मनु-स्मृतीय समाज के सपने को जमीन पर उतारता तंत्र

Written by Arvind Shesh | Published on: June 29, 2018
अब यह लगभग साफ है कि वे मोदी हों या उनके समधर्मी साक्षी महाराज या कोई भी संघी-भाजपाई नेता, कुछ भी गलत तथ्य बोलते हैं, झूठ बोलते हैं या जहर परोसते हैं, किसी दलित नेता के साथ मंदिर में बुरा बर्ताव होता है, वे सब पर्दे पर दिखने वाले हड़बोंग हैं! यह सब सुनियोजित है!



मसलन, उन्हें पता है कि मोदी के एक गलत तथ्य बोलने या हवाबाजी के बाद विपक्ष की ओर से लड़ने वालों में से पचहत्तर फीसद लोगों की ऊर्जा उस बेमानी हड़बोंग की व्याख्या करने, हकीकत बताने या खिल्ली उड़ाने में उलझ जाती है और खर्च हो जाती है! इसका कुछ भी ठोस हासिल नहीं होता है। समझ चुके लोगों को समझाने का कोई फायदा नहीं! सहमत को सहमत करने की कोशिश का क्या हासिल!

ठीक इसके उलट ये फर्जी हड़बोंग भी उनके लिए सामाजिक राजनीति का मकसद साधने का जरिया बन जाती है! जबकि इसके सतह पर अपने विरोधियों को उलझा देने से इतर पर्दे के पीछे ऐसे तमाम नीतिगत फैसले लिए जा रहे हैं, उन्हें आनन-फानन में लागू किया जा रहा है, जिससे चंद वर्चस्वशाली जातियों और धन-पिशाचों का साम्राज्य और बढ़ेगा, फलेगा-फूलेगा! बाकी के नब्बे फीसद लोगों की पहले आर्थिक, फिर सामाजिक हालत और बदतर होती जाएगी!

आर्थिक रूप से लाचार व्यक्ति सामाजिक गुलामी के लिए आसान शिकार होता है! सिर्फ यही ध्यान रख कर आक्रामक तौर-तरीके से बड़े-बड़े आर्थिक और सामाजिक फैसले लिए गए हैं! लेकिन इससे लड़ाई के नाम पर सिर्फ सतह पर हंसी-मजाक की जीत दिखती है! दलित-वंचित जातियों-तबकों के बीच चेतना का विस्तार जरूर हुआ है! लेकिन मौजूदा समय के तमाम फैसले उनकी शैक्षिक और आर्थिक विकास को बाधित करेंगे! अब अंदाजा लगाइए कि चेतना से लैस दलित-वंचित जातियां अपने हक को मारने के बरक्स कैसी तस्वीर रचेंगी! सामाजिक सत्ताधारी तबके किस हद तक इसका सामना कर पाएंगी!

तो इसी प्रतिरोध के दमन के लिए वे तेजी से उस तंत्र पर अपने भाई और बंधुओं के कब्जे को फिर से पुख्ता कर रहे हैं, जिसमें पिछले दो-तीन दशकों के दौरान हाशिये की जातियों ने भी अपनी जगह बनाना शुरू किया था! ब्राह्मणवाद के पुनरोत्थान के लिए ये इसी दो-तीन दशकों में तंत्र के चेहरे में आए 'असंतुलन' को दूर करने में लगे हैं!

दरअसल इनका एक बड़ा मकसद यही है- मनु-स्मृतीय समाज के सपने को जमीन पर उतारना! इसमें अपने बर्बर मुनाफे की कीमत पर देश के धन-पिशाच हमेशा से उनके सहायक-तत्त्व रहे हैं!

अब सवाल यह है कि आरएसएस-भाजपा को सत्ता से बेदखल करने का आह्वान करने वाली कोई भी पार्टी सत्ता में आने के बाद इस सरकार के आधार या ईवीएम या उन सभी नीतिगत फैसलों को वापस लेने या रद्दी की टोकरी में फेंकने का भरोसा दे सकती है? इस अमानवीय गिरोह का सत्ता से जाना जरूरी है। लेकिन शिक्षा से लेकर रोजगार जैसे तमाम मोर्चों पर समाज के वंचित तबकों की हकमारी के उसके सभी नीतिगत फैसलों को भी नष्ट करना होगा। वरना अब यह नहीं चलेगा कि एक आके हमलावर तरीके से सब तोड़फोड़ दे, और दूसरा आकर नियम की जटिलता का हवाला देकर उसे उसी रूप में बना रहने दे! यह भाई-भाई का खेल अब लोग समझने लगे हैं!

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