भारत में ईसाइयों के खिलाफ धार्मिक उत्पीड़न तेजी से बढ़ा है, जिसमें हिंसक हमले, कानूनी दमन और स्वयंसेवियों द्वारा निशाना बनाना शामिल हैं। इस लेख में चरमपंथी समूहों की भूमिका, सरकारी नीतियों का प्रभाव और न्यायपालिका की प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण किया गया है।
साल 2024 की क्रिसमस की पूर्व संध्या "नफरत फैलाने वाले हिंदुत्ववादियों" का लक्ष्य बन गई है, क्योंकि वे ईसाई धर्म द्वारा संदेश दिए जाने वाले 'प्रेम' और 'करुणा' के बिल्कुल विपरीत हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, 25 दिसंबर 2024 को गुजरात के महुवा में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के सदस्यों ने क्रिसमस की प्रार्थना में दखल दे कर, "जय श्री राम" का नारा लगाया और हनुमान चालीसा का पाठ किया। साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें प्रार्थना करने के लिए इजाजत नहीं मिली है।
ओडिशा में क्रिसमस के एक दिन बाद 26 दिसंबर को सुभाषिनी सिंह और सुकांति सिंह नाम की दो आदिवासी महिलाओं (दोनों की उम्र करीब चालीस वर्ष है) को पीटा गया और भीड़ ने एक महिला के चेहरे पर केक लगाया और "भारत माता की जय" और "जय श्री राम" जैसे नारे लगाए। बता दें कि इस केक को महिलाओं ने कथित तौर पर गोविंद सिंह के धर्म परिवर्तन का जश्न मनाने के लिए खरीदा था।
ओडिशा कांग्रेस के प्रवक्ता अमिया पंडाब ने इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए इसे शर्मनाक बताया और कहा कि यह राज्य में बिगड़ती कानून व्यवस्था का प्रमाण है। "इससे भी ज्यादा शर्मनाक बात यह है कि महिलाओं के साथ इस तरह के अत्याचार किए जा रहे हैं, वह भी उन आदिवासी महिलाओं के साथ जो सबसे कमजोर हैं। याद रखें कि मुख्यमंत्री खुद आदिवासी समुदाय से आते हैं और हमारे देश की राष्ट्रपति भी मयूरभंज जिले से आती हैं।"
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, बीजू जनता दल (बीजेडी) की पूर्व विधायक लतिका प्रधान ने कहा कि राज्य की भाजपा नीत सरकार महिलाओं और अल्पसंख्यकों के साथ-साथ अन्य कमजोर समूहों के लिए बड़ा खतरा पैदा कर रही है। "हर जगह, वे निरंतर खतरे में हैं। गैरकानूनी धर्मांतरण में शामिल लोगों से निपटने के लिए एक कानून है। हालांकि, अपराधियों को अपने तरीके से कानून लागू करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।" प्रधान ने कहा कि पिछले मुख्यमंत्री और मौजूदा विपक्षी नेता नवीन पटनायक ने हमेशा धर्मनिरपेक्ष आदर्शों का समर्थन किया और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए हमेशा पूरी कोशिश की है। उन्होंने कहा, "यह स्वयंसेवी न्याय है, जो बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है।"
न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस घटना का स्वतः संज्ञान लिया है। इसने राज्य के डीजीपी को निष्पक्ष जांच करने और राज्य में कानून व्यवस्था बहाल करने का निर्देश दिया है।
अक्सर फासीवादी और सांप्रदायिक ताकतों के लिए हॉटस्पॉट के रूप में बताए जाने वाले उत्तर प्रदेश में 27 दिसंबर को वीएचपी और बजरंग दल के सदस्यों ने कथित तौर पर एक ईसाई दलित व्यक्ति का सिर मुंडवा दिया, उसके माथे पर जबरन चंदन और सिंदूर लगाया और उसे पूरे गांव में घुमाया। उन्होंने उस पर धर्म परिवर्तन में शामिल होने का आरोप लगाया, उसे जबरन हिंदू धर्म में वापस लाया और "जीसस मुर्दाबाद" के नारे लगाए।
