एक पुराने गीत की लाइन है: संभल कर रहना अपने घर में छुपे हुए गद्दारों से ...
ये गद्दार हमें अनेकों रूप में मिल सकते हैं: दोस्त, रिश्तेदार, पडोसी, यहाँ तक कि मज़हबी रहनुमाओं के रूप में भी, जिनकी बातों पर हम आँख मूँद कर भरोसा कर लेते हैं.
कुछ अरसा पहले पोलियो ड्रॉप्स को लेकर मुसलामानों के बीच एक अफवाह फैली थी कि यह मुस्लिम बच्चों को infertile बनाने की बहुत बड़ी साज़िश है जिसमें हिन्दू दक्षिण पंथियों से लेकर अमरीकी सरकार तक शामिल है. वह कांग्रेस का दौर था. पोलियो ड्रॉप वाले कर्मचारियों को अक्सर मुस्लिम घरों और मोहल्लों में बड़ी बदसुलूकी का सामना करना पड़ता था. अफवाह फैलाने वालों में हमारे कई मज़हबी रहनुमा आगे-आगे थे. उनकी बातों में आकर बहुत से माँ-बाप ने अपने बच्चों को पोलियो ड्रॉप देने से इनकार कर दिया और इसका खमियाज़ा उन मासूमों को भुगतना पड़ा.
बाद में पता चला कि यह सचमुच साज़िश ही थी जिसका मक़सद था कि मुसलमान अफवाहों पर यक़ीन करके अपने बच्चों को पोलियो ड्रॉप के फाएदे से वंचित रख्खें. कहा जाता है कि हिन्दू दक्षिण पंथियों द्वारा रची गयी इस साजिश की सांठ-गाँठ में कई वो अपने शामिल थे जिन पर हम आँख मूँद कर भरोसा करते हैं. ज़ाहिर है कि काफी बड़े ईनाम के एवज़ में उन्होंने यह काम किया था.
अब फिर से एक damning और damaging अफवाह मुसलामानों के बीच सोशल मीडिया के ज़रिये रुबेला बुखार और खसरे के टीके को लेकर फैलाई जा रही है. इन अफवाहों की जड़ों में जो लोग हैं, यकीनी तौर पर वो मुसलामानों के दोस्त नहीं हैं. अफवाह के मुताबिक, एक अमरीकी कंपनी द्वारा तय्यार किये गए ये टीके, जो सारी दुनिया में ban किये जा चुके हैं, मोदी सरकार द्वारा भारत में मुस्लिम बच्चों के लिए इम्पोर्ट किये गए हैं , इसलिए कि यह उन्हें रुबेला या खसरे से बचाए या न बचाए लेकिन उन्हें नपुंसक बनाने का असर ज़रूर रखता है और इसके पीछे आरएसएस का मक़सद है मुस्लिम आबादी को बढ़ने से रोकना. क्योंकि इसमें आरएसएस और मोदी का नाम है इसलिए बहुत से लोगों को अफवाह में सच्चाई नज़र आ रही है.
इस बार अच्छी बात यह हुई कि मुस्लिम समाज के वो ज़िम्मेदार लोग जिनके ज़हेन में पिछली अफवाह के तजुर्बे की कडुवाहट अब भी मौजूद थी, उन्होंने इस अफवाह की व्यापक स्तर पर छान-बीन की. .उन्होंने पाया कि साज़िश तो इस बार भी हुई है और ये अफवाहे पहले की ही तरह उसी साजिश के तहेत हैं. मक़सद वही है : मुस्लिम बच्चों को टीकाकरण अभियान के लाभ से दूर रखना. जिन समझदार लोगों ने सच्चाई को जानने और समझने की पहल की इनमें UNICEF की भारतीय प्रतिनिधि डाक्टर यास्मीन अली हक, उत्तर-पूर्व के मौलाना मोहीउद्दीन मजहरी और केरल के मौलाना अब्दुल्सत्तार कुट्टी के नाम अहम हैं. एक तरफ ये ज़िम्मेदार लोग थे जिनकी कोशिश थी कि टीकाकरण का लाभ दूसरे सम्प्रदायों के बच्चों की तरह मुस्लिम बच्चों को भी मिले तो दूसरी तरफ कुछ तथाकथित मज़हबी रहनुमाओं के चेहरे सामने आये जिन्होंने अपने निजी लाभ के लिए अफवाह गढ़ने वालों का साथ दिया. उन अच्छे लोगों की कोशिशों का यह असर हुआ कि बहुत से ईमाम भी आगे आये और उन्होंने अपनी-अपनी मस्जिदों में लोगों को टीके के लिए कामयाबी के साथ तैयार करना शुरू किया.
मतलब यह कि हमें चाहिए कि हम सुनें सब की लेकिन मानने से पहले अपनी समझ का इस्तमाल करें और कोशिश करें कि बात सच है या नहीं, इसकी अपने तौर पर छान-बीन भी कर लें, क्योकि ज़रूरी नहीं कि जो हमसे शुभ चिन्तक बन कर मिलता है वह समुच ऐसा ही हो. इतना काफी नहीं कि वह हमारी ज़ात या मज़हब का है या हमारे मन में जो एक अच्छे आदमी का कंसेप्ट है वह उसके मुताबिक नज़र आता है या सुनाई पड़ता है.
ये गद्दार हमें अनेकों रूप में मिल सकते हैं: दोस्त, रिश्तेदार, पडोसी, यहाँ तक कि मज़हबी रहनुमाओं के रूप में भी, जिनकी बातों पर हम आँख मूँद कर भरोसा कर लेते हैं.
कुछ अरसा पहले पोलियो ड्रॉप्स को लेकर मुसलामानों के बीच एक अफवाह फैली थी कि यह मुस्लिम बच्चों को infertile बनाने की बहुत बड़ी साज़िश है जिसमें हिन्दू दक्षिण पंथियों से लेकर अमरीकी सरकार तक शामिल है. वह कांग्रेस का दौर था. पोलियो ड्रॉप वाले कर्मचारियों को अक्सर मुस्लिम घरों और मोहल्लों में बड़ी बदसुलूकी का सामना करना पड़ता था. अफवाह फैलाने वालों में हमारे कई मज़हबी रहनुमा आगे-आगे थे. उनकी बातों में आकर बहुत से माँ-बाप ने अपने बच्चों को पोलियो ड्रॉप देने से इनकार कर दिया और इसका खमियाज़ा उन मासूमों को भुगतना पड़ा.
बाद में पता चला कि यह सचमुच साज़िश ही थी जिसका मक़सद था कि मुसलमान अफवाहों पर यक़ीन करके अपने बच्चों को पोलियो ड्रॉप के फाएदे से वंचित रख्खें. कहा जाता है कि हिन्दू दक्षिण पंथियों द्वारा रची गयी इस साजिश की सांठ-गाँठ में कई वो अपने शामिल थे जिन पर हम आँख मूँद कर भरोसा करते हैं. ज़ाहिर है कि काफी बड़े ईनाम के एवज़ में उन्होंने यह काम किया था.
अब फिर से एक damning और damaging अफवाह मुसलामानों के बीच सोशल मीडिया के ज़रिये रुबेला बुखार और खसरे के टीके को लेकर फैलाई जा रही है. इन अफवाहों की जड़ों में जो लोग हैं, यकीनी तौर पर वो मुसलामानों के दोस्त नहीं हैं. अफवाह के मुताबिक, एक अमरीकी कंपनी द्वारा तय्यार किये गए ये टीके, जो सारी दुनिया में ban किये जा चुके हैं, मोदी सरकार द्वारा भारत में मुस्लिम बच्चों के लिए इम्पोर्ट किये गए हैं , इसलिए कि यह उन्हें रुबेला या खसरे से बचाए या न बचाए लेकिन उन्हें नपुंसक बनाने का असर ज़रूर रखता है और इसके पीछे आरएसएस का मक़सद है मुस्लिम आबादी को बढ़ने से रोकना. क्योंकि इसमें आरएसएस और मोदी का नाम है इसलिए बहुत से लोगों को अफवाह में सच्चाई नज़र आ रही है.
इस बार अच्छी बात यह हुई कि मुस्लिम समाज के वो ज़िम्मेदार लोग जिनके ज़हेन में पिछली अफवाह के तजुर्बे की कडुवाहट अब भी मौजूद थी, उन्होंने इस अफवाह की व्यापक स्तर पर छान-बीन की. .उन्होंने पाया कि साज़िश तो इस बार भी हुई है और ये अफवाहे पहले की ही तरह उसी साजिश के तहेत हैं. मक़सद वही है : मुस्लिम बच्चों को टीकाकरण अभियान के लाभ से दूर रखना. जिन समझदार लोगों ने सच्चाई को जानने और समझने की पहल की इनमें UNICEF की भारतीय प्रतिनिधि डाक्टर यास्मीन अली हक, उत्तर-पूर्व के मौलाना मोहीउद्दीन मजहरी और केरल के मौलाना अब्दुल्सत्तार कुट्टी के नाम अहम हैं. एक तरफ ये ज़िम्मेदार लोग थे जिनकी कोशिश थी कि टीकाकरण का लाभ दूसरे सम्प्रदायों के बच्चों की तरह मुस्लिम बच्चों को भी मिले तो दूसरी तरफ कुछ तथाकथित मज़हबी रहनुमाओं के चेहरे सामने आये जिन्होंने अपने निजी लाभ के लिए अफवाह गढ़ने वालों का साथ दिया. उन अच्छे लोगों की कोशिशों का यह असर हुआ कि बहुत से ईमाम भी आगे आये और उन्होंने अपनी-अपनी मस्जिदों में लोगों को टीके के लिए कामयाबी के साथ तैयार करना शुरू किया.
मतलब यह कि हमें चाहिए कि हम सुनें सब की लेकिन मानने से पहले अपनी समझ का इस्तमाल करें और कोशिश करें कि बात सच है या नहीं, इसकी अपने तौर पर छान-बीन भी कर लें, क्योकि ज़रूरी नहीं कि जो हमसे शुभ चिन्तक बन कर मिलता है वह समुच ऐसा ही हो. इतना काफी नहीं कि वह हमारी ज़ात या मज़हब का है या हमारे मन में जो एक अच्छे आदमी का कंसेप्ट है वह उसके मुताबिक नज़र आता है या सुनाई पड़ता है.