राजस्थान के भीलवाड़ा जिले का करेड़ा कस्बा विगत दो वर्षों से दलित व पिछड़े समुदाय के लिये अन्याय उत्पीड़न का जीवंत उदाहरण बन गया है, दलित पिछड़ों से उनके स्वामित्व वाली 25 बीघा जमीन जबरन छीन ली गई है, विरोध करने पर उन्हें ही फर्जी मामलों में फंसा कर जेल भेज दिया गया, जबकि दलित समुदाय द्वारा दर्ज मामले विगत दो वर्ष से या तो जैर तफ़्तीश रखे गये है, या उन्हें अदम वकु झूठा ही बता कर अंतिम रिपोर्ट दे दी गई है.
इन दलित पिछड़ों के आबादी भूमि में बने लाखों रुपये की कीमत वाले मकानों को रात के अंधेरे में बुलडोजर लगा कर नेस्तनाबूद कर दिया गया, आज भी ध्वंस के अवशेष के रूप में मलबा मौके पर मौजूद है, इतना ही नहीं बल्कि एक संत ने इन अपने ही स्वधर्मी दलित पिछड़ों के कुलदेवताओं की दर्जनों मूर्तियां तोड़ डाली, आस्था स्थल को ध्वस्त कर दिया.
इस सब अन्याय और तांडव को शासन और प्रशासन खामोशी के साथ देखता रहा, कमजोर वर्ग के पीड़ितों के बचाव के लिए उसने कुछ नहीं किया, उल्टे उन्हीं को धमकाया, पीड़ितों को ही फंसाया और कानून एवम व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ा कर रख दी, हम जैसे कथित बुद्धिजीवी, मीडियाकर और दलित रहनुमा भी इस अन्याय में सहयोगी रहे.
...अन्यायकर्ताओं के साथ मैं भी था !
मैंने भी प्रारम्भ में गलत तथ्यों की वजह से इन अन्यायकारी लोगों का साथ देने का ' अपराध' किया और इस अन्याय को सिर्फ 'प्रोपर्टी का विवाद' कहने की ऐतिहासिक भूल की, इसके लिए मैं सार्वजनिक रूप से सब पीड़ितों और न्याय समानता का संग्राम करने वाले साथियों से माफी मांगता हूं.
मेरी तरह हजारों और लोगों ने भी जनभावनाओं और गलत जानकारियों से भ्रमित हो कर गलत का साथ दिया, अन्याय का पक्ष लिया, उत्पीड़नकारी शक्तियों का सहयोग किया, जो कि स्वयं में ही सबसे बड़ा अपराध है, पिछले दिनों मैंने इस भूल को सुधारने के लिए पीड़ितों से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात कर माफी मांगी और उनको न्याय के लिये किये जा रहे उनके संघर्ष में सम्पूर्ण सहयोग देने की प्रतिबद्धता प्रकट की ।
यह इंसाफ की जंग के साथ खड़े होने की दिशा में हमारी प्रथम पहलकदमी है, इसी के तहत करेड़ा की अन्याय गाथा को आपके समक्ष रख रहा हूँ, कृपया पढ़ें, विचारें और इंसाफ के लिए होने जा रहे इस आंदोलन के सहभागी बनें -
इन दलित पिछड़ों के आबादी भूमि में बने लाखों रुपये की कीमत वाले मकानों को रात के अंधेरे में बुलडोजर लगा कर नेस्तनाबूद कर दिया गया, आज भी ध्वंस के अवशेष के रूप में मलबा मौके पर मौजूद है, इतना ही नहीं बल्कि एक संत ने इन अपने ही स्वधर्मी दलित पिछड़ों के कुलदेवताओं की दर्जनों मूर्तियां तोड़ डाली, आस्था स्थल को ध्वस्त कर दिया.
इस सब अन्याय और तांडव को शासन और प्रशासन खामोशी के साथ देखता रहा, कमजोर वर्ग के पीड़ितों के बचाव के लिए उसने कुछ नहीं किया, उल्टे उन्हीं को धमकाया, पीड़ितों को ही फंसाया और कानून एवम व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ा कर रख दी, हम जैसे कथित बुद्धिजीवी, मीडियाकर और दलित रहनुमा भी इस अन्याय में सहयोगी रहे.
...अन्यायकर्ताओं के साथ मैं भी था !
मैंने भी प्रारम्भ में गलत तथ्यों की वजह से इन अन्यायकारी लोगों का साथ देने का ' अपराध' किया और इस अन्याय को सिर्फ 'प्रोपर्टी का विवाद' कहने की ऐतिहासिक भूल की, इसके लिए मैं सार्वजनिक रूप से सब पीड़ितों और न्याय समानता का संग्राम करने वाले साथियों से माफी मांगता हूं.
मेरी तरह हजारों और लोगों ने भी जनभावनाओं और गलत जानकारियों से भ्रमित हो कर गलत का साथ दिया, अन्याय का पक्ष लिया, उत्पीड़नकारी शक्तियों का सहयोग किया, जो कि स्वयं में ही सबसे बड़ा अपराध है, पिछले दिनों मैंने इस भूल को सुधारने के लिए पीड़ितों से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात कर माफी मांगी और उनको न्याय के लिये किये जा रहे उनके संघर्ष में सम्पूर्ण सहयोग देने की प्रतिबद्धता प्रकट की ।
यह इंसाफ की जंग के साथ खड़े होने की दिशा में हमारी प्रथम पहलकदमी है, इसी के तहत करेड़ा की अन्याय गाथा को आपके समक्ष रख रहा हूँ, कृपया पढ़ें, विचारें और इंसाफ के लिए होने जा रहे इस आंदोलन के सहभागी बनें -