अयोध्या: सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर

Written by sabrang india | Published on: December 3, 2019
नई दिल्ली: अयोध्या में राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद भूमि विवाद को लेकर नौ नवंबर को उच्चतम न्यायालय के फैसले पर पुनर्विचार के लिए सोमवार को एक मुस्लिम पक्षकार ने याचिका दायर की और कहा कि बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण का निर्देश देने पर ही संपूर्ण न्याय हो सकता है।



तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बीते नौ नवंबर को सर्वसम्मति से अपने फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि रामलला को सौंपने और मस्जिद निर्माण के लिए उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ का भूखंड आबंटित करने का केंद्र को निर्देश दिया था।

हालांकि संविधान पीठ के इस फैसले को उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने चुनौती नहीं देने का निर्णय लिया लेकिन इस प्रकरण के मूल याचिकाकर्ताओं में शामिल एम। सिद्दीक के कानूनी वारिस और उत्तर प्रदेश जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अशहद रशीदी ने 14 बिंदुओं पर शीर्ष अदालत के निर्णय पर पुनर्विचार के लिए याचिका दायर की है।

अधिवक्ता एजाज मकबूल के माध्यम से दायर पुनर्विचार याचिका में नौ नवंबर के निर्णय पर अंतरिम रोक लगाने का अनुरोध किया गया है। इस फैसले में न्यायालय ने मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट गठित करने का निर्देश केंद्र को दिया है। रशीदी ने अयोध्या में प्रमुख स्थान पर मस्जिद निर्माण के लिए पांच एकड़ का भूखंड आवंटित करने के लिए केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को न्यायालय के निर्देश पर भी सवाल उठाया है। उनका तर्क है कि मुस्लिम पक्षकारों ने इस तरह का कोई भी अनुरोध कभी नहीं किया।

याचिका में दलील दी गई है कि विवादित स्थल पर मस्जिद गिराने सहित हिंदू पक्षकारों द्वारा अनेक गैरकानूनी कृत्यों का संज्ञान लेने के बावजूद शीर्ष अदालत ने उन्हें माफ कर दिया और भूमि भी उनको दे दी। पुनर्विचार याचिका के अनुसार, ‘इस फैसले के माध्यम से न्यायालय ने बाबरी मस्जिद नष्ट करने और उसके स्थान पर वहां भगवान राम के मंदिर के निर्माण का आदेश दे दिया है।’

याचिका में कहा गया है कि यद्यपि फैसले में न्यायालय ने हिंदू पक्षकारों की अनेक कृत्यों विशेषकर 1934 में (बाबरी मस्जिद के गुंबदों को नुकसान पहुंचाना) 1949 (बाबरी मस्जिद को अपवित्र करना) और 1992 (बाबरी मस्जिद को गिराना) का संज्ञान लिया, फिर भी उसने इन गैरकानूनी कृत्यों को माफ करने और विवादित स्थल को उसी पक्ष को सौंप दिया, जिसने अनेक गैरकानूनी कृत्यों के आधार पर अपना दावा किया था।

हालांकि रशीदी ने याचिका में कहा है कि वह पूरे फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध नहीं कर रहे हैं। उनकी याचिका हिंदुओं के नाम भूमि करने जैसी त्रुटियों तक सीमित है, क्योंकि यह एक तरह से बाबरी मस्जिद को नष्ट करने के आदेश जैसा है और हिंदू पक्षकारों को इसका अधिकार देते समय कोई भी व्यक्ति इस तरह के गैरकानूनी कृत्य से लाभ हासिल नहीं कर सकता है।

रशीदी ने 93 पेज की अपनी पुनर्विचार याचिका में यह भी दलील दी है कि संविधान पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 का गलत इस्तेमाल किया है, क्योंकि पूर्ण न्याय करने या फिर गैरकानूनी कृत्य को सही करने के लिए सिर्फ बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण का निर्देश दिया जा सकता है। रशीदी ने कहा कि वह इस प्रकरण की संवेदनशीलता के प्रति सजग हैं और शांति तथा सद्भाव बनाए रखने के लिए इस विवाद को खत्म करने की आवश्यकता भी समझते हैं लेकिन न्याय के बगैर किसी प्रकार की शांति नहीं हो सकती है।

संविधान पीठ ने अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान के बीच बराबर-बराबर बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर नौ नवंबर को अपना सर्वसम्मति का निर्णय सुनाया था। नौ नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि जमीन विवाद पर अपना फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन पर मुस्लिम पक्ष का दावा ख़ारिज करते हुए हिंदू पक्ष को जमीन देने को कहा।

एक सदी से अधिक पुराने इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रामजन्मभूमि न्यास को 2.77 एकड़ ज़मीन का मालिकाना हक़ मिलेगा। वहीं, सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को अयोध्या में ही पांच एकड़ ज़मीन दी जाएगी। मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार को तीन महीने के अंदर ट्रस्ट बनाना होगा और इस ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़ा का एक सदस्य शामिल होगा। न्यायालय ने कहा कि विवादित 2.77 एकड़ जमीन अब केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगी, जो इसे सरकार द्वारा बनाए जाने वाले ट्रस्ट को सौंपेंगे।

 

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