग को लेकर आमरण अनशन पर बैठे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र के सबसे महत्वपूर्ण संस्थान काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में करीब चार सौ करोड़ की लागत से निर्मित सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक का दो साल पहले उद्घाटन हुआ था। दो साल बीत जाने के बाद भी हृदय रोगियों को बिस्तर नहीं दिए जाने पर प्रो.ओमशंकर ने आंदोलन शुरू किया था। उन्होंने लोकसभा चुनाव के बीच प्रधानमंत्री को खुला पत्र लिखकर उनसे हस्तक्षेप की मांग की थी। बेड पर 'डिजीटल ताला'  नहीं खुला तब वो आमरण अनशन पर बैठे। "

"कुलपति प्रो.एसके जैन के आमरण आंदोलन के खत्म कराने के बजाय अड़ियल रवैया अपनाए रहे। इसके चलते बीएचयू से एक प्रोफेसर की निकली आवाज जन-जन तक पहुंच गई। बीएचयू प्रशासन ने जिन शिक्षकों को नोटिस जारी किया है उनमें ज्यादातर दलित, पिछले और अल्पसंख्यक हैं। यही वजह है कि ये शिक्षक कुलपति के निशाने पर हैं। हमें लगता है कि यह कार्रवाई सत्ता के इशारे पर शिक्षकों को सबक सिखाने की नीयत से की जा रही है।"

पत्रकार राजीव यह भी कहते हैं, " जिस समय प्रो.ओमशंकर जनहित के मुद्दे को लेकर आमरण अनशन पर बैठे थे, उस समय यहां चुनाव पीक पर था। सोशल मीडिया में आंदोलन का मुद्दा करीब बीस रोज तक सुर्खियों में रहा। आमरण अनशन के चलते पूरे समूचे पूर्वांचल में बीजेपी के खिलाफ स्वास्थ्य सुविधाओं में व्याप्त खामियों का मैसेज पहुंचा। सोशल मीडिया के जरिये तमाम बड़े संस्थानों में इस आंदोलन से बीजेपी के खिलाफ माहौल बना था। जनता के बीच नरेंद्र मोदी के खिलाफ विरोध के स्वर तीखे होते चले गए। बीएचयू के डिप्टी रजिस्ट्रार विजिलेंस एंड काँफिडिशियल सेक्शन की ओर से जारी नोटिस तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इस नोटिस से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इमेज एक बार फिर धूमिल होने लगी है। इसके लिए कोई और नहीं, बीएचयू के भ्रष्ट, बेईमान और चापलूस अधिकारी जिम्मेदार हैं।
 
बेईमानों को मिल रहा संरक्षण
 
सबरंग इंडिया ने बीएचयू के प्रो.ओमशंकर से बात की तो उन्होंने कहा कि हमारे समर्थन में कुलपति एसके जैन को चिट्ठी लिखना कोई अपराध नहीं है। हमने इसलिए बेमियादी हड़ताल शुरू की थी ताकि हृदय संबंधी बीमारियों से पीड़ित रोगियों के लिए अस्पताल में सुविधाएं मिलनी शुरू हो जाएं। महामारी के बाद दिल से जुड़ी बीमारियों के कारण अक्सर लोगों  को अचानक कार्डियक अरेस्ट हो रहा है। हाल के दिनों में ऐसे रोगियों की तादाद में भारी बढ़ोतरी देखी जा रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि आमरण अनशन के बावजूद हमने दिल के मरीजों के इलाज का काम नहीं रोका। हम उपचार करते रहे और बीएचयू के जरूरी कामों को भी निपटाते रहे।"

प्रो.ओमशंकर कहते हैं, "सर सुंदरलाल अस्पताल का कार्डियोलॉजी विभाग पूर्वांचल का इकलौता संस्थान है जहां दिल के मरीजों के इलाज के लिए कोई पैसा नहीं लिया जाता। आवश्यक होने पर जरूरी उपकरण और कुछ दवाएं ही तीमारदारों को खरीदनी पड़ती हैं। हृदय रोगियों की जरूरतों को पूरा करने वाला पूर्वांचल में कोई संस्थान नहीं है। मरीजों के लिए बेड न होना रोगियों के लिए एक गंभीर चुनौती है। हमने इस उम्मीद में आंदोलन खत्म किया ताकि मरीजों को बेड मिल जाएंगे, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। हमारी डिमांड सर सुंदरलाल अस्पताल के मेडिकल सुप्रीटेंडेंट प्रो.केके गुप्ता को हटाने की भी है, जिन्होंने कैंप लगाकर जुटाए गए खून को अवैध तरीके से बेच दिया था। कार्यकाल खत्म होने के बावजूद कुलपित प्रो.गुप्ता मेडिकल सुप्रीटेंडेंट पद पर बने हुए हैं।"