इन बड़ी घटनाओं के अलावा, अफरोज आलम साहिल ने 28-12-2024 को बियॉन्ड हेडलाइंस में "विपनाइजेशन ऑफ फेस्टिवल्स इन इंडिया: अटैक्स ऑन राइज ड्यूरिंग क्रिसमस" नामक एक लेख में लगभग 10 राज्यों में बीते क्रिसमस के मौसम के दौरान ईसाइयों के खिलाफ नफरती घटनाओं का जिक्र किया है। ये दस राज्य हैं अहमदाबाद (गुजरात), बुरहानपुर (मध्य प्रदेश), एटा (उत्तर प्रदेश), फतेहपुर (उत्तर प्रदेश), हैदराबाद (तेलंगाना), इंदौर (मध्य प्रदेश), जबलपुर (मध्य प्रदेश), जैसलमेर (राजस्थान), जौनपुर (राजस्थान), खासी हिल्स (मेघालय), लखनऊ (उत्तर प्रदेश), मणिपुर, मुंबई (महाराष्ट्र), पलक्कड़ (केरल), पठानमथिट्टा (केरल), रोहतक (हरियाणा), सिद्धार्थनगर (उत्तर प्रदेश), सीतापुर (उत्तर प्रदेश), सूरत (गुजरात), तापी (गुजरात), तेलंगाना, त्रिशूर (केरल), उन्नाव (उत्तर प्रदेश)।
ऊपर दिए गए घटनाओं से पता चलता है कि भारत में उत्पीड़न का सामना करने वाला एकमात्र अल्पसंख्यक समुदाय मुसलमान नहीं है। देश में 2.4% की कुल आबादी के साथ ईसाई भी हिंदू चरमपंथियों से पीड़ित हैं। क्रिसमस की घटनाओं से ठीक दो महीने पहले 2 अक्टूबर, 2024 को यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ़्रीडम (USCIRF) ने भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के बारे में चौंकाने वाले खुलासे की एक रिपोर्ट जारी की। केवल 2024 में ईसाइयों पर 161 हमले हुए जिनमें चर्च और प्रार्थना सभाओं पर हमले शामिल हैं।
USCIRF की रिपोर्ट के अनुसार, असम में हिंदू उग्रवादियों ने कैथोलिक स्कूलों को निशाना बनाया और क्रॉस जैसे ईसाई प्रतीकों को हटाने की मांग की। मोदी सरकार ने नागरिक समाज संगठनों को निशाना बनाने के लिए गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) जैसे कठोर कानूनों का भी इस्तेमाल किया है। साल 2012 से, 20,000 से अधिक गैर सरकारी संगठनों के लाइसेंस एफसीआरए के तहत रद्द कर दिए गए हैं। इन संगठनों में कई धार्मिक संगठन हैं। इस कानून का इस्तेमाल दमन के दूसरे तरीके के रूप में किया गया है। केवल 2024 में चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया और इवेंजेलिकल फेलोशिप ऑफ इंडिया सहित पांच महत्वपूर्ण ईसाई धर्मार्थ संस्थाओं के लाइसेंस समाप्त हो गए जिससे उनके काम बाधित हुए। USCIRF ने अमेरिकी सरकार से धार्मिक स्वतंत्रता के लगातार हनन के कारण भारत को "कंट्री ऑफ पार्टिकुलर कंसर्न" घोषित करने का आग्रह किया है। अगर ऐसा होता है तो इससे भारत चीन और उत्तर कोरिया जैसे देशों में शामिल हो जाएगा, जिससे उस पर प्रतिबंध लग सकते हैं।
भारतीय न्यायपालिका ने भी कई बार नफरत फैलाने वालों को बढ़ावा दिया है, जिससे भारत में धार्मिक असहिष्णुता में लगातार वृद्धि हुई है। ऐसे ही एक खतरनाक प्रयास में मस्जिद के अंदर “जय श्री राम” के नारे लगाने के दो आरोपियों के खिलाफ आपराधिक मामले को खारिज करना शामिल है। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मामले को खारिज करते हुए कहा कि मस्जिद के अंदर “जय श्री राम” का नारा लगाने से उस समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचती है।
Related
यूपी : धर्म परिवर्तन को लेकर उच्च जाति के लोगों ने दलित व्यक्ति का सिर मुंडा, पीटा और घुमाया
