बरपेटा में दिल दहला देने वाले दृश्य तब देखने को मिले जब हिरासत में लिए गए लोगों को एशिया के सबसे बड़े हिरासत शिविर 'मटिया' में भेजा गया। इसके चलते उनके परिवार बेहद नाराज़ और दुखी हैं।
असम के बरपेटा ज़िले में सोमवार, 2 सितंबर 2024 को 28 व्यक्तियों को उनके घरों से हटा दिया गया, उनके परिवारों से अलग कर दिया गया और उन्हें “घोषित विदेशी” करार दिया गया। हिरासत में लिए गए लोगों में 19 पुरुष और 9 महिलाएं शामिल हैं। उनके परिवारों द्वारा महसूस की गई पीड़ा एक ऐसी दिल दहला देने वाली वास्तविकता को बयां करती है जिसमें वे अपने क़रीबियों से जबरन दूर किए गए और बिना किसी निश्चितता के फिर से मिलने का दर्द सह रहे हैं।
ये सभी लोग बंगाली मुस्लिम समुदाय से हैं, जिन्हें सोमवार को दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर करने के बहाने पुलिस अधीक्षक के कार्यालय में बुलाया गया था। इसके बजाय, उन्हें 50 किलोमीटर दूर गोलपारा ज़िले के मटिया ट्रांजिट कैंप के लिए जाने वाली बस में बिठा दिया गया। जब पुलिस की बस 28 परिवारों में से प्रत्येक के एक सदस्य को ले गई, तो उनके क़रीबियों को सड़कों पर रोते और गिरगिराते हुए देखा जा सकता था।
हिरासत में लिए गए लोगों के नाम:
यह घटना एक बड़ी और गहरी साजिश का हिस्सा प्रतीत होती है। 22 अगस्त 2024 तक असम विधानसभा के आंकड़ों से पता चलता है कि 2005 से विदेशी न्यायाधिकरणों (एफटी) द्वारा 54,411 से अधिक लोगों को "घोषित विदेशी" करार दिया गया है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने इन हिरासतों में तेजी ला दी है। हाल ही में मटिया में एक स्थायी हिरासत शिविर का उद्घाटन किया गया है, जो एशिया में इस प्रकार का सबसे बड़ा परिसर है। यह 27 जनवरी, 2023 से चालू है।
इसके पहले, पूरे असम में छह अस्थायी हिरासत शिविर थे, जो गोलपारा, कोकराझार, तेजपुर, सिलचर, डिब्रूगढ़ और जोरहाट में स्थित थे। कोकराझार महिलाओं के लिए एकमात्र शिविर था। मटिया शिविर अब विदेशी घोषित किए गए व्यक्तियों को हिरासत में लेने के लिए मुख्य स्थान के रूप में जाना जाता है। यहां लोगों को एफटी द्वारा फैसलों के बाद गिरफ्तार कर लिया जाता है।
विदेशी अधिनियम 1946 के तहत स्थापित विदेशी न्यायाधिकरणों का उद्देश्य अवैध प्रवासन से निपटना था। केवल असम में ही करीब 100 न्यायाधिकरण हैं, जो मुख्य रूप से “संदिग्ध” मतदाताओं और विदेशियों की स्थिति निर्धारित करने के लिए हैं। ये न्यायाधिकरण असम के मूल निवासियों द्वारा वर्षों तक किए गए आंदोलन के बाद अस्तित्व में आए, जो चिंतित थे कि बांग्लादेश से आने वाले अवैध प्रवासी उनकी पहचान और संस्कृति को खतरे में डाल रहे हैं।
इस बीच, सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) ने कानूनी सहायता देने के लिए कदम उठाया है, जिससे कई बंदियों को रिहाई में मदद मिली है और कुछ न्यायाधिकरणों के फैसलों को बदलवा दिया गया है। उच्च न्यायालय द्वारा कई बंदियों को जमानत पर रिहा कर दिया जाता है या भारतीय नागरिक घोषित कर दिया जाता है, लेकिन हिरासत और अनिश्चित भविष्य का दर्दनाक चक्र जारी रहता है। बरपेटा में हुई मौजूदा घटना ने लोगों को भावनात्मक रूप से झकझोर दिया, क्योंकि जब उनके क़रीबियों को घसीट कर ले जाया गया, तो परिवार के लोग रो रहे थे। यह ध्यान देने योग्य है कि CJP की असम टीम ने घटना के तुरंत बाद मटिया हिरासत शिविर का दौरा करने का प्रयास किया, लेकिन अधिकारियों ने उन्हें प्रवेश करने और बंदियों की स्थिति के बारे में जानकारी इकट्ठा करने से रोक दिया।
उन परिवारों के लिए वह दिन बड़ा मनहूस था जब उन्होंने इस अलगाव को महसूस किया। यह प्रेम, विश्वास और अपनेपन के बंधन में दरार का प्रतीक था।