प्रो.शंकर बताते हैं, "विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से उन्हें मार्च 2024 में ही आश्वासन दिया गया था कि हृदय रोग विभाग को अतिरिक्त बिस्तर शीघ्र उपलब्ध करा दिए जाएंगे, लेकिन कई महीने बीतने के बाद भी अभी तक अमल नहीं किया गया। आईएमएस के तत्कालीन निदेशक के आदेश पर अगस्त 2023 में इस संबंध में एक जांच समित गठित की गई थी, जिसमें सर सुंदरलाल लाल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक के प्रतिनिधि भी शामिल थे। दो महीने तक जांच करने के बाद इस समिति ने चिकित्सा अधीक्षक के प्रतिनिधि द्वारा दी गई दलीलों को खारिज करते हुए बहुमत से सुपर स्पेशलिटी ब्लॉक के संपूर्ण चौथे तल और आधा पांचवे तल को हृदय विभाग को आवंटित करने की अक्टूबर 2023 में अनुसंशा की थी। इस आधार पर आदेश भी जारी कर दिया गया था।
 
गुंडागर्दी का आरोप
 
जाने-माने हृदय रोग चिकित्सक प्रो ओमशंकर कहते हैं, "बीएचयू के कुलपति प्रो.एसके जैन अब गुंडागर्दी पर उतारू हो गए हैं। कितनी अजीब बात है कि देश की सभी शिक्षण संस्थाओं में छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों के संगठन हैं, लेकिन बीएचयू में नहीं हैं। यहां लोकतंत्र का गला घोंटने की कोशिश की जा रही है। छात्रसंघ, कर्मचारी संघ और शिक्षक संघ नहीं होने की वजह से ही बीएचयू के कुलपति और दूसरे अधिकारी बेलगाम होकर मनमानी पर उतारू हो गए हैं। बीएचयू में लोकतंत्र नहीं बचा है। वह मनमाने ढंग से नियुक्तियां कर रहे हैं और नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। कुलपति खुद बीएचयू के नियमों को ताक पर रखकर नियुक्तियां कर रहे हैं। भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं और शिक्षकों को नियम व कानून का पाठ पढ़ा रहे हैं।"

बीएचयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे अनिल श्रीवास्तव कुलपति प्रो.एसके जैन पर खुलेआम आरोप लगाते हैं कि वो अपने दफ्तर में सत्तारूढ़ दल का दफ्तर खोल लेते तो अच्छा रहता। हर मुद्दे पर इन्होंने बीएचयू की छीछालेदर कराई है। वो कुलपति बनने लायक ही नहीं हैं। पिछले दिनों बीजेपी के तीन पदाधिकारियों ने आईआईटी-बीएचयू की छात्रा के साथ गैंगरेप किया तब भी उनका रवैया ढुलमुल रहा। बीएचयू प्रशासन निर्दोष छात्रों पर निशाना साधता रहा और आंदोलन करने वाले स्टूडेंट्स पर फर्जी मुकदमे लादता रहा। जब से प्रो.जैन ने कुलपति पद का कार्यभार संभाला है, तब से विश्वविद्यालय में तमाम दकियानूसी परंपराएं शुरू हुई हैं।

"छात्राओं के हॉस्टल में प्रवेश और उनके बाहर निकलने पर तमाम पाबंदियां लगाई गईं। बीएचयू के सौ साल के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि विश्वविद्यालय परिसर में पुलिस चौकी खोली गई। बीजेपी के कार्यकाल में देश के अधिसंख्य विश्वविद्यालय परिसरों के अंदर अशांति का दौर चल रहा है। बीएचयू इससे अछूता नहीं है। यह अशांति भिन्न विचारधाराओं की टकराहट की वजह से बढ़ रही है और उसी के चलते बीएचयू की प्रतिष्ठा भी काफी हद तक धूमिल हुई है। मालवीय जी ने इस विश्वविद्यालय को राष्ट्र निर्माण के एक मिशन के रूप में स्थापित किया था। पिछले एक दशक से यहां क्षरण की प्रक्रिया शुरू हो गई और जो निरंतर जारी है। अब यहां वो माहौल नहीं रहा जैसा कि पहले रहता था। इसके लिए सबसे अधिक ज़िम्मेदार विश्वविद्यालय प्रशासन है, और कोई नहीं।"
 
उल्टी गंगा बहा रहे प्रो.जैन?
 