हिंदुत्व के निशाने पर केरल का समावेशी प्रगति सद्भाव मॉडल
ईसाई नेताओं ने भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग की
साल 2024 की क्रिसमस की पूर्व संध्या "नफरत फैलाने वाले हिंदुत्ववादियों" का लक्ष्य बन गई है, क्योंकि वे ईसाई धर्म द्वारा संदेश दिए जाने वाले 'प्रेम' और 'करुणा' के बिल्कुल विपरीत हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, 25 दिसंबर 2024 को गुजरात के महुवा में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के सदस्यों ने क्रिसमस की प्रार्थना में दखल दे कर, "जय श्री राम" का नारा लगाया और हनुमान चालीसा का पाठ किया। साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें प्रार्थना करने के लिए इजाजत नहीं मिली है।
ओडिशा में क्रिसमस के एक दिन बाद 26 दिसंबर को सुभाषिनी सिंह और सुकांति सिंह नाम की दो आदिवासी महिलाओं (दोनों की उम्र करीब चालीस वर्ष है) को पीटा गया और भीड़ ने एक महिला के चेहरे पर केक लगाया और "भारत माता की जय" और "जय श्री राम" जैसे नारे लगाए। बता दें कि इस केक को महिलाओं ने कथित तौर पर गोविंद सिंह के धर्म परिवर्तन का जश्न मनाने के लिए खरीदा था।
ओडिशा कांग्रेस के प्रवक्ता अमिया पंडाब ने इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए इसे शर्मनाक बताया और कहा कि यह राज्य में बिगड़ती कानून व्यवस्था का प्रमाण है। "इससे भी ज्यादा शर्मनाक बात यह है कि महिलाओं के साथ इस तरह के अत्याचार किए जा रहे हैं, वह भी उन आदिवासी महिलाओं के साथ जो सबसे कमजोर हैं। याद रखें कि मुख्यमंत्री खुद आदिवासी समुदाय से आते हैं और हमारे देश की राष्ट्रपति भी मयूरभंज जिले से आती हैं।"
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, बीजू जनता दल (बीजेडी) की पूर्व विधायक लतिका प्रधान ने कहा कि राज्य की भाजपा नीत सरकार महिलाओं और अल्पसंख्यकों के साथ-साथ अन्य कमजोर समूहों के लिए बड़ा खतरा पैदा कर रही है। "हर जगह, वे निरंतर खतरे में हैं। गैरकानूनी धर्मांतरण में शामिल लोगों से निपटने के लिए एक कानून है। हालांकि, अपराधियों को अपने तरीके से कानून लागू करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।" प्रधान ने कहा कि पिछले मुख्यमंत्री और मौजूदा विपक्षी नेता नवीन पटनायक ने हमेशा धर्मनिरपेक्ष आदर्शों का समर्थन किया और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए हमेशा पूरी कोशिश की है। उन्होंने कहा, "यह स्वयंसेवी न्याय है, जो बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है।"
न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस घटना का स्वतः संज्ञान लिया है। इसने राज्य के डीजीपी को निष्पक्ष जांच करने और राज्य में कानून व्यवस्था बहाल करने का निर्देश दिया है।
अक्सर फासीवादी और सांप्रदायिक ताकतों के लिए हॉटस्पॉट के रूप में बताए जाने वाले उत्तर प्रदेश में 27 दिसंबर को वीएचपी और बजरंग दल के सदस्यों ने कथित तौर पर एक ईसाई दलित व्यक्ति का सिर मुंडवा दिया, उसके माथे पर जबरन चंदन और सिंदूर लगाया और उसे पूरे गांव में घुमाया। उन्होंने उस पर धर्म परिवर्तन में शामिल होने का आरोप लगाया, उसे जबरन हिंदू धर्म में वापस लाया और "जीसस मुर्दाबाद" के नारे लगाए।
