दिल्ली चुनाव की वोटिंग की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, वैसे- वैसे सियासी लड़ाई रोचक बनती जा रही। दिल्ली में इस बार चुनाव एकतरफा कतई नहीं है और न ही किसी के पक्ष में कोई हवा है। दिल्ली में एक-एक सीट पर चुनावी फाइट काफी टाइट है, जिसके चलते दिल्ली चुनाव दिलचस्प बनता जा रहा है।
फोटो साभार : द ट्रिब्यून
"दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी से लेकर बीजेपी और कांग्रेस तक सभी सत्ता हासिल करने के लिए पूरा दम लगा रहे हैं, लेकिन इस बार राजधानी में मुकाबला कतई एकतरफा नहीं है। रोचक भिड़ंत है। कुछ वोटर्स इधर उधर हुए तो सियासी गेम बदल जाएगा। इसीलिए कांग्रेस, बीजेपी और आम आदमी पार्टी पूरी ताकत लगाए हुए हैं। लेकिन बड़ा सवाल है कि मुफ्त की रेवड़ियों के बीच कौन बाजी मारेगा, क्या महिलाओं के हाथ होगी दिल्ली में जीत की चाबी? क्या कहता है पिछले तीन चुनावों का ट्रेंड?"
दिल्ली चुनाव की वोटिंग की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, वैसे- वैसे सियासी लड़ाई रोचक बनती जा रही। दिल्ली में इस बार चुनाव एकतरफा कतई नहीं है और न ही किसी के पक्ष में कोई हवा है। दिल्ली में एक-एक सीट पर चुनावी फाइट काफी टाइट है, जिसके चलते दिल्ली चुनाव दिलचस्प बनता जा रहा है। आम आदमी पार्टी दिल्ली की सत्ता पर अपना दबदबा बनाए रखने के लिए पूरा दम लगा रही है तो बीजेपी इस बार 27 साल के वनवास को तोड़ने की कवायद में है। कांग्रेस दिल्ली चुनाव को त्रिकोणीय बनाने में जुटी है। इस तरह 2025 का दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 और 2020 के चुनाव से काफी अलग दिख रहा है? टीवी-9, देशबंधु और डाउन टू अर्थ आदि मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, दिल्ली की करीब डेढ़ दर्जन विस सीटों पर 2020 में जीत-हार का अंतर काफी करीबी था। कम अंतर वाली ये सीटें पिछले चुनाव में केजरीवाल की सरकार बनाने में निर्णायक साबित हुई थी। 2020 के चुनाव में कांटे की फाइट वाली सीटों में से आम आदमी पार्टी 13 सीटें जीती थी और बीजेपी ने चार सीटें जीती थी। इस बार दोनों ही पार्टियों ने इन सीटों में से कई सीटों पर अपने उम्मीदवार बदल दिए हैं।
पिछले तीन चुनाव के वोटिंग पैटर्न देखें तो पांच साल पहले 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 62 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया था, लेकिन 17 सीट पर हार-जीत का अंतर दस हजार से कम वोटों का रहा था। अगर वोट फीसदी के लिहाज से देखें तो 13 सीटों पर हार जीत का अंतर 5 फीसदी से कम था, जिसमें से 10 आम आदमी पार्टी और 3 सीटें बीजेपी ने जीती थी। 2015 में 6 सीटों पर 5 फीसदी से कम का अंतर रहा था जबकि 2013 में 27 सीटें थी। वहीं, पांच से दस फीसदी के अंतर से जीतने वाली सीटें देखते हैं तो 2013 में 20 सीटें थी, जिसमें 13 AAP, 7 बीजेपी और 1 कांग्रेस की सीट थी। 2015 में 7 सीटों पर हार जीत हुई थी, जिसमें 6 AAP और एक बीजेपी जीती थी। 2020 में 8 सीटों पर हार जीत हुई थी, जिसमें से 6 सीटें आम आदमी पार्टी और दो सीटें बीजेपी जीती थी। 10 से 15 फीसदी के बीच जीत-हार वाली सीटें देखें तो 2013 में 10, 2015 में 4 और 2020 में सीटें जीती थी। इस तरह 15 फीसदी से कम अंतर से 2020 में 38 सीटों पर हार जीत हुई थी, जिसमें 31 सीट AAP और 7 सीटें बीजेपी ने जीती थी।
दिल्ली 2020 विधानसभा चुनाव का गहनता से विश्लेषण करें तो बीजेपी को जिन 8 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, उनमें से 4 पर जीत का अंतर बहुत कम था। ये सीटें थीं करावल नगर, गांधी नगर , विश्वास नगर और बदरपुर सीट, जहां पर बीजेपी ने अपने प्रत्याशी को बदल दिया है। बीजेपी ने इन सीटों पर अपने नए चेहरे उतारे हैं। करावल नगर से विधायक मोहन सिंह बिष्ट को मुस्तफाबाद भेज दिया गया है और उनकी जगह कपिल मिश्रा को बीजेपी ने टिकट दिया है। गांधी नगर सीट से मौजूदा विधायक अनिल कुमार वाजपेयी की जगह पूर्व कांग्रेस मंत्री अरविंदर सिंह लवली को उतारा गया है। आम आदमी पार्टी ने जिन 13 सीटों पर बहुत कम अंतर से 2020 में जीत दर्ज की थी, उसमें शाहदरा, कृष्णा नगर, छतरपुर, आरके पुरम, कस्तूरबा नगर, बिजवासन, नजफगढ़, त्रिनगर, शकूरबस्ती, शालीमार बाग, किराड़ी और आदर्श नगर सीट है। पार्टी ने उन 13 विधायकों में से 9 को बदल दिया है और नए चेहरे या फिर दूसरे दल से आए हुए मजबूत नेताओं को उतारा है। आम आदमी पार्टी ने सत्ता विरोधी लहर को काउंटर करने के मकसद से अपने जीते हुए विधायकों का टिकट काटकर नए चेहरे पर दांव खेला है।
