आप कभी जम्मू के आगे कश्मीर में गए हैं? इस सवाल का जवाब समझे बिना, आप अमरनाथ यात्रियों पर अनंतनाग में हुए आतंकी हमले पर सवाल नहीं पूछ पाएंगे और जो सरकार आपको बताएगी, उससे ही संतुष्ट हो जाएंगे। जो कश्मीर या अमरनाथ गए हैं, उनसे पूछिए कि रास्ते में पुलिस, पैरामिलिट्री और आर्मी की कितनी चेकपोस्ट हैं? वो बताएंगे कि कश्मीर में जितने ढाबे हैं, उससे कहीं ज़्यादा चेकपोस्ट मिलेंगी...
यहीं से बात शुरु होनी चाहिए, अमरनाथ यात्रियों पर 10 जुलाई की देर शाम हुए हमले के बारे में! जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में जिस समय तीर्थयात्रियों की एक बस पर यह हमला हुआ, उस समय रात के 8 बजे के आस-पास का समय था। बस पर घात लगाए आतंकियों ने हमला किया और ड्राइवर सलीम की सूझबूझ से उसने बस नहीं रोकी और सुरक्षित स्थान पर जा कर ही रुका। कुछ यात्री घायल हुए और 7 की मृत्यु हो गई, लेकिन 50 लोगों की जान बच गई। लेकिन यह हुआ कैसे? आखिर जब शाम 7 बजे के बाद इस हाइवे पर यात्री वाहनों का जाना प्रतिबंधित है, तो यह बस इस पर आई कैसे? आइए अपने सवाल पर वापस आते हैं...क्या आपने कश्मीर में चेकपोस्ट गिने हैं?
यह हमला और तीर्थयात्रियों की जान जाना जितना दुखद है, उससे ज़्यादा दुखद है, इस मामले में दूर से ही दिख रही लापरवाही-चूक के लक्षण। सत्ता कभी आपको यह समझने का मौका नहीं देगी, कि यह लापरवाही जानबूझ कर की गई या फिर यह ग़लती से हुई। लेकिन फिर भी यह सवाल तो पूछे ही जाएंगे कि आख़िर इतनी बड़ी लापरवाही कैसे हुई? जिस राज्य में कदम-कदम पर आपको हाइवे या सड़क चेकपोस्ट मिलती हैं, आख़िर वहां कैसे किसी बस को 7 बजे के बाद उस हाईवे पर जाने दिया जा सकता है, जहां उस समय वाहन प्रतिबंधित हैं? क्या 1 घंटे तक यह बस चलती रही और किसी चेकपोस्ट से हो कर नहीं गुज़री?
अजब संयोग यह भी है कि यह बस गुजरात की थी और इसके बारे में प्रशासन की ओर से कहा जा रहा है कि इसका पंजीकरण श्राइन बोर्ड द्वारा परिवहन के लिए नहीं किया गया था। बस के यात्री चार्ट में जो परिवहन अधिकारी के हस्ताक्षर और मुहर हैं, वह भी हिम्मतनगर, गुजरात के हैं। तो क्या रास्ते में किसी ने इस बस के क़ाग़ज नहीं जांचे? और अगर जांचे तो उसे आगे कैसे जाने दिया गया? क्या 7 बजे से 8.20 के बीच सवा घंटे में यह अकेली बस थी, जो उस हाईवे पर जा रही थी और उस बीच क्या केवल इसी बस को आगे जाने दिया गया? क्या आतंकियों को इस बस के बारे में पता था और वह इसी बस के लिए घात लगाए बैठे थे? यह सुरक्षा में चूक का बेहद गंभीर मामला है।
सवाल पर फिर लौटना होगा कि उस रास्ते की सारी चेकपोस्ट क्या इस एक बस के लिए मार्ग से गायब हो गई थी? केंद्रीय रिजर्व पुलिस बैंक का कहना है कि ये बस आधिकारिक काफिले का हिस्सा नहीं थी और बस सभी सुरक्षा नियमों का उल्लंघन किया है। लेकिन सुरक्षा बलों के सूत्रों से छन कर आ रही दूसरी जानकारी और भी परेशान करने वाली है। वह जानकारी यह है कि गुजरात की ये बस शाम 5 बजे श्रीनगर से बिना पुलिस सुरक्षा के आगे बढ़ी थी। इसके बाद बस में सवार यात्री शायद श्रीनगर में घूमने लगे और काफिले से अलग हो गए। बताया जा रहा है बस श्राइन बोर्ड में रजिस्टर भी नहीं थी। आख़िर कैसे सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक हो सकती है? क्या 2 दिन पहले ही यात्रा पूरी कर चुके इन यात्रियों से भरी इस बस को किसी पोस्ट पर रोका नहीं गया? क्या यह यात्री शाम 6 बजे के बाद से 8.20 के बीच में किसी ऐसी चेकपोस्ट से हो कर नहीं ग़ुज़री जहां, इनको आगे जाने से रोक लिया गया हो?
जानकारी के मुताबिक यह बस जब इस स्थान से गुज़री, उसके कुछ देर पहले ही 7.30 के आस-पास पेट्रोलिंग पार्टी ने अपनी गश्त हटा ली थी। लेकिन सवाल यह है कि पठानकोट हमले के बाद की सुरक्षा की सख्त तैयारी के दावे कहां हवा हो गए? क्या उस हाईवे पर आती-जाती किसी पेट्रोलिंग पार्टी की नज़र भी इस बस पर नहीं पड़ी? जबकि अमरनाथ यात्रा के पहले मीडिया को दी गई जानकारी के अनुसार, 300 किलोमीटर लंबे रूट के लिए सेना, पैरामिलिट्री फ़ोर्स और राज्य पुलिस के क़रीब 14 हज़ार जवानों को तैनात किया गया है। सिर्फ इतना ही नहीं,सेना की दो बटालियनों के अलावा सीआरपीएफ़ और बीएसएफ़ की 100 टुकड़ियों को तैनात किया गया है, जो कि पिछले साल अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा कर रहे जवानों की तुलना में दोगुनी संख्या है. मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि यह हमला शर्मनाक है और यह घटना सभी कश्मीरियों और मुस्लिमों पर धब्बा है। हम अपराधियों को सजा दिलाने तक चुप नहीं बैठेंगे। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, अलगाववादियों और बाकी सब ने भी निंदा करने की रस्म अदा कर दी है।
यह बस गुजरात के वलसाड के ओम ट्रैवेल्स की है, जिसका नम्बर है GJ09Z0976,मालिक का नाम है राकेश कुमार बाबूलाल शाह और मॉडल है बोलेरो कैंपर। पठानकोट हमले के बाद केंद्र और राज्य सरकार, गृह मंत्रालय, रिज़र्व पुलिस बल सभी ने चाक-चौबंद सुरक्षा के जो दावे किए थे, वह फिलहाल इस बस के बिखरे हुए कांच की तरह चकनाचूर होते दिख रहे हैं। इस मामले की न केवल पूरी तफ्तीश होनी चाहिए, कुछ मुश्किल सवाल भी पूछे जाने चाहिए। क्योंकि चिंता की बात यह तो है कि 7 बेगुनाहों की जान गई...चिंता की बात यह भी है कि न केवल इसका असर कश्मीर के पहले ही बिगड़े हालात पर पड़ेगा, बल्कि यह आम कश्मीरी के लिए देश के और हिस्सों के लोगों की धारणा पर भी असर डालेगा, यह कश्मीर की अर्थव्यवस्था पर भी असर डालेगा और फिर बस गुजरात की थी...और गुजरात में चुनाव आने ही वाले हैं...दुआ कीजिए कि यह सिर्फ लापरवाही हो...और सरकार सिर्फ घोर निंदा करके इसे भूल न जाए....
यहीं से बात शुरु होनी चाहिए, अमरनाथ यात्रियों पर 10 जुलाई की देर शाम हुए हमले के बारे में! जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में जिस समय तीर्थयात्रियों की एक बस पर यह हमला हुआ, उस समय रात के 8 बजे के आस-पास का समय था। बस पर घात लगाए आतंकियों ने हमला किया और ड्राइवर सलीम की सूझबूझ से उसने बस नहीं रोकी और सुरक्षित स्थान पर जा कर ही रुका। कुछ यात्री घायल हुए और 7 की मृत्यु हो गई, लेकिन 50 लोगों की जान बच गई। लेकिन यह हुआ कैसे? आखिर जब शाम 7 बजे के बाद इस हाइवे पर यात्री वाहनों का जाना प्रतिबंधित है, तो यह बस इस पर आई कैसे? आइए अपने सवाल पर वापस आते हैं...क्या आपने कश्मीर में चेकपोस्ट गिने हैं?
यह हमला और तीर्थयात्रियों की जान जाना जितना दुखद है, उससे ज़्यादा दुखद है, इस मामले में दूर से ही दिख रही लापरवाही-चूक के लक्षण। सत्ता कभी आपको यह समझने का मौका नहीं देगी, कि यह लापरवाही जानबूझ कर की गई या फिर यह ग़लती से हुई। लेकिन फिर भी यह सवाल तो पूछे ही जाएंगे कि आख़िर इतनी बड़ी लापरवाही कैसे हुई? जिस राज्य में कदम-कदम पर आपको हाइवे या सड़क चेकपोस्ट मिलती हैं, आख़िर वहां कैसे किसी बस को 7 बजे के बाद उस हाईवे पर जाने दिया जा सकता है, जहां उस समय वाहन प्रतिबंधित हैं? क्या 1 घंटे तक यह बस चलती रही और किसी चेकपोस्ट से हो कर नहीं गुज़री?
अजब संयोग यह भी है कि यह बस गुजरात की थी और इसके बारे में प्रशासन की ओर से कहा जा रहा है कि इसका पंजीकरण श्राइन बोर्ड द्वारा परिवहन के लिए नहीं किया गया था। बस के यात्री चार्ट में जो परिवहन अधिकारी के हस्ताक्षर और मुहर हैं, वह भी हिम्मतनगर, गुजरात के हैं। तो क्या रास्ते में किसी ने इस बस के क़ाग़ज नहीं जांचे? और अगर जांचे तो उसे आगे कैसे जाने दिया गया? क्या 7 बजे से 8.20 के बीच सवा घंटे में यह अकेली बस थी, जो उस हाईवे पर जा रही थी और उस बीच क्या केवल इसी बस को आगे जाने दिया गया? क्या आतंकियों को इस बस के बारे में पता था और वह इसी बस के लिए घात लगाए बैठे थे? यह सुरक्षा में चूक का बेहद गंभीर मामला है।
सवाल पर फिर लौटना होगा कि उस रास्ते की सारी चेकपोस्ट क्या इस एक बस के लिए मार्ग से गायब हो गई थी? केंद्रीय रिजर्व पुलिस बैंक का कहना है कि ये बस आधिकारिक काफिले का हिस्सा नहीं थी और बस सभी सुरक्षा नियमों का उल्लंघन किया है। लेकिन सुरक्षा बलों के सूत्रों से छन कर आ रही दूसरी जानकारी और भी परेशान करने वाली है। वह जानकारी यह है कि गुजरात की ये बस शाम 5 बजे श्रीनगर से बिना पुलिस सुरक्षा के आगे बढ़ी थी। इसके बाद बस में सवार यात्री शायद श्रीनगर में घूमने लगे और काफिले से अलग हो गए। बताया जा रहा है बस श्राइन बोर्ड में रजिस्टर भी नहीं थी। आख़िर कैसे सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक हो सकती है? क्या 2 दिन पहले ही यात्रा पूरी कर चुके इन यात्रियों से भरी इस बस को किसी पोस्ट पर रोका नहीं गया? क्या यह यात्री शाम 6 बजे के बाद से 8.20 के बीच में किसी ऐसी चेकपोस्ट से हो कर नहीं ग़ुज़री जहां, इनको आगे जाने से रोक लिया गया हो?
जानकारी के मुताबिक यह बस जब इस स्थान से गुज़री, उसके कुछ देर पहले ही 7.30 के आस-पास पेट्रोलिंग पार्टी ने अपनी गश्त हटा ली थी। लेकिन सवाल यह है कि पठानकोट हमले के बाद की सुरक्षा की सख्त तैयारी के दावे कहां हवा हो गए? क्या उस हाईवे पर आती-जाती किसी पेट्रोलिंग पार्टी की नज़र भी इस बस पर नहीं पड़ी? जबकि अमरनाथ यात्रा के पहले मीडिया को दी गई जानकारी के अनुसार, 300 किलोमीटर लंबे रूट के लिए सेना, पैरामिलिट्री फ़ोर्स और राज्य पुलिस के क़रीब 14 हज़ार जवानों को तैनात किया गया है। सिर्फ इतना ही नहीं,सेना की दो बटालियनों के अलावा सीआरपीएफ़ और बीएसएफ़ की 100 टुकड़ियों को तैनात किया गया है, जो कि पिछले साल अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा कर रहे जवानों की तुलना में दोगुनी संख्या है. मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि यह हमला शर्मनाक है और यह घटना सभी कश्मीरियों और मुस्लिमों पर धब्बा है। हम अपराधियों को सजा दिलाने तक चुप नहीं बैठेंगे। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, अलगाववादियों और बाकी सब ने भी निंदा करने की रस्म अदा कर दी है।
यह बस गुजरात के वलसाड के ओम ट्रैवेल्स की है, जिसका नम्बर है GJ09Z0976,मालिक का नाम है राकेश कुमार बाबूलाल शाह और मॉडल है बोलेरो कैंपर। पठानकोट हमले के बाद केंद्र और राज्य सरकार, गृह मंत्रालय, रिज़र्व पुलिस बल सभी ने चाक-चौबंद सुरक्षा के जो दावे किए थे, वह फिलहाल इस बस के बिखरे हुए कांच की तरह चकनाचूर होते दिख रहे हैं। इस मामले की न केवल पूरी तफ्तीश होनी चाहिए, कुछ मुश्किल सवाल भी पूछे जाने चाहिए। क्योंकि चिंता की बात यह तो है कि 7 बेगुनाहों की जान गई...चिंता की बात यह भी है कि न केवल इसका असर कश्मीर के पहले ही बिगड़े हालात पर पड़ेगा, बल्कि यह आम कश्मीरी के लिए देश के और हिस्सों के लोगों की धारणा पर भी असर डालेगा, यह कश्मीर की अर्थव्यवस्था पर भी असर डालेगा और फिर बस गुजरात की थी...और गुजरात में चुनाव आने ही वाले हैं...दुआ कीजिए कि यह सिर्फ लापरवाही हो...और सरकार सिर्फ घोर निंदा करके इसे भूल न जाए....
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