इन बड़ी घटनाओं के अलावा, अफरोज आलम साहिल ने 28-12-2024 को बियॉन्ड हेडलाइंस में "विपनाइजेशन ऑफ फेस्टिवल्स इन इंडिया: अटैक्स ऑन राइज ड्यूरिंग क्रिसमस" नामक एक लेख में लगभग 10 राज्यों में बीते क्रिसमस के मौसम के दौरान ईसाइयों के खिलाफ नफरती घटनाओं का जिक्र किया है। ये दस राज्य हैं अहमदाबाद (गुजरात), बुरहानपुर (मध्य प्रदेश), एटा (उत्तर प्रदेश), फतेहपुर (उत्तर प्रदेश), हैदराबाद (तेलंगाना), इंदौर (मध्य प्रदेश), जबलपुर (मध्य प्रदेश), जैसलमेर (राजस्थान), जौनपुर (राजस्थान), खासी हिल्स (मेघालय), लखनऊ (उत्तर प्रदेश), मणिपुर, मुंबई (महाराष्ट्र), पलक्कड़ (केरल), पठानमथिट्टा (केरल), रोहतक (हरियाणा), सिद्धार्थनगर (उत्तर प्रदेश), सीतापुर (उत्तर प्रदेश), सूरत (गुजरात), तापी (गुजरात), तेलंगाना, त्रिशूर (केरल), उन्नाव (उत्तर प्रदेश)।
ऊपर दिए गए घटनाओं से पता चलता है कि भारत में उत्पीड़न का सामना करने वाला एकमात्र अल्पसंख्यक समुदाय मुसलमान नहीं है। देश में 2.4% की कुल आबादी के साथ ईसाई भी हिंदू चरमपंथियों से पीड़ित हैं। क्रिसमस की घटनाओं से ठीक दो महीने पहले 2 अक्टूबर, 2024 को यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ़्रीडम (USCIRF) ने भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के बारे में चौंकाने वाले खुलासे की एक रिपोर्ट जारी की। केवल 2024 में ईसाइयों पर 161 हमले हुए जिनमें चर्च और प्रार्थना सभाओं पर हमले शामिल हैं।
USCIRF की रिपोर्ट के अनुसार, असम में हिंदू उग्रवादियों ने कैथोलिक स्कूलों को निशाना बनाया और क्रॉस जैसे ईसाई प्रतीकों को हटाने की मांग की। मोदी सरकार ने नागरिक समाज संगठनों को निशाना बनाने के लिए गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) जैसे कठोर कानूनों का भी इस्तेमाल किया है। साल 2012 से, 20,000 से अधिक गैर सरकारी संगठनों के लाइसेंस एफसीआरए के तहत रद्द कर दिए गए हैं। इन संगठनों में कई धार्मिक संगठन हैं। इस कानून का इस्तेमाल दमन के दूसरे तरीके के रूप में किया गया है। केवल 2024 में चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया और इवेंजेलिकल फेलोशिप ऑफ इंडिया सहित पांच महत्वपूर्ण ईसाई धर्मार्थ संस्थाओं के लाइसेंस समाप्त हो गए जिससे उनके काम बाधित हुए। USCIRF ने अमेरिकी सरकार से धार्मिक स्वतंत्रता के लगातार हनन के कारण भारत को "कंट्री ऑफ पार्टिकुलर कंसर्न" घोषित करने का आग्रह किया है। अगर ऐसा होता है तो इससे भारत चीन और उत्तर कोरिया जैसे देशों में शामिल हो जाएगा, जिससे उस पर प्रतिबंध लग सकते हैं।
भारतीय न्यायपालिका ने भी कई बार नफरत फैलाने वालों को बढ़ावा दिया है, जिससे भारत में धार्मिक असहिष्णुता में लगातार वृद्धि हुई है। ऐसे ही एक खतरनाक प्रयास में मस्जिद के अंदर “जय श्री राम” के नारे लगाने के दो आरोपियों के खिलाफ आपराधिक मामले को खारिज करना शामिल है। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मामले को खारिज करते हुए कहा कि मस्जिद के अंदर “जय श्री राम” का नारा लगाने से उस समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचती है।
Related
यूपी : धर्म परिवर्तन को लेकर उच्च जाति के लोगों ने दलित व्यक्ति का सिर मुंडा, पीटा और घुमाया
हिंदुत्व के निशाने पर केरल का समावेशी प्रगति सद्भाव मॉडल
ईसाई नेताओं ने भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग की