विकास के नाम पर ढेरों वादों और जुमलों के बाद भी पूरे भारत के किसान सरकार की इन झूठी बातों में नहीं आये. याद कीजिए, दिल्ली के जंतर मंतर पर किस प्रकार से चूहा खाकर और खुद का मूत्र पीकर तमिलनाडु के किसानों ने विरोध-प्रदर्शन किया था. राजस्थान में भी उसी तरह कुछ किसानों ने विधानसभा में मार्च करने की ठानी थी, पर प्रशासन ने इस कदर उन्हें दबाया की कुछ देर के लिए मन में यह सवाल आया कि क्या यही लोकतंत्र है?
राजस्थान में लगातार दो दिनों तक किसानों की गिरफ्तारियां हुईं. हनुमानगढ़ से कोटा तक हज़ारों की तादाद में किसानों ने किसान मार्च का हिस्सा बने, जिसमें से बहुत सारे किसानों को सरकार ने गिरफ्तार कर लिया और बहुत कम किसान जयपुर तक पहुंच पाए. इस प्रकार किसानों का दमन कर के उनके आन्दोलन को समाप्त करने की कोशिश की गयी.
प्रशासन का दोहरा रवैय्या
प्रशासनिक सख्ती तब नहीं दिखाई देती है जब करणी सेना या कोई और धार्मिक संगठन तलवार लेकर भीड़ में आता है और आपातकाल की स्थिती पैदा कर देता है. तब पुलिस मूक दर्शक बन कर बैठी रहती है. और तब आपको समझाया जाता है कि यह सब करणी सेना की अभिव्यक्ति की आज़ादी है. यहाँ सवाल यह है कि क्या किसानों का प्रदर्शन करना उनकी अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है? क्या उनका अपने हक़ और अपनी मूलभूत ज़रुरत के लिए लड़ना उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है? तो फिर क्यूँ मध्य प्रदेश के किसानों पर गोलियां बरसाई गईं?
मध्य प्रदेश के किसान भी अपनी ज़रूरतों को पूरा करने की आस में सड़कों पर उतरे, उनपर भी देशद्रोह का मुक़दमा हुआ, कुछ को भूमिगत होना पडा, कुछ पर गोलियां चलाई गईं. कल्पना कीजिये एक बार, क्या यही सपनों का भारत है जिसकी कल्पना हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने की थी?
न किसानों की, न युवाओं की, तो फिर किसकी सरकार?
किसान वर्ग तो गरीबी का मारा है. पर देश के युवा? उनके साथ भी यही रवैय्या रहा सरकार का. यह भी दिलचस्प है कि एसएससी परीक्षा में जो घोटाला हुआ, उसपर विरोध प्रदर्शन करने वाले छात्रों को भी इसी तरह दबाया जा रहा है. आस पास की पानी की व्यवस्था को बंद करवाया गया. आम लोगों के खाने पीने के सस्ते ठेले वगैरा, उस जगह से हटवा दिए गए ताकि इन्हें खाना पानी ही नहीं मिले. जब खायेंगे नहीं तो विरोध कैसे करेंगे? आवाज़ कैसे उठायेंगे? और आप अब भी सोचते हैं कि ये युवाओं की सरकार है? अपना हक मांगने के लिए आज जब हज़ारों किसान नासिक से आज़ाद मैदान पर आये तो ऐसा प्रतीत हुआ मानो यह एक नयी क्रान्ति की शुरुआत हो. इस आन्दोलन को देखकर लगा कि यह किसान वर्ग सिर्फ ख़ुदकुशी करके हार नही मानने वाला है, ये आन्दोलन करके अपनी मांगों को लेकर लड़ भी सकता है.
गौर करने की बात यह है कि यह वर्ग कोई बहुत बड़े राजनीतिक पार्टी के समर्थन का मोहताज नहीं है. TISS के छात्रों को भी न भूला जाये जो लगातार अपने स्कॉलरशिप और बढ़ती फीस के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. सरकार ने शिक्षा बजट पर कटौती कर यह साबित कर ही दिया है कि यह सरकार युवाओं की सरकार तो बिलकुल ही नहीं है. यह सरकार भ्रष्टाचार खत्म करने के वादे के साथ सत्ता में आई थी लेकिन यूजीसी के बाहर एसएससी के छात्रों को पेपर लीक करने वालों पर कार्रवाई के लिए प्रदर्शन करना पड़ रहा है. उन छात्रों के पास कॉल रिकॉर्डिंग वगैराह भी मौजूद हैं लेकिन कार्रवाई करने में इतनी उदासीनता क्या दर्शाती है?
इस मामले में जेएनयू का मुद्दा भी नहीं भूला जाना चाहिए, जहां छात्रों की अभिव्यक्ति की आजादी पर लगाम लगाने के लिए प्रशासनिक भवन के पास छात्रों के एकत्र होने पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की गई. इतना ही नहीं यूजीसी गजेट कर जेएनयू एमफिल और पीएचडी में एडमिशन के लिए सिर्फ 102 सीटें कर दी गईं, जबकि पिछले सेशन यूनिवर्सिटी ने 970 स्टूडेंट्स लिए थे. सीट कट, डिप्रिवेशन पॉइंट हटाने, रिजर्वेशन पॉलिसी को लेकर स्टूडेंट्स ने काफी दिनों तक प्रदर्शन किया. इस मुद्दे पर मोदी सरकार की मंशा साफ हो गई कि वह छात्रों की उच्च शिक्षा से कितना डरती है. क्योंकि अगर छात्र पढ़ेंगे तो सवाल करेंगे और सरकार बिल्कुल नहीं चाहेगी कि उससे कोई सवाल पूछे. इस तरह की घटनाओं से बिल्कुल साफ हो जाता है कि यह सरकार सिर्फ कॉर्पोरेट कंपनियों की है जो बैंक से करोड़ों रूपये उड़ाकर ले जाते हैं और हमारे लिए छोड़ जाते हैं ढेर सारे टैक्स और सूद में नई बढ़ोत्तरी.
राजस्थान में लगातार दो दिनों तक किसानों की गिरफ्तारियां हुईं. हनुमानगढ़ से कोटा तक हज़ारों की तादाद में किसानों ने किसान मार्च का हिस्सा बने, जिसमें से बहुत सारे किसानों को सरकार ने गिरफ्तार कर लिया और बहुत कम किसान जयपुर तक पहुंच पाए. इस प्रकार किसानों का दमन कर के उनके आन्दोलन को समाप्त करने की कोशिश की गयी.
प्रशासन का दोहरा रवैय्या
प्रशासनिक सख्ती तब नहीं दिखाई देती है जब करणी सेना या कोई और धार्मिक संगठन तलवार लेकर भीड़ में आता है और आपातकाल की स्थिती पैदा कर देता है. तब पुलिस मूक दर्शक बन कर बैठी रहती है. और तब आपको समझाया जाता है कि यह सब करणी सेना की अभिव्यक्ति की आज़ादी है. यहाँ सवाल यह है कि क्या किसानों का प्रदर्शन करना उनकी अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है? क्या उनका अपने हक़ और अपनी मूलभूत ज़रुरत के लिए लड़ना उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है? तो फिर क्यूँ मध्य प्रदेश के किसानों पर गोलियां बरसाई गईं?
मध्य प्रदेश के किसान भी अपनी ज़रूरतों को पूरा करने की आस में सड़कों पर उतरे, उनपर भी देशद्रोह का मुक़दमा हुआ, कुछ को भूमिगत होना पडा, कुछ पर गोलियां चलाई गईं. कल्पना कीजिये एक बार, क्या यही सपनों का भारत है जिसकी कल्पना हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने की थी?
न किसानों की, न युवाओं की, तो फिर किसकी सरकार?
किसान वर्ग तो गरीबी का मारा है. पर देश के युवा? उनके साथ भी यही रवैय्या रहा सरकार का. यह भी दिलचस्प है कि एसएससी परीक्षा में जो घोटाला हुआ, उसपर विरोध प्रदर्शन करने वाले छात्रों को भी इसी तरह दबाया जा रहा है. आस पास की पानी की व्यवस्था को बंद करवाया गया. आम लोगों के खाने पीने के सस्ते ठेले वगैरा, उस जगह से हटवा दिए गए ताकि इन्हें खाना पानी ही नहीं मिले. जब खायेंगे नहीं तो विरोध कैसे करेंगे? आवाज़ कैसे उठायेंगे? और आप अब भी सोचते हैं कि ये युवाओं की सरकार है? अपना हक मांगने के लिए आज जब हज़ारों किसान नासिक से आज़ाद मैदान पर आये तो ऐसा प्रतीत हुआ मानो यह एक नयी क्रान्ति की शुरुआत हो. इस आन्दोलन को देखकर लगा कि यह किसान वर्ग सिर्फ ख़ुदकुशी करके हार नही मानने वाला है, ये आन्दोलन करके अपनी मांगों को लेकर लड़ भी सकता है.
गौर करने की बात यह है कि यह वर्ग कोई बहुत बड़े राजनीतिक पार्टी के समर्थन का मोहताज नहीं है. TISS के छात्रों को भी न भूला जाये जो लगातार अपने स्कॉलरशिप और बढ़ती फीस के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. सरकार ने शिक्षा बजट पर कटौती कर यह साबित कर ही दिया है कि यह सरकार युवाओं की सरकार तो बिलकुल ही नहीं है. यह सरकार भ्रष्टाचार खत्म करने के वादे के साथ सत्ता में आई थी लेकिन यूजीसी के बाहर एसएससी के छात्रों को पेपर लीक करने वालों पर कार्रवाई के लिए प्रदर्शन करना पड़ रहा है. उन छात्रों के पास कॉल रिकॉर्डिंग वगैराह भी मौजूद हैं लेकिन कार्रवाई करने में इतनी उदासीनता क्या दर्शाती है?
इस मामले में जेएनयू का मुद्दा भी नहीं भूला जाना चाहिए, जहां छात्रों की अभिव्यक्ति की आजादी पर लगाम लगाने के लिए प्रशासनिक भवन के पास छात्रों के एकत्र होने पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की गई. इतना ही नहीं यूजीसी गजेट कर जेएनयू एमफिल और पीएचडी में एडमिशन के लिए सिर्फ 102 सीटें कर दी गईं, जबकि पिछले सेशन यूनिवर्सिटी ने 970 स्टूडेंट्स लिए थे. सीट कट, डिप्रिवेशन पॉइंट हटाने, रिजर्वेशन पॉलिसी को लेकर स्टूडेंट्स ने काफी दिनों तक प्रदर्शन किया. इस मुद्दे पर मोदी सरकार की मंशा साफ हो गई कि वह छात्रों की उच्च शिक्षा से कितना डरती है. क्योंकि अगर छात्र पढ़ेंगे तो सवाल करेंगे और सरकार बिल्कुल नहीं चाहेगी कि उससे कोई सवाल पूछे. इस तरह की घटनाओं से बिल्कुल साफ हो जाता है कि यह सरकार सिर्फ कॉर्पोरेट कंपनियों की है जो बैंक से करोड़ों रूपये उड़ाकर ले जाते हैं और हमारे लिए छोड़ जाते हैं ढेर सारे टैक्स और सूद में नई बढ़ोत्तरी.
Disclaimer:
TISS, Students, Farmers