कर्तव्य निभाने पर ट्रोलिंग: विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने भारत-पाकिस्तान युद्धविराम को लेकर दक्षिणपंथी हमलों के बीच X अकाउंट किया लॉक

Written by sabrang india | Published on: May 13, 2025
चाहे वो शोक में डूबीं विधवाएं हों, वर्दी में अफसर हों या अनुभवी पत्रकार—एक ज़हरीला ऑनलाइन माहौल, जिसे ऊपर वालों की चुप्पी और बढ़ावा देती है, लगातार उन्हें बदनाम कर रहा है जो सच बोलते हैं, इंसानियत दिखाते हैं या बस अपना काम कर रहे हैं।



विदेश सचिव विक्रम मिस्री को रविवार, 11 मार्च को अपना X (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट लॉक करने के लिए मजबूर होना पड़ा, जब वह एक समन्वित ऑनलाइन हमले का निशाना बन गए। यह ट्रोलिंग भारत द्वारा पाकिस्तान के साथ संघर्षविराम की घोषणा के बाद शुरू हुई, जो ऑपरेशन सिंदूर के तहत मिसाइल और ड्रोन हमलों सहित चार दिनों तक चले सैन्य तनाव के बाद हुआ था।

संघर्ष के दौरान विदेश मंत्रालय का सार्वजनिक चेहरा होने के बावजूद, विक्रम मिस्री को दक्षिणपंथी सोशल मीडिया अकाउंट्स से तीखी आलोचना का सामना करना पड़ा। उन्हें "गद्दार" तक कहा गया और उन पर भारत की सैन्य कार्रवाई को "सरेंडर" (समर्पण) में बदलने का आरोप लगाया गया। ये हमले उस समय शुरू हुए जब उन्होंने 10 मई की शाम को आधिकारिक रूप से संघर्षविराम की घोषणा की, और अगले दिन तक यह ट्रोलिंग गाली-गलौज और निजी हमलों में बदल गई।

मिस्री के खिलाफ ट्रोलिंग तब और तेज हो गई जब कुछ लोगों ने उनके परिवार की पुरानी सोशल मीडिया पोस्टें निकालनी शुरू कर दीं। विशेष रूप से उनकी बेटी डिडॉन मिस्री को निशाना बनाया गया, जो लंदन में रहती हैं और एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय लॉ फर्म, हर्बर्ट स्मिथ फ्रीहिल्स में कार्यरत हैं। उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान म्यांमार में संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) में एक अल्पकालिक इंटर्नशिप की थी। ट्रोल्स ने इस तथ्य को तोड़-मरोड़कर ऐसे पेश किया मानो वे "रोहिंग्या मुसलमानों को कानूनी मदद" दे रही थीं।

इसके बाद एक नैरेटिव खड़ा किया गया कि मिस्री और उनकी बेटी दोनों ऐसे मुद्दों का समर्थन करते हैं, जिन्हें कुछ लोग ‘राष्ट्रविरोधी’ मानते हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि डिडॉन एक अंतरराष्ट्रीय कानून विशेषज्ञ हैं और उन्होंने कई बार भारत सरकार का अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रतिनिधित्व किया है।

विक्रम मिस्री स्वयं विदेश मंत्रालय की ओर से ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान लगातार संतुलित और जिम्मेदार बयान दे रहे थे। उन्होंने एक प्रेस वार्ता में कहा था कि, “सरकार की आलोचना करना लोकतंत्र की पहचान है।” यह विचार भाजपा समर्थकों और उनके सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स की राष्ट्रवादी सोच से मेल नहीं खाता था। द वायर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जब मिस्री ने जैश-ए-मोहम्मद के नेता अब्दुल रऊफ अजहर की मौत से जुड़ी अपुष्ट खबरों की पुष्टि करने से इनकार कर दिया, जबकि बीजेपी ने पहले ही इसे सत्य मान लिया था, तो इससे दक्षिणपंथी लॉबी और अधिक नाराज़ हो गई।

सीज़फायर की घोषणा के बाद सोशल मीडिया पर मिस्री को “पीछे हटने” वाला बताया गया। द वायर, टाइम्स ऑफ इंडिया और लाइवमिंट जैसी मीडिया रिपोर्ट्स में विस्तार से बताया गया है कि यह आलोचना धीरे-धीरे व्यक्तिगत हमलों, गालियों और धमकियों में बदल गई। लोगों ने उन पर देश की सुरक्षा से समझौता करने, पाकिस्तान के सामने झुकने, और उनकी बेटी की विदेश में नौकरी तक पर निशाना साधना शुरू कर दिया।

जब ट्रोलिंग इस हद तक बढ़ गई कि उन्हें धमकियां मिलने लगीं और उनकी निजी जानकारियां ऑनलाइन लीक कर दी गईं, तब मिस्री ने मजबूर होकर अपना सोशल मीडिया अकाउंट लॉक कर दिया—जो कि इस स्तर के किसी वरिष्ठ अफसर के लिए बेहद असामान्य कदम है।

इस हमले की आलोचना आईएएस अफसरों के संगठनों, कई वरिष्ठ पत्रकारों और विपक्षी नेताओं ने की। उनका कहना था कि सरकारी अफसरों को इस तरह टारगेट करना एक खतरनाक चलन है, जो प्रशासनिक निष्पक्षता को नुकसान पहुंचा सकता है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि सरकार के बड़े नेता अब तक चुप हैं। जब यह खबर सामने आई, तब तक विदेश मंत्री एस. जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह—जो ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और ब्रह्मोस पर कई बार सार्वजनिक पोस्ट कर चुके थे—मिस्री के समर्थन में एक भी बयान नहीं दे पाए।

सरकार की चुप्पी पर तीखी आलोचना हो रही है और यह सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार राजनीतिक कारणों से सोशल मीडिया ट्रोल्स के निशाने पर आए अफसरों की सुरक्षा और समर्थन से पीछे हट रही है। आज जब विदेश नीति के फैसलों पर सोशल मीडिया पर तीखी बहस होती है, तब एक वरिष्ठ अफसर को इस तरह अकेला छोड़ देना एक खतरनाक संदेश देता है—कि लोक सेवा करने का मतलब अब पहले से कहीं ज़्यादा जोखिम भरा हो गया है।

पृष्ठभूमि: युद्धविराम की घोषणा

शनिवार को विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने एक बड़ी खबर दी कि भारत और पाकिस्तान ने जमीन, आसमान और समुद्र में युद्धविराम पर सहमति जताई है। ये तब हुआ जब एक हफ्ते तक दोनों देशों के बीच खतरनाक सैन्य कार्रवाईयां की गईं, जिसमें ड्रोन और मिसाइल हमले शामिल थे। एक प्रेस ब्रीफिंग में मिसरी ने बताया कि दोनों देशों के मिलिट्री ऑपरेशंस के डायरेक्टर्स जनरल के बीच फोन पर बात हुई थी और अगली बातचीत 12 मई को होनी थी। यह घोषणा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एक सोशल मीडिया पोस्ट के तुरंत बाद हुई, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि इस बातचीत के लिए अमेरिका ने मध्यस्थता की थी।

समर्थन में उठी आवाज

नेताओं ने मिसरी का बचाव किया : ट्रोलिंग के बाद राजनीतिक हलकों से मिसरी के समर्थन में जबरदस्त प्रतिक्रिया आई। AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने जनता को याद दिलाया कि सिविल सर्वेंट्स कार्यपालिका के अधीन काम करते हैं और उन्हें राजनीतिक फैसलों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए। ओवैसी ने X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, "विक्रम मिसरी एक सभ्य, ईमानदार और मेहनती डिप्लोमैट हैं जो हमारे देश के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं। ये याद रखना चाहिए कि हमारे सिविल सर्वेंट्स कार्यपालिका के अधीन काम करते हैं। उन्हें वतन-ए-अजीज के किसी भी राजनीतिक नेतृत्व या कार्यपालिका द्वारा लिए गए फैसलों के लिए दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए।"



कांग्रेस पार्टी की केरल इकाई ने भी इस ट्रोलिंग की निंदा की और नफरत फैलाने वाले हमलों के पैटर्न को उजागर किया। कांग्रेस ने कहा, "पिछले हफ्ते मोदी समर्थकों ने हिमांशी नारवाल के खिलाफ चरित्र हनन अभियान चलाया... अब वो विदेश सचिव विक्रम मिसरी को निशाना बना रहे हैं, जैसे उन्होंने सीज़फायर का फैसला खुद लिया हो, जबकि ये काम मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह या जयशंकर का था...। अब मोदी उस आईटी सेल के फ्रैंकस्टीन (Frankenstein) के मॉन्स्टर से जूझ रहे हैं, जिसे उन्होंने खुद पैदा बनाया।"




समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सरकार की चुप्पी पर नाराजगी जताते हुए लिखा, "फैसले लेना सरकार की जिम्मेदारी है, न कि किसी एक अधिकारी की... लेकिन न तो बीजेपी सरकार और न ही उसके मंत्री मिसरी के गरिमा की रक्षा करने के लिए आगे आ रहे हैं।"



पीडीपी प्रवक्ता मोहित भान ने इस गाली-गलौज को एक जागरूक करने वाली घटना बताया और कहा, "इस नफरत को 'राष्ट्रीयता' कहना हमारे समय का सबसे बड़ा झूठ है। एक दशक से देशभक्तों, सैनिकों, विद्वानों और कूटनीतिज्ञों पर सिर्फ इस वजह से हमला हो रहा है क्योंकि उन्होंने हिंसा को नकारा। दक्षिणपंथी नफरत भारत के लिए असली खतरा है और ये गंदगी हमें खत्म करने से पहले खत्म होनी चाहिए।"



पोस्ट में जो वीडियो डाला गया है, उसमें वो अश्लील बातें दिखाई गई हैं जो मिसरी और उनके परिवार के खिलाफ की गईं।

कांग्रेस नेता शशि थरूर ने एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में इस ट्रोलिंग को "बेहूदा" कहा। उन्होंने कहा, "युवा विक्रम मिसरी ने बहुत अच्छा काम किया है। उन्होंने बहुत मेहनत की, घंटों काम किया और भारत के लिए बहुत प्रभावी आवाज बने। मुझे समझ नहीं आता कि कौन और क्यों उन्हें ट्रोल कर रहा है?" थरूर ने ये भी कहा कि अधिकारियों जैसे विंग कमांडर व्योमिका सिंह और कर्नल सोफिया कुरेशी की इज्जत करनी चाहिए, न कि उन पर हमला।

टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा, "विदेश सचिव विक्रम मिसरी और उनके परिवार का सोशल मीडिया पर ट्रोल करना बहुत ही घटिया है, कोई भी पेशेवर राजनयिक जो अपना काम ठीक से कर रहा है, उसे इस तरह की बातें सहन नहीं करनी चाहिए। मजबूत रहिए सर, इस देश में सभी लोग अंधभक्तों जैसा घिनौना नहीं होते।"



कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने लिखा, "हमारे पेशेवर राजनयिकों और सिविल सर्वेंट्स को निशाना बनाना बिलकुल गलत है, जो लोग पूरे समर्पण के साथ देश की सेवा कर रहे हैं।"



पूर्व राजनयिकों और अधिकारियों ने भी इसका समर्थन किया, पूर्व विदेश सचिव निरुपमा मेनन राव ने इन हमलों को "पूरी तरह शर्मनाक" बताते हुए कहा कि ये "सभी शिष्टाचार की सीमाएं पार करते हैं।" उन्होंने मिसरी की पेशेवरिता की तारीफ की और उनकी बेटी के खिलाफ हो रहे दुर्व्यवहार की कड़ी निंदा की।



पूर्व राजनयिक नवदीप सूरी ने भी इस पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, "यह बिल्कुल घिनौना है कि ट्रोलर्स विदेश सचिव विक्रम मिसरी और उनके परिवार को निशाना बना रहे हैं। उन्होंने हमेशा पेशेवर यानी शांत, संयमित और सटीक होने का उदाहरण पेश किया है। लेकिन समाज के कुछ हिस्सों के लिए ये सब कुछ नहीं है। शर्मनाक!"



कई वरिष्ठ अधिकारी मिसरी के समर्थन में खड़े हो गए। केंद्रीय प्रशासनिक सुधार सचिव वी. श्रीनिवास ने उन्हें भारत के सबसे बड़े और सम्मानित राजनयिकों में से एक बताया और कहा कि उन्होंने हमेशा 'राष्ट्र पहले' की सोच को अपनाया।



"द इंडियन एक्सप्रेस" की रिपोर्ट के अनुसार, मिसरी के बैचमेट तथा आवास और शहरी मामलों के सचिव श्रीनिवास कटिकिथला ने कहा, "यह बेहद दुखद है कि समर्पित और ईमानदार सिविल सर्वेंट्स को उनके काम करने के कारण निशाना बनाया जा रहा है। उनका कर्तव्य के प्रति समर्पण सराहनीय है और उनके परिवार की इज्जत की हिफाजत की जानी चाहिए।"

आईएएस एसोसिएशन ने भी एक औपचारिक बयान जारी करते हुए कहा, "सिविल सर्वेंट्स पर उनके कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाने के लिए जो व्यक्तिगत हमले हो रहे हैं, वो बहुत ही अफसोसजनक हैं। हम सार्वजनिक सेवा की इज्जत बनाए रखने के लिए अपनी प्रतिबद्धता फिर से व्यक्त करते हैं।"



अन्य लोगों ने भी समर्थन किया:





सिविल सोसाइटी, मीडिया और अन्य लोगों के बयान: प्रमुख पत्रकार माधवन नारायणन ने मिसरी के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय में काम करने का अनुभव साझा करते हुए कहा, "यह दुख की बात है कि ऐसे शांत और पेशेवर राजनयिकों को पूरी तरह से पेशेवर तरीके से काम करने के लिए ट्रोल किया जा रहा है। जब एक देश उत्कृष्टता को सलाम नहीं कर सकता तो कहीं न कहीं कुछ बहुत गलत हो रहा है।"


कॉमेडियन और अभिनेता वीर दास ने भी टिप्पणी की: "विक्रम मिसरी शानदार थे, वैसे ही कर्नल सोफिया कुरेशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह भी। जो कोई इसके उलट सोचता है, वो सच में मूर्ख है।"



फैक्ट-चेकिंग करने वाले मोहम्मद जुबैर ने इन हमलों के संगठित रूप को सामने लाते हुए कहा: "पहले उन्होंने हिमांशी नारवाल को निशाना बनाया… अब वही ट्रोल्स विदेश सचिव विक्रम मिसरी और उनकी बेटी को निशाना बना रहे हैं, उन्हें गालियां दे रहे हैं और उनका मोबाइल नंबर भी शेयर कर रहे हैं।"



क्या यह एक बड़े मुद्दे का संकेत है?

भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी और उनके परिवार के खिलाफ जो गाली-गलौज की जा रही है, वो अकेली घटना नहीं है, यह एक बड़े और परेशान करने वाले ट्रेंड का हिस्सा है, जिसमें अक्सर उन लोगों को निशाना बनाया जाता है जो सत्ता के खिलाफ सच बोलते हैं, शांति का समर्थन करते हैं, या अपनी सार्वजनिक जिम्मेदारियां ईमानदारी से निभाते हैं।

पत्रकार राजू पारुलेकर ने एक ट्वीट में कहा, "अब वक्त आ गया है सोचने का कि हम कहां जा रहे हैं।"

"भारत के विदेश सचिव और उनके परिवार को दक्षिणपंथी ट्रोल आर्मी निशाना बना रही है। ये कोई हैरानी की बात नहीं है, क्योंकि जो गुण मोदी के नेतृत्व में हैं, वो नीचे तक फैलते हैं। ‘कांग्रेस की विधवा’, ‘50 करोड़ की गर्लफ्रेंड’, ‘जर्सी गाय’ जैसी बातें मोदी की पितृसत्तात्मक, महिला विरोधी और प्रतिक्रियावादी सोच को दिखाती हैं।

अगर वो ये सब कह सकते हैं, जबकि वो एक संवैधानिक पद पर हैं तो उनके इमेज को बढ़ाने में लगे ट्रोल्स तो और भी नीचे गिर सकते हैं।

उम्मीद है कि बाबू इससे कुछ सीखेंगे। उनका राजनीतिक मालिक वो आदमी नहीं है जिसके लिए मरना चाहिए। और वो कभी भी उनके सम्मान की रक्षा नहीं करेगा, खासकर जब उसके ट्रोल आर्मी की बात हो।"



