राष्ट्रीय शर्म की बात! दिल्ली में बाल तस्करी के मामलों में 68 फीसदी की बढ़ोत्तरी, UP में 6 गुणा तक बढ़े मामले

Written by sabrang india | Published on: September 27, 2023
"देश की राजधानी दिल्ली जो देश की सत्ता का केंद्र है, जहां पक्ष-विपक्ष में रोज किसी ना किसी मुद्दे को लेकर तकरार छिड़ी रहती है लेकिन दिल्ली की इस बहस में आम आदमी के असल मुद्दे किस तरह गायब रहते हैं, इस पर ध्यान देना हो, तो बाल तस्करी के बारे में जारी ताजा रिपोर्ट पर गौर करना चाहिए। इस रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में बाल तस्करी के मामलों में 68 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। रिपोर्ट ने यह भी बताया है कि कोरोना महामारी के बाद यूपी सहित कई राज्यों में बाल तस्करी के मामले 6 गुणा तक बढ़े हैं। जो अमृतकाल में राष्ट्रीय शर्म की बात ही कही जाएगी।"



गेम्स 24x7 और नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) द्वारा संकलित आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली बाल तस्करी के लिए हॉटस्पॉट बन गई है। रिपोर्ट के मुताबिक तस्करी से बचाए गए एक-चौथाई से अधिक बच्चे दिल्ली से आते हैं। "भारत में बाल तस्करी" रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में तस्करी की संख्या में 68 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई वहीं उत्तर प्रदेश में तस्करी किए गए बच्चों की संख्या में लगभग छह गुना वृद्धि दर्ज की गई है।

‘चाइल्ड ट्रैफिकिंग इन इंडिया : इनसाइट फ्रॉम सिचुएशनल डेटा एनालिसिस एंड नीड फॉर टेक-ड्रिवन इंटरवेंशन स्ट्रेटजी’ शीर्षक वाली इस व्यापक रिपोर्ट में इन आंकड़ों का खुलासा किया गया है। ये रिपोर्ट ‘गेम्स 24×7’ और केएससीएफ ने संयुक्त रूप से तैयार की है। केएससीएफ ने 2016 और 2022 के बीच भारत के 21 राज्यों के 262 जिलों में बाल तस्करी के मामलों में हस्तक्षेप किया। उन मामलों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर तैयार रिपोर्ट में बताया गया है कि कानूनन बाल मजदूरी पर रोक होने के बावजूद बड़ी संख्या में बाल मजदूर आज भी विभिन्न उद्योगों में काम कर रहे हैं। जिन उद्योगों में सबसे ज्यादा बाल मजदूरों को रोजगार मिलता है, वे होटल और ढाबे (15.6 फीसदी) हैं। इसके बाद एक परिवार के स्वामित्व वाली ऑटोमोबाइल या परिवहन उद्योग (13 प्रतिशत) और कपड़ा क्षेत्र (11.18 फीसदी) हैं। जाहिरा तौर पर ये समस्या गंभीर है। लेकिन बाल तस्करी सिर्फ चिंताजनक ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय शर्म का भी विषय है। 

केएससीएफ के अनुसार, बाल तस्करी की सर्वाधिक घटनाओं के लिहाज से उत्तर प्रदेश, बिहार और आंध्र प्रदेश शीर्ष 3 राज्यों में शामिल हैं। जिलेवार देखें तो बाल तस्करी में सबसे ऊपर जयपुर शहर है। सूची के अन्य शीर्ष चार स्थानों पर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के इलाके शामिल हैं। जी हां, शीर्ष 10 जिलों में से 5 जिले दिल्ली के थे, जहां से तस्करी के शिकार बच्चों को बचाया गया। 2016 से 2022 के बीच 21 राज्यों के 262 जिलों में किए गए इस अध्ययन के दौरान, 18 साल से कम उम्र के 13549 बच्चों को बचाया गया। बचाए गए 80 फीसदी बच्चे 13 से 18 साल के हैं, जबकि 13 फीसदी 9 से 12 साल के और दो फीसदी 9 साल से भी कम उम्र के हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, पिछड़े राज्यों से बच्चों की तस्करी कर उन्हें ऐसे शहरों या राज्यों में बेच दिया जाता है, जिससे उनका इस्तेमाल छोटे-मोटे उद्योगों या घरेलू काम के लिए किया जा सके। कई बार तस्कर बच्चों को ऐसे गैंग को भी बेच देते हैं जो भीख मांगने जैसे वाले रैकेट चलाते हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 2019 में देश में मानव तस्करी (बच्चों और वयस्कों समेत) के जितने भी मामले थे, उनमें से सबसे ज्यादा मामले जबरन श्रम, देह व्यापार, घरों में जबरन काम और जबरन शादी के थे।