2020 में अपनी मजबूत जीत के बावजूद आम आदमी पार्टी को इस बार दिल्ली विधानसभा चुनावों में बनते करीबी मुकाबलें से सियासी टेंशन बढ़नी लाजमी है। 2015 की तुलना में 2020 के चुनाव में ज्यादा प्रत्याशियों ने 5 फीसदी से कम अंतर से जीत दर्ज की थी। 2020 में 17 फीसदी सीटों पर हार-जीत का अंतर 10 हजार से कम वोट का था। ज्यादा वोटों से जीत का अंतर निर्णायक जीत का संकेत देता है जबकि कम अंतर से जीतने वाली सीटों के संकेत कड़ी टक्कर की संभावना को जताता है। 2013, 2015 से 2020 तक जीत के अंतर में बदलाव हुआ है, यहां तक कि AAP की शानदार जीत के बावजूद 2025 के चुनावों में पार्टी के लिए एक चेतावनी के रूप में टेंशन बढ़ रही है। पिछले चार विधानसभा चुनावों के नतीजों का विश्लेषण करते हैं तो कुल 280 सीटों में से 69 सीटों पर पांच प्रतिशत या उससे कम के अंतर से हार-जीत हुई थी। वहीं, 43 सीटें पांच से 10 फीसदी के बीच के अंतर से जीती गईं, जिसका अर्थ है कि सभी सीटों में से लगभग 40 प्रतिशत का फैसला 10 प्रतिशत से कम अंतर से हुआ। 2020 के विधानसभा चुनावों में 21 सीटों पर 10 प्रतिशत से कम का अंतर था। इसी से इस बार के चुनाव में अगर कुछ वोटर्स इधर से उधर हुए तो सियासी गेम बदल सकता है।
क्या महिलाओं के हाथों में होगी सत्ता की चाबी!
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए लगभग 1.55 करोड़ मतदाता 70 विधानसभा सीटों के लिए मतदान करेंगे, लेकिन माना जा रहा है कि सत्ता की चाबी महिलाओं के पास होगी, जिनकी संख्या 71.73 लाख है। यही वजह है कि सत्ता की दौड़ में शामिल तीनों प्रमुख राजनीतिक दल महिलाओं को नगद हस्तांतरण का वादा कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी ने महिलाओं को 2,100 रुपए, कांग्रेस ने 2,500 रुपए और भाजपा ने 2,500 रुपए महीना देने की घोषणा की है। भाजपा ने मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व हरियाणा विस चुनाव में भी महिलाओं के लिए इस तरह की योजनाओं की घोषणा की थी। माना जाता है कि इन योजनाओं की वजह से भाजपा को अच्छी- खासी बढ़त मिली। मध्य प्रदेश चुनाव से पहले ही भाजपा ने लाडली बहना योजना की शुरुआत की थी और 1,000 रुपए प्रति महिला भुगतान किया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने रीवा में आयोजित एक राज्यस्तरीय समारोह में 1.25 करोड़ महिलाओं के खाते में 1-1 हजार रुपए की राशि का अंतरण किया, जो उस समय 1209 करोड़ रुपए थी। जीत के बाद इस राशि को बढ़ाकर 1,250 रुपए कर दिया गया। हाल ही में दिसंबर 2024 की किस्त 1.27 करोड़ महिलाओं को 1,553 करोड़ रुपए दिए गए। यहां यह उल्लेखनीय है कि चुनाव के दौरान भाजपा नेताओं ने वादा किया था कि 1,000 रुपए की राशि को धीरे-धीरे बढ़ा कर 3,000 रुपए कर दिया जाएगा। यह कब होगा, अभी स्पष्ट नहीं है?। लेकिन भाजपा ने यही नुस्खा महाराष्ट्र में आजमाया और विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लगभग 2.34 करोड़ महिलाओं को 1,500 रुपए प्रति माह की राशि वितरित की। साथ ही चुनावी घोषणा पत्र में इसे बढ़ाकर 2,100 रुपए प्रति माह करने का वादा किया गया। लेकिन सरकार बनने के बाद आरोप लग रहे हैं कि महाराष्ट्र सरकार लाभार्थियों की संख्या कम करने का प्रयास कर रही है। वहीं, अभी महिलाओं को 1,500 रुपए मिल रहे हैं। सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि इस साल बजट में ये राशि बढ़ाई जाएगी। हरियाणा चुनाव में भी महिलाओं को नगद हस्तांतरण का नुस्खा आजमाया यहां लाडो लक्ष्मी योजना के तहत ‘सभी’ महिलाओं को 2,100 रुपए प्रति माह देने का वादा किया गया। यहां भी भाजपा जीती। अक्टूबर 2024 में भाजपा की सरकार बन गई, लेकिन 30 जनवरी 2025 तक महिलाओं को एक भी किस्त नहीं दी गई है। यह राशि कितनी होगी, और कितनी महिलाओं को दी जाएगी, अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है।
दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी ने सबसे पहले महिलाओं को 2,100 रुपए प्रति माह देने की घोषणा की। खास बात यह है कि आम आदमी पार्टी ने हर महिला को 2,100 रुपए देने की घोषणा की है, जबकि कांग्रेस ने गरीब परिवार की एक महिला को 2,500 रुपए देने की बात कही है। वहीं, भाजपा ने साफ नहीं किया है कि यह राशि हर महिला को मिलेगी या गरीब महिलाओं को? दिल्ली में भाजपा-कांग्रेस भी, आम आदमी पार्टी पर आरोप लगा रही हैं कि उसने 2022 में पंजाब चुनाव में महिलाओं को 1,000 रुपए प्रति माह देने का वादा किया था, लेकिन अब तक यह राशि देने की शुरुआत नहीं की गई है।
इसके अलावा कर्नाटक में राज्य सरकार द्वारा अंत्योदन, बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) व एपीएल कार्ड धारक लगभग 1.25 करोड़ महिलाओं को 2,000 रुपए प्रतिमाह दिए जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग की महिलाओं को 1,200 रुपए और आर्थिक रूप से कमजोर अन्य वर्ग की महिलाओं को 1,000 रुपए प्रति माह दिए जाते हैं। झारखंड में मुख्यमंत्री मैया सम्मान योजना के तहत लगभग 55 लाख महिलाओं को 1,000 रुपए प्रति माह दिए जा रहे थे, लेकिन जनवरी माह में इस राशि को बढ़ा कर 2,500 रुपए कर दिए गए हैं। इनके अलावा ओडिशा में महिलाओं को हर साल 10,000 रुपए देने के लिए सुभद्रा योजना की शुरुआत की गई है, लेकिन यह भी 2.50 लाख रुपए सालाना आमदनी वाले परिवार की महिला को दिया जाएगा।
