जब चार साल पहले गायब हुए नजीब पर बात करनी होती है तो वे टरबाइन पर चुटकुले बना रहे होते हैं

Written by Mithun Prajapati | Published on: October 16, 2020
मौसम सुहाना होता है तो अलग-अलग तरह के लोग अलग-अलग तरह की क्रियाएं करने लगते हैं। कवि मोहब्बत पर कविता लिखने लगता है। घुम्मकड़ बाहर निकल कहीं दूर घूम आने की सोचता है। कुछ लोग मधुर संगीत सुनने लगते हैं। कुछ लोग नाचने में आनंद महसूस करते हैं। पर मेरे साथ ऐसा नहीं होता है। जब भी बादल घिर आते हैं, मौसम ठंडा हो जाता है, हल्की ठंडी हवाएं चलने लगती हैं तो एक अजीब सी बेचैनी होने लगती है। दिमाग में तमाम तरह की समस्याएं घूमने लगती हैं। ये अक्सर व्यक्तिगत नहीं होती हैं। 



आज भी कुछ ऐसा ही हुआ। सुबह की गर्मी के बाद दोपहर में बादल घिर आए। हवाएं चलने लगीं। महबूबा मुफ्ती, फारुख अब्दुल्ला, सफूरा, सुधा भारद्वाज, उमर खालिद और भी तमाम नाम जो या तो जेल में हैं या फिर अभी हाल ही में रिहा हुए हैं अचानक मन में गूंजने लगे। मैं इनके बारे में सोचता हूँ। इनका कसूर क्या है? अचानक दिमाग में नजीब नाम घूमता है। चार साल हो गए इस लड़के को गायब हुए। आजतक पता न चला कहाँ है। कभी-कभी कोई इस नाम को दोहरा लेता है। देश मे इतनी एजेंसियां हैं, कोर्ट है, पुलिस प्रशासन है। पर किसी ने न नजीब को खोजने में दिलचस्पी दिखाई और न ही कुछ दिन से ज्यादा यह किसी के लिए मुद्दा रहा। 

प्रधानमंत्री अपने किसी वीडियो में टरबाइन को लेकर टिप्पणी कर देते हैं तो लोग चुटकुला बनाने में लग जाते हैं। पर किसे इतनी फुरसत की नजीब पर चर्चा करे। दिमाग में यही सब चल रहा होता है कि अचानक दुकान के सामने एक विचित्र बात हो जाती है। 

एक गाड़ी आकर रुकी। उसमें से एक बच्चा जो शायद 6 या 7 साल का रहा होगा निकला। उसनें मेरी तरफ दस रुपये बढ़ाये और कहा- अंकल दस की धनिया दे दो। 

ठीक इसी वक्त एक दूसरा बच्चा जो इस धनिया मांगने वाले बच्चे की उम्र का ही था वहां आ गया और इस धनिया मांगने वाले बच्चे के सामने हाथ फैला दिया। उसके हाथ फैलाने का मतलब था कि वह बच्चा जो ठीक अभी गाड़ी से उतरा है वह उसे कुछ दे। जिस बच्चे ने धनिया मांगी वह साफ सुथरा, पैर में जूते, ढंग के कपड़े पहने था। हाथ फैलाने वाला बच्चा भी कम न था। मसलन उसने जूते नहीं पहन रखे थे, कपड़े ढंग के न थे पर दिखने में बड़ा सुंदर था। 

यह मेरे लिए बड़ी हृदयविदारक घटना थी। मैंने सड़क पर बहुत से लोगों को हाथ फैलाते देखा है। एक बुजुर्ग को बुजुर्ग के सामने हाथ फैलाते देखा है, यंग के सामने हाथ फैलाये देखा है। युवाओं को अलग-अलग उम्र के लोगों के सामने हाथ फैलाये देखा है। बच्चों को बड़ों के सामने हाथ फैलाये देखा है। पर आज पहली बार ऐसा देखा। एक बच्चा अपने से ठीक बराबर की उम्र के बच्चे के सामने हाथ फैला दिया है। यह मेरे लिए दिल पर लगने वाली बात थी। 

