मोदी का रास्ता रोक देश की राजनीति की दशा औऱ दिशा ना बदल दे सपा-बसपा का गठबंधन!

Published on: January 12, 2019
लखनऊ। पिछले विधान सभा चुनाव में एक नारा लगा था अखिलेश यादव की सभाओं में ' जिसका यूपी, उसका देश।'  अब यूपी पर नया गठबंधन यही दावा ठोक रहा है। पिछले एक हफ्ते के घटनाक्रम के बाद उत्तर प्रदेश अब फिर देश की राजनीति बदलने के लिए तैयार हो रहा है। उत्तर प्रदेश के दो बड़े दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी न सिर्फ साथ आ गए हैं बल्कि साझा चुनाव लड़ने जा रहे हैं। इसका श्रेय भी मोदी को जाता है तो यह खतरे की घंटी भी मोदी के लिए बज रही है।

मोदी के लिए इसलिए क्योंकि पिछले कुछ महीनों से मोदी सीबीआई में ही उलझे हुए हैं। वे गठबंधन तोड़ने के लिए भी सीबीआई का इस्तेमाल कर रहे हैं तो बनाने के लिए भी। यूपी में अचानक खनन घोटाले को लेकर जिस तरह सीबीआई को आगे कर समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव को घेरने का प्रयास किया गया उसने सपा और बसपा को और ताकत दे दी। जो दोनों दल महीनों से अलग रास्तों पर चल रहे थे वे साथ आ गए। मायावती ने अखिलेश यादव को फोन कर साहस बढ़ाया तो दिल्ली में साझा प्रेस कांफ्रेंस भी हुई।

शनिवार को लखनऊ के ताज होटल में मायावती और अखिलेश यादव गठबंधन की औपचारिक घोषणा करने जा रहे हैं तो सीबीआई को भी इसका कुछ श्रेय देना चाहिए तो मोदी को भी। जो सीबीआई से गठबंधन की राजनीति कर रहे हैं। पर यह गठबंधन देश की राजनीति की दिशा बदल सकता है। सिर्फ यूपी बिहार ही भाजपा को सौ सीट पीछे कर सकता है। जिससे सत्ता से बेदखल हो सकती है भाजपा। यूपी में मोदी के उभार से पहले भाजपा की जो दशा थी वह फिर उसी दिशा में बढ़ सकती है।

पिछली बार जब कांशीराम और मुलायम सिंह यादव मिले थे तो मंदिर मुद्दा गरमाया हुआ था। उस दौर में नारा लगा था, मिले मुलायम, कांशीराम -हवा में उड़ गए जय श्रीराम। और हुआ भी वही। सपा-बसपा पूरी ताकत के साथ सत्ता में लौटे। इस बार भी लोगों का यही आकलन है। इतिहास दोहराया जा सकता है। कोई टकराव भी नहीं है। मायावती को देश और अखिलेश को प्रदेश देखना है। माना यह जा रहा है कि त्रिशंकु लोकसभा में पचास से ज्यादा लोकसभा सीट आने के बाद मायावती सबसे मजबूत दावेदार होंगी। राहुल गांधी वैसे भी तब तक दावेदार नहीं बनेंगे जब तक कांग्रेस को बहुमत न मिले। जो इस लोकसभा में अभी दिख नहीं रहा है। 

सूत्रों के मुताबिक सपा और बसपा किसी तय फार्मूले पर जाने की बजाय हर सीट जो जीतने के लिहाज से लड़ने जा रहे हैं। मसलन अगर किसी किसी सीट पर पिछले चुनाव में सपा दूसरे नंबर पर रही हो तो जरुरी नहीं कि वह सीट सपा को ही मिले अगर उसमे किसी तरह के बदलाव से जीत सुनिश्चित हुई तो वह बदलाव होगा। सीटों की संख्या आसपास ही होगी। कांग्रेस के लिए दो सीट सपा छोड़ती आई है वह परम्परा जारी रहेगी।

लोकदल के साथ कुछ क्षेत्रीय दल मसलन अपना दल आदि भी समायोजित हो सकते हैं.दरअसल उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को लेकर गठबंधन का आकलन अलग हैं। राजनैतिक टीकाकार सीएम शुक्ल के मुताबिक कांग्रेस अगर अकेले लड़ती है तो उस दशा में विपक्ष को ज्यादा फायदा हो सकता है। वजह कांग्रेस का अगड़ा वोट बैंक है। यह वोट बैंक कांग्रेस के सपा बसपा के खेमे में जाते ही बिदक जाता है और भाजपा की तरफ लौट जाता है। पर कांग्रेस अगर अकेले लड़ती है तो उससे भाजपा के वोट बैंक में ही कुछ कतरब्योंत करता है। यह एक आकलन है।

बहरहाल उत्तर प्रदेश में दलित और पिछड़ों का यह एक मजबूत और आक्रामक गठबंधन बनता नजर आ रहा है। खास बात यह है कि यह प्रयोग सिर्फ यहीं नहीं तीन चार प्रदेशों में भी कुछ न कुछ असर डालेगा। खासकर मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों में।

(अंबरीश कुमार शुक्रवार के संपादक हैं और लंबे समय तक इंडियन एक्सप्रेस समूह से जुड़े रहे हैं।)

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