पारुलेकर का ट्वीट इस बात को दिखाता है कि ऑनलाइन गाली-गलौज के माहौल में कोई भी सजा से बच सकता है, यह माहौल सबसे ऊपर से शुरू होता है और एक डिजिटल सिस्टम इसे कायम रखता है, जो असहमति, सहानुभूति और पेशेवरिता को सजा पाने योग्य अपराध मानता है।

यह घटना भारत में ऑनलाइन बातचीत की जहर को सामने लाती है, खासकर जब यह राष्ट्रवाद, कूटनीति और सेना के मामलों से जुड़ी हो। मिसरी के खिलाफ की गई गाली-गलौज कोई अकेली घटना नहीं है, बल्कि यह एक पैटर्न है, जिसमें शांति के लिए बोलने वाले या काम करने वाले पेशेवरों को दक्षिणपंथी ऑनलाइन ट्रोलर बदनाम करता है।

कश्मीर टाइम्स की संपादक अनुराधा भसीन और द वायर की अरफा खानम शेरवानी दोनों को अपनी सार्वजनिक राय के चलते बलात्कार तक की धमकियां मिली। भसीन, जिनका अखबार हमेशा युद्ध के खिलाफ रहा है और जो एलओसी के पास रहने वाले लोगों की तकलीफों को रिपोर्ट करती रही हैं, उन्होंने धमकियों के बीच अपना एक्स अकाउंट ब्लॉक होते देखा। शेरवानी, जो अपनी ईमानदारी के लिए जानी जाती हैं, उनको भी गालियां दी गईं, जिनका मकसद उन्हें डराना और चुप कराना था।

डिफेंस स्पोक्सपर्सन कर्नल सोफिया कुरेशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह को ऑनलाइन ट्रोल्स ने उनकी प्रेस ब्रीफिंग्स के दौरान कथित तौर पर "भूलने" के लिए निशाना बनाया। जैसे ही दोनों अधिकारियों ने प्रेस ब्रीफिंग्स कीं, कुछ एक्स अकाउंट्स ने झूठा दावा किया कि ये दोनों अधिकारी उनके अकाउंट चला रहे हैं। इसके बाद प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) को बीच में आकर ये साफ करना पड़ा कि दोनों अधिकारी इस प्लेटफॉर्म पर नहीं हैं और इन फर्जी अकाउंट्स से उनका कोई लेना-देना नहीं है।

लेफ्टिनेंट विनय नारवाल की विधवा हिमांशी भी तब निशाना बन गईं, जब उन्होंने पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद अपने दुख को सांप्रदायिक रंग देने और मुसलमानों को दोषी ठहराने के खिलाफ आवाज उठाई। उनकी शांति और एकता की अपील को भी ऑनलाइन हमलों का सामना करना पड़ा, जिससे यह साफ होता है कि हमारे डिजिटल दुनिया में असहमति या मानवीयता के पक्ष में बोलने वालों के लिए कितनी असहिष्णुता है।

इन घटनाओं को देखा जाए तो यह आज के भारत में सहानुभूति, ईमानदारी और पेशेवर जिम्मेदारी की कीमत को साफ तौर पर दिखाती हैं। चाहे कोई अफसर हो, पत्रकार हो, सिविल सर्वेंट हो या दुखी परिवार का सदस्य, जो भी राय मुख्यधारा से अलग होती है, उसे गाली-गलौज का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे माहौल में, सरकार की चुप्पी या फिर, उससे भी बुरी चीज यह कि, उसकी सहमति हमलावरों को और ताकत देती है।

जो लोग ऐसे संगठित हमला करने वाले ट्रोल्स के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें जवाबदेह ठहराने से इनकार करना सिविल सर्वेंट्स की सुरक्षा, डिजिटल नफरत के हथियार के रूप में इस्तेमाल और सरकार की यह अनिच्छा कि जब उसके समर्थक ऐसा करें तो उसे निंदा करें, ये सभी बड़े सवाल खड़े करता है।

जब ट्रोल्स के खिलाफ कार्रवाई की मांग और भी जोर पकड़ने लगी है, तब विक्रम मिस्री की शांति और अपने कर्तव्यों के प्रति लगातार प्रतिबद्धता ने उन्हें हर विचारधारा से सम्मान दिलवाया है। यह फिर से साबित करता है कि सार्वजनिक सेवा में पेशेवरिता, ईमानदारी और साहस आज भी सम्मान के काबिल हैं।

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