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असम के बरपेटा ज़िले में सोमवार, 2 सितंबर 2024 को 28 व्यक्तियों को उनके घरों से हटा दिया गया, उनके परिवारों से अलग कर दिया गया और उन्हें “घोषित विदेशी” करार दिया गया। हिरासत में लिए गए लोगों में 19 पुरुष और 9 महिलाएं शामिल हैं। उनके परिवारों द्वारा महसूस की गई पीड़ा एक ऐसी दिल दहला देने वाली वास्तविकता को बयां करती है जिसमें वे अपने क़रीबियों से जबरन दूर किए गए और बिना किसी निश्चितता के फिर से मिलने का दर्द सह रहे हैं।
ये सभी लोग बंगाली मुस्लिम समुदाय से हैं, जिन्हें सोमवार को दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर करने के बहाने पुलिस अधीक्षक के कार्यालय में बुलाया गया था। इसके बजाय, उन्हें 50 किलोमीटर दूर गोलपारा ज़िले के मटिया ट्रांजिट कैंप के लिए जाने वाली बस में बिठा दिया गया। जब पुलिस की बस 28 परिवारों में से प्रत्येक के एक सदस्य को ले गई, तो उनके क़रीबियों को सड़कों पर रोते और गिरगिराते हुए देखा जा सकता था।
हिरासत में लिए गए लोगों के नाम:
- करामत अली
- अब्दुल लतीफ
- किताब अली
- सिराजुल हक़
- इब्राहिम अली
- हनीफ अली
- मंज़ूर आलम
- ऐनल मोंडल
- शहादत अली
- शा अली अकंद
- सनाउद्दीन
- रमेजुद्दीन
- अमजत अली
- बसेद अली
- सलाम अली
- अब्दुल जोयनल मीर
- शुकुर मिया
- मालम मिया
- अनवर हुसैन
- बसातन निसा
- ऐमोना खातून
- अजभा खातून
- सोबिया खातून
- मोनोवरा बेगम
- जाबेदा खातून
- सूफिया खातून
- रयजोन बेगम
- एतन निसा
यह घटना एक बड़ी और गहरी साजिश का हिस्सा प्रतीत होती है। 22 अगस्त 2024 तक असम विधानसभा के आंकड़ों से पता चलता है कि 2005 से विदेशी न्यायाधिकरणों (एफटी) द्वारा 54,411 से अधिक लोगों को "घोषित विदेशी" करार दिया गया है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने इन हिरासतों में तेजी ला दी है। हाल ही में मटिया में एक स्थायी हिरासत शिविर का उद्घाटन किया गया है, जो एशिया में इस प्रकार का सबसे बड़ा परिसर है। यह 27 जनवरी, 2023 से चालू है।
इसके पहले, पूरे असम में छह अस्थायी हिरासत शिविर थे, जो गोलपारा, कोकराझार, तेजपुर, सिलचर, डिब्रूगढ़ और जोरहाट में स्थित थे। कोकराझार महिलाओं के लिए एकमात्र शिविर था। मटिया शिविर अब विदेशी घोषित किए गए व्यक्तियों को हिरासत में लेने के लिए मुख्य स्थान के रूप में जाना जाता है। यहां लोगों को एफटी द्वारा फैसलों के बाद गिरफ्तार कर लिया जाता है।
विदेशी अधिनियम 1946 के तहत स्थापित विदेशी न्यायाधिकरणों का उद्देश्य अवैध प्रवासन से निपटना था। केवल असम में ही करीब 100 न्यायाधिकरण हैं, जो मुख्य रूप से “संदिग्ध” मतदाताओं और विदेशियों की स्थिति निर्धारित करने के लिए हैं। ये न्यायाधिकरण असम के मूल निवासियों द्वारा वर्षों तक किए गए आंदोलन के बाद अस्तित्व में आए, जो चिंतित थे कि बांग्लादेश से आने वाले अवैध प्रवासी उनकी पहचान और संस्कृति को खतरे में डाल रहे हैं।
इस बीच, सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) ने कानूनी सहायता देने के लिए कदम उठाया है, जिससे कई बंदियों को रिहाई में मदद मिली है और कुछ न्यायाधिकरणों के फैसलों को बदलवा दिया गया है। उच्च न्यायालय द्वारा कई बंदियों को जमानत पर रिहा कर दिया जाता है या भारतीय नागरिक घोषित कर दिया जाता है, लेकिन हिरासत और अनिश्चित भविष्य का दर्दनाक चक्र जारी रहता है। बरपेटा में हुई मौजूदा घटना ने लोगों को भावनात्मक रूप से झकझोर दिया, क्योंकि जब उनके क़रीबियों को घसीट कर ले जाया गया, तो परिवार के लोग रो रहे थे। यह ध्यान देने योग्य है कि CJP की असम टीम ने घटना के तुरंत बाद मटिया हिरासत शिविर का दौरा करने का प्रयास किया, लेकिन अधिकारियों ने उन्हें प्रवेश करने और बंदियों की स्थिति के बारे में जानकारी इकट्ठा करने से रोक दिया।
उन परिवारों के लिए वह दिन बड़ा मनहूस था जब उन्होंने इस अलगाव को महसूस किया। यह प्रेम, विश्वास और अपनेपन के बंधन में दरार का प्रतीक था।
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