नशाः पूर्वी महाराष्ट्र में 'खर्रा' के बिना दिन की शुरूआत होती ही नहीं !

Written by Amir Rizvi | Published on: October 18, 2017



पूर्वी महाराष्ट्र के गांव के लोग एक सबसे ज्यादा नशे वाली चीज के उत्पादन, बिक्री और इस्तेमाल में बड़े पैमाने पर लगे हुए हैं जिसे स्थानीय भाषा में खर्रा कहते हैं। यह कई चीजों के मिश्रण वाला पाउडर है जिसमें सुपारी, तंबाकू की पत्तियां और कैल्शियम हाइड्रोक्साइड (चूना) शामिल हैं। यह एक दांतेदार लकड़ी का इस्तेमाल करके तैयार किया जाता है। सभी सामग्रियों को एक दांतेदार लकड़ी के ऊपर दूसरे दांतेदार लकड़ी से कुचला जाता है और फिर पाउडर को पाउच में भर कर बेचा जाता हैं। खर्रा नाम इसको पीसने के दौरान निकलने वाली आवाज के चलते दिया गया है।

मैंने खर्रा को कुछ सप्ताह पहले नागपुर और यवतमाल इलाके की अपनी पहली यात्रा के दौरान खोज निकाला। मेरा ध्यान उस दांतेदार लकड़ी की तरफ गया जो सभी पान की दुकान पर रखी हुई थी, ये सिर्फ हाईवे या ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं था बल्कि नागपुर शहर में भी था। यहां पानवाले को खर्रा पिसाई करते हुए और कुछ ही समय में इसे बिकते हुए देखा। गांव में ये सुबह सवेरे शुरू हो जाता है। मैं यवतमाल में टहल रहा था और पास के पूरे इलाके से खर्रा बनाया जा रहा था और लोग खर्रा खर्रा बोल रहे थें। खर्रा गर्म केक की तरह बेचा जा रहा था।

जाहिर तौर पर ताजा खर्रा की काफी मांग में है। इस नशीले मिश्रण से उपभोक्ताओं का कोफी नशा होता है और इसका लत बहुत बुरा होता है। खर्रा का लत इतना बुरा होता है कि बच्चे और महिलाएं भी इसके प्रलोभन से नहीं बची हैं।



यद्दपि पान मसाला और गुटखा पर प्रतिबंध है तथापि खर्रा इस तरह के प्रतिबंध क्षेत्र से बाहर है और बच्चों तथा नाबालिगों के लिए आसानी से उपलब्ध भी है, ज्यादातर बच्चों को इसका लत लगा है। यह विचलित करने वाली बात है क्योंकि कानून बच्चों के संरक्षण के विषय पर काफी स्पष्ट है। वर्ष 2015 में बाल न्याय अधिनियम (अनुच्छेद 77) में हुए संशोधन के अनुसार, "कोई भी व्यक्ति, योग्य चिकित्सक को छोड़कर, किसी बच्चे को कोई नशीली शराब या कोई नशीली दवा या तम्बाकू उत्पाद या नशीला पदार्थ देता है तो उसे सात साल की जेल की सजा और 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है।"

सबसे ज्यादा बुरा ये है कि नागपुर दुनिया की मुंह के कैंसर की राजधानी है। नागपुर में क्षेत्रीय कैंसर रजिस्ट्री के आंकड़ों के अनुसार, कुल कैंसर रोगियों के एक तिहाई से अधिक मुंह के कैंसर या तंबाकू संबंधी कैंसर (टीआरसी) से पीड़ित हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के एक अध्ययन के अनुसार, ये कैंसर पुरुषों में 50 प्रतिशत है और वे 20 प्रतिशत महिलाएं जिनका सीधा संबंध तम्बाकू के इस्तेमाल से है। हर साल भारत में तंबाकू के कारण 10 लाख से अधिक मौतें होती हैं और महाराष्ट्र में इस आंकड़े का 10 प्रतिशत है। विशेषज्ञों का कहना है कि हर साल तंबाकू से संबंधित मुंह के कैंसर के लगभग 4लाख नए मामले सिर्फ मध्य भारत में सामने आते हैं, जिनमें से अधिकांश नागपुर और आस-पास के इलाकों में दर्ज किए गए हैं।
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इस क्षेत्र में मेरा दौरा गैर-सरकारी संगठनों से जुड़ा था जो ग्रामीण/आदिवासी क्षेत्रों में बाल संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रहे हैं,वहां हमें ग्रामीणों और ग्रामीण बाल संरक्षण समिति (वीसीपीसी) के सदस्यों के साथ बातचीत करने का मौका मिला। जब मैंने उनसे पूछा कि उनके गांव में किसी को भी किसी नशे की लत या नशा से है तो शुरू में लोगों ने ये कहते हुए नकार दिया कि नशे की लत केवल शराब या अन्य दवाओं की है। खर्रा को वे नशीला पदार्थ या ड्रग नहीं मानते हैं।

मैंने अपने आस पास मौजूद लोगों से पूछा कि कितने लोग खर्रा का इस्तेमाल करते हैं। तो चौंकाने वाली बात निकल कर सामने आई, वहां मौजूद सभी लोगों ने अपने हाथ ऊपर कर दिए और खर्रा के इस्तेमाल करने की बात स्वीकार की। वे इसे मुंह में रखते हैं या इसे लंबे समय तक चबाते हैं और इसका रस गाल के झिल्ली के जरिए, होंठों के अंदर और जीभ के नीचे अवशोषित हो जाता है। कुछ मिनटों से कुछ घंटों तक इसे कहीं चबाने के बाद, वे अवशिष्ट को इधर-उधर थूक देते हैं। हर जगह दीवारों पर लाल भूरे रंग के निशान थे।




अब यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि ऐसा नहीं है कि खर्रा या इसी तरह के नशीले पदार्थ भारत में कहीं और तो नहीं इस्तेमाल हो रहे हैं। मुंबई और गुजरात के लोग मव्वा का इस्तेमाल करते हैं, जो कि खर्रा का एक रूप है जो कि दांतेदार लकड़ी के बजाए इसे पॉलिथीन में लपेटकर दोनों हथेलियों के बीच कुचलते हैं। यहां तक कि खैनी जो कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और पूर्वी भारत (और नेपाल) के कुछ हिस्सों में मशहूर है। पानी की सुपारी के बिना इसे चूने के साथ मिलाकर तैयार किया जाता है।

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