यहां उल्लेखनीय है कि महिलाओं को नगद हस्तांतरण को लेकर कुछ अर्थशास्त्री चिंता जता रहे हैं कि इससे राज्यों की अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ेगा तो कुछ जानकारों का कहना है कि इससे परिवारों में महिलाओं और उनमें निर्णय लेने की स्थिति में सुधार होता है। उनकी वित्तीय स्वायत्तता को बढ़ावा मिलता है, जिससे वे अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार खर्च कर सकती हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान सरकार ने महिलाओं के जनधन खातों में सीधा नकद हस्तांतरण किया था, जिसे एक महत्वपूर्ण पहल माना गया था। हाल के कुछ सालों में हुए विधानसभा चुनावों में महिलाओं को नगद हस्तांतरण का वादा कारगर रहा है। इसीलिए दिल्ली में भी इसे आजमाया जा रहा है। देखना यह है कि महिलाएं किस राजनीतिक दल के वायदे पर ज्यादा भरोसा करती हैं।
मुफ्त में दी जाने वाली रेवड़ियों पर भाजपा का रुख हास्यास्पद!
मुफ्त में दी जाने वाली चीजों पर भाजपा का रुख हास्यास्पद हो गया है। यही कारण है कि चुनाव प्रचार की शुरुआत में भाजपा आक्रामक और आप के राजनीतिक कथानक पर हावी दिख रही थी, लेकिन अब जब चुनाव प्रचार अपने चरम पर पहुंच रहा है, तो भाजपा रक्षात्मक हो गई है और अनजाने में अपने ही राजनीतिक जाल में फंस गयी है। वरिष्ठ पत्रकार डॉ ज्ञान पाठक लिखते हैं कि अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत में भाजपा ने दो खास रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित किया- पहला, भ्रष्टाचार के लिए आप नेतृत्व को निशाना बनाना और दिल्ली के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले मुफ्तखोरी में सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंचाना; और दूसरा कांग्रेस पर इस बात का निशाना साधना कि इंडिया ब्लॉक टूट रहा है। भाजपा के इस अभियान ने हालांकि कांग्रेस की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया, लेकिन इसने उसके विरोधी आप को मजबूत किया। भाजपा को उम्मीद थी कि उनके अलग होने से भाजपा विरोधी वोट बंट जायेंगे, जिसका फायदा भाजपा को होगा। उनका ऐसा सोचना सही था, लेकिन कांग्रेस को निशाना बनाने की उनकी रणनीति गलत साबित हुई, क्योंकि कांग्रेस को कमजोर करने के प्रयासों ने भाजपा विरोधी वोटों को और अधिक विभाजित करने की कांग्रेस की क्षमता को कम कर दिया। वहीं जब तृणमूल कांग्रेस टीएमसी, समाजवादी पार्टी (एसपी) जैसे अन्य राजनीतिक दल खुलकर आप के पक्ष में आ गये, तो स्थिति बदल गयी। कांग्रेस और भी कमजोर हो गयी, एक तो इसलिए क्योंकि वह भाजपा के निशाने पर थी, और दूसरा इसलिए क्योंकि दिल्ली के मतदाताओं को यह स्पष्ट संकेत मिल गया कि कांग्रेस दिल्ली चुनाव में इंडिया ब्लॉक सहयोगियों के बीच भी अलग-थलग पड़ गयी है। यह आप से सत्ता छीनकर दिल्ली चुनाव जीतने की भाजपा की राजनीतिक संभावनाओं के खिलाफ गया, क्योंकि भाजपा नेतृत्व भाजपा विरोधी मतों के विभाजन की उम्मीद कर रहा था।
शुरू में, भाजपा को उम्मीद थी कि कांग्रेस 2020 के विधानसभा चुनावों में मिले 5 प्रतिशत से भी कम वोट शेयर को बढ़ाकर लगभग 15 प्रतिशत करने में सक्षम होगी, जिससे भाजपा की जीत का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। हालांकि, दिल्ली में तेजी से बदलते राजनीतिक परिदृश्य में, कांग्रेस की चुनावी संभावना उस स्तर तक नहीं बढ़ सकी, जिसकी भाजपा को उम्मीद थी, जिसके लिए भाजपा की अपनी रणनीतिक गलतियां भी जिम्मेदार हैं। दूसरे शब्दों में, भाजपा ने अपनी संभावनाओं को खुद ही नुकसान पहुंचाया। दूसरी ओर, टीएमसी और एसपी द्वारा दिल्ली में न केवल आप का समर्थन करने, बल्कि उसके उम्मीदवारों के लिए प्रचार करने के फैसले ने भाजपा विरोधी वोटों में विभाजन की संभावना को काफी हद तक कम कर दिया है, जिनमें से अधिकांश अभी भी आप के साथ हैं, और केवल एक छोटे से हिस्से के कांग्रेस की ओर जाने की संभावना है। आप के पक्ष में इंडिया ब्लॉक सहयोगियों का कदम वास्तव में कांग्रेस के खिलाफ नहीं है, बल्कि भाजपा के खिलाफ लक्षित है, वह भी एकजुट होकर। इसलिए, जमीनी स्तर पर राजनीतिक स्थिति से पता चलता है कि चुनावी लड़ाई मुख्य रूप से आप और भाजपा के बीच लड़ी जा रही है, और कांग्रेस राजनीतिक लड़ाई के किनारे पर है। आप और उसके सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के खिलाफ भाजपा की राजनीतिक रणनीति शुरू में भ्रष्टाचार के आरोपों के इर्द-गिर्द घूमती थी। चुनाव के दौरान भी, केंद्र सरकार ने अरविंद केजरीवाल के खिलाफ अभियोजन को मंजूरी दी थी। दिल्ली शराब मामले में भ्रष्टाचार के सभी आरोपी पहले ही जमानत पर हैं, ऊपर से सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी भी की है। इस प्रकार, नयी मंजूरी को आम मतदाताओं ने भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी को प्रताड़ित करने के रूप में देखा।