दूसरों के लिए यह आम बात हो सकती थी। जब प्रियंका गांधी हाथरस जाकर पीड़ित मां से लिपट गई तो इस लिपटने की तस्वीर बड़ी वायरल हुई। कुछ लोगों ने उसे भी आम सी तस्वीर बता दी थी। पर मुझे यह अंदर तक विह्वल कर गई। वह मां प्रियंका गांधी से ऐसे लिपटी थी जैसे कोई अपनों से लिपटता है। इस तस्वीर को बहुतों ने नौटंकी करार दिया। कुछ ने ड्रामा बताया। पर मैं समझता हूं। इसे ड्रामा बताने वाले बहुत से लोगों ने अपनी राजनीतिक सोच की वजह से ऐसा कहा होगा। 

वह बच्चा जो हाथ फैलाया था दूसरे बच्चे से कोई रिएक्शन न पाकर हाथ को मुंह के सामने ले जाता फिर फैला देता। धनिया मांगने वाला बच्चा कंफ्यूज था। उसे पता ही न चल रहा था कि यह बच्चा क्या कह रहा है। उसने कहा- हाय, व्हाट हैपेन ? 

हाथ फैलाये बच्चे ने मेरी तरफ देखा। जैसे कह रहा हो तुम ही बता दो मैं क्या कहना चाह रहा हूँ। मेरी तरफ से कोई रिएक्शन न पाकर उस हाथ फैलाये बच्चे ने फिर से उस धनिया मांगने वाले बच्चे की तरफ़ हाथ फैला दिया। वह हाथ को फिर मुंह की तरफ ले गया और फिर फैला दिया। 

वह बच्चा जो धनिया लेने के लिए खड़ा था वह कंफ्यूज सा कभी मेरी तरफ देखता तो कभी उस बच्चे की तरफ। फिर उसने कन्फ्यूजन में सिर खुजाया। यह बड़ा प्यारा अंदाज था। बिलकुल फिल्मों जैसा। जैसे हीरो सिर खुजाता है और बाल इधर उधर हिलने लगते हैं। यह तभी सम्भव होता है जब बालों में बेहतर शेम्पू लगा हो। उस बच्चे के हाथ फेरने से हिलते बाल यह बताने के लिए पर्याप्त थे कि इनमें शेम्पू लगा है। हाथ फैलाये बच्चे ने इशारा किया कि क्या मैं इनमें उंगली फिराउँ ? धनिया मांगने वाला बच्चा यह बड़ी आसानी से समझ गया और उसनें हाँ में सिर हिलाकर इजाजत दे दी। हाथ फैलाने वाले बच्चे ने जरा भी देरी न करते हुए उसके बालों में उंगली फिराने लगा। दोनों मुस्कुरा रहे थे। जैसे बहुत दिन का याराना हो। ऐसा लग रहा था उच्चवर्ग और निम्नवर्ग की खाई यहीं खत्म हो गई। बड़ा मनोरम दृश्य था। मैं इसे मोबाईल कैमरे में कैद कर लेना चाहता था। पर अचानक गाड़ी में से आवाज आई- आरव ? 

धनिया मांगने वाले बच्चे ने मुझसे फिर धनिया के लिए कहा। हाथ फैलाने वाले बच्चे ने फिर उसी अंदाज में उस उस बच्चे के सामने हाथ फैला दिया। मुझे फिर दो वर्ग अलग अलग नजर आने लगे। 

धनिया मांगने वाले बच्चे की समस्या अब भी बनी थी। वह समझ ही न पा रहा था कि वह कहना क्या चाहता है ? 

मैंने उस बच्चे को धनिया पकड़ा दी जिसका नाम शायद आरव था। यह नाम अभी गाड़ी से पुकारा गया था। यह दूसरा बच्चा जो अभी भी हाथ फैलाये था उसका नाम मुझे नहीं पता। उसे नाम लेकर बुलाने वाला दूर दूर तक कोई न दिख रहा था। मैं चाहता था कोई आये उसका नाम लेकर बुलाये और कहे- बेटा चले आ। जिस मासूम के सामने तूने हाथ फैला दिए हैं वह समझ ही न पा रहा तुझे क्या चाहिए। गलती उसकी नहीं है। