कस्बे के मोहल्ला कटरा रोड पर हर साल मई में सैयद सालार मसूद गाजी मियां की याद में दो दिवसीय मेला लगता चला आ रहा है। हिंदू-मुस्लिम भारी संख्या में मेला घूमते थे और अपनी जरूरत की सामानों को खरीदते थे।

उत्तर प्रदेश के मुबारकपुर कस्बे में हर साल मंगलवार और बुधवार को लगने वाले दो दिवसीय सोहबत मेले पर इस बार प्रशासन ने रोक लगा दी है। यह मेला वर्षों से सैयद सालार मसूद गाजी मियां की याद में आयोजित होता आ रहा था। प्रशासन की रोक के कारण इस बार मेला आयोजित नहीं हो सकेगा, जिससे आयोजकों की तमाम तैयारियां बेकार हो गई हैं।
अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, कस्बे के मोहल्ला कटरा रोड पर हर साल मई में सैयद सालार मसूद गाजी मियां की याद में दो दिवसीय मेला लगता चला आ रहा है। हिंदू-मुस्लिम भारी संख्या में मेला घूमते थे और अपनी जरूरत की सामानों को खरीदते थे। इस बार मेले का आयोजन 13 और 14 मई को होना था। मेले में झूला, खिलौने, मिट्टी के बर्तन, स्वादिष्ट शरबत, मिठाई और घरेलू उपयोग के सामान की दुकानें लगाने वाले दुकानदार अपनी तैयारी पूरी कर लिए थे, लेकिन इस बार दुकानदार और मेला कमेटी काफी मायूस हैं। हर साल मेला लगाने की अनुमति समय से मिल जाती थी।
ज्ञात हो कि इस साल मार्च में ही यूपी के कई जिलों में पुलिस ने गाजी मियां से जुड़े मेलों और त्योहारों पर प्रतिबंध लगा दिया था।
11वीं शताब्दी के सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर हर साल आयोजित होने वाला सदियों पुराना जेठ मेला इस वर्ष नहीं लगेगा, क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार ने मेला आयोजन की अनुमति देने से इंकार कर दिया है।
हालांकि अधिकारियों का कहना है कि मेले की अनुमति न देने का निर्णय कानून-व्यवस्था की स्थिति, विशेष रूप से हाल ही में हुए पहलगाम हमले के बाद के माहौल को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।
लेकिन मार्च में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सैयद सालार मसूद गाजी का परोक्ष रूप से उल्लेख करते हुए कहा था कि किसी "आक्रमणकारी" का "महिमामंडन" करना "देशद्रोह की नींव को मजबूत करने" के समान है।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, मार्च महीने में ही उत्तर प्रदेश के कई जिलों में पुलिस ने गाजी मियां से जुड़े मेलों और त्योहारों पर प्रतिबंध लगा दिया था। गाजी मियां को इसी नाम से जाना जाता है। संभल में पुलिस ने वार्षिक नेजा मेले के लिए अनुमति देने से इनकार कर दिया और कहा कि एक “आक्रमणकारी”, “लुटेरे” और “हत्यारे” के सम्मान में आयोजित होने वाले कार्यक्रम को आयोजित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी, भले ही यह पारंपरिक रूप से हर साल आयोजित किया जाता रहा हो।
सरकार ने मध्य-पूर्वी उत्तर प्रदेश के भारत-नेपाल सीमा के निकट स्थित बहराइच ज़िले में सैयद सालार मसूद गाजी मियां की दरगाह पर आयोजित होने वाले सबसे बड़े और लोकप्रिय वार्षिक मेले की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। इस मेले में हर साल लाखों की संख्या में हिंदू और मुस्लिम श्रद्धालु पारंपरिक रूप से हिस्सा लेते आए हैं, और इसे क्षेत्र की समन्वयकारी व साझी सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक माना जाता रहा है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके सहयोगी संगठनों ने पिछले कुछ दशकों में गाजी मियां की कहानी को मौजूदा राजनीति में शामिल करने और उन्हें एक खलनायक के रूप में पेश करने की कोशिश की है, जिनकी हत्या पिछड़ी जाति के हिंदू योद्धा महाराजा सुहेलदेव ने की थी, जिन्हें आज राजभर और पासी समुदाय के लोग प्रतीक मानते हैं। गाजी मियां की कहानी को सांप्रदायिक रूप देने का हिंदुत्ववादी रूप उनकी दरगाह पर निभाई जाने वाली समन्वयकारी संस्कृति के विपरीत है।
जहां मुसलमान गाजी मियां को एक संत के रूप में मानते हैं, वहीं हिंदू दरगाह पर इसलिए जाते हैं क्योंकि उनका मानना है कि वहां दुआ करने से उनकी मिन्नतें पूरी होती हैं। कुछ समुदाय गाजी मियां की बारात भी निकालते हैं क्योंकि उनका मानना है कि उनकी शादी से ठीक पहले उनकी हत्या कर दी गई थी। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने दलितों और ओबीसी को मुसलमानों के खिलाफ खड़ा करने के लिए एक महान 'भर' सरदार सुहेलदेव की कहानी का इस्तेमाल करने की कोशिश की है। आरएसएस की कल्पना में सुहेलदेव एक आदर्श हिंदुत्व के सिपाही थे जिन्होंने 150 वर्षों तक इस क्षेत्र के इस्लामीकरण को रोका।
अब तक भारतीय जनता पार्टी ने गाजी मियां की विरासत को दबाने के प्रयास के रूप में महाराजा सुहेलदेव के महिमामंडन की दिशा में कई कदम उठाए हैं। हालांकि, गाजी मियां से जुड़े मेलों और त्योहारों को रद्द किया जाना दरगाह को प्रत्यक्ष रूप से हाशिए पर डालने की एक नई प्रवृत्ति की शुरुआत प्रतीत होती है।
बहराइच की सिटी मजिस्ट्रेट शालिनी प्रभाकर ने कहा कि गाजी मियां की दरगाह की प्रबंध समिति ने इस साल के जेठ मेले के बारे में जिला मजिस्ट्रेट को पत्र लिखा था। प्रशासन ने पुलिस और जिला अधिकारियों सहित विभिन्न स्रोतों से रिपोर्ट मांगी है।
प्रभाकर ने कहा, "उनकी रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कानून और व्यवस्था के मद्देनजर और विभिन्न अन्य परिस्थितियों के कारण मेले के लिए अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।"
पुलिस उपाधीक्षक पहुप सिंह ने कहा कि चूंकि मेले में लाखों लोग शामिल होते हैं, इसलिए "शांति और सुरक्षा" के मद्देनजर अनुमति नहीं दी जा सकती।
अधिकारी ने कहा कि पहलगाम आतंकी हमले, वक्फ बिल के खिलाफ विरोध और पिछले साल संभल में हुई हिंसा के कारण "विरोध और नाराजगी" की स्थिति बनी हुई थी।
मार्च में नेजा मेला विवाद सामने आने तक, बहराइच जिले की आधिकारिक वेबसाइट (जहां गाजी की दरगाह है) इस जगह को एक मेल-जोल और साझी संस्कृति की मिसाल के तौर पर पर्यटक स्थल की तरह प्रचारित करती थी। इसने उनकी याद में आयोजित वार्षिक मेले को इलाके में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक त्योहार के रूप में दर्ज किया। बहराइच जिले की वेबसाइट पर गाजी को समर्पित दरगाह की दो तस्वीरें भी दिखाई गईं, जिसमें उन्हें "ग्यारहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध इस्लामी संत और सैनिक" बताया गया।
वेबसाइट के अनुसार, “हजरत गाजी सैय्यद सालार मसूद, ग्यारहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध इस्लामी संत और योद्धा थे। उनकी दरगाह मुसलमानों और हिंदुओं दोनों के लिए श्रद्धा का स्थान है। इसे फिरोज शाह तुगलक ने बनवाया था। ऐसा माना जाता है कि इस दरगाह के पानी में नहाने वाले लोगों की सभी त्वचा संबंधी बीमारी खत्म हो जाती है। दरगाह पर होने वाले सालाना उर्स में देश के दूर-दराज के इलाकों से हजारों लोग आते हैं।”
हालांकि, ये डिटेल वेबसाइट से हटा दिए गए, इसे आखिरी बार 4 मई को चेक किया गया था।

उत्तर प्रदेश के मुबारकपुर कस्बे में हर साल मंगलवार और बुधवार को लगने वाले दो दिवसीय सोहबत मेले पर इस बार प्रशासन ने रोक लगा दी है। यह मेला वर्षों से सैयद सालार मसूद गाजी मियां की याद में आयोजित होता आ रहा था। प्रशासन की रोक के कारण इस बार मेला आयोजित नहीं हो सकेगा, जिससे आयोजकों की तमाम तैयारियां बेकार हो गई हैं।
अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, कस्बे के मोहल्ला कटरा रोड पर हर साल मई में सैयद सालार मसूद गाजी मियां की याद में दो दिवसीय मेला लगता चला आ रहा है। हिंदू-मुस्लिम भारी संख्या में मेला घूमते थे और अपनी जरूरत की सामानों को खरीदते थे। इस बार मेले का आयोजन 13 और 14 मई को होना था। मेले में झूला, खिलौने, मिट्टी के बर्तन, स्वादिष्ट शरबत, मिठाई और घरेलू उपयोग के सामान की दुकानें लगाने वाले दुकानदार अपनी तैयारी पूरी कर लिए थे, लेकिन इस बार दुकानदार और मेला कमेटी काफी मायूस हैं। हर साल मेला लगाने की अनुमति समय से मिल जाती थी।
ज्ञात हो कि इस साल मार्च में ही यूपी के कई जिलों में पुलिस ने गाजी मियां से जुड़े मेलों और त्योहारों पर प्रतिबंध लगा दिया था।
11वीं शताब्दी के सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर हर साल आयोजित होने वाला सदियों पुराना जेठ मेला इस वर्ष नहीं लगेगा, क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार ने मेला आयोजन की अनुमति देने से इंकार कर दिया है।
हालांकि अधिकारियों का कहना है कि मेले की अनुमति न देने का निर्णय कानून-व्यवस्था की स्थिति, विशेष रूप से हाल ही में हुए पहलगाम हमले के बाद के माहौल को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।
लेकिन मार्च में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सैयद सालार मसूद गाजी का परोक्ष रूप से उल्लेख करते हुए कहा था कि किसी "आक्रमणकारी" का "महिमामंडन" करना "देशद्रोह की नींव को मजबूत करने" के समान है।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, मार्च महीने में ही उत्तर प्रदेश के कई जिलों में पुलिस ने गाजी मियां से जुड़े मेलों और त्योहारों पर प्रतिबंध लगा दिया था। गाजी मियां को इसी नाम से जाना जाता है। संभल में पुलिस ने वार्षिक नेजा मेले के लिए अनुमति देने से इनकार कर दिया और कहा कि एक “आक्रमणकारी”, “लुटेरे” और “हत्यारे” के सम्मान में आयोजित होने वाले कार्यक्रम को आयोजित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी, भले ही यह पारंपरिक रूप से हर साल आयोजित किया जाता रहा हो।
सरकार ने मध्य-पूर्वी उत्तर प्रदेश के भारत-नेपाल सीमा के निकट स्थित बहराइच ज़िले में सैयद सालार मसूद गाजी मियां की दरगाह पर आयोजित होने वाले सबसे बड़े और लोकप्रिय वार्षिक मेले की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। इस मेले में हर साल लाखों की संख्या में हिंदू और मुस्लिम श्रद्धालु पारंपरिक रूप से हिस्सा लेते आए हैं, और इसे क्षेत्र की समन्वयकारी व साझी सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक माना जाता रहा है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके सहयोगी संगठनों ने पिछले कुछ दशकों में गाजी मियां की कहानी को मौजूदा राजनीति में शामिल करने और उन्हें एक खलनायक के रूप में पेश करने की कोशिश की है, जिनकी हत्या पिछड़ी जाति के हिंदू योद्धा महाराजा सुहेलदेव ने की थी, जिन्हें आज राजभर और पासी समुदाय के लोग प्रतीक मानते हैं। गाजी मियां की कहानी को सांप्रदायिक रूप देने का हिंदुत्ववादी रूप उनकी दरगाह पर निभाई जाने वाली समन्वयकारी संस्कृति के विपरीत है।