भाजपा नेतृत्व, खास तौर पर भारत के प्रधानमंत्री ने विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा आम लोगों के लिए शुरू की गयी कल्याणकारी योजनाओं के तहत मुफ्त में दी जाने वाली चीजों को 'रेवाड़ियां' करार दिया है। भाजपा नेतृत्व ने दावा किया कि मुफ्त में दी जाने वाली चीजों से सरकारी खजाने और देश के विकास को भारी नुकसान हो रहा है। इसके बाद आप सुप्रीमो केजरीवाल ने 'रेवड़ी पर चर्चा' नामक राजनीतिक अभियान शुरू किया। उनके अभियान को लोगों से बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली, जिसके कारण भाजपा को भी सत्ता में आने पर कई मुफ्त चीजें देने का वायदा करना पड़ा। हालांकि, भाजपा के मुफ्त में दी जाने वाली चीजों के वायदे सतही तौर पर मतदाताओं को लुभाने वाले थे, लेकिन अरविंद केजरीवाल के हाथों में एक नया हथियार आ गया, जिन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अब यह स्वीकार करना चाहिए कि आप द्वारा मुफ्त में दी जाने वाली चीजें राष्ट्रीय विकास के लिए बुरी नहीं हैं, क्योंकि वे भी मुफ्त में देने का वायदा कर रहे हैं।
मुफ्त में दी जाने वाली चीजों पर भाजपा का रुख तब और हास्यास्पद हो गया, जब अरविंद केजरीवाल ने अपना नया अभियान शुरू करते हुए दावा किया कि अगर भाजपा सत्ता में आई तो वह लोगों के लिए आप सरकार द्वारा शुरू की गयी सभी कल्याणकारी योजनाओं को बंद कर देगी। भाजपा के शासन में मुफ्त बिजली, पानी, शिक्षा या स्वास्थ्य सेवा बंद कर दी जायेगी। इससे भाजपा फिर से रक्षात्मक हो गयी है और पार्टी चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में कह रही है कि अगर वह सत्ता में आती है तो केजरीवाल सरकार द्वारा शुरू की गयी किसी भी कल्याणकारी योजना को बंद नहीं करेगी। इसके अलावा, भाजपा नेता कह रहे हैं कि वे कई नये कल्याणकारी कार्यक्रम शुरू करेंगे और पार्टी ने अपने घोषणापत्र में इसका वायदा किया है। इस तरह भाजपा अप्रत्यक्ष रूप से केजरीवाल और आप सरकार के लिए प्रचार कर रही है।
दिल्ली के चुनाव प्रचार में भाजपा की ओर से अधिकारियों की प्रत्यक्ष भागीदारी भी स्पष्ट रूप से देखी गयी है, जो लोकतंत्र में बहुत बुरी बात है, क्योंकि दिल्ली में अधिकारी निर्वाचित आप सरकार के सीधे नियंत्रण में नहीं हैं, बल्कि कानून के तहत उपराज्यपाल के नियंत्रण में हैं, जो भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के निर्देश पर काम करते हैं। चुनाव प्रचार के दौरान जब आप ने महिलाओं को अधिक वित्तीय मदद और अन्य लोगों को मुफ्त चिकित्सा सुविधाओं का वायदा किया, तो सरकारी अधिकारियों ने सार्वजनिक नोटिस जारी किया कि वायदे धोखाधड़ी हैं। आप के खिलाफ राजनीति करने वाले अधिकारियों का ताजा उदाहरण दिल्ली जल बोर्ड के सीईओ द्वारा अरविंद केजरीवाल के इस आरोप का खंडन है कि हरियाणा यमुना नदी के पानी को जहरीला बना रहा है। डीजेबी के सीईओ ने दिल्ली के मुख्य सचिव को एक लिखित पत्र भेजा है और कहा है कि हरियाणा के खिलाफ केजरीवाल का आरोप 'तथ्यात्मक रूप से गलत और आधारहीन' है। उन्होंने पत्र को उपराज्यपाल को भेजने का अनुरोध किया है। यह पत्र मीडिया में लीक हो गया है और व्यापक रूप से प्रकाशित हुआ है। यह सर्वविदित है कि यमुना अपने प्रवाह के हर हिस्से में प्रदूषित हो रही है, जिसमें हरियाणा भी शामिल है, जहां अनुपचारित पानी और औद्योगिक अपशिष्टों का निर्वहन किया जा रहा है।
हरियाणा पर अरविंद केजरीवाल का आरोप पूरी तरह से गलत नहीं है। उनके आरोप का राजनीतिक महत्व है, क्योंकि पानी की आपूर्ति की गुणवत्ता और यमुना का गंदा पानी हाल ही में प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन गये हैं। हरियाणा में भाजपा का शासन है, जबकि दिल्ली में आप का शासन है। दिल्ली के अधिकारियों द्वारा आप और दिल्ली के उसके नेतृत्व के विरुद्ध काम करने तथा भाजपा शासित हरियाणा का बचाव करने को अधिकारियों की अपनी ही चुनी हुई सरकार के खिलाफ राजनीतिक भागीदारी के रूप में देखा जा रहा है। दिल्ली में राजनीतिक अभियान में अब बड़ा बदलाव देखने को मिला है, और 3 फरवरी को समाप्त होने से पहले यह विश्लेषकों को और अधिक आश्चर्यचकित कर सकता है।
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"दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी से लेकर बीजेपी और कांग्रेस तक सभी सत्ता हासिल करने के लिए पूरा दम लगा रहे हैं, लेकिन इस बार राजधानी में मुकाबला कतई एकतरफा नहीं है। रोचक भिड़ंत है। कुछ वोटर्स इधर उधर हुए तो सियासी गेम बदल जाएगा। इसीलिए कांग्रेस, बीजेपी और आम आदमी पार्टी पूरी ताकत लगाए हुए हैं। लेकिन बड़ा सवाल है कि मुफ्त की रेवड़ियों के बीच कौन बाजी मारेगा, क्या महिलाओं के हाथ होगी दिल्ली में जीत की चाबी? क्या कहता है पिछले तीन चुनावों का ट्रेंड?"