सबसे खराब स्थिति उत्तर प्रदेश की

रिपोर्ट में इस आशंका की भी पुष्टि की गई है कि कोरोना महामारी के बाद देश के हर राज्य में बाल तस्करी हो रही है। तस्करी काफी बढ़ गई है। सबसे खराब स्थिति उत्तर प्रदेश में है। जी हां, महामारी से पहले, 2016 से 2019 के बीच सालाना औसतन 267 बच्चों की तस्करी की जाती थी, जो महामारी के बाद 2021-22 में बढ़कर 1,214 हो गई। महामारी के बाद से कर्नाटक में बाल तस्करी के मामले सीधे तौर पर 18 गुना बढ़ गए हैं। महामारी से पहले के छह मामलों की तुलना में महामारी के बाद तस्करी के 110 मामले सामने आए हैं।

देश में बाल तस्करी के मामलों की बढ़ती संख्या पर केएससीएफ के प्रबंध निदेशक एवीएसएम (रिटायर्ड) रियर एडमिरल राहुल कुमार श्रावत ने कहा, "भले ही बाल तस्करी की संख्या गंभीर और चिंताजनक दिखती है, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि भारत ने पिछले दशक में बाल तस्करी के मुद्दे का सख्ती से सामना किया है और इस मुद्दे को काफी ताकत और गति दी है।" कई बार तस्कर बच्चों को ऐसे गैंग को भी बेच देते हैं जो भीख मांगने जैसे वाले रैकेट चलाते हैं। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 2019 में देश में मानव तस्करी (बच्चों और वयस्कों समेत) के जितने भी मामले थे, उनमें से सबसे ज्यादा मामले जबरन श्रम, देह व्यापार, घरों में जबरन काम और जबरन शादी के थे।

प्रौद्योगिकी-आधारित हस्तक्षेप की आवश्यकता

”केंद्रीय, राज्य प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा त्वरित कानून और त्वरित कार्रवाई सरकारों और रेलवे सुरक्षा बल और सीमा सुरक्षा बल जैसे बलों ने बाल तस्करी में शामिल तत्वों को पकड़ने और बाल तस्करी को रोकने में मदद की है। इससे तस्करी के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने में भी मदद मिली है, जिससे कई बच्चों को तस्करी का शिकार होने से बचाया गया है और इससे दर्ज मामलों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

इससे निपटने के लिए एक मजबूत और व्यापक तस्करी विरोधी कानून की आवश्यकता है। हम संसद से इस कानून को इसी सत्र में पारित करने का आग्रह करते हैं। इसे करें। हम समय बर्बाद नहीं कर सकते क्योंकि हमारे बच्चे जोखिम में हैं।” तस्करी के संकट से निपटने के लिए प्रौद्योगिकी-आधारित हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता पर जोर देते हुए, गेम्स24×7 के सह-संस्थापक और सह-सीईओ थिरुकरम थम्पी ने कहा, “वर्ष की शुरुआत में, हमने वादा किया था कि केएससीएफ के साथ हमारा अनुबंध शुरू हो जाएगा। आर्थिक सहयोग से। उससे आगे जाकर कुछ ठोस काम होगा।

लेकिन आज जब देश में चहुंओर अमृतकाल की खुमारी छाई है तो ऐसे में सवाल मौजूं है कि आजादी के 75 साल बाद भी देश में ऐसी घटनाएं हो रही हैं तो आखिर क्यों और इसके लिए जवाबदेह कौन है?

दो साल में 13.13 लाख महिलाएं लापता

देश में 2019 से 2021 के बीच तीन साल की अवधि में 13.13 लाख लड़कियां और महिलाएं लापता हुई हैं। इनमें से सबसे अधिक मध्यप्रदेश की हैं। पिछले दिनों जारी किए गए इन आंकड़ों के अनुसार, लापता महिलाओं की संख्या के लिहाज से पश्चिम बंगाल दूसरे स्थान पर है। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा संसद में पिछले सप्ताह पेश आंकड़ों के मुताबिक देश से 2019 से 2021 के बीच 18 साल से अधिक उम्र की 10,61,648 महिलाएं लापता हुईं, जबकि इसी अवधि में देश से 18 साल उम्र की 2,51,430 लड़कियां गायब हुईं। इन आंकड़ों का संकलन राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने किया है।

Related:

बाकी ख़बरें