हाहाकार से नाता
इतना डरा हूँ
मौन हूँ ऐसे जैसे
मरा हूँ ।
सुनकर अनसुना करता हूँ
मदद की गुहार
हाहाकार।
फेर लेता हूँ निगाह
हो रही हत्या से,
हत्यारे से
उसके हथियारों से।
जब नहीं बोलता मैं कुछ भी तो
कोई और पूछता है मुझसे
कि मैं मनुष्य हूँ
पशु हूँ या क्या हूँ कौन हूँ?
पूछने पर भी न पा कर उत्तर
वह नहीं करता प्रश्न
नहीं देता मेरे मुंह खोलने पर जोर।
ओ मेरी भाषा
ओ मेरी अंतिम आशा
मुझे बना कर भीरु
तुम्हारे शब्दों का हरण कर गया
कौन चोर?
मैं पुकारता हूँ
शब्दों को बचाओ
बचाओ उनके अर्थ
कोई है जो सुन कर हंसता है
कहता है
अब पुकार है व्यर्थ।
मैं लौट कहीं भी जाऊँ
कोई हाहाकार मुझे
सतत बुलाता है जगाता है
संतों तुम्हीं बताओ
रुदन विलाप और चीख पुकार से
मेरा क्या नाता है?
बोधिसत्व, मुंबई
इतना डरा हूँ
मौन हूँ ऐसे जैसे
मरा हूँ ।
सुनकर अनसुना करता हूँ
मदद की गुहार
हाहाकार।
फेर लेता हूँ निगाह
हो रही हत्या से,
हत्यारे से
उसके हथियारों से।
जब नहीं बोलता मैं कुछ भी तो
कोई और पूछता है मुझसे
कि मैं मनुष्य हूँ
पशु हूँ या क्या हूँ कौन हूँ?
पूछने पर भी न पा कर उत्तर
वह नहीं करता प्रश्न
नहीं देता मेरे मुंह खोलने पर जोर।
ओ मेरी भाषा
ओ मेरी अंतिम आशा
मुझे बना कर भीरु
तुम्हारे शब्दों का हरण कर गया
कौन चोर?
मैं पुकारता हूँ
शब्दों को बचाओ
बचाओ उनके अर्थ
कोई है जो सुन कर हंसता है
कहता है
अब पुकार है व्यर्थ।
मैं लौट कहीं भी जाऊँ
कोई हाहाकार मुझे
सतत बुलाता है जगाता है
संतों तुम्हीं बताओ
रुदन विलाप और चीख पुकार से
मेरा क्या नाता है?
बोधिसत्व, मुंबई