दिल्ली चुनाव की वोटिंग की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, वैसे- वैसे सियासी लड़ाई रोचक बनती जा रही। दिल्ली में इस बार चुनाव एकतरफा कतई नहीं है और न ही किसी के पक्ष में कोई हवा है। दिल्ली में एक-एक सीट पर चुनावी फाइट काफी टाइट है, जिसके चलते दिल्ली चुनाव दिलचस्प बनता जा रहा है। आम आदमी पार्टी दिल्ली की सत्ता पर अपना दबदबा बनाए रखने के लिए पूरा दम लगा रही है तो बीजेपी इस बार 27 साल के वनवास को तोड़ने की कवायद में है। कांग्रेस दिल्ली चुनाव को त्रिकोणीय बनाने में जुटी है। इस तरह 2025 का दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 और 2020 के चुनाव से काफी अलग दिख रहा है? टीवी-9, देशबंधु और डाउन टू अर्थ आदि मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, दिल्ली की करीब डेढ़ दर्जन विस सीटों पर 2020 में जीत-हार का अंतर काफी करीबी था। कम अंतर वाली ये सीटें पिछले चुनाव में केजरीवाल की सरकार बनाने में निर्णायक साबित हुई थी। 2020 के चुनाव में कांटे की फाइट वाली सीटों में से आम आदमी पार्टी 13 सीटें जीती थी और बीजेपी ने चार सीटें जीती थी। इस बार दोनों ही पार्टियों ने इन सीटों में से कई सीटों पर अपने उम्मीदवार बदल दिए हैं।
पिछले तीन चुनाव के वोटिंग पैटर्न देखें तो पांच साल पहले 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 62 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया था, लेकिन 17 सीट पर हार-जीत का अंतर दस हजार से कम वोटों का रहा था। अगर वोट फीसदी के लिहाज से देखें तो 13 सीटों पर हार जीत का अंतर 5 फीसदी से कम था, जिसमें से 10 आम आदमी पार्टी और 3 सीटें बीजेपी ने जीती थी। 2015 में 6 सीटों पर 5 फीसदी से कम का अंतर रहा था जबकि 2013 में 27 सीटें थी। वहीं, पांच से दस फीसदी के अंतर से जीतने वाली सीटें देखते हैं तो 2013 में 20 सीटें थी, जिसमें 13 AAP, 7 बीजेपी और 1 कांग्रेस की सीट थी। 2015 में 7 सीटों पर हार जीत हुई थी, जिसमें 6 AAP और एक बीजेपी जीती थी। 2020 में 8 सीटों पर हार जीत हुई थी, जिसमें से 6 सीटें आम आदमी पार्टी और दो सीटें बीजेपी जीती थी। 10 से 15 फीसदी के बीच जीत-हार वाली सीटें देखें तो 2013 में 10, 2015 में 4 और 2020 में सीटें जीती थी। इस तरह 15 फीसदी से कम अंतर से 2020 में 38 सीटों पर हार जीत हुई थी, जिसमें 31 सीट AAP और 7 सीटें बीजेपी ने जीती थी।
दिल्ली 2020 विधानसभा चुनाव का गहनता से विश्लेषण करें तो बीजेपी को जिन 8 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, उनमें से 4 पर जीत का अंतर बहुत कम था। ये सीटें थीं करावल नगर, गांधी नगर , विश्वास नगर और बदरपुर सीट, जहां पर बीजेपी ने अपने प्रत्याशी को बदल दिया है। बीजेपी ने इन सीटों पर अपने नए चेहरे उतारे हैं। करावल नगर से विधायक मोहन सिंह बिष्ट को मुस्तफाबाद भेज दिया गया है और उनकी जगह कपिल मिश्रा को बीजेपी ने टिकट दिया है। गांधी नगर सीट से मौजूदा विधायक अनिल कुमार वाजपेयी की जगह पूर्व कांग्रेस मंत्री अरविंदर सिंह लवली को उतारा गया है। आम आदमी पार्टी ने जिन 13 सीटों पर बहुत कम अंतर से 2020 में जीत दर्ज की थी, उसमें शाहदरा, कृष्णा नगर, छतरपुर, आरके पुरम, कस्तूरबा नगर, बिजवासन, नजफगढ़, त्रिनगर, शकूरबस्ती, शालीमार बाग, किराड़ी और आदर्श नगर सीट है। पार्टी ने उन 13 विधायकों में से 9 को बदल दिया है और नए चेहरे या फिर दूसरे दल से आए हुए मजबूत नेताओं को उतारा है। आम आदमी पार्टी ने सत्ता विरोधी लहर को काउंटर करने के मकसद से अपने जीते हुए विधायकों का टिकट काटकर नए चेहरे पर दांव खेला है।
2020 में अपनी मजबूत जीत के बावजूद आम आदमी पार्टी को इस बार दिल्ली विधानसभा चुनावों में बनते करीबी मुकाबलें से सियासी टेंशन बढ़नी लाजमी है। 2015 की तुलना में 2020 के चुनाव में ज्यादा प्रत्याशियों ने 5 फीसदी से कम अंतर से जीत दर्ज की थी। 2020 में 17 फीसदी सीटों पर हार-जीत का अंतर 10 हजार से कम वोट का था। ज्यादा वोटों से जीत का अंतर निर्णायक जीत का संकेत देता है जबकि कम अंतर से जीतने वाली सीटों के संकेत कड़ी टक्कर की संभावना को जताता है। 2013, 2015 से 2020 तक जीत के अंतर में बदलाव हुआ है, यहां तक कि AAP की शानदार जीत के बावजूद 2025 के चुनावों में पार्टी के लिए एक चेतावनी के रूप में टेंशन बढ़ रही है। पिछले चार विधानसभा चुनावों के नतीजों का विश्लेषण करते हैं तो कुल 280 सीटों में से 69 सीटों पर पांच प्रतिशत या उससे कम के अंतर से हार-जीत हुई थी। वहीं, 43 सीटें पांच से 10 फीसदी के बीच के अंतर से जीती गईं, जिसका अर्थ है कि सभी सीटों में से लगभग 40 प्रतिशत का फैसला 10 प्रतिशत से कम अंतर से हुआ। 2020 के विधानसभा चुनावों में 21 सीटों पर 10 प्रतिशत से कम का अंतर था। इसी से इस बार के चुनाव में अगर कुछ वोटर्स इधर से उधर हुए तो सियासी गेम बदल सकता है।
क्या महिलाओं के हाथों में होगी सत्ता की चाबी!
