नई दिल्ली। जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के एक प्रतिनिधिमंडल, जिसमें ओडिशा के लोक शक्ति अभियान के प्रफुल्ला समांतरा, खुदाई खिदमतगार, दिल्ली से फैसल खान, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के संदीप पांडेय, खुदाई खिदमतगार, दिल्ली से मोहम्मद जावेद मालिक व खुदाई खिदमतगार, केरल से मुस्तफा मोहम्मद शामिल थे, को चार अक्टूबर 2019 को सुबह श्रीनगर हवाई अड्डे पर ही रोक लिया गया।
एक विज्ञप्ति में यह जानकारी देते हुए खुदाई खिदमतगार के फैसल खान ने बताया कि जिला अधिकारी बड़गाम के एक आदेश, जो प्रफुल्ला समांतरा, फैसल खान व संदीप पांडेय के नाम अलग-अलग निकला गया था, में कहा गया है कि ये कार्यकर्ता जम्मू व कश्मीर में अनुच्छेद 370 ख़तम किया जाने के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे जिससे कानून व व्यवस्था बिगड़ने का खतरा है, इसलिए अगले आदेश तक इन्हें श्रीनगर हवाई अड्डे से बाहर निकलने की छूट नहीं है। जिला प्रशासन जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय की वरिष्ठ कार्यकर्ती अरुंधति धुरु को भी ढूंढ रहा था, जिनका इस प्रतिनिधिमंडल के साथ जाने का कोई कार्यक्रम नहीं था।
श्री खान ने बताया कि जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय का प्रतिनिधिमंडल कश्मीर में सिर्फ दो दिनों के लिए गया था। उसका कोई प्रदर्शन या बैठक करने का कोई कार्यक्रम नहीं था, वह तो सिर्फ यह देखने गया था कि प्रतिबन्ध के बीच लोगों को क्या परेशानियां उठानी पड़ रही हैं। केंद्रीय सरकार या प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के अमरीका में कई भाषाओ में कहने के बावजूद कि सब ठीक है, जाहिर है कि जम्मू व कश्मीर में धारा 370 व 5ए ख़त्म करने व राज्य को दो भागों में विभाजित कर उन्हें केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देने के दो महीने बाद भी स्थिति सामान्य नहीं है, अन्यथा वहां सेना लगाने की जरूरत क्यों पड़ती? या जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के प्रतिनिधिमंडल को रोकने की जरूरत क्यों पड़ी?
डॉ. संदीप पांडेय ने कहा कि सरकार विद्यालय खोलना चाहती है किन्तु लोग अपने बच्चों को यातायात में अनिश्चितता के कारण भेजने को तैयार नहीं है, फिर कई विद्यालयों में तो अर्ध सैनिक बल रुके हुए हैं। बाजार बंद हैं। दुकानें सुबह 6 से 9 बजे खुलती हैं, पेट्रोल पंप भी कुछ समय के लिए ही खुलते हैं, सेब का बाजार प्रभावित हुआ है। भले ही सरकार खरीदने की बात कर रही है, लेकिन पारम्परिक उत्पादक व खरीदार के रिश्ते ख़तम हो गए हैं। सरकार कह रही है कि कर्फ्यू नहीं है किन्तु धारा 144 तो लगी है और लोगों को आने जाने की छूट नहीं है। राज्य सरकार के कश्मीरी अफसरों की भी केन्द्रीय सुरक्षा बल तलाशी लेते हैं। उन सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं, जो लोगों को गोलबंद कर प्रदर्शन कर सकते थे, को भारत की अन्य जेलों, श्रीनगर में कहीं या उनके घरों में ही बंद कर दिया गया है। ज्यादातर इस तरह की रोक बिना किसी लिखित आदेश के है।
उन्होंने कहा कि कश्मीर पर जब प्रतिबन्ध हटेगा तो इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि कहाँ कहाँ सुरक्षा बालों ने मानवाधिकार उल्लंघन किया है। अभी तो वहां होने वाले प्रदर्शनों व उनके खिलाफ सुरक्षा बलों की कार्यवाही की ख़बरों पर पूरी तरह से रोक लगी हुई है।
मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त डॉ. संदीप पांडेय ने कहा कि जम्मू व कश्मीर में लोकतंत्र को बहाल करने के लिए ब्लॉक पंचायत के चुनाव करने की बात हो रही है, किन्तु पंचायत चुनाव तो संविधान की अनुसूची 7 के मुताबिक राज्य का विषय है। राज्य में पिछले 14 महीनों से कोई सरकार ही नहीं है। केंद्र सरकार यदि वाकई में जम्मू व कश्मीर में लोकतंत्र बहाल करना चाहती है तो उसे पहले राज्य के चुनाव करा वहां विधान सभा कायम करनी चाहिए और सबसे पहले उसके द्वारा जम्मू व कश्मीर में जो निर्णय लिया गया है उसे पहले वहां की विधान सभा से मंज़ूर कराये तभी उसकी कोई मान्यता होगी अन्यथा अभी जिस तरीके से निर्णय लिया गया है वह पूरी तरीके से लोकतंत्र विरोधी है। यदि इस प्रकार का निर्णय भारत के किसी और राज्य के लिए लिया गया होता तो क्या लोग उसे स्वीकार करते?
