आज धनतेरस है

Written by Amir Rizvi | Published on: October 17, 2017
गोइठा बनाने के लिए घूम घूम कर गोबर चुनने के बाद पिया अक्सर मुखिया जी के घर के बाहर थोड़ी देर खड़ी हो जाती थी। उनकी खिड़की से टीवी दिखाई देता था।


Image Courtesy: Amir Rizvi

"आजतक" न्यूज़ चैनल पर "धर्म" कार्यक्रम चल रहा था। पंडित जी ने कहा कि आज के दिन कीमती धातु की बनी हुई वस्तु लायें तो लक्ष्मी प्रसन्न हो जाती हैं। 

आपके घर में सुख शांति समृद्धि धन की कोई कमी नहीं रह जाएगी।

आज धनतेरस का दिन है।

पिया को आज पता चल गया था कि उसकी गरीबी का कारण क्या है। घर में बच्चे भूखे क्यों हैं।

पिया भागी भागी घर पहुंची। उसका पति बुधिया आज भी निराश लौटा था, नरेगा में मजदूरी के लिए उसे जॉब कार्ड नंबर नहीं मिला था। प्रधान बाबू तीन महीने से वादा किये हुए हैं। कहा था दिवाली से पहले वो नरेगा में मजदूरी कर सकेगा, परन्तु आज भी निराश लौटा।

पिया ने बुधिया से कहा कि लक्ष्मी का प्रकोप है, धनतेरस के बिना उनकी गरीबी जाएगी कैसे?

आज किसी भी कीमत पर, कीमती धातु की कोई न कोई वस्तु लानी ही होगी। 


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गोइठा बेच कर डेढ़ सौ रूपए पिया ने जमा किये थे। बुधिया डेढ़ सौ रूपए लेकर बाज़ार गया, सोने चांदी की दुकानों पर भीड़ लगी हुई थी। मगर डेढ़ सौ रूपए में क्या मिलता? इसलिए, बुधिया कढ़ाई लेने चला गया। मगर सबसे सस्ती कढ़ाई दो सौ की थी। 

कढ़ाई से बुधिया को याद आया। तीन साल पहले पूरा परिवार मुखिया जी के यहाँ शादी के बर्तन धोने गया था, वहीँ आखरी बार दाल खाई थी।

वैसे, जिस दिन पैसे होते हैं उस दिन पूरा परिवार भात और भात से निकली हुई माढ़ में नमक डाल कर खाने का आदी है। 

बुधिया ने सोचा क्यों न त्यौहार में दाल खाई जाय, बस अस्सी रुपये की एक किलो दाल खरीद ली। 

कीमती धातु की दुकानों में जितना मायूस हुआ था, दुकानदारों ने जितना मज़ाक उड़ाया था, उन सब का बदला वो बनिए की दुकान में शान से दाल खरीद कर निकाल रहा था। बिना देखे सौ का पत्ता दिया और बीस रूपए बिना गिने पीछे की पॉकेट में डाल कर प्लास्टिक की थैली में दाल दिखाते हुए वापस चल दिया। पैसे जब रख रहा था तो पॉकेट में कुछ और रुपये होने का शक हुआ, बुधिया ने पैसे गिने पूरे सत्तर रुपये बचे थे, और साथ ही डाक्टर साहब का एक पर्चा भी मिला, पिया के पैर पर हुए घाव की दवाई का पुर्जा था। एक साल से घाव बढ़ता जा रहा है, और दवा खरीद नहीं पाया था। इसलिए बुधिया दवे की दुकान पर गया, दवा और मलहम तिहत्तर रूपए के हुए, सत्तर रूपए देकर तीन रूपए की उधारी चढ़ गई। दुकानदार जान-पहचान का था इसलिए तीन रुपये का उधार मिल गया। 

पिया ने तबतक पता कर लिया था कि धनतेरस की पूजा कैसे की जाती है, नहा धो कर बच्चे भी तैयार थे। 

बुधिया ने जैसे ही दाल और दवा पिया को दी। 

पिया गुस्से से चिल्ला उठी, बिना कुछ सुने दाल और दवे की थैली फ़ेंक दी।

धनतेरस की पूजा उसके भाग्य में नहीं थी। परिवार से गरीबी दूर नहीं हो सकती थी।
 
फेंकी गई दाल पिया रोते हुए उठा रही थी, बुधिया और बच्चे भी दाल चुन रहे थे।

बुधिया बड़बड़ा रहा था "धनतेरस हिन्दू धर्म के लिए नहीं होता है, वो धनि धर्म की लक्ष्मी पूजा है।" 

तभी उल्लू पर सवार लक्ष्मी पास से गुज़र रही थीं, मुखिया के घर की ओर। 

बुधिया से उल्लू ने कहा, तू इतने में थक गया? मैं तो हजारों वर्षों से लक्ष्मी को ढो रहा हूँ, हमलोग केवल इसी लिए पैदा होते हैं।

 

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