पिछले 10 वर्षों में भारत में अकादमिक स्वतंत्रता सूचकांक रैंक में गिरावट दर्ज की गई

Written by sabrang india | Published on: October 10, 2024
भारत का शैक्षणिक स्वतंत्रता सूचकांक 2013 से 2023 के बीच 0.6 से गिरकर 0.2 अंक पर आ गया है। अब यह 'पूर्णतः प्रतिबंधित' श्रेणी में है, जो 1940 के दशक के मध्य के बाद से इसका सबसे कम स्कोर है।


फोटो साभार : हिंदुस्तान टाइम्स

स्कॉलर्स एट रिस्क (SAR) अकेडमिक फ्रीडम मॉनिटरिंग प्रोजेक्ट द्वारा प्रकाशित "फ्री टू थिंक 2024" वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में भारत की अकादमिक स्वतंत्रता रैंक में गंभीर गिरावट आई है। SAR एक नेटवर्क है जिसमें दुनिया भर के 665 विश्वविद्यालय शामिल हैं, जैसे कि कोलंबिया विश्वविद्यालय, ड्यूक विश्वविद्यालय और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय।

रिपोर्ट में भारत, अफगानिस्तान, चीन, कोलंबिया, जर्मनी, हांगकांग, ईरान, इज़राइल, निकारागुआ, नाइजीरिया, अधिकृत फिलिस्तीनी क्षेत्र, रूस, तुर्किये, सूडान, यूक्रेन, यू.के. और यू.एस. का व्यापक अध्ययन किया गया है। 1 जुलाई, 2023 और 30 जून, 2024 के बीच 51 देशों में उच्च शिक्षा समुदायों पर 391 हमलों को रिकॉर्ड किया गया है।

रिपोर्ट में भारत में अकादमिक स्वतंत्रता के लिए चार मुख्य खतरों का जिक्र किया गया है:
  1. राजनीतिक नियंत्रण
  2. विरोध प्रदर्शनों पर प्रतिबंध
  3. केंद्र बनाम राज्य सरकार संघर्ष
  4. विद्वानों को भयभीत करना
द हिंदू के अनुसार, छात्रों और विद्वानों की शैक्षणिक स्वतंत्रता के लिए सबसे गंभीर खतरा सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का राजनीतिक नियंत्रण और राष्ट्रवादी एजेंडा थोपने की कोशिश है। रिपोर्ट में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) और साउथ एशिया विश्वविद्यालय (एसएयू) में नई नीतियों द्वारा छात्रों के विरोध प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगाने का उल्लेख है, जिससे छात्रों की अभिव्यक्ति और सक्रियता कमजोर हो रही है।

केंद्र बनाम राज्य सरकारों के संघर्ष में उच्च शिक्षा पर नियंत्रण को लेकर स्पष्ट विवाद दिखाई देता है, विशेषकर केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पंजाब जैसे गैर-भाजपा शासित राज्यों में।

केरल में, राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और राज्य सरकार के बीच विश्वविद्यालयों के मामलों पर टकराव देखा गया है। उन्होंने विश्वविद्यालय से जुड़े विधायी संशोधनों पर सहमति रोक दी थी। इसके बाद, अप्रैल 2024 में केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी।

रिपोर्ट में कुछ अन्य प्रतिबंधों का भी जिक्र है, जैसे कि ब्रिटेन के प्रोफेसर निताशा कौल को आरएसएस की आलोचना के कारण भारत में प्रवेश से रोकना। इसके अलावा, जेएनयू, जामिया और दिल्ली यूनिवर्सिटी के 200 से अधिक छात्रों को इजराइली दूतावास के बाहर प्रदर्शन के दौरान हिरासत में लिया गया।

रिपोर्ट में जेएनयू की प्रोफेसर निवेदिता मेनन का भी जिक्र है, जिनके साथ 12 मार्च, 2024 को एबीवीपी से जुड़े छात्रों ने बदसलूकी की। आईआईटी, बॉम्बे में अचिन वानाइक की एक वार्ता को रद्द करने का मामला भी प्रमुखता से रखा गया है, जिसमें इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष के इतिहास पर चर्चा होनी थी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसी घटनाओं के परिणामस्वरूप प्रतिबंधात्मक नीतियां बनती हैं, जो संस्थागत स्वायत्तता को सीमित और शैक्षणिक स्वतंत्रता को बाधित कर सकती हैं।
SAR का उद्देश्य उच्च शिक्षा पर हमलों की जांच और रिपोर्टिंग करना है, जिससे विद्वानों, छात्रों और शैक्षणिक समुदायों के लिए सुरक्षा बढ़ाई जा सके। यह रिपोर्ट पांच संकेतकों पर आधारित है:
  • शोध और अध्यापन की स्वतंत्रता
  • अकादमिक आदान-प्रदान और प्रसार की स्वतंत्रता
  • संस्थागत स्वायत्तता
  • परिसर की अखंडता
  • अकादमिक और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
एएफआई परियोजना 2017 में कोलोन में एक विशेषज्ञ परामर्श के साथ शुरू हुई, जिसे फ्रिट्ज़ थिसेन फाउंडेशन द्वारा फंडिंग किया गया। इसका पहला संस्करण 2020 में जारी किया गया। एएफआई किसी देश में अकादमिक स्वतंत्रता के स्तर को 0 (कम) से 1 (उच्च) तक के पैमाने पर मापता है।

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