डॉ. पांडेय ने कहा कि केंद्र सरकार को जम्मू व कश्मीर के लोगों पर भरोसा करना होगा। सबसे पहले वहां संचार माध्यमों की बहाली होनी चाहिए। गृह मंत्री कहते हैं कि सरकार के निर्णय से जम्मू व कश्मीर का विकास होगा। फिलहाल तो जो कम्पनियाँ वहाँ हैं वे भी अपना बोरिया बिस्तर बांध वापस जा रही हैं। इन प्रतिबंधों के बीच कौन वहां पूंजी निवेश करना चाहेगा? भारतीय रेलवे ने कहा है कि जम्मू व कश्मीर पर लगे प्रतिबंधों के कारण उसका रूपए दो करोड़ का नुकसान हुआ है।
उन्होंने कहा कि जम्मू व कश्मीर में सिर्फ एक स्थानीय राज्य सरकार ही स्थिति को सामान्य कर सकती है, किन्तु भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार ने वहां के स्थानीय दलों की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर वहां की राजनीति का बहुत नुकसान किया है। क्या सिर्फ जम्मू व कश्मीर में ही राजनेताओं ने भ्रष्टाचार व खानदानी राजनीति को बढ़ावा दिया है? इससे वहां पैदा हुए राजनीतिक खालीपन को वो कैसे भरेगी?
डॉ. पांडेय ने कहा कि जम्मू व कश्मीर के अंदरूनी इलाकों से सेना को हटा कर उसे सीमा की सुरक्षा में लगाना चाहिए, ताकि उस पार से कोई अवांछित व्यक्ति या सामग्री न आये। अंदरूनी कानून व व्यवस्था स्थानीय राज्य सरकार को जम्मू व कश्मीर पुलिस के माध्यम से सम्भालनी चाहिए। जम्मू व कश्मीर के भविष्य का फैसला वहां की राज्य सरकार को ही वहां के लोगों के प्रतिनिधि के रूप में करने का अधिकार है, जितनी जल्दी भारत सरकार यह बात समझेगी उतनी ही जल्दी स्थिति सामान्य की जा सकती है, नहीं तो केंद्र सरकार बिना जम्मू व कश्मीर के लोगों को विश्वास में लिए कैसे लोकतंत्र को बहाल करने की सोच रही है? आखिर कितने दिनों सेना व राज्यपाल के बल पर भारत सरकार जम्मू व कश्मीर पर राज्य करेगी? क्या जबरदस्ती किसी की सोच बदली जा सकती है, बल्कि उसका उल्टा ही परिणाम होगा।
एक विज्ञप्ति में यह जानकारी देते हुए खुदाई खिदमतगार के फैसल खान ने बताया कि जिला अधिकारी बड़गाम के एक आदेश, जो प्रफुल्ला समांतरा, फैसल खान व संदीप पांडेय के नाम अलग-अलग निकला गया था, में कहा गया है कि ये कार्यकर्ता जम्मू व कश्मीर में अनुच्छेद 370 ख़तम किया जाने के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे जिससे कानून व व्यवस्था बिगड़ने का खतरा है, इसलिए अगले आदेश तक इन्हें श्रीनगर हवाई अड्डे से बाहर निकलने की छूट नहीं है। जिला प्रशासन जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय की वरिष्ठ कार्यकर्ती अरुंधति धुरु को भी ढूंढ रहा था, जिनका इस प्रतिनिधिमंडल के साथ जाने का कोई कार्यक्रम नहीं था।
श्री खान ने बताया कि जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय का प्रतिनिधिमंडल कश्मीर में सिर्फ दो दिनों के लिए गया था। उसका कोई प्रदर्शन या बैठक करने का कोई कार्यक्रम नहीं था, वह तो सिर्फ यह देखने गया था कि प्रतिबन्ध के बीच लोगों को क्या परेशानियां उठानी पड़ रही हैं। केंद्रीय सरकार या प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के अमरीका में कई भाषाओ में कहने के बावजूद कि सब ठीक है, जाहिर है कि जम्मू व कश्मीर में धारा 370 व 5ए ख़त्म करने व राज्य को दो भागों में विभाजित कर उन्हें केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देने के दो महीने बाद भी स्थिति सामान्य नहीं है, अन्यथा वहां सेना लगाने की जरूरत क्यों पड़ती? या जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के प्रतिनिधिमंडल को रोकने की जरूरत क्यों पड़ी?
डॉ. संदीप पांडेय ने कहा कि सरकार विद्यालय खोलना चाहती है किन्तु लोग अपने बच्चों को यातायात में अनिश्चितता के कारण भेजने को तैयार नहीं है, फिर कई विद्यालयों में तो अर्ध सैनिक बल रुके हुए हैं। बाजार बंद हैं। दुकानें सुबह 6 से 9 बजे खुलती हैं, पेट्रोल पंप भी कुछ समय के लिए ही खुलते हैं, सेब का बाजार प्रभावित हुआ है। भले ही सरकार खरीदने की बात कर रही है, लेकिन पारम्परिक उत्पादक व खरीदार के रिश्ते ख़तम हो गए हैं। सरकार कह रही है कि कर्फ्यू नहीं है किन्तु धारा 144 तो लगी है और लोगों को आने जाने की छूट नहीं है। राज्य सरकार के कश्मीरी अफसरों की भी केन्द्रीय सुरक्षा बल तलाशी लेते हैं। उन सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं, जो लोगों को गोलबंद कर प्रदर्शन कर सकते थे, को भारत की अन्य जेलों, श्रीनगर में कहीं या उनके घरों में ही बंद कर दिया गया है। ज्यादातर इस तरह की रोक बिना किसी लिखित आदेश के है।
उन्होंने कहा कि कश्मीर पर जब प्रतिबन्ध हटेगा तो इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि कहाँ कहाँ सुरक्षा बालों ने मानवाधिकार उल्लंघन किया है। अभी तो वहां होने वाले प्रदर्शनों व उनके खिलाफ सुरक्षा बलों की कार्यवाही की ख़बरों पर पूरी तरह से रोक लगी हुई है।
मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त डॉ. संदीप पांडेय ने कहा कि जम्मू व कश्मीर में लोकतंत्र को बहाल करने के लिए ब्लॉक पंचायत के चुनाव करने की बात हो रही है, किन्तु पंचायत चुनाव तो संविधान की अनुसूची 7 के मुताबिक राज्य का विषय है। राज्य में पिछले 14 महीनों से कोई सरकार ही नहीं है। केंद्र सरकार यदि वाकई में जम्मू व कश्मीर में लोकतंत्र बहाल करना चाहती है तो उसे पहले राज्य के चुनाव करा वहां विधान सभा कायम करनी चाहिए और सबसे पहले उसके द्वारा जम्मू व कश्मीर में जो निर्णय लिया गया है उसे पहले वहां की विधान सभा से मंज़ूर कराये तभी उसकी कोई मान्यता होगी अन्यथा अभी जिस तरीके से निर्णय लिया गया है वह पूरी तरीके से लोकतंत्र विरोधी है। यदि इस प्रकार का निर्णय भारत के किसी और राज्य के लिए लिया गया होता तो क्या लोग उसे स्वीकार करते?
डॉ. पांडेय ने कहा कि केंद्र सरकार को जम्मू व कश्मीर के लोगों पर भरोसा करना होगा। सबसे पहले वहां संचार माध्यमों की बहाली होनी चाहिए। गृह मंत्री कहते हैं कि सरकार के निर्णय से जम्मू व कश्मीर का विकास होगा। फिलहाल तो जो कम्पनियाँ वहाँ हैं वे भी अपना बोरिया बिस्तर बांध वापस जा रही हैं। इन प्रतिबंधों के बीच कौन वहां पूंजी निवेश करना चाहेगा? भारतीय रेलवे ने कहा है कि जम्मू व कश्मीर पर लगे प्रतिबंधों के कारण उसका रूपए दो करोड़ का नुकसान हुआ है।
उन्होंने कहा कि जम्मू व कश्मीर में सिर्फ एक स्थानीय राज्य सरकार ही स्थिति को सामान्य कर सकती है, किन्तु भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार ने वहां के स्थानीय दलों की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर वहां की राजनीति का बहुत नुकसान किया है। क्या सिर्फ जम्मू व कश्मीर में ही राजनेताओं ने भ्रष्टाचार व खानदानी राजनीति को बढ़ावा दिया है? इससे वहां पैदा हुए राजनीतिक खालीपन को वो कैसे भरेगी?
डॉ. पांडेय ने कहा कि जम्मू व कश्मीर के अंदरूनी इलाकों से सेना को हटा कर उसे सीमा की सुरक्षा में लगाना चाहिए, ताकि उस पार से कोई अवांछित व्यक्ति या सामग्री न आये। अंदरूनी कानून व व्यवस्था स्थानीय राज्य सरकार को जम्मू व कश्मीर पुलिस के माध्यम से सम्भालनी चाहिए। जम्मू व कश्मीर के भविष्य का फैसला वहां की राज्य सरकार को ही वहां के लोगों के प्रतिनिधि के रूप में करने का अधिकार है, जितनी जल्दी भारत सरकार यह बात समझेगी उतनी ही जल्दी स्थिति सामान्य की जा सकती है, नहीं तो केंद्र सरकार बिना जम्मू व कश्मीर के लोगों को विश्वास में लिए कैसे लोकतंत्र को बहाल करने की सोच रही है? आखिर कितने दिनों सेना व राज्यपाल के बल पर भारत सरकार जम्मू व कश्मीर पर राज्य करेगी? क्या जबरदस्ती किसी की सोच बदली जा सकती है, बल्कि उसका उल्टा ही परिणाम होगा।