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए लगभग 1.55 करोड़ मतदाता 70 विधानसभा सीटों के लिए मतदान करेंगे, लेकिन माना जा रहा है कि सत्ता की चाबी महिलाओं के पास होगी, जिनकी संख्या 71.73 लाख है। यही वजह है कि सत्ता की दौड़ में शामिल तीनों प्रमुख राजनीतिक दल महिलाओं को नगद हस्तांतरण का वादा कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी ने महिलाओं को 2,100 रुपए, कांग्रेस ने 2,500 रुपए और भाजपा ने 2,500 रुपए महीना देने की घोषणा की है। भाजपा ने मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व हरियाणा विस चुनाव में भी महिलाओं के लिए इस तरह की योजनाओं की घोषणा की थी। माना जाता है कि इन योजनाओं की वजह से भाजपा को अच्छी- खासी बढ़त मिली। मध्य प्रदेश चुनाव से पहले ही भाजपा ने लाडली बहना योजना की शुरुआत की थी और 1,000 रुपए प्रति महिला भुगतान किया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने रीवा में आयोजित एक राज्यस्तरीय समारोह में 1.25 करोड़ महिलाओं के खाते में 1-1 हजार रुपए की राशि का अंतरण किया, जो उस समय 1209 करोड़ रुपए थी। जीत के बाद इस राशि को बढ़ाकर 1,250 रुपए कर दिया गया। हाल ही में दिसंबर 2024 की किस्त 1.27 करोड़ महिलाओं को 1,553 करोड़ रुपए दिए गए। यहां यह उल्लेखनीय है कि चुनाव के दौरान भाजपा नेताओं ने वादा किया था कि 1,000 रुपए की राशि को धीरे-धीरे बढ़ा कर 3,000 रुपए कर दिया जाएगा। यह कब होगा, अभी स्पष्ट नहीं है?। लेकिन भाजपा ने यही नुस्खा महाराष्ट्र में आजमाया और विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लगभग 2.34 करोड़ महिलाओं को 1,500 रुपए प्रति माह की राशि वितरित की। साथ ही चुनावी घोषणा पत्र में इसे बढ़ाकर 2,100 रुपए प्रति माह करने का वादा किया गया। लेकिन सरकार बनने के बाद आरोप लग रहे हैं कि महाराष्ट्र सरकार लाभार्थियों की संख्या कम करने का प्रयास कर रही है। वहीं, अभी महिलाओं को 1,500 रुपए मिल रहे हैं। सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि इस साल बजट में ये राशि बढ़ाई जाएगी। हरियाणा चुनाव में भी महिलाओं को नगद हस्तांतरण का नुस्खा आजमाया यहां लाडो लक्ष्मी योजना के तहत ‘सभी’ महिलाओं को 2,100 रुपए प्रति माह देने का वादा किया गया। यहां भी भाजपा जीती। अक्टूबर 2024 में भाजपा की सरकार बन गई, लेकिन 30 जनवरी 2025 तक महिलाओं को एक भी किस्त नहीं दी गई है। यह राशि कितनी होगी, और कितनी महिलाओं को दी जाएगी, अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है।
दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी ने सबसे पहले महिलाओं को 2,100 रुपए प्रति माह देने की घोषणा की। खास बात यह है कि आम आदमी पार्टी ने हर महिला को 2,100 रुपए देने की घोषणा की है, जबकि कांग्रेस ने गरीब परिवार की एक महिला को 2,500 रुपए देने की बात कही है। वहीं, भाजपा ने साफ नहीं किया है कि यह राशि हर महिला को मिलेगी या गरीब महिलाओं को? दिल्ली में भाजपा-कांग्रेस भी, आम आदमी पार्टी पर आरोप लगा रही हैं कि उसने 2022 में पंजाब चुनाव में महिलाओं को 1,000 रुपए प्रति माह देने का वादा किया था, लेकिन अब तक यह राशि देने की शुरुआत नहीं की गई है।
इसके अलावा कर्नाटक में राज्य सरकार द्वारा अंत्योदन, बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) व एपीएल कार्ड धारक लगभग 1.25 करोड़ महिलाओं को 2,000 रुपए प्रतिमाह दिए जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग की महिलाओं को 1,200 रुपए और आर्थिक रूप से कमजोर अन्य वर्ग की महिलाओं को 1,000 रुपए प्रति माह दिए जाते हैं। झारखंड में मुख्यमंत्री मैया सम्मान योजना के तहत लगभग 55 लाख महिलाओं को 1,000 रुपए प्रति माह दिए जा रहे थे, लेकिन जनवरी माह में इस राशि को बढ़ा कर 2,500 रुपए कर दिए गए हैं। इनके अलावा ओडिशा में महिलाओं को हर साल 10,000 रुपए देने के लिए सुभद्रा योजना की शुरुआत की गई है, लेकिन यह भी 2.50 लाख रुपए सालाना आमदनी वाले परिवार की महिला को दिया जाएगा।
यहां उल्लेखनीय है कि महिलाओं को नगद हस्तांतरण को लेकर कुछ अर्थशास्त्री चिंता जता रहे हैं कि इससे राज्यों की अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ेगा तो कुछ जानकारों का कहना है कि इससे परिवारों में महिलाओं और उनमें निर्णय लेने की स्थिति में सुधार होता है। उनकी वित्तीय स्वायत्तता को बढ़ावा मिलता है, जिससे वे अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार खर्च कर सकती हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान सरकार ने महिलाओं के जनधन खातों में सीधा नकद हस्तांतरण किया था, जिसे एक महत्वपूर्ण पहल माना गया था। हाल के कुछ सालों में हुए विधानसभा चुनावों में महिलाओं को नगद हस्तांतरण का वादा कारगर रहा है। इसीलिए दिल्ली में भी इसे आजमाया जा रहा है। देखना यह है कि महिलाएं किस राजनीतिक दल के वायदे पर ज्यादा भरोसा करती हैं।
मुफ्त में दी जाने वाली रेवड़ियों पर भाजपा का रुख हास्यास्पद!
