इंडियन मुस्लिम्स फॉर सेक्युलर डेमोक्रेसी (IMSD) कुछ मुस्लिम संगठनों द्वारा सलमान रुश्दी की किताब सैटेनिक वर्सेज पर फिर से प्रतिबंध लगाने की मांग का समर्थन नहीं करता है।
आईएमएसडी मुसलमानों से एक सदी पहले के सर सैयद अहमद खान द्वारा व्यक्त किए गए विचारों को याद करने की अपील करता है। अपने समय में, उन्होंने उन मुसलमानों का कड़ा विरोध किया था जो उन किताबों को जला रहे थे, या जिन पर अधिकारियों द्वारा प्रतिबंध लगाने की मांग करते थे जो उनकी भावनाओं के विरुद्ध थीं। सर सैयद अहमद खान साहब की सलाह सीधी और सरल थी: अगर संबंधित पुस्तक तर्कपूर्ण आलोचना के योग्य है तो शब्दों का मुकाबला शब्दों से करें। ऐसी पुस्तकों को जलाने या प्रतिबंधित करने का अर्थ है कि मुसलमान अपनी आस्था का बौद्धिक और नैतिक बचाव करने में असमर्थ हैं। अगर कोई पुस्तक (कार्टून, नाटक, फिल्म) इस्लाम या उसके पैगंबर पर अनावश्यक, अश्लील या दुर्भावनापूर्ण हमला करती है, तो उनका सुझाव था कि इसे अनदेखा किया जाए या उसकी तर्कपूर्ण आलोचना की जाए।
1861 में, एक अंग्रेजी लेखक विलियम मुइर ने पैगंबर मोहम्मद साहब के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की थी। इसके बारे में सर सैयद अहमद खान चुप नहीं बैठे, बल्कि वे लंदन गए थे ताकि वे उन किताबों और पत्रिकाओं का अध्ययन कर सकें जिनका मुइर ने अपने लेखन में इस्तेमाल किया था। आठ साल बाद, उन्होंने मुइर के काम की विस्तृत और तार्किक आलोचना करते हुए एक समीक्षा प्रकाशित की, और मुइर के निष्कर्षों को गलत साबित किया।
सर सैयद द्वारा अपने साथी मुसलमानों को दी गई सलाह आज के 'नए भारत' में और भी अधिक प्रासंगिक है, जहां अल्पसंख्यक हिंदुत्व की घृणा की राजनीति के शिकार हो रहे हैं। सैटेनिक वर्सेज के प्रकाशन पर कोई भी गलत सलाह या उग्र प्रतिक्रिया, (जो बहुत से मुसलमानों ने न पहले पढ़ी होगी न अब पढ़ेंगे) सिर्फ मुस्लिम-विरोधी लोगों को मुसलमानों को बदनाम करने के लिए और अधिक अवसर प्रदान करेगी। इसके अलावा, इससे उसी पुस्तक को मुफ्त प्रचार मिलेगा जिसे उसका विरोधी प्रतिबंधित करवाना चाहता है।
आईएमएसडी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पूरी तरह से समर्थन करता है, और घृणास्पद भाषण/ हेट स्पीच का दृढ़ता से विरोध करता है। भारत का संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, वहीं देश के कानून में घृणास्पद भाषण/ हेट स्पीच के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई का भी प्रावधान भी है।
मुसलमानों या किसी अन्य व्यक्ति को किसी भी किताब, कार्टून, नाटक या फिल्म से नाराज होने का पूरा अधिकार है और उन्हें शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने का भी अधिकार है। वे अपनी शिकायत के निपटारे के लिए आपराधिक कानून के मौजूदा प्रावधानों का सहारा ले सकते हैं। लेकिन उन्हें कसूरवार को चुप कराने का अधिकार भी नहीं है। सलमान रुश्दी को मारने के लिए फतवा, फरमान या आह्वान, और सैटेनिक वर्सेज पर प्रतिबंध की मांग का मतलब बस 'कसूरवार को चुप कराना' है।
आईएमएसडी मुसलमानों से एक सदी पहले के सर सैयद अहमद खान द्वारा व्यक्त किए गए विचारों को याद करने की अपील करता है। अपने समय में, उन्होंने उन मुसलमानों का कड़ा विरोध किया था जो उन किताबों को जला रहे थे, या जिन पर अधिकारियों द्वारा प्रतिबंध लगाने की मांग करते थे जो उनकी भावनाओं के विरुद्ध थीं। सर सैयद अहमद खान साहब की सलाह सीधी और सरल थी: अगर संबंधित पुस्तक तर्कपूर्ण आलोचना के योग्य है तो शब्दों का मुकाबला शब्दों से करें। ऐसी पुस्तकों को जलाने या प्रतिबंधित करने का अर्थ है कि मुसलमान अपनी आस्था का बौद्धिक और नैतिक बचाव करने में असमर्थ हैं। अगर कोई पुस्तक (कार्टून, नाटक, फिल्म) इस्लाम या उसके पैगंबर पर अनावश्यक, अश्लील या दुर्भावनापूर्ण हमला करती है, तो उनका सुझाव था कि इसे अनदेखा किया जाए या उसकी तर्कपूर्ण आलोचना की जाए।
1861 में, एक अंग्रेजी लेखक विलियम मुइर ने पैगंबर मोहम्मद साहब के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की थी। इसके बारे में सर सैयद अहमद खान चुप नहीं बैठे, बल्कि वे लंदन गए थे ताकि वे उन किताबों और पत्रिकाओं का अध्ययन कर सकें जिनका मुइर ने अपने लेखन में इस्तेमाल किया था। आठ साल बाद, उन्होंने मुइर के काम की विस्तृत और तार्किक आलोचना करते हुए एक समीक्षा प्रकाशित की, और मुइर के निष्कर्षों को गलत साबित किया।
सर सैयद द्वारा अपने साथी मुसलमानों को दी गई सलाह आज के 'नए भारत' में और भी अधिक प्रासंगिक है, जहां अल्पसंख्यक हिंदुत्व की घृणा की राजनीति के शिकार हो रहे हैं। सैटेनिक वर्सेज के प्रकाशन पर कोई भी गलत सलाह या उग्र प्रतिक्रिया, (जो बहुत से मुसलमानों ने न पहले पढ़ी होगी न अब पढ़ेंगे) सिर्फ मुस्लिम-विरोधी लोगों को मुसलमानों को बदनाम करने के लिए और अधिक अवसर प्रदान करेगी। इसके अलावा, इससे उसी पुस्तक को मुफ्त प्रचार मिलेगा जिसे उसका विरोधी प्रतिबंधित करवाना चाहता है।
आईएमएसडी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पूरी तरह से समर्थन करता है, और घृणास्पद भाषण/ हेट स्पीच का दृढ़ता से विरोध करता है। भारत का संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, वहीं देश के कानून में घृणास्पद भाषण/ हेट स्पीच के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई का भी प्रावधान भी है।
मुसलमानों या किसी अन्य व्यक्ति को किसी भी किताब, कार्टून, नाटक या फिल्म से नाराज होने का पूरा अधिकार है और उन्हें शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने का भी अधिकार है। वे अपनी शिकायत के निपटारे के लिए आपराधिक कानून के मौजूदा प्रावधानों का सहारा ले सकते हैं। लेकिन उन्हें कसूरवार को चुप कराने का अधिकार भी नहीं है। सलमान रुश्दी को मारने के लिए फतवा, फरमान या आह्वान, और सैटेनिक वर्सेज पर प्रतिबंध की मांग का मतलब बस 'कसूरवार को चुप कराना' है।
हस्ताक्षरकर्ता:
1. आरेफा जौहरी, जेंडर राइट एक्टिविस्ट, पत्रकार, मुंबई
2. अकबर शेख, आईएमएसडी, भारतीय मुस्लिम युवा आंदोलन, सोलापुर
3. अहमद रशीद शेरवानी, शिक्षाविद्, हैदराबाद
4. ए जे जवाद, आईएमएसडी, सह-संयोजक, अधिवक्ता, चेन्नई
5. आमिर रिजवी, आईएमएसडी, डिजाइनर, मुंबई
6. अनवर हुसैन, कॉर्पोरेट कार्यकारी
7. अनवर राजन, आईएमएसडी, पुणे
8. अरशद आलम, आईएमएसडी, स्तंभकार, न्यू एज इस्लाम, दिल्ली
9. अस्करी जैदी, आईएमएसडी, वरिष्ठ पत्रकार, दिल्ली
10. बिलाल खान, आईएमएसडी, कार्यकर्ता, मुंबई
11. फरहान रहमान, सहायक प्रोफेसर, रांची विश्वविद्यालय, रांची
12. फिरोज अब्बास खान, थिएटर और फिल्म निर्देशक, नाटककार और पटकथा लेखक, मुंबई
13. फिरोज मीठीबोरवाला, आईएमएसडी, सह-संयोजक, भारत बचाओ आंदोलन, मुंबई
14. गौहर रजा, अनहद, दिल्ली
15. हसन इब्राहीम पाशा, लेखक, इलाहाबाद
16. ए जे जवाद, आईएमएसडी, सह-संयोजक, अधिवक्ता, चेन्नई
17. इरफान इंजीनियर, आईएमएसडी सह-संयोजक, सीएसएसएस, मुंबई
18. जावेद आनंद, आईएमएसडी संयोजक, सीजेपी, सबरंगइंडिया ऑनलाइन, मुंबई
19. कासिम सैत, व्यवसायी, परोपकारी, चेन्नई
20. खदीजा फारूकी, आईएमएसडी, जेंडर राइट एक्टिविस्ट, दिल्ली
21. लारा जेसानी, आईएमएसडी, पीयूसीएल, मुंबई
22. मंसूर सरदार, आईएमएसडी, भिवंडी
23. मासूमा रानाल्वी, आईएमएसडी, वी स्पीक आउट, दिल्ली
24. मोहम्मद इमरान, पीआईओ, यूएसए
25. मुनीजा खान, आईएमएसडी, सीजेपी, वाराणसी
26. नसरीन फज़लभोय, आईएमएसडी, मुंबई
27. कैसर सुल्ताना, होम मेकर, इलाहाबाद
28. कुतुब जहां, आईएमएसडी, नीडा, मुंबई
29. (डॉ.) राम पुनियानी, आईएमएसडी, लेखक, कार्यकर्ता, मुंबई
30. सबा खान, आईएमएसडी, परचम, मुंब्रा/मुंबई
31. शबाना मशरकी, आईएमएसडी, सलाहकार, मुंबई
31. शबनम हाशमी, अनहद, दिल्ली
32. (डॉ.) शाहनवाज आलम, आईएमएसडी
33. शालिनी धवन, डिजाइनर, मुंबई
34. शमा जैदी, डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता, मुंबई
35. शम्सुल इस्लाम, लेखक, दिल्ली
36. सोहेल हाशमी, आईएमएसडी, सहमत, दिल्ली
37. सुल्तान शाहीन, प्रधान संपादक और प्रकाशक, न्यू एज इस्लाम, दिल्ली
38. तीस्ता सेतलवाड, सचिव, सीजेपी, आईएमएसडी, मुंबई
39. यूसुफ सईद, डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता, दिल्ली
40. जकिया सोमन, सह-संयोजक बीएमएमए, दिल्ली
41. जीनत शौकत अली, आईएमएसडी, विजडम फाउंडेशन, मुंबई