प्रयागराज। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के 18 वर्षीय छात्र रजनीकांत यादव ने आत्महत्या कर ली। रजनीकांत यादव उर्फ गोलू ने पिछले साल आजमगढ़ से इण्टरमीडियट पास किया। बड़े सपने के साथ पूरब के आक्सफोर्ड कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एडमीशन ले लिया। हॉस्टल लेने के लिए फार्म भर दी, उसकी फीस जमा कर दी। 1 महीना बीता, 2 महीना बीता और देखते ही देखते 3 और 4 महीने बीत गए पर गोलू को हॉस्टल नहीं मिला। इस बीच वह बार-बार अपने मकान मालिक की खरी-खोटी सुनता रहा और जब न सुना गया तो उसने मौत को गले लगा लिया।
रजनीकांत ने सुसाइड नोट में लिखा है....
"मैं ये सब अपनी मर्जी से किया, घर वालों मुझे माफ करना। भाई लोगों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया, लेकिन मैं ही नहीं कर पाया। असली दिक्कत मकान मालिकों से है, हमें 4-5 महीने से कह रहा था कि तुम विश्वविद्यालय के हो तुमको नहीं रखेंगे। रोज-रोज यही सुनते कि कब जाओगे, कब मरोगे, उधर हॉस्टल के लिए पता करता तो हौसला सर रोज डांट के भगा देते थे। कल मैं गया बताया कि तबियत खराब है सर हमारी, तो कहे कि हम क्या करें जाओ कहीं मरो। भाईयों, अपने भाई के मौत की चिता को शांत मत रखना, उदय, अंकित यादव, राहुल भैया, अखिलेश इसका बदला जरूर लेना।"
रजनीकांत की सुसाइड के बाद सवाल खड़ा हो रहा है कि इस मौत का जिम्मेदार कौन है? मकान मालिक, विश्व विद्यालय प्रशासन या वर्षों से कमरा कब्जाए छात्रनेता?
विश्वविद्यालय का ये रवैया बेहद पुराना रहा है। सत्र के शुरुआत में ही छात्रों हॉस्टल फीस के नाम पर मोटी रकम जमा करवा ली जाती है और फिर छात्रों को दौड़ाना शुरू किया जाता है। कई बार कमरा एलॉट भी कर दिया जाता है पर छात्र जब वहां जाते हैं तो पहले से ही वहां कोई सीनियर छात्र कब्जा किया रहता है जिसकी वजह से छात्र बेबस होकर वापस लौट आता है और प्रशासन से गुहार लगाता है, पर प्रशासन के कानों पर इतनी आसानी से कहां जूं रेंगती है।
रजनीकांत ने सुसाइड नोट में लिखा है....
"मैं ये सब अपनी मर्जी से किया, घर वालों मुझे माफ करना। भाई लोगों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया, लेकिन मैं ही नहीं कर पाया। असली दिक्कत मकान मालिकों से है, हमें 4-5 महीने से कह रहा था कि तुम विश्वविद्यालय के हो तुमको नहीं रखेंगे। रोज-रोज यही सुनते कि कब जाओगे, कब मरोगे, उधर हॉस्टल के लिए पता करता तो हौसला सर रोज डांट के भगा देते थे। कल मैं गया बताया कि तबियत खराब है सर हमारी, तो कहे कि हम क्या करें जाओ कहीं मरो। भाईयों, अपने भाई के मौत की चिता को शांत मत रखना, उदय, अंकित यादव, राहुल भैया, अखिलेश इसका बदला जरूर लेना।"
रजनीकांत की सुसाइड के बाद सवाल खड़ा हो रहा है कि इस मौत का जिम्मेदार कौन है? मकान मालिक, विश्व विद्यालय प्रशासन या वर्षों से कमरा कब्जाए छात्रनेता?
विश्वविद्यालय का ये रवैया बेहद पुराना रहा है। सत्र के शुरुआत में ही छात्रों हॉस्टल फीस के नाम पर मोटी रकम जमा करवा ली जाती है और फिर छात्रों को दौड़ाना शुरू किया जाता है। कई बार कमरा एलॉट भी कर दिया जाता है पर छात्र जब वहां जाते हैं तो पहले से ही वहां कोई सीनियर छात्र कब्जा किया रहता है जिसकी वजह से छात्र बेबस होकर वापस लौट आता है और प्रशासन से गुहार लगाता है, पर प्रशासन के कानों पर इतनी आसानी से कहां जूं रेंगती है।