जहां मुसलमान गाजी मियां को एक संत के रूप में मानते हैं, वहीं हिंदू दरगाह पर इसलिए जाते हैं क्योंकि उनका मानना है कि वहां दुआ करने से उनकी मिन्नतें पूरी होती हैं। कुछ समुदाय गाजी मियां की बारात भी निकालते हैं क्योंकि उनका मानना है कि उनकी शादी से ठीक पहले उनकी हत्या कर दी गई थी। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने दलितों और ओबीसी को मुसलमानों के खिलाफ खड़ा करने के लिए एक महान 'भर' सरदार सुहेलदेव की कहानी का इस्तेमाल करने की कोशिश की है। आरएसएस की कल्पना में सुहेलदेव एक आदर्श हिंदुत्व के सिपाही थे जिन्होंने 150 वर्षों तक इस क्षेत्र के इस्लामीकरण को रोका।
अब तक भारतीय जनता पार्टी ने गाजी मियां की विरासत को दबाने के प्रयास के रूप में महाराजा सुहेलदेव के महिमामंडन की दिशा में कई कदम उठाए हैं। हालांकि, गाजी मियां से जुड़े मेलों और त्योहारों को रद्द किया जाना दरगाह को प्रत्यक्ष रूप से हाशिए पर डालने की एक नई प्रवृत्ति की शुरुआत प्रतीत होती है।
बहराइच की सिटी मजिस्ट्रेट शालिनी प्रभाकर ने कहा कि गाजी मियां की दरगाह की प्रबंध समिति ने इस साल के जेठ मेले के बारे में जिला मजिस्ट्रेट को पत्र लिखा था। प्रशासन ने पुलिस और जिला अधिकारियों सहित विभिन्न स्रोतों से रिपोर्ट मांगी है।
प्रभाकर ने कहा, "उनकी रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कानून और व्यवस्था के मद्देनजर और विभिन्न अन्य परिस्थितियों के कारण मेले के लिए अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।"
पुलिस उपाधीक्षक पहुप सिंह ने कहा कि चूंकि मेले में लाखों लोग शामिल होते हैं, इसलिए "शांति और सुरक्षा" के मद्देनजर अनुमति नहीं दी जा सकती।
अधिकारी ने कहा कि पहलगाम आतंकी हमले, वक्फ बिल के खिलाफ विरोध और पिछले साल संभल में हुई हिंसा के कारण "विरोध और नाराजगी" की स्थिति बनी हुई थी।
मार्च में नेजा मेला विवाद सामने आने तक, बहराइच जिले की आधिकारिक वेबसाइट (जहां गाजी की दरगाह है) इस जगह को एक मेल-जोल और साझी संस्कृति की मिसाल के तौर पर पर्यटक स्थल की तरह प्रचारित करती थी। इसने उनकी याद में आयोजित वार्षिक मेले को इलाके में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक त्योहार के रूप में दर्ज किया। बहराइच जिले की वेबसाइट पर गाजी को समर्पित दरगाह की दो तस्वीरें भी दिखाई गईं, जिसमें उन्हें "ग्यारहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध इस्लामी संत और सैनिक" बताया गया।
वेबसाइट के अनुसार, “हजरत गाजी सैय्यद सालार मसूद, ग्यारहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध इस्लामी संत और योद्धा थे। उनकी दरगाह मुसलमानों और हिंदुओं दोनों के लिए श्रद्धा का स्थान है। इसे फिरोज शाह तुगलक ने बनवाया था। ऐसा माना जाता है कि इस दरगाह के पानी में नहाने वाले लोगों की सभी त्वचा संबंधी बीमारी खत्म हो जाती है। दरगाह पर होने वाले सालाना उर्स में देश के दूर-दराज के इलाकों से हजारों लोग आते हैं।”
हालांकि, ये डिटेल वेबसाइट से हटा दिए गए, इसे आखिरी बार 4 मई को चेक किया गया था।