बीएचयू के पूर्व छात्र संघ सदस्य एवं वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार कहते हैं, "बीएचयू में छात्रसंघ को भंग कर देना और फिर उसे बहाल न करना भी यहां के पतन के लिए कम ज़िम्मेदार नहीं है। आज छात्रों के पास कोई ऐसा फ़ोरम या संगठन नहीं है जहां वो अपनी बात रख सकें। उन्हें अपनी बात सीधे चीफ़ प्रॉक्टर या कुलपति के पास ही ले जानी पड़ेगी और इसका कमोबेश वही हश्र होगा जैसा पिछले दिनों गैंगरेप पीड़ित छात्रा के साथ हुआ। पहले पूरे विश्वविद्यालय का सिस्टम बड़ा लोकतांत्रिक था।"

"जब छात्रसंघ था, छात्र अपने बीच से ही अपने प्रतिनिधि चुनते थे और संसद के अनुकरण पर छात्रसंघ की प्रक्रिया चलती थी। एक स्पीकर होता था और साल में एक या दो बार बजट पेश किया जाता था। कर्मचारी संघ था, अध्यापक संघ था। इन संगठनों के ज़रिए स्वस्थ राजनीति भी होती थी और सभी को अपनी बात को रखने का एक मंच मिलता था जिससे कुलपति, प्रशासनिक अधिकारी या फिर प्रॉक्टोरियल बोर्ड के लोग मनमानी नहीं कर पाते थे।"

"छात्र और शिक्षक संगठनों पर अराजकता का आरोप लगाकर बाद में इन्हें भंग तो कर दिया गया, लेकिन उसके बाद जो कुछ हुआ है और विश्वविद्यालय ने जितनी प्रगति की है, वो सबके सामने है। बीएचयू के छात्रों का कहना है कि वो छात्र संघ बहाली के लिए लगातार आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन है कि उनकी सुनता ही नहीं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में डॉक्टर राधाकृष्णन लंबे समय तक कुलपति रहे। उनके बाद अमरनाथ झा, गोविन्द मालवीय, आचार्य नरेंद्र देव, सीपी रामास्वामी अय्यर, त्रिगुण सेन, कालू लाल श्रीमाली जैसे लोग कुलपति रहे। लेकिन बाद के दिनों में विश्वविद्याल के इस सर्वोच्च पद पर भी उतने प्रतिष्ठित लोग नहीं बैठे, और जो बैठे भी उन्होंने शायद उस पद के अनुरूप काम नहीं किया। पहले बीएचयू में राष्ट्रवाद जैसी समस्या नहीं थी। जब से राष्ट्रवाद को समस्या के रूप में देखा जाने लगा है तो देखने वालों को बीएचयू में ही नहीं, पूरे देश में राष्ट्रवाद पर संकट दिख रहा है।"

प्रदीप यह भी कहते हैं, "लगता है कि बीएचयू के मौजूदा कुलपति प्रो.एसके जैन उल्टी गंगा बहाने में जुटे हैं। नैतिकता का तकाजा यह था कि उन्हें खुद प्रो.ओमशंकर के अनशन स्थल पर जाकर उनसे बात करनी चाहिए थी और आंदोलन खत्म कराना चाहिए था। सत्ता के इशारे पर वो तो तानाशाह बन गए हैं। सत्तारूढ़ के कार्यकर्ता की तरह काम कर रहे हैं। इन्हें भ्रष्टाचार नहीं दिख रहा है। कोई आवाज उठा रहा है तो उस आवाज को दबाने में जुट जाते हैं। चाहे वो छात्र हों या फिर शिक्षक।"

"कुलपति का आचरण बीएचयू की ऐतिहासिक परंपरा और गरिमा के खिलाफ है। यह कहा जा सकता है कि इस तरह की हरकत बीएचयू में अब तक न देखी गई और न सुनी गई। अब तो कभी छात्रों की आवाज कुचली जाती है तो कभी शिक्षकों और कर्मचारियों की। विश्वविद्यालय के तीनों बड़े जनसमूहों को कुचला जा रहा है। दुनिया की इस प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्था को कुलपति कलंकित कर रहे हैं और अपनी हरकतों पर पर्दा डाल रहे हैं। यह महामना की भावनाओं पर हमला है। डा.ओमशंकर का आंदोलन लोगों की जिंदगी और गरीब मरीजों के इलाज से जुड़ा सवाल था। इस सवाल पर आवाज उठाने वालों को कुचलने की साजिश बीजेपी सरकार को पूरी दुनिया में बदनाम करके रख देगी। ऐसे में छीछालेदर सिर्फ कुलपति प्रो.एसके जैन की नहीं, पीएम नरेंद्र मोदी की भी होगी।"
 
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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