मुफ्त में दी जाने वाली चीजों पर भाजपा का रुख हास्यास्पद हो गया है। यही कारण है कि चुनाव प्रचार की शुरुआत में भाजपा आक्रामक और आप के राजनीतिक कथानक पर हावी दिख रही थी, लेकिन अब जब चुनाव प्रचार अपने चरम पर पहुंच रहा है, तो भाजपा रक्षात्मक हो गई है और अनजाने में अपने ही राजनीतिक जाल में फंस गयी है। वरिष्ठ पत्रकार डॉ ज्ञान पाठक लिखते हैं कि अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत में भाजपा ने दो खास रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित किया- पहला, भ्रष्टाचार के लिए आप नेतृत्व को निशाना बनाना और दिल्ली के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले मुफ्तखोरी में सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंचाना; और दूसरा कांग्रेस पर इस बात का निशाना साधना कि इंडिया ब्लॉक टूट रहा है। भाजपा के इस अभियान ने हालांकि कांग्रेस की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया, लेकिन इसने उसके विरोधी आप को मजबूत किया। भाजपा को उम्मीद थी कि उनके अलग होने से भाजपा विरोधी वोट बंट जायेंगे, जिसका फायदा भाजपा को होगा। उनका ऐसा सोचना सही था, लेकिन कांग्रेस को निशाना बनाने की उनकी रणनीति गलत साबित हुई, क्योंकि कांग्रेस को कमजोर करने के प्रयासों ने भाजपा विरोधी वोटों को और अधिक विभाजित करने की कांग्रेस की क्षमता को कम कर दिया। वहीं जब तृणमूल कांग्रेस टीएमसी, समाजवादी पार्टी (एसपी) जैसे अन्य राजनीतिक दल खुलकर आप के पक्ष में आ गये, तो स्थिति बदल गयी। कांग्रेस और भी कमजोर हो गयी, एक तो इसलिए क्योंकि वह भाजपा के निशाने पर थी, और दूसरा इसलिए क्योंकि दिल्ली के मतदाताओं को यह स्पष्ट संकेत मिल गया कि कांग्रेस दिल्ली चुनाव में इंडिया ब्लॉक सहयोगियों के बीच भी अलग-थलग पड़ गयी है। यह आप से सत्ता छीनकर दिल्ली चुनाव जीतने की भाजपा की राजनीतिक संभावनाओं के खिलाफ गया, क्योंकि भाजपा नेतृत्व भाजपा विरोधी मतों के विभाजन की उम्मीद कर रहा था।
शुरू में, भाजपा को उम्मीद थी कि कांग्रेस 2020 के विधानसभा चुनावों में मिले 5 प्रतिशत से भी कम वोट शेयर को बढ़ाकर लगभग 15 प्रतिशत करने में सक्षम होगी, जिससे भाजपा की जीत का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। हालांकि, दिल्ली में तेजी से बदलते राजनीतिक परिदृश्य में, कांग्रेस की चुनावी संभावना उस स्तर तक नहीं बढ़ सकी, जिसकी भाजपा को उम्मीद थी, जिसके लिए भाजपा की अपनी रणनीतिक गलतियां भी जिम्मेदार हैं। दूसरे शब्दों में, भाजपा ने अपनी संभावनाओं को खुद ही नुकसान पहुंचाया। दूसरी ओर, टीएमसी और एसपी द्वारा दिल्ली में न केवल आप का समर्थन करने, बल्कि उसके उम्मीदवारों के लिए प्रचार करने के फैसले ने भाजपा विरोधी वोटों में विभाजन की संभावना को काफी हद तक कम कर दिया है, जिनमें से अधिकांश अभी भी आप के साथ हैं, और केवल एक छोटे से हिस्से के कांग्रेस की ओर जाने की संभावना है। आप के पक्ष में इंडिया ब्लॉक सहयोगियों का कदम वास्तव में कांग्रेस के खिलाफ नहीं है, बल्कि भाजपा के खिलाफ लक्षित है, वह भी एकजुट होकर। इसलिए, जमीनी स्तर पर राजनीतिक स्थिति से पता चलता है कि चुनावी लड़ाई मुख्य रूप से आप और भाजपा के बीच लड़ी जा रही है, और कांग्रेस राजनीतिक लड़ाई के किनारे पर है। आप और उसके सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के खिलाफ भाजपा की राजनीतिक रणनीति शुरू में भ्रष्टाचार के आरोपों के इर्द-गिर्द घूमती थी। चुनाव के दौरान भी, केंद्र सरकार ने अरविंद केजरीवाल के खिलाफ अभियोजन को मंजूरी दी थी। दिल्ली शराब मामले में भ्रष्टाचार के सभी आरोपी पहले ही जमानत पर हैं, ऊपर से सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी भी की है। इस प्रकार, नयी मंजूरी को आम मतदाताओं ने भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी को प्रताड़ित करने के रूप में देखा।
भाजपा नेतृत्व, खास तौर पर भारत के प्रधानमंत्री ने विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा आम लोगों के लिए शुरू की गयी कल्याणकारी योजनाओं के तहत मुफ्त में दी जाने वाली चीजों को 'रेवाड़ियां' करार दिया है। भाजपा नेतृत्व ने दावा किया कि मुफ्त में दी जाने वाली चीजों से सरकारी खजाने और देश के विकास को भारी नुकसान हो रहा है। इसके बाद आप सुप्रीमो केजरीवाल ने 'रेवड़ी पर चर्चा' नामक राजनीतिक अभियान शुरू किया। उनके अभियान को लोगों से बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली, जिसके कारण भाजपा को भी सत्ता में आने पर कई मुफ्त चीजें देने का वायदा करना पड़ा। हालांकि, भाजपा के मुफ्त में दी जाने वाली चीजों के वायदे सतही तौर पर मतदाताओं को लुभाने वाले थे, लेकिन अरविंद केजरीवाल के हाथों में एक नया हथियार आ गया, जिन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अब यह स्वीकार करना चाहिए कि आप द्वारा मुफ्त में दी जाने वाली चीजें राष्ट्रीय विकास के लिए बुरी नहीं हैं, क्योंकि वे भी मुफ्त में देने का वायदा कर रहे हैं।
मुफ्त में दी जाने वाली चीजों पर भाजपा का रुख तब और हास्यास्पद हो गया, जब अरविंद केजरीवाल ने अपना नया अभियान शुरू करते हुए दावा किया कि अगर भाजपा सत्ता में आई तो वह लोगों के लिए आप सरकार द्वारा शुरू की गयी सभी कल्याणकारी योजनाओं को बंद कर देगी। भाजपा के शासन में मुफ्त बिजली, पानी, शिक्षा या स्वास्थ्य सेवा बंद कर दी जायेगी। इससे भाजपा फिर से रक्षात्मक हो गयी है और पार्टी चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में कह रही है कि अगर वह सत्ता में आती है तो केजरीवाल सरकार द्वारा शुरू की गयी किसी भी कल्याणकारी योजना को बंद नहीं करेगी। इसके अलावा, भाजपा नेता कह रहे हैं कि वे कई नये कल्याणकारी कार्यक्रम शुरू करेंगे और पार्टी ने अपने घोषणापत्र में इसका वायदा किया है। इस तरह भाजपा अप्रत्यक्ष रूप से केजरीवाल और आप सरकार के लिए प्रचार कर रही है।
दिल्ली के चुनाव प्रचार में भाजपा की ओर से अधिकारियों की प्रत्यक्ष भागीदारी भी स्पष्ट रूप से देखी गयी है, जो लोकतंत्र में बहुत बुरी बात है, क्योंकि दिल्ली में अधिकारी निर्वाचित आप सरकार के सीधे नियंत्रण में नहीं हैं, बल्कि कानून के तहत उपराज्यपाल के नियंत्रण में हैं, जो भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के निर्देश पर काम करते हैं। चुनाव प्रचार के दौरान जब आप ने महिलाओं को अधिक वित्तीय मदद और अन्य लोगों को मुफ्त चिकित्सा सुविधाओं का वायदा किया, तो सरकारी अधिकारियों ने सार्वजनिक नोटिस जारी किया कि वायदे धोखाधड़ी हैं। आप के खिलाफ राजनीति करने वाले अधिकारियों का ताजा उदाहरण दिल्ली जल बोर्ड के सीईओ द्वारा अरविंद केजरीवाल के इस आरोप का खंडन है कि हरियाणा यमुना नदी के पानी को जहरीला बना रहा है। डीजेबी के सीईओ ने दिल्ली के मुख्य सचिव को एक लिखित पत्र भेजा है और कहा है कि हरियाणा के खिलाफ केजरीवाल का आरोप 'तथ्यात्मक रूप से गलत और आधारहीन' है। उन्होंने पत्र को उपराज्यपाल को भेजने का अनुरोध किया है। यह पत्र मीडिया में लीक हो गया है और व्यापक रूप से प्रकाशित हुआ है। यह सर्वविदित है कि यमुना अपने प्रवाह के हर हिस्से में प्रदूषित हो रही है, जिसमें हरियाणा भी शामिल है, जहां अनुपचारित पानी और औद्योगिक अपशिष्टों का निर्वहन किया जा रहा है।
हरियाणा पर अरविंद केजरीवाल का आरोप पूरी तरह से गलत नहीं है। उनके आरोप का राजनीतिक महत्व है, क्योंकि पानी की आपूर्ति की गुणवत्ता और यमुना का गंदा पानी हाल ही में प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन गये हैं। हरियाणा में भाजपा का शासन है, जबकि दिल्ली में आप का शासन है। दिल्ली के अधिकारियों द्वारा आप और दिल्ली के उसके नेतृत्व के विरुद्ध काम करने तथा भाजपा शासित हरियाणा का बचाव करने को अधिकारियों की अपनी ही चुनी हुई सरकार के खिलाफ राजनीतिक भागीदारी के रूप में देखा जा रहा है। दिल्ली में राजनीतिक अभियान में अब बड़ा बदलाव देखने को मिला है, और 3 फरवरी को समाप्त होने से पहले यह विश्लेषकों को और अधिक आश्चर्यचकित कर सकता है।
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