बंगाल हिंसा: मीडिया ने अनदेखा किया बसिरहाट का हिंदू-मुस्लिम भाईचारा

Written by Ajit Sahi | Published on: July 15, 2017

बसिरहाट के अधिकतर लोगों को मानना है कि हिंसा में बाहर के लोग शामिल थे

 
बंगाल हिंसा: मीडिया ने अनदेखा किया बसिरहाट का हिंदू-मुस्लिम भाईचारा
 
पश्चिम बंगाल में बसिरहाट के एक अस्पताल में 6 जुलाई को दोपहर में प्रभाशीष घोष के 65 साल के पिता बिस्तर पर पड़े थे. वे गंभीर रूप से घायल थे और उनके शरीर से खून बह रहा था. डॉक्टरों ने सुझाव दिया कि कोलकाता के किसी अच्छे अस्पताल में भर्ती कराने पर ही उनके बचने की उम्मीद की जा सकती है. बसिरहाट से कोलकाता 75 किलोमीटर दूर पूर्व में हैं.

प्रभाशीष ने अपने पिता को दो घंटे की कोलकाता यात्रा के लिए एम्बुलेंस में डाला ही था कि अस्पताल के सुपरिंटेडेंट उसके पास आये और पूछा, 'क्या आप गंभीर रूप से घायल एक और व्यक्ति को अपने साथ ले जाएंगे? उसका परिवार यहां नहीं है और वह यहां नहीं बच पाएगा.' प्रभाशीष एंबुलेंस में बैठा और दोनों घायलों की बारी-बारी से देखरेख करता कोलकाता रवाना हो गया.

प्रभाशीष के पिता कार्तिक चंद्र घोष का अगले दिन सुबह निधन हो गया. यह बसिरहाट और आसपास के क्षेत्रों में भड़की सांप्रदायिक हिंसा में पहली और एकमात्र मौत थी. बसिरहाट के पास के गांव के एक हिंदू लड़के की 2 जुलाई की मुस्लिम विरोधी तथाकथित फेसबुक पोस्ट के बाद हिंसा शुरू हुई थी. हिंसा में घायल दूसरा व्यक्ति फजलुल सरदार बच गया.

प्रभाशीष ने फ़र्स्टपोस्ट से कहा, 'मैं दुखी हूं कि मेरे पिता की मौत हो गई, लेकिन शुक्रगुजार हूं कि दूसरा व्यक्ति बच गया.' अपने पिता की मौत से दुखी होने के बावजूद प्रभाशीष ने सरदार के परिवार को फोन किया और उनकी देखभाल की.

कार्तिक मछलियों के भोजन के लिए मरे हुए मुर्गे का मांस बेचकर जीवनयापन करते थे. उनकी मौत दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों के एकजुट होने का कारण बन गई. आरएसएस-बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में 3 जुलाई से भड़की हिंसा को कट्टरपंथी मुसलमानों की अतिवादी प्रतिक्रिया के रूप में पेश किया.
इस हिंसा को लेकर खासतौर से सोशल मीडिया में कॉपी-पेस्ट रिपोर्ताज और टिप्पणियों की भरमार हो गई. इसने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच तीखी, कटु और शायद कभी न भरी जा सकने वाली विभाजन की कहानी रची. लेकिन कुछ अपवादों को छोड़कर जमीनी स्तर पर भावनाएं प्रभाशीष की ही तरह हैं. दोनों समुदायों में एक दूसरे के लिए नफरत या घृणा का बिल्कुल अभाव दिखता है. क्षेत्र में हिंदू-मुस्लिम दोस्ती और भाईचारे की भावना है, जो मौजूदा विवाद के पहले से ही चली आ रही है.

फेसबुक पोस्ट से शुरू हुआ मामला

सबसे पहले 17 साल के हिंदू किशोर सौविक सरकार के मामले पर गौर करते हैं. कथित रूप से सौविक ने फेसबुक पर अपमानजनक पोस्ट डाली थी, जिसके बाद संघर्ष की शुरुआत हुई. अपनी गिरफ्तारी होने तक सौविक बसिरहाट से 15 किलोमीटर दूर अपने पुलिस सब-इंसपेक्टर ताऊ के परिवार के साथ रहता था.

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सौविक का घर (तस्वीर अजीत साही)

यह दावा किया गया है कि फेसबुक पोस्ट के बाद सैकड़ों मुसलमानों ने उनके घर हमला किया और उसे आग के हवाले कर दिया. लेकिन इस रिपोर्टर ने बादलों से ढंके आसमान के नीचे लहलहाते खेतों के किनारे पाम और दूसरे पेड़ों से घिरे उनके घर को सही सलामत पाया. घर के बाहरी हिस्सों पर आगजनी के कोई निशान नहीं थे.

सौविक के घर के पास हिंदुओं और मुसलमानों के आशियाने हैं. बिल्कुल सामने एक हिंदू का घर है और तिरछे संकरे रास्ते पर 15 फुट दूर एक मस्जिद है. मस्जिद के इमाम मौलाना मोहम्मद यासीन ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया, 'सरकार परिवार को किसी भी व्यक्ति से कभी कोई परेशानी नहीं थी – चाहे वो हिंदू हो या मुसलमान.' उन्होंने कहा, 'मेरे लिए यह कल्पना करना भी मुश्किल है कि इस लड़के ने ऐसा कुछ किया है.' गांव के दूसरे पुरुषों और महिलाओं को भी इस पर विश्वास करने में मुश्किल हो रही है. उनका कहना है: 'हम हिंदू और मुसलमान के रूप में बिना किसी परेशानी के हमेशा से साथ रहते आए हैं.'

मस्जिद के चौकीदार ने कहा, 'हम मस्जिद में कभी ताला नहीं लगाते.' एक हिंदू ने बताया, 'मुसलमान हमारे धार्मिक उत्सवों में हिस्सा लेते हैं.' हिंदू और मुसलमान दोनों दावा करते हैं कि सरकार परिवार के घर पर हमला करने वाले स्थानीय नहीं, बल्कि बाहरी लोग थे.

सौविक के एक मुसलमान सहपाठी को यह मानने में मुश्किल हो रही थी कि उसने फेसबुक पर इस तरह का आक्रामक पोस्ट डाला. उसने कहा, 'हम बचपन से ही एक साथ क्रिकेट खेलते आए हैं. हम दोनों क्लास में पीछे की बेंच पर बैठते थे.' उसने आगे कहा, 'सौविक ने कभी किसी से लड़ाई नहीं की. उसने कभी भी मुसलमानों के खिलाफ टिप्पणी नहीं की.' सुरक्षा के डर से सौविक के सहपाठी के पिता उसकी पहचान जाहिर नहीं होने देना चाहते.

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सौविक का स्कूल (तस्वीर अजीत साही)

स्थानीय नगरपालिका में क्लर्क के रूप में तैनात 47 साल के अमीरुल इस्लाम उसी माजुरखाली गांव में रहने वाले हैं जहां सौविक रहता था. इस्लाम और सौविक के ताऊ सब-इंसपेक्टर बबलू सरकार कई सालों से मित्र हैं. इस्लाम के मुताबिक, कुछ साल पहले सौविक की मां की मौत हो गई थी. उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली तो वह अपने ताऊ के साथ रहने आ गया. सौविक इस्लाम के भतीजों के साथ खेलने के लिए नियमित रूप से शाम को उसके घर आता था.

इस्लाम ने कहा, 'उसके ताऊ का परिवार मेरा इतना करीबी हैं कि मैं उनके बेडरूम और रसोईघर में जा सकता हूं. मैंने कभी उनमें से किसी के मुंह से मुसलमान या इस्लाम विरोधी बातें नहीं सुनी.'

सौविक के कथित फेसबुक पोस्ट के एक दिन बाद 3 जुलाई को इस्लाम पास के एक गांव कुछ काम से गए थे. उन्हें सरकार के घर के सामने रहने रहने वाले हिंदू पड़ोसी की घबराई हुई कॉल मिली. हिंदू पड़ोसी ने इस्लाम से कहा, 'जल्दी आओ. यहां बहुत से मुसलमान जुट गए हैं. वे सरकार के घर में आग लगा सकते हैं.' इस्लाम तुरंत अपने गांव के लिए चल पड़े और देखा कि कई जगह मुसलमानों ने सड़क जाम कर रखा है. वे उनमें से किसी को भी पहचान नहीं पाए. यह साफ था कि वे उनके या आसपास के किसी गांव के रहने वाले नहीं थे. जब इस्लाम ने उनसे पूछा कि वे कौन हैं और वे उनके गांव में क्या कर रहे हैं और क्या वे उसे पहचानते हैं, तो उन्होंने उसे धक्का दिया और 'घर चले जाने' की चेतावनी दी.

कुछ मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है इस्लाम ने सौविक के परिवार को उनके घर से सुरक्षित बाहर निकाला था. यह पूरी तरह गलत है. इस्लाम को सौविक के चचेरे भाई यानी बबलू सरकार के बेटे जॉन का भी फोन आया था. उसने इस्लाम को बताया था कि उसके परिवार ने पहले ही अपना घर छोड़ दिया है. उसने अपने घर को तहस-नहस होने और जलने से बचाने की गुजाहिश की.

इस्लाम ने तीन ताले खरीदे और फिर करीब 2 घंटे बाद सरकार के घर पहुंचा. गली के एक हिंदू पड़ोसी के साथ मिलकर उसने दरवाजे बंद किए और पुलिस को चाबियां दे दीं. इस्लाम ने कहा, 'मैंने थोड़ा धुआं देखा. लेकिन मैंने सुना है कि आग पहले ही बुझा दी गई थी.'

सरकार के एक हिंदू पड़ोसी ने इस्लाम के कथन की पूरी तरह पुष्टि की. नाम न छापने की शर्त पर उसने कहा कि वह उन मुसलमानों को नहीं पहचान सका, जिन्होंने उस शाम सरकार के घर को घेरा था. उसने कहा, 'माखुरखली एक छोटा सा गांव है. यहां हर कोई हर किसी को जानता है. सभी चेहरे नए थे.'

मधुर रहे हैं हिंदू-मुस्लिम रिश्ते

इस हिंदू पड़ोसी ने भी अपने गांव में हिंदुओं-मुसलमानों के बीच मधुर रिश्ते का दावा किया. उसने कहा, 'आपको यह जानकर अचरज होगा कि मेरे घर के बगल में स्थित मस्जिद के लिए मैंने अपनी जमीन दान की थी.' उसने आगे कहा, 'यह संपत्ति अभी भी मेरे नाम है. टैक्स का नोटिस अभी भी मेरे नाम पर आता है.' यह पूछने पर कि क्या भीड़ ने सरकार के घर में आग लगाई थी, उसने कहा, 'शायद घर के पीछे, लेकिन अगर आग लगी भी थी तो उसे बगैर किसी बड़ी क्षति के जल्दी से बुझा दिया गया था.'

इस्लाम और सरकार का हिंदू पड़ोसी गांव में अच्छे हिंदू-मुस्लिम संबंधों की पुष्टि करते हैं. इस्लाम अपने जीवन में हिंदू-मुसलमान तनाव की सिर्फ दो घटनाओं के बारे में जानता है. जब वह 10 साल का था तो हिंदुओं ने मस्जिद में लाउडस्पीकर लगाने पर आपत्ति की थी. लेकिन विवाद का समाधान हो गया था और फैसला मुसलमानों के पक्ष में गया था.

करीब आठ साल पहले एक हिंदू लड़के ने होली के दिन एक इमाम पर रंगीन पानी छिड़क दिया था. लेकिन यह विवाद भी सुलझ गया था क्योंकि हिंदू समुदाय के बुजुर्गों ने बच्चे को डांटा और इमाम से माफी मांग ली. इस्लाम ने कहा, 'यहां हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कभी लट्ठ नहीं चले.'
हैरानी की बात है कि बीजेपी की स्थानीय इकाई भी इससे सहमत है. स्थानीय नगरपालिका की पार्षद और इसी गांव की बीजेपी नेता मनीषा घोष ने कहा, 'यहां हिंदू और मुसलमान हमेशा राजी-खुशी से रहते आए हैं.'

मुसलमानों ने भी पुलिस स्टेशन पर हमले और जीपें जलाने की निंदा की है. स्थानीय वकील और जमात-ए-इस्लामी हिंद से संबद्ध भारतीय कल्याण पार्टी के कार्यकर्ता रफीकुल इस्लाम ने कहा, 'मुस्लिम नेता और खासतौर से मौलवियों ने भीड़ को शांत करने की पूरी कोशिश की. लेकिन वे पुलिस की निष्क्रियता पर क्रोधित थे. वे सौविक की गिरफ्तारी चाहते थे, लेकिन पुलिस गुमराह रही थी.'

रफीकुल और कई अन्य लोगों के मुताबिक, पुलिस थाने में उस समय हिंसा हुई जब पुलिस ने सौविक की गिरफ्तारी को लेकर भीड़ को आश्वस्त करने के लिए सौविक को बाहर लाने और दिखलाने से इनकार कर दिया. पुलिस का यह कदम बुद्धिमानी भरा था. उन्होंने कहा, 'भीड़ का यह व्यवहार बिल्कुल गलत था और हरेक मुस्लिम संगठन ने इसकी निंदा की है.'

लेकिन मेनस्ट्रीम और सोशल मीडिया दोनों में हिंसा के स्तर को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया. हिंसा में सिर्फ एक व्यक्ति कार्तिक की मौत हुई है. पुलिस स्टेशन में जीपों में आगजनी के अलावा दो या तीन अन्य चार-पहिया वाहनों को आग लगाई गई थी. भीड़ द्वारा हथियारों के इस्तेमाल की कोई सूनचा नहीं है. कंक्रीट की दुकानें नहीं, बल्कि सड़क के किनारे लगने वाली स्टॉल्स तोड़ी या जलाई गई थीं.

बसिरहाट और आसपास के क्षेत्रों में हिंदू मंदिरों पर हमले के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है. इस संवाददाता ने तहस-नहस किए गए पूजास्थलों का पता लगाने की कोशिश की, लेकिन इस बारे में कोई कुछ नहीं बता सका. बसिरहाट में बीजेपी के नगरपालिका पार्षद तपन देबनाथ ने कुछ इसी तरह का दावा किया था, लेकिन वे भी किसी क्षतिग्रस्त मंदिर का पता बताने में नाकाम रहे.

बसिरहाट के बीचों-बीच मौजूद काली मंदिर को तहस-नहस किए जाने की बातें सामने आई थीं. लेकिन तथ्य यह है कि वह बिल्कुल क्षतिग्रस्त नहीं हुआ है. जब मैंने इस मंदिर का दौरा किया तो शाम की प्रार्थना चल रही थी. निश्चित तौर पर कुछ हिंदू हिंसा के शिकार हुए होंगे, लेकिन मुझे बामुश्किल कोई मिला. इस बारे में जब बीजेपी पार्षद देबनाथ से पूछा तो उन्होंने कहा कि बहुत से हिंदू घायल हुए हैं. लेकिन एक बार फिर वे कोई ब्योरा नहीं दे सके अथवा देना नहीं चाहते थे. बसिरहाट में पीड़ित हिंदुओं तक पहुंचने के लिए की गई किए अन्य कोशिशों से भी कुछ हाथ नहीं लगा.

बहरहाल, जिस खबर को मेनस्ट्रीम और सोशल मीडिया में बहुत कम कवरेज मिली, वह मुसलमानों पर हिंदुओं के हमले की खबर है. मुझे इस तरह के हमलों के सात पीड़ित मिले. उनमें से दो बसिरहाट में अपने घर पर हैं, जबकि पांच कोलकाता के एसएसकेएम अस्पताल में भर्ती हैं, जहां उन्हें हिंसा पर काबू पाने के लिए उतारी गई रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) ने लाया.

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हिंसा में घायल अबदार (तस्वीर अजीत साही)

बसिरहाट के 24 साल के मछली हॉकर रेजाउल मुल्ला पर उस समय हमला किया गया जब वह अपने घर जा रहा था. उन्होंने उसका सिर फोड़ दिया जिससे स्टिच लगानी पडी है. उसके पैर भी तोड़ दिये गए थे. अस्पताल के बिस्तर पड़े रेजाउल ने कहा, 'वे छात्र जैसे लग रहे थे.' उसने आगे कहा, 'मैंने मरने का बहाना किया, तब उन्होंने मुझे मारना बंद किया.'

कुछ ऐसा ही 28 साल के पेंटर शहानुर आलम के साथ हुआ था. उसके सिर में गंभीर घाव लगे और हाथ टूट गए. लेकिन वह सौभाग्यशाली था कि कुछ जख्म के बाद वह बच निकला. रेजाउल और शहानुर दोनों ने कहा कि उनके हमलावरों ने उन्हें 'जय श्रीराम' के नारे लगाने के लिए मजबूर किया.

बसिरहाट में आमतौर पर एक ही घटना के बारे में हिंदुओं और मुसलमानों द्वारा परस्पर विरोधी दावे किए गए. तीन जुलाई को जगन्नाथ रथयात्रा का आयोजन किया जाना था, लेकिन सांप्रदायिक तनाव को देखते हुए पुलिस ने रूट बदलने का फैसला किया. स्थानीय मुस्लिम मोहम्मद करुज्जमान ने दावा किया, 'इससे हिंदू नाराज हो गए और उन्होंने आरएएफ पर पत्थर फेंका.'

लेकिन देबनाथ ने कहा कि यह सच नहीं है. उन्होंने कहा, 'हिंदुओं ने नही, बल्कि मुसलमानों ने आरएएफ के साथ संघर्ष किया.' पुलिस ने चार मुसलमानों को गिरफ्तार किया. लेकिन कोई हिंदू गिरफ्तार नहीं हुआ, जिससे मुसलमान नाराज हो गए. वे हिंसा के दौरान आग के हवाले की गई दुकानों और वाहनों की लिस्ट तैयार करने में जुटे हैं.

अपनी राष्ट्रीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए स्थानीय बीजेपी ने ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी सरकार पर हिंसा और इस्लामिक उग्रवाद को प्रोत्साहन देने का आरोप लगाया है. बसिरहाट के टीएमसी विधायक और फुटबॉलर से राजनेता बने दीपेंदु बिस्वास गुस्से में थे कि उनके घर और दफ्तर पर 'जय श्रीराम' के नारे लगाती भीड़ ने हमला किया. उन्होंने आरोप लगाया कि आरएसएस-बीजेपी ने हिंसा की योजना बनाई थी, क्योंकि उन्होंने पिछले साल विधानसभा चुनाव में बीजेपी के विधायक शमिक भट्टाचार्य को हरा दिया था.

फिलहाल क्षेत्र में शांति है, पर स्थिति तनावपूर्ण और आशंका से भरी हुई है. ऐसा सांप्रदायिक विभाजन के चलते नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण है. तृणमूल और बीजेपी दोनों हाल की घटनाओं को अपने एजेंडे के अनुरूप गढ़ने में जुटी हैं. हिंदुओं और मुसलमानों दोनों को मालूम है कि राजनेता उन्हें बांटने की कोशिश में जुटे हैं.

प्रभाशीष ने कहा, 'मैं चाहता हूं कि मेरे पिता पर जिन लोगों ने हमला किया और उनकी जान ली, उन्हें गिरफ्तार कर दंडित किया जाए. मैं उन्हें मुसलमान के तौर पर नहीं, बल्कि मानवता के अपराधी के तौर पर देखता हूं.' उन्होंने कहा, 'कुछ मुसलमान हिंसक जरूर थे. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सभी मुसलमान खराब हैं.'

कुछ देर रुककर प्रबाशीष आगे कहते हैं, 'अगर हिंदू और मुसलमान एक दूसरे के दुश्मन बन जाएंगे हैं तो यह देश जिंदा नहीं बचेगा.'



This article was first published on firstpost.com and is being re-published here with the permission of the author.
 

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