एक महिला बाई जिसने कल्लूरी पर बलात्कार का आरोप लगाया वो जेल से निकलने के बाद अचानक ग़ायब हो जाती है और उसका आज तक कोई अता-पता नहीं है. लेधा बाई के ग़ायब हो जाने की ये घटना अगर मुख्यमंत्री के रोएं नहीं खड़े करती है, तो छत्तीसगढ़ की जनता ये क्यूँ न मान ले कि सत्ता भाजपा की हो या कांग्रेस की, लूट ही उसका असल चरित्र है.
लेधा बाई नामक एक आदिवासी महिला ने उन पर बलात्कार का आरोप लगाया था. लेधा बाई ने मजिस्ट्रेट के सामने दिए अपने बयान में कहा था कि न केवल कल्लूरी ने उनके साथ बलात्कार किया बल्कि अपने मातहत काम करने वालों से कहा कि वे उसके साथ रोज़ सामूहिक बलात्कार करते रहें. लेधा बाई ने 2006 में कल्लूरी के ख़िलाफ़ केस दर्ज कराया था. गवाही किताब में लिखी बात के मुताबिक़ पर दबाव में आकर लेधा बाई को केस वापस लेना पड़ा और तब से लेधा बाई लापता हैं. इस मामले की निष्पक्ष जाँच हो सके इसलिए कल्लूरी का तबादला कर दिया गया. जाँच चल ही रही थी उसी दौरान कल्लूरी को 2013 में राष्ट्रपति का पुलिस मैडल विशिष्ट सेवा के लिए दिया गया. विडम्बना है कि इतना गंभीर आरोप लगने के बावजूद जून 2014 में उन्हें पदोन्नत करके बस्तर रेंज का पुलिस महानिरीक्षक नियुक्त कर दिया गया.
यौन हिंसा व राजकीय दमन के ख़िलाफ़ महिलाएं (WSS) ने जुलाई 2017 में “गवाही” शीर्षक से किताब के रूप में कुछ दस्तावेज़ और पीड़ित महिलाओं के बयान प्रकाशित किए हैं. पुलिस द्वारा यौन हिंसा से पीड़ित महिलाओं ने जो बयान WSS को दिए, उनमें लेधा बाई का भी बयान शामिल है.
लेधा बाई के बयान का अंश
ये बयान पंजीयन पूर्व साक्ष्य के लिए 27-07-2007 को लिया गया था
“एक साल पहले की बात है, मैं अनपढ़ हूं मुझे तारीख़ नहीं मालूम. इसराईल मेरे गांव में आता-जाता था. इसराईल मेरे से प्रेम करता था उससे मैं गर्भवती हो गई थी. वो हमेशा एक-दो महीने में शादी करने के लिए कहता था. एक महीने तक वह नहीं मिला तो मैंने उसके बारे में पता किया, पता चला कि उसने अपनी जाति की लड़की से शादी कर ली है. तब मैं अपने पिता के साथ पुलिस थाना शंकरगढ़ गई. इसराईल वहां के थाना प्रभारी से मिल गया था जिस कारण थाना प्रभारी ने मेरी रिपोर्ट दर्ज नहीं की और मुझे थाने से भगा दिया. फिर हम लोग घर चले आए थे.
मेरे गांव में रमेश नाम का लड़का आता-जाता था रमेश ने मेरे से शादी के सम्बन्ध में बातचीत की, तब मैं उससे शादी करने के लिए तैयार हो गई. शादी के बाद रमेश मेरे घर में ही आ गया और दो तीन दिन साथ में रहा और कहा कि मैं काम खोजने जा रहा हूं, आऊंगा तो तुमको ले जाऊंगा. उसके एक महीने बाद थाना शंकरगढ़ से पुलिस मेरे घर आई, मुझसे कहा कि चलो तुमको साहब थाने बुला रहे हैं. मैं थाने गई, थाना प्रभारी ने वहां मेरे बारे में कहा की ये नक्सली है इसको जेल नहीं भेजेंगे तो ये इसराईल के ख़िलाफ़ ज़रूर केस करेगी.
फिर मुझे जेल भेज दिया गया. उस समय मैं गर्भवती थी. आठ माह के बाद जब मेरी डिलिवरी होने वाली थी, उस समय मेरी ज़मानत हो गई और घर जाकर मेरी डिलिवरी हुई. डिलिवरी के बाद मुझे फिर जेल भेज दिया गया. छः माह के बाद मेरे प्रकरण में फ़ैसला हुआ और कोर्ट ने मुझे बरी कर दिया. पिता के साथ अपनी रिहाई की सूचना देने मैं थाने गई, वहां मुझसे मेरे पति रमेश के कामकाज के बारे में पूछा गया, मैंने बताया कि वो खेतीबाड़ी और मजदूरी करता है. थाना प्रभारी ने मुझे बताया कि तुम्हारा पति नक्सली है उसे सरेन्डर करा दो, पुलिस मदद करेगी और सरकार भी पैसे देगी, नहीं तो एक दिन तुम्हारे घर पर ही उसको मारूंगा.
एक महीने बाद रमेश घर आया तो मैंने उसे सबकुछ बताकर सरेन्डर करने को कहा, वो तैयार हो गया. मैं व मेरे पिता शंकरगढ़ थाने गए और कहा कि रमेश सरेन्डर करने के लिए सिविलदाग आ गया है. हमें अगले दिन बुलाया गया. दुसरे दिन मैं थाने पहुँची तो वहां कल्लूरी साहब मिले. मुझे गाड़ी में बिठा कर थाना कुसमी ले गए, वहां से और पुलिस वालों को लेकर कसमार गए फिर वहां से पैदल चलते हुए सिविलदाग पहुंचे. सिविलदाग पहुंचने पर कल्लूरी साहब ने कहा कि रमेश को बुलाओ. रमेश को बुलाया गया, पुलिस ने उसे लाठियों से पीटा. मारपीट करने के बाद कल्लूरी साहब ने उससे पूछताछ की, फिर मुझसे कहा कि तुमलोग आपस में बातचीत कर लो. हम एक कमरे में बात कर ही रहे थे कि तभी एक पुलिस वाला आया और मेरे पति को तीन गोलियां मारीं, मैं चिल्लाई, वे मुझे घसीटकर कमरे से बाहर ले गए. पुलिस वालों ने कल्लूरी साहब से कहा कि इसे भी मार देते हैं. तब कल्लूरी साहब ने कहा, हां मार दो.
वहां मौजूद गाँव वालों ने विरोध किया तो पुलिस मुझे गाड़ी में बिठाकर शंकरगढ़ ले आई. कल्लूरी साहब ने कहा कि किसी को कुछ मत बताना वरना तुम्हें भी गोली मार देंगे. दुसरे दिन दोपहर में मुझे छोड़ दिया. मैं अपनी दादी के घर चली गई और सारी बात अपने वकील को बताई, उन्होंने मेरे कागज़ तैयार किए और मुख्यमंत्री के पास भिजवाए.
कुछ दिनों बाद पुलिस ने मेरे पिता को गिरफ़्तार कर लिया. ये जानकर मैं वापस अपने घर पहुची, फिर तीन गाड़ियों में पुलिस वाले आए और मुझे भी पकड़कर शंकरगढ़ थाने ले गए. थाने में कल्लूरी साहब थे. उन्होंने मुझे देखकर पूछा कि मैं कौन हूं, मैंने कहा आप कल्लूरी साहब हैं, आप ही के सामने मैं अपने पति को सरेन्डर कराने लाइ थी और आपने उसे गोली मरवा दी थी. तब कल्लूरी ने मुझे दो थप्पड़ मारे, मेरी गोद में मेरी बच्ची थी, मैं अपनी बच्ची के साथ ज़मीन पर गिर गई. कल्लूरी ने मुझे कपड़े उतारने को कहा, जब मैंने नहीं उतारे तो दो पुलिस वाले मेरे पिता को मारने लगे. मैं कपड़े नहीं उतार रही थी तो वो मेरे पिता को और ज़ोर ज़ोर से मारने लगे. तब मैंने कपड़े उतार दिए. मुझे पूरी तरह से नंगा कर दिया गया. मेरा बच्चा ज़मीन पर ज़ोर ज़ोर से रो रहा था, तभी कल्लूरी ने कहा “इसे कमरे में ले जाओ मैं इससे पूछताछ करूँगा”. मुझे नंगी हालत में ही थाने की कोठरी में ले गए. फिर कल्लूरी ने मेरे साथ थाने में बलात्कार किया. एक घंटे बाद मुझे निकाल कर लाया और मेरे पेशाब के रास्ते में हरी मिर्च डलवा दिया. कल्लूरी ने जाने से पहले पुलिस वालों से कहा कि इसके साथ रोज़ बलात्कार करते रहना. थाना शंकरगढ़ में पुलिस वाले रोज़ मेरे साथ बलात्कार करते थे.
दस दिनों तक मैं, मेरे पिता और माँ शंकरगढ़ थाने में थे फिर हमें रामानुजगंज थाने भेज दिया गया. वहां गोली मारने की धमकी दे कर कागज़ पर दस्तखत कराए थे. छोड़ने के बाद मेरी देखरेख के लिए चार पुलिस वालों की ड्यूटी लगाई गई, मैं शौच करने जाऊं या नहाने वो मेरे साथ जाते थे”.
इतने गंभीर आरोप जिस अधिकारी पर लगे हों उसे एंटी करप्शन ब्यूरो का प्रमुख बना कर पदोन्नत कर देना कोई सामान्य घटना नहीं है.
लेधा बाई का पूरा बयान यहां पढ़ा जा सकता है :
भाजपा की सरकार पर आतताई पुलिस वालों को बढ़ावा देने ढेरों आरोप लगे थे
छत्तीसगढ़ में कार्य करने वाले मानवाधिकार संगठनों और विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पुलिस पर, लगातार फ़ेंक एनकाउंटर करने, आदिवासियों पर फर्जी मुकदमें दायर करने, आदिवासी महिलाओं के साथ क्रूर यौनिक हिंसा व उनकी हत्या करने, सामाजिक कार्यकर्ताओं व जनपक्षधर पत्रकारों को डराने धमकाने जैसे मामलों की शिकायत की है और कई मामलों में तथ्य भी प्रस्तुत किए हैं. 15 वर्षों तक सत्ता में रही छत्तीसगढ़ की रमन सरकार ने ऐसे पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई करने की बजाए उन्हें पदोन्नति से नवाज़ा था. इन सब का खामियाज़ा भाजपा को 2018 चुनावों में भुगतना पड़ा. प्रदेश के लोग नई सरकार से ये उम्मीद करते हैं कि वो जनविरोधी नहीं, जनपक्षधर नीतियां बनाए.
भाजपा सरकार में कल्लूरी की हिंसा को सरकारी मान्यता
आदिवासियों के घार जला देने के मामले में अक्टूबर 2016 में केन्द्रीय जाँच ब्यूरो ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट पेश की जिसमें उसने सुरक्षाबलों को 160 घर जलाने के लिए ज़िम्मेदार ठहराया और ये भी कहा कि पुलिस ने झूठ बोला था कि ये घर नक्सलियों ने जलाए. कल्लूरी ने स्वयं सार्वजनिक रूप से इस अभियान के लिए ज़िम्मेदार होने कि बात क़ुबूल की. पर कल्लूरी को दोषी ठहराने वाली इस रिपोर्ट के न्यायलय में पेश होने के कुछ दिनों बाद ही उन्हें छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस के उपलक्ष्य पर प्रधानमन्त्री मोदी के स्वागत के लिए आमंत्रित किया गया. ये सीधा इशारा था कि कंपनियों के लिए बर्बरता से गांव ख़ाली करवाने और उसके लिए यौन हिंसा के इस्तेमाल को सरकारी मान्यता प्राप्त है.
अब कांग्रेस की सरकार में भी कल्लूरी की हिंसा को सरकारी मान्यता
15 वर्षों तक विपक्ष में रही कांग्रेस को 2018 छत्तीसगढ़ चुनावों में भारी बहुमत मिला है. बस्तर जैसे अघोषित युद्धक्षेत्र में रहने वाले आदिवासि, मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील, पत्रकार आदि सभी ये उम्मीद लगाए हुए थे कि कांग्रेस छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में चल रही खुल्लमखुल्ला लूट और मानवाधिकार हनन की निर्मम घटनाओं की रोकथाम के लिए कड़े कदम ज़रूर उठाएगी. विपक्ष में रहते हुए ख़ुद कांग्रेस भी ऐसी घटनाओं को रोकने की बात करती थी. मुख्यमंत्री बनने से पहले ख़ुद भूपेश बघेल भी कल्लूरी को जेल भेजने की बात कह चुके हैं.
मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया के घर पर हुए हमले की ख़बरों को दुनियाभर की मीडिया ने जगह दी थी इसके बाद ही कल्लूरी को बस्तर में उनके पद से हटा कर पीएचक्यू भेज दिया गया था. ख़बरों के मुताबिक़ जब कल्लूरी पीएचक्यू में थे तो उन्होंने भूपेश भाघेल(जो तब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे) को धमकी दी थी कि वे जब चाहें झीरम-2 करवा सकते हैं. इस पर बघेल ने कहा था कि “कल्लूरी और भाजपा सरकार के हाथ खून से रंगे हुए हैं. निर्दोष आदिवासियों को नक्सली बनाकर सरेन्डर करवाया गया है. स्कूल जाने वाले छात्रों को नक्सली बताकर गोली मारी गई है. बघेल ने ये भी कहा था कि भाजपा सरकार ने ही कल्लूरी को ऐसा करने के लिए फ़्री हैण्ड दिया था और जब बात सरकार पर आने लगी तो उसे पद से हटा दिया”. जनवेदना रैली में शामिल होने आए भूपेश बघेल ने फ़रवरी 2017 में ये बातें कही थीं. बघेल ने ये भी कहा था कि पद से हटा देने मात्र से कल्लूरी के गुनाह कम नहीं हो जाएंगे
सत्ता कॉर्पोरेट के इशारों पर नाचती है
ऐसा क्या हुआ कि बस्तर में चल रही पुलिसिया ज़बरदस्ती के ख़िलाफ़ न्यायलय और हर स्तर पर लड़ाई लड़ने की बात कहने वाले भूपेश बघेल ने सत्ता में आते ही अपनी बात से यूटर्न मार लिया. नई सरकार द्वारा अचानक कल्लूरी को ईओडब्ल्यू और एसीबी का प्रमुख बना देना, इस ग़लतफ़हमी को तोड़ देता है कि सरकार जनता के लिए होती है. सिर्फ़ कल्लूरी ही नहीं, कई और भी गंभीर आरोप वाले पुलिस अधिकारियों की नई पोस्टिंग की गई है. बस्तर क्षेत्र के वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ला का कहना है कि ये सब कॉर्पोरेट के इशारों पर हो रहा है.
सत्ता बदलती है चालचरित्र वही रहता है
गंभीर आरोप झेल रहे कल्लूरी और अन्य अधिकारियों पर लगे आरोपों की सत्ता बदलने के बात जांच होनी चाहिए थी. भाजपा पर आदिवासी इलाकों में पुलिस और कॉर्पोरेट के साथ मिलकर लूट और मानवाधिकार उल्लंघन का आरोप लगाने वाली कांग्रेस को सत्ता में आते ही कल्लूरी जैसे अधिकारियों पर जांच बिठानी चाहिए थी. एक महिला लेधा भाई जिसने कल्लूरी पर बलात्कार का आरोप लगाया वो जेल से निकलने के बाद अचानक ग़ायब हो जाती है और उसका आज तक कोई अता-पता नहीं है. वो महिला कहां ग़ायब हो गई इसकी विस्तृत जाँच करने की बजाए यदि अदालत आरोपी को निर्दोष कह देती है तो बहुमत से सत्ता में आई कांग्रेस की ये ज़िम्मेदारी बनती थी कि वो एक आदिवासी महिला के अधिकार से जुड़े इस मामले में जाँच करती. लेधा बाई के ग़ायब हो जाने की ये घटना अगर मुख्यमंत्री के रोएं नहीं खड़े करती है, तो छत्तीसगढ़ की जनता ये क्यूँ न मान ले कि सत्ता भाजपा की हो या कांग्रेस की, लूट ही उसका असल चरित्र है.
लेधा बाई नामक एक आदिवासी महिला ने उन पर बलात्कार का आरोप लगाया था. लेधा बाई ने मजिस्ट्रेट के सामने दिए अपने बयान में कहा था कि न केवल कल्लूरी ने उनके साथ बलात्कार किया बल्कि अपने मातहत काम करने वालों से कहा कि वे उसके साथ रोज़ सामूहिक बलात्कार करते रहें. लेधा बाई ने 2006 में कल्लूरी के ख़िलाफ़ केस दर्ज कराया था. गवाही किताब में लिखी बात के मुताबिक़ पर दबाव में आकर लेधा बाई को केस वापस लेना पड़ा और तब से लेधा बाई लापता हैं. इस मामले की निष्पक्ष जाँच हो सके इसलिए कल्लूरी का तबादला कर दिया गया. जाँच चल ही रही थी उसी दौरान कल्लूरी को 2013 में राष्ट्रपति का पुलिस मैडल विशिष्ट सेवा के लिए दिया गया. विडम्बना है कि इतना गंभीर आरोप लगने के बावजूद जून 2014 में उन्हें पदोन्नत करके बस्तर रेंज का पुलिस महानिरीक्षक नियुक्त कर दिया गया.
यौन हिंसा व राजकीय दमन के ख़िलाफ़ महिलाएं (WSS) ने जुलाई 2017 में “गवाही” शीर्षक से किताब के रूप में कुछ दस्तावेज़ और पीड़ित महिलाओं के बयान प्रकाशित किए हैं. पुलिस द्वारा यौन हिंसा से पीड़ित महिलाओं ने जो बयान WSS को दिए, उनमें लेधा बाई का भी बयान शामिल है.
लेधा बाई के बयान का अंश
ये बयान पंजीयन पूर्व साक्ष्य के लिए 27-07-2007 को लिया गया था
“एक साल पहले की बात है, मैं अनपढ़ हूं मुझे तारीख़ नहीं मालूम. इसराईल मेरे गांव में आता-जाता था. इसराईल मेरे से प्रेम करता था उससे मैं गर्भवती हो गई थी. वो हमेशा एक-दो महीने में शादी करने के लिए कहता था. एक महीने तक वह नहीं मिला तो मैंने उसके बारे में पता किया, पता चला कि उसने अपनी जाति की लड़की से शादी कर ली है. तब मैं अपने पिता के साथ पुलिस थाना शंकरगढ़ गई. इसराईल वहां के थाना प्रभारी से मिल गया था जिस कारण थाना प्रभारी ने मेरी रिपोर्ट दर्ज नहीं की और मुझे थाने से भगा दिया. फिर हम लोग घर चले आए थे.
मेरे गांव में रमेश नाम का लड़का आता-जाता था रमेश ने मेरे से शादी के सम्बन्ध में बातचीत की, तब मैं उससे शादी करने के लिए तैयार हो गई. शादी के बाद रमेश मेरे घर में ही आ गया और दो तीन दिन साथ में रहा और कहा कि मैं काम खोजने जा रहा हूं, आऊंगा तो तुमको ले जाऊंगा. उसके एक महीने बाद थाना शंकरगढ़ से पुलिस मेरे घर आई, मुझसे कहा कि चलो तुमको साहब थाने बुला रहे हैं. मैं थाने गई, थाना प्रभारी ने वहां मेरे बारे में कहा की ये नक्सली है इसको जेल नहीं भेजेंगे तो ये इसराईल के ख़िलाफ़ ज़रूर केस करेगी.
फिर मुझे जेल भेज दिया गया. उस समय मैं गर्भवती थी. आठ माह के बाद जब मेरी डिलिवरी होने वाली थी, उस समय मेरी ज़मानत हो गई और घर जाकर मेरी डिलिवरी हुई. डिलिवरी के बाद मुझे फिर जेल भेज दिया गया. छः माह के बाद मेरे प्रकरण में फ़ैसला हुआ और कोर्ट ने मुझे बरी कर दिया. पिता के साथ अपनी रिहाई की सूचना देने मैं थाने गई, वहां मुझसे मेरे पति रमेश के कामकाज के बारे में पूछा गया, मैंने बताया कि वो खेतीबाड़ी और मजदूरी करता है. थाना प्रभारी ने मुझे बताया कि तुम्हारा पति नक्सली है उसे सरेन्डर करा दो, पुलिस मदद करेगी और सरकार भी पैसे देगी, नहीं तो एक दिन तुम्हारे घर पर ही उसको मारूंगा.
एक महीने बाद रमेश घर आया तो मैंने उसे सबकुछ बताकर सरेन्डर करने को कहा, वो तैयार हो गया. मैं व मेरे पिता शंकरगढ़ थाने गए और कहा कि रमेश सरेन्डर करने के लिए सिविलदाग आ गया है. हमें अगले दिन बुलाया गया. दुसरे दिन मैं थाने पहुँची तो वहां कल्लूरी साहब मिले. मुझे गाड़ी में बिठा कर थाना कुसमी ले गए, वहां से और पुलिस वालों को लेकर कसमार गए फिर वहां से पैदल चलते हुए सिविलदाग पहुंचे. सिविलदाग पहुंचने पर कल्लूरी साहब ने कहा कि रमेश को बुलाओ. रमेश को बुलाया गया, पुलिस ने उसे लाठियों से पीटा. मारपीट करने के बाद कल्लूरी साहब ने उससे पूछताछ की, फिर मुझसे कहा कि तुमलोग आपस में बातचीत कर लो. हम एक कमरे में बात कर ही रहे थे कि तभी एक पुलिस वाला आया और मेरे पति को तीन गोलियां मारीं, मैं चिल्लाई, वे मुझे घसीटकर कमरे से बाहर ले गए. पुलिस वालों ने कल्लूरी साहब से कहा कि इसे भी मार देते हैं. तब कल्लूरी साहब ने कहा, हां मार दो.
वहां मौजूद गाँव वालों ने विरोध किया तो पुलिस मुझे गाड़ी में बिठाकर शंकरगढ़ ले आई. कल्लूरी साहब ने कहा कि किसी को कुछ मत बताना वरना तुम्हें भी गोली मार देंगे. दुसरे दिन दोपहर में मुझे छोड़ दिया. मैं अपनी दादी के घर चली गई और सारी बात अपने वकील को बताई, उन्होंने मेरे कागज़ तैयार किए और मुख्यमंत्री के पास भिजवाए.
कुछ दिनों बाद पुलिस ने मेरे पिता को गिरफ़्तार कर लिया. ये जानकर मैं वापस अपने घर पहुची, फिर तीन गाड़ियों में पुलिस वाले आए और मुझे भी पकड़कर शंकरगढ़ थाने ले गए. थाने में कल्लूरी साहब थे. उन्होंने मुझे देखकर पूछा कि मैं कौन हूं, मैंने कहा आप कल्लूरी साहब हैं, आप ही के सामने मैं अपने पति को सरेन्डर कराने लाइ थी और आपने उसे गोली मरवा दी थी. तब कल्लूरी ने मुझे दो थप्पड़ मारे, मेरी गोद में मेरी बच्ची थी, मैं अपनी बच्ची के साथ ज़मीन पर गिर गई. कल्लूरी ने मुझे कपड़े उतारने को कहा, जब मैंने नहीं उतारे तो दो पुलिस वाले मेरे पिता को मारने लगे. मैं कपड़े नहीं उतार रही थी तो वो मेरे पिता को और ज़ोर ज़ोर से मारने लगे. तब मैंने कपड़े उतार दिए. मुझे पूरी तरह से नंगा कर दिया गया. मेरा बच्चा ज़मीन पर ज़ोर ज़ोर से रो रहा था, तभी कल्लूरी ने कहा “इसे कमरे में ले जाओ मैं इससे पूछताछ करूँगा”. मुझे नंगी हालत में ही थाने की कोठरी में ले गए. फिर कल्लूरी ने मेरे साथ थाने में बलात्कार किया. एक घंटे बाद मुझे निकाल कर लाया और मेरे पेशाब के रास्ते में हरी मिर्च डलवा दिया. कल्लूरी ने जाने से पहले पुलिस वालों से कहा कि इसके साथ रोज़ बलात्कार करते रहना. थाना शंकरगढ़ में पुलिस वाले रोज़ मेरे साथ बलात्कार करते थे.
दस दिनों तक मैं, मेरे पिता और माँ शंकरगढ़ थाने में थे फिर हमें रामानुजगंज थाने भेज दिया गया. वहां गोली मारने की धमकी दे कर कागज़ पर दस्तखत कराए थे. छोड़ने के बाद मेरी देखरेख के लिए चार पुलिस वालों की ड्यूटी लगाई गई, मैं शौच करने जाऊं या नहाने वो मेरे साथ जाते थे”.
इतने गंभीर आरोप जिस अधिकारी पर लगे हों उसे एंटी करप्शन ब्यूरो का प्रमुख बना कर पदोन्नत कर देना कोई सामान्य घटना नहीं है.
लेधा बाई का पूरा बयान यहां पढ़ा जा सकता है :
भाजपा की सरकार पर आतताई पुलिस वालों को बढ़ावा देने ढेरों आरोप लगे थे
छत्तीसगढ़ में कार्य करने वाले मानवाधिकार संगठनों और विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पुलिस पर, लगातार फ़ेंक एनकाउंटर करने, आदिवासियों पर फर्जी मुकदमें दायर करने, आदिवासी महिलाओं के साथ क्रूर यौनिक हिंसा व उनकी हत्या करने, सामाजिक कार्यकर्ताओं व जनपक्षधर पत्रकारों को डराने धमकाने जैसे मामलों की शिकायत की है और कई मामलों में तथ्य भी प्रस्तुत किए हैं. 15 वर्षों तक सत्ता में रही छत्तीसगढ़ की रमन सरकार ने ऐसे पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई करने की बजाए उन्हें पदोन्नति से नवाज़ा था. इन सब का खामियाज़ा भाजपा को 2018 चुनावों में भुगतना पड़ा. प्रदेश के लोग नई सरकार से ये उम्मीद करते हैं कि वो जनविरोधी नहीं, जनपक्षधर नीतियां बनाए.
भाजपा सरकार में कल्लूरी की हिंसा को सरकारी मान्यता
आदिवासियों के घार जला देने के मामले में अक्टूबर 2016 में केन्द्रीय जाँच ब्यूरो ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट पेश की जिसमें उसने सुरक्षाबलों को 160 घर जलाने के लिए ज़िम्मेदार ठहराया और ये भी कहा कि पुलिस ने झूठ बोला था कि ये घर नक्सलियों ने जलाए. कल्लूरी ने स्वयं सार्वजनिक रूप से इस अभियान के लिए ज़िम्मेदार होने कि बात क़ुबूल की. पर कल्लूरी को दोषी ठहराने वाली इस रिपोर्ट के न्यायलय में पेश होने के कुछ दिनों बाद ही उन्हें छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस के उपलक्ष्य पर प्रधानमन्त्री मोदी के स्वागत के लिए आमंत्रित किया गया. ये सीधा इशारा था कि कंपनियों के लिए बर्बरता से गांव ख़ाली करवाने और उसके लिए यौन हिंसा के इस्तेमाल को सरकारी मान्यता प्राप्त है.
अब कांग्रेस की सरकार में भी कल्लूरी की हिंसा को सरकारी मान्यता
15 वर्षों तक विपक्ष में रही कांग्रेस को 2018 छत्तीसगढ़ चुनावों में भारी बहुमत मिला है. बस्तर जैसे अघोषित युद्धक्षेत्र में रहने वाले आदिवासि, मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील, पत्रकार आदि सभी ये उम्मीद लगाए हुए थे कि कांग्रेस छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में चल रही खुल्लमखुल्ला लूट और मानवाधिकार हनन की निर्मम घटनाओं की रोकथाम के लिए कड़े कदम ज़रूर उठाएगी. विपक्ष में रहते हुए ख़ुद कांग्रेस भी ऐसी घटनाओं को रोकने की बात करती थी. मुख्यमंत्री बनने से पहले ख़ुद भूपेश बघेल भी कल्लूरी को जेल भेजने की बात कह चुके हैं.
मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया के घर पर हुए हमले की ख़बरों को दुनियाभर की मीडिया ने जगह दी थी इसके बाद ही कल्लूरी को बस्तर में उनके पद से हटा कर पीएचक्यू भेज दिया गया था. ख़बरों के मुताबिक़ जब कल्लूरी पीएचक्यू में थे तो उन्होंने भूपेश भाघेल(जो तब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे) को धमकी दी थी कि वे जब चाहें झीरम-2 करवा सकते हैं. इस पर बघेल ने कहा था कि “कल्लूरी और भाजपा सरकार के हाथ खून से रंगे हुए हैं. निर्दोष आदिवासियों को नक्सली बनाकर सरेन्डर करवाया गया है. स्कूल जाने वाले छात्रों को नक्सली बताकर गोली मारी गई है. बघेल ने ये भी कहा था कि भाजपा सरकार ने ही कल्लूरी को ऐसा करने के लिए फ़्री हैण्ड दिया था और जब बात सरकार पर आने लगी तो उसे पद से हटा दिया”. जनवेदना रैली में शामिल होने आए भूपेश बघेल ने फ़रवरी 2017 में ये बातें कही थीं. बघेल ने ये भी कहा था कि पद से हटा देने मात्र से कल्लूरी के गुनाह कम नहीं हो जाएंगे
सत्ता कॉर्पोरेट के इशारों पर नाचती है
ऐसा क्या हुआ कि बस्तर में चल रही पुलिसिया ज़बरदस्ती के ख़िलाफ़ न्यायलय और हर स्तर पर लड़ाई लड़ने की बात कहने वाले भूपेश बघेल ने सत्ता में आते ही अपनी बात से यूटर्न मार लिया. नई सरकार द्वारा अचानक कल्लूरी को ईओडब्ल्यू और एसीबी का प्रमुख बना देना, इस ग़लतफ़हमी को तोड़ देता है कि सरकार जनता के लिए होती है. सिर्फ़ कल्लूरी ही नहीं, कई और भी गंभीर आरोप वाले पुलिस अधिकारियों की नई पोस्टिंग की गई है. बस्तर क्षेत्र के वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ला का कहना है कि ये सब कॉर्पोरेट के इशारों पर हो रहा है.
सत्ता बदलती है चालचरित्र वही रहता है
गंभीर आरोप झेल रहे कल्लूरी और अन्य अधिकारियों पर लगे आरोपों की सत्ता बदलने के बात जांच होनी चाहिए थी. भाजपा पर आदिवासी इलाकों में पुलिस और कॉर्पोरेट के साथ मिलकर लूट और मानवाधिकार उल्लंघन का आरोप लगाने वाली कांग्रेस को सत्ता में आते ही कल्लूरी जैसे अधिकारियों पर जांच बिठानी चाहिए थी. एक महिला लेधा भाई जिसने कल्लूरी पर बलात्कार का आरोप लगाया वो जेल से निकलने के बाद अचानक ग़ायब हो जाती है और उसका आज तक कोई अता-पता नहीं है. वो महिला कहां ग़ायब हो गई इसकी विस्तृत जाँच करने की बजाए यदि अदालत आरोपी को निर्दोष कह देती है तो बहुमत से सत्ता में आई कांग्रेस की ये ज़िम्मेदारी बनती थी कि वो एक आदिवासी महिला के अधिकार से जुड़े इस मामले में जाँच करती. लेधा बाई के ग़ायब हो जाने की ये घटना अगर मुख्यमंत्री के रोएं नहीं खड़े करती है, तो छत्तीसगढ़ की जनता ये क्यूँ न मान ले कि सत्ता भाजपा की हो या कांग्रेस की, लूट ही उसका असल चरित्र है.