आप ने पंजाब में 117 सीटों वाली विधानसभा में 92 सीट हासिल करते हुए ऐतिहासिक जनादेश हासिल किया. पिछले विधानसभा चुनावों में 77 की विशाल संख्या की तुलना में कांग्रेस 2022 में केवल 18 सीटें जीत सकी.
आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली और अब पंजाब में आप का लगातार प्रदर्शन राजनीति के एक नए युग का प्रतीक है. पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) की शानदार जीत ने देश में बदलते राजनीतिक परिदृश्य की सैकड़ों संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं.
भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ताओं वाले एक छोटे से संगठन से शुरू होकर, AAP अब राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस की जगह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मुख्य प्रतिद्वंदी बनने की उम्मीद कर रही है. पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न चुनावों में पार्टी द्वारा हासिल की गई संख्या उसी की ओर इशारा करती है. पिछले विधानसभा चुनावों में 77 की विशाल संख्या की तुलना में मुख्य प्रतिद्वंद्वी और मौजूदा कांग्रेस 2022 में केवल 18 सीटें जीत सकी.
हालांकि पंजाब विधानसभा की प्रमुख हार पिछले चुनावों की तुलना में 59 सीटों के नुकसान के साथ कांग्रेस थी, यह शिरोमणि अकाली दल (शिअद) थी जो 2015 से लगातार AAP से अपनी सीटें हार गई थी. 2022 में, AAP ने फिर से SAD से 10 सीटें छीन लीं और उन्हें विधानसभा में मात्र 3 सीटों के साथ छोड़ दिया. 2017 में शिअद को 15 सीटें मिली थीं. उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी में इंडिया अगेंस्ट करप्शन के आंदोलन के ठीक बाद 2013 में अपने राजनीतिक कार्यकाल की शुरुआत की थी. उसी वर्ष, AAP ने 70 सीटों वाली विधानसभा में केवल 28 सीटों पर जीत हासिल करते हुए दिल्ली में अल्पसंख्यक सरकार बनाने के लिए दिल्ली का चुनाव लड़ा. लोकपाल बिल पास नहीं होने पर मुख्यमंत्री केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया. पार्टी ने राष्ट्रीय राजधानी में शानदार जीत के लिए 2015 में फिर से चुनाव लड़ा. आप ने विधानसभा चुनाव में 67 सीटें जीती थीं, जबकि बीजेपी को सिर्फ 3 सीटें मिली थीं.
2020 में, उन्होंने फिर से 62 सीटों के प्रचंड बहुमत के साथ दिल्ली विधानसभा का चुनाव जीता. इस बीच, भाजपा अपनी सीटों को 8 सीटों तक बढ़ाने में सफल रही. दिल्ली और अब पंजाब में आप का लगातार प्रदर्शन राजनीति के नए युग का प्रतीक है. आंकड़े बताते हैं, पार्टी ने न केवल कई जगहों पर कांग्रेस की जगह ली है बल्कि वह भाजपा के विरोध के रूप में उभरी है. पंजाब और दिल्ली में मतदान का पैटर्न इस प्रवृत्ति की पुष्टि करता है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टियों का वोट शेयर दिल्ली विधानसभा में आप का बढ़ता वोट शेयर इस तथ्य को स्पष्ट रूप से बताता है कि पार्टी भगवा पार्टी के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभर रही है. आप 2013 में अपने वोट शेयर को 29.7 प्रतिशत से बढ़ाकर 2020 के विधानसभा चुनावों में 55 प्रतिशत करने में सफल रही है.
इस बीच, राष्ट्रीय पार्टी अभी भी 30 प्रतिशत के दायरे में संघर्ष कर रही हैं. उन्हें 2013 में 33.3 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि 2020 के चुनावों में यह बढ़कर 38.7 प्रतिशत हो गया था. लोकसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी का रुख केंद्रित होता दिख रहा है. यह आंकड़ों से स्पष्ट है, खासकर पंजाब और दिल्ली से. पार्टी ने 2014 में सभी सीटों पर चुनाव लड़ा और 4 सीटें (सभी पंजाब से) और लगभग 2 प्रतिशत वोट शेयर जीतने में सफल रही. हालांकि, 2019 में, उसने केवल 35 सीटों (पंजाब क्षेत्र में) पर चुनाव लड़ा और एक सीट जीतकर आधा प्रतिशत वोट हासिल किया. एक राष्ट्रीय पार्टी बनने की ओर अग्रसर पंजाब में जीत के साथ, आप इस समय दो राज्यों में सत्ता में रहने वाली एकमात्र क्षेत्रीय पार्टी बन गई है.
पंजाब में शानदार जीत के अलावा, उसने गोवा में भी 2 सीटों के साथ अपना खाता खोला है. इसके अलावा, गोवा में 6 प्रतिशत का वोट शेयर कुछ ऐसा है जो राज्य में पार्टी की स्थिति को दर्शाता है. विभिन्न राज्यों में आप का वोट शेयर (%) राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने के लिए पार्टी को चार या अधिक राज्यों में कम से कम 6 प्रतिशत वोट शेयर की आवश्यकता होगी. AAP पार्टी अब तक तीन राज्यों में उपलब्धि हासिल करने में कामयाब रही है. दिल्ली (55 प्रतिशत) के अलावा, पंजाब (42 प्रतिशत) और गोवा (6.7 प्रतिशत) में अब उसका छह प्रतिशत से अधिक वोट शेयर है. पार्टी के पास साल के अंत तक सूची में चौथे राज्य को जोड़ने का मौका है जब गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा मतदान के लिए जाएंगे. पार्टी को लोकसभा में भी कम से कम चार सीटें जीतनी होंगी. वर्तमान में उनके पास संगरूर की केवल एक सीट भगवंत मान है. हालांकि पिछले लोकसभा चुनावों में उनका प्रदर्शन उतना प्रभावशाली नहीं रहा है, लेकिन पंजाब में जीत आप के लिए परिदृश्य बदल सकती है. इस प्रकार, उनके लिए राष्ट्रीय पार्टी बनने की दिशा में कदम बढ़ाना आसान हो गया है.
आम आदमी पार्टी का उदय भारतीय राजनीति में अभूतपूर्व घटना थी. इस पार्टी का उदय लोगों की आशा, उनका राजनीति से अपेक्षा बंद और पारंपरिक राजनीति तथा भ्रष्ट अपने हितों में मग्न राजनेताओं के खिलाफ अभिव्यक्ति, जिन राजनेताओं ने विश्वास खोया उनसे पक जाना ऐसे कई चीजों से इस पार्टी का जन्म हुआ. देश में लोक कल्याणकारी मुद्दों का भ्रष्ट राजनेताओं के लिस्ट से गायब होता चला गया. ऐसी स्थिति में लोग उनसे दूर होते चले गए इसीलिए लोग आप पार्टी के नजदीक आते गए. आम आदमी पार्टी के कामों नें आम लोगों को प्रेषित किया है. हालाँकि आम आदमी पार्टी कोई वामपंथी पार्टी नहीं है लेकिन जिन मुद्दों की वो बात करते हैं जैसे मुक्त शिक्षा, मुफ्त स्वास्थ्य व्यवस्था, मुफ्त बिजली, सादगी भरी जिंदगी और पारदर्शी व्यवहार यह सारे यह वामपंथी राजनीति के लक्षण है. जिसको धरातल पर पूरा कर आम आदमी पार्टी ने बखूबी अपने राजनीतिक संस्कृति को स्थापित किया है और वही लोगों को शायद भाता है.
वामपंथी संगठनों को आम आदमी पार्टी से बहुत सी चीजें सीखने लायक है जैसे कि जमीनी स्तर पर आम लोगों से चर्चा विमर्श करने पर जोर देना, नागरिक समस्याओं का निराकरण करने की निर्णय प्रक्रिया में आम लोगों को शामिल करना और स्थानिक समस्याओं पर मोहल्ला कमेटियों की हिस्सेदारी से सार्वमत सदृश्य मतदान कराने की शैली. केरल या फिर त्रिपुरा जैसे राज्य में यह सारी बातें वामपंथी राजनीति करती आ रही है. जिस तरीके से भ्रष्टाचार के मुद्दे से शुरू हुआ आम आदमी पार्टी का आंदोलन से लेकर आज तक मीडिया ने इसको जोर शोर से लोगों के सामने पेश किया वैसे वामपंथी मॉडल को पेश नहीं किया गया.
आम आदमी पार्टी का दो स्तर पर जनाधार है एक तरफ मजदूर स्वयं उद्योग पर अपनी गुजारा करने वाले जिनमें से बहुत से गरीबी से त्रस्त लेकिन उसी समय अच्छे जीवन की कामना करने वाले लोग और दूसरी तरफ मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग के लोग जिसमें प्रस्थापित उद्योगपति भी शामिल हैं. ‘हम किसी भी राजनीतिक सिद्धांत पर नहीं चलते’ ऐसा दावा करना उनके लिए फायदेमंद साबित होता है. क्योंकि ऐसा विचार दूसरे प्रकार के वर्ग को भाता है. क्योंकि उनका झुकाव विचार प्रणाली पश्चात (post ideological) सिद्धांत की तरफ है उन्हें ना वामपंथी विचारों में आस्था है और ना ही किसी आदर्शवाद का आकर्षण. वह कोई धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ या धार्मिक कट्टरता और फासीवाद के खिलाफ है ऐसी भी बात नहीं है. आम आदमी पार्टी के केजरीवाल की कार्यप्रणाली से प्रभावित यह वर्ग है.
आम आदमी पार्टी साल दर साल बदलती हुई राजनीति में अपने आप को ढ़ालती गई. बीजेपी की राजनीतिक रणनीति को एक सीमा में उन्होंने सफलता पर जवाब दिया है. आने वाले दौर में एक व्यापक परिपेक्ष में वह बीजेपी की रणनीति को कैसे भेद पाती है यह देखना दिलचस्प होगा. बीजेपी के हार्ड हिंदुत्व तथा मुस्लिम द्वेष की पॉलिटिक्स को उन्होंने सॉफ्ट हिंदुत्व के साथ सफलतापूर्वक जवाब देते हुए मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोपों से अपने आप को बचाया है. यह करते हुए इन्होंने चुनावों में राजनैतिक बहस को लोगों के जिंदगी के असल मुद्दों पर लाने में सफलता पाई है. जबकि कांग्रेस बीजेपी के रणनीति को बिना समझे उसके बनाए चक्रव्यूह में धस्ती चली गई.
2012 में अन्ना हजारे की अगुवाई में चले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से दो पार्टियों ने अपना फायदा उठाया है. कांग्रेस को बदनाम करके और अपने आप को मीडिया के प्रचार द्वारा स्वच्छ पारदर्शी बताकर भाजपा का नेशनल पॉलिटिक्स में आना और दूसरा आम आदमी पार्टी ने नए राजनीतिक संस्कृति के साथ अपने दिल्ली और पंजाब में पांव जमाना.
आम आदमी पार्टी ने किताबी और सैद्धांतिक राजनीति से अपना पल्ला झाड़ कर वास्तविक राजनीति से अपने आप को जोड़ते हुए बीजेपी ने एक नेता और उसके साथ एक सहायक नेता का जो नैरेटिव सेट किया था उसमें आप पार्टी ने अपने आप को ढ़ालते हुए नरेंद्र मोदी के तर्ज पर केजरीवाल को और अमित शाह जैसे सहायक नेता के तौर पर मनीष सिसोदिया को पेश किया.
राजनीतिक विश्लेषण यह कोई भविष्य बताने वाला शास्त्र नहीं है. आम आदमी पार्टी के आगे के कदम क्या होंगे इसका सिर्फ कयास लगाया जा सकता है लेकिन आत्मविश्वास के साथ कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि वह किस दिशा में जाएगा. लेकिन वर्तमान हालात यह बयान करता है कि अन्य पार्टियों द्वारा आम आदमी पार्टी को भाजपा की “बी टीम” बताया जाना उन पर ज्यादती होगी.
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आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली और अब पंजाब में आप का लगातार प्रदर्शन राजनीति के एक नए युग का प्रतीक है. पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) की शानदार जीत ने देश में बदलते राजनीतिक परिदृश्य की सैकड़ों संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं.
भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ताओं वाले एक छोटे से संगठन से शुरू होकर, AAP अब राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस की जगह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मुख्य प्रतिद्वंदी बनने की उम्मीद कर रही है. पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न चुनावों में पार्टी द्वारा हासिल की गई संख्या उसी की ओर इशारा करती है. पिछले विधानसभा चुनावों में 77 की विशाल संख्या की तुलना में मुख्य प्रतिद्वंद्वी और मौजूदा कांग्रेस 2022 में केवल 18 सीटें जीत सकी.
हालांकि पंजाब विधानसभा की प्रमुख हार पिछले चुनावों की तुलना में 59 सीटों के नुकसान के साथ कांग्रेस थी, यह शिरोमणि अकाली दल (शिअद) थी जो 2015 से लगातार AAP से अपनी सीटें हार गई थी. 2022 में, AAP ने फिर से SAD से 10 सीटें छीन लीं और उन्हें विधानसभा में मात्र 3 सीटों के साथ छोड़ दिया. 2017 में शिअद को 15 सीटें मिली थीं. उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी में इंडिया अगेंस्ट करप्शन के आंदोलन के ठीक बाद 2013 में अपने राजनीतिक कार्यकाल की शुरुआत की थी. उसी वर्ष, AAP ने 70 सीटों वाली विधानसभा में केवल 28 सीटों पर जीत हासिल करते हुए दिल्ली में अल्पसंख्यक सरकार बनाने के लिए दिल्ली का चुनाव लड़ा. लोकपाल बिल पास नहीं होने पर मुख्यमंत्री केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया. पार्टी ने राष्ट्रीय राजधानी में शानदार जीत के लिए 2015 में फिर से चुनाव लड़ा. आप ने विधानसभा चुनाव में 67 सीटें जीती थीं, जबकि बीजेपी को सिर्फ 3 सीटें मिली थीं.
2020 में, उन्होंने फिर से 62 सीटों के प्रचंड बहुमत के साथ दिल्ली विधानसभा का चुनाव जीता. इस बीच, भाजपा अपनी सीटों को 8 सीटों तक बढ़ाने में सफल रही. दिल्ली और अब पंजाब में आप का लगातार प्रदर्शन राजनीति के नए युग का प्रतीक है. आंकड़े बताते हैं, पार्टी ने न केवल कई जगहों पर कांग्रेस की जगह ली है बल्कि वह भाजपा के विरोध के रूप में उभरी है. पंजाब और दिल्ली में मतदान का पैटर्न इस प्रवृत्ति की पुष्टि करता है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टियों का वोट शेयर दिल्ली विधानसभा में आप का बढ़ता वोट शेयर इस तथ्य को स्पष्ट रूप से बताता है कि पार्टी भगवा पार्टी के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभर रही है. आप 2013 में अपने वोट शेयर को 29.7 प्रतिशत से बढ़ाकर 2020 के विधानसभा चुनावों में 55 प्रतिशत करने में सफल रही है.
इस बीच, राष्ट्रीय पार्टी अभी भी 30 प्रतिशत के दायरे में संघर्ष कर रही हैं. उन्हें 2013 में 33.3 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि 2020 के चुनावों में यह बढ़कर 38.7 प्रतिशत हो गया था. लोकसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी का रुख केंद्रित होता दिख रहा है. यह आंकड़ों से स्पष्ट है, खासकर पंजाब और दिल्ली से. पार्टी ने 2014 में सभी सीटों पर चुनाव लड़ा और 4 सीटें (सभी पंजाब से) और लगभग 2 प्रतिशत वोट शेयर जीतने में सफल रही. हालांकि, 2019 में, उसने केवल 35 सीटों (पंजाब क्षेत्र में) पर चुनाव लड़ा और एक सीट जीतकर आधा प्रतिशत वोट हासिल किया. एक राष्ट्रीय पार्टी बनने की ओर अग्रसर पंजाब में जीत के साथ, आप इस समय दो राज्यों में सत्ता में रहने वाली एकमात्र क्षेत्रीय पार्टी बन गई है.
पंजाब में शानदार जीत के अलावा, उसने गोवा में भी 2 सीटों के साथ अपना खाता खोला है. इसके अलावा, गोवा में 6 प्रतिशत का वोट शेयर कुछ ऐसा है जो राज्य में पार्टी की स्थिति को दर्शाता है. विभिन्न राज्यों में आप का वोट शेयर (%) राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने के लिए पार्टी को चार या अधिक राज्यों में कम से कम 6 प्रतिशत वोट शेयर की आवश्यकता होगी. AAP पार्टी अब तक तीन राज्यों में उपलब्धि हासिल करने में कामयाब रही है. दिल्ली (55 प्रतिशत) के अलावा, पंजाब (42 प्रतिशत) और गोवा (6.7 प्रतिशत) में अब उसका छह प्रतिशत से अधिक वोट शेयर है. पार्टी के पास साल के अंत तक सूची में चौथे राज्य को जोड़ने का मौका है जब गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा मतदान के लिए जाएंगे. पार्टी को लोकसभा में भी कम से कम चार सीटें जीतनी होंगी. वर्तमान में उनके पास संगरूर की केवल एक सीट भगवंत मान है. हालांकि पिछले लोकसभा चुनावों में उनका प्रदर्शन उतना प्रभावशाली नहीं रहा है, लेकिन पंजाब में जीत आप के लिए परिदृश्य बदल सकती है. इस प्रकार, उनके लिए राष्ट्रीय पार्टी बनने की दिशा में कदम बढ़ाना आसान हो गया है.
आम आदमी पार्टी का उदय भारतीय राजनीति में अभूतपूर्व घटना थी. इस पार्टी का उदय लोगों की आशा, उनका राजनीति से अपेक्षा बंद और पारंपरिक राजनीति तथा भ्रष्ट अपने हितों में मग्न राजनेताओं के खिलाफ अभिव्यक्ति, जिन राजनेताओं ने विश्वास खोया उनसे पक जाना ऐसे कई चीजों से इस पार्टी का जन्म हुआ. देश में लोक कल्याणकारी मुद्दों का भ्रष्ट राजनेताओं के लिस्ट से गायब होता चला गया. ऐसी स्थिति में लोग उनसे दूर होते चले गए इसीलिए लोग आप पार्टी के नजदीक आते गए. आम आदमी पार्टी के कामों नें आम लोगों को प्रेषित किया है. हालाँकि आम आदमी पार्टी कोई वामपंथी पार्टी नहीं है लेकिन जिन मुद्दों की वो बात करते हैं जैसे मुक्त शिक्षा, मुफ्त स्वास्थ्य व्यवस्था, मुफ्त बिजली, सादगी भरी जिंदगी और पारदर्शी व्यवहार यह सारे यह वामपंथी राजनीति के लक्षण है. जिसको धरातल पर पूरा कर आम आदमी पार्टी ने बखूबी अपने राजनीतिक संस्कृति को स्थापित किया है और वही लोगों को शायद भाता है.
वामपंथी संगठनों को आम आदमी पार्टी से बहुत सी चीजें सीखने लायक है जैसे कि जमीनी स्तर पर आम लोगों से चर्चा विमर्श करने पर जोर देना, नागरिक समस्याओं का निराकरण करने की निर्णय प्रक्रिया में आम लोगों को शामिल करना और स्थानिक समस्याओं पर मोहल्ला कमेटियों की हिस्सेदारी से सार्वमत सदृश्य मतदान कराने की शैली. केरल या फिर त्रिपुरा जैसे राज्य में यह सारी बातें वामपंथी राजनीति करती आ रही है. जिस तरीके से भ्रष्टाचार के मुद्दे से शुरू हुआ आम आदमी पार्टी का आंदोलन से लेकर आज तक मीडिया ने इसको जोर शोर से लोगों के सामने पेश किया वैसे वामपंथी मॉडल को पेश नहीं किया गया.
आम आदमी पार्टी का दो स्तर पर जनाधार है एक तरफ मजदूर स्वयं उद्योग पर अपनी गुजारा करने वाले जिनमें से बहुत से गरीबी से त्रस्त लेकिन उसी समय अच्छे जीवन की कामना करने वाले लोग और दूसरी तरफ मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग के लोग जिसमें प्रस्थापित उद्योगपति भी शामिल हैं. ‘हम किसी भी राजनीतिक सिद्धांत पर नहीं चलते’ ऐसा दावा करना उनके लिए फायदेमंद साबित होता है. क्योंकि ऐसा विचार दूसरे प्रकार के वर्ग को भाता है. क्योंकि उनका झुकाव विचार प्रणाली पश्चात (post ideological) सिद्धांत की तरफ है उन्हें ना वामपंथी विचारों में आस्था है और ना ही किसी आदर्शवाद का आकर्षण. वह कोई धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ या धार्मिक कट्टरता और फासीवाद के खिलाफ है ऐसी भी बात नहीं है. आम आदमी पार्टी के केजरीवाल की कार्यप्रणाली से प्रभावित यह वर्ग है.
आम आदमी पार्टी साल दर साल बदलती हुई राजनीति में अपने आप को ढ़ालती गई. बीजेपी की राजनीतिक रणनीति को एक सीमा में उन्होंने सफलता पर जवाब दिया है. आने वाले दौर में एक व्यापक परिपेक्ष में वह बीजेपी की रणनीति को कैसे भेद पाती है यह देखना दिलचस्प होगा. बीजेपी के हार्ड हिंदुत्व तथा मुस्लिम द्वेष की पॉलिटिक्स को उन्होंने सॉफ्ट हिंदुत्व के साथ सफलतापूर्वक जवाब देते हुए मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोपों से अपने आप को बचाया है. यह करते हुए इन्होंने चुनावों में राजनैतिक बहस को लोगों के जिंदगी के असल मुद्दों पर लाने में सफलता पाई है. जबकि कांग्रेस बीजेपी के रणनीति को बिना समझे उसके बनाए चक्रव्यूह में धस्ती चली गई.
2012 में अन्ना हजारे की अगुवाई में चले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से दो पार्टियों ने अपना फायदा उठाया है. कांग्रेस को बदनाम करके और अपने आप को मीडिया के प्रचार द्वारा स्वच्छ पारदर्शी बताकर भाजपा का नेशनल पॉलिटिक्स में आना और दूसरा आम आदमी पार्टी ने नए राजनीतिक संस्कृति के साथ अपने दिल्ली और पंजाब में पांव जमाना.
आम आदमी पार्टी ने किताबी और सैद्धांतिक राजनीति से अपना पल्ला झाड़ कर वास्तविक राजनीति से अपने आप को जोड़ते हुए बीजेपी ने एक नेता और उसके साथ एक सहायक नेता का जो नैरेटिव सेट किया था उसमें आप पार्टी ने अपने आप को ढ़ालते हुए नरेंद्र मोदी के तर्ज पर केजरीवाल को और अमित शाह जैसे सहायक नेता के तौर पर मनीष सिसोदिया को पेश किया.
राजनीतिक विश्लेषण यह कोई भविष्य बताने वाला शास्त्र नहीं है. आम आदमी पार्टी के आगे के कदम क्या होंगे इसका सिर्फ कयास लगाया जा सकता है लेकिन आत्मविश्वास के साथ कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि वह किस दिशा में जाएगा. लेकिन वर्तमान हालात यह बयान करता है कि अन्य पार्टियों द्वारा आम आदमी पार्टी को भाजपा की “बी टीम” बताया जाना उन पर ज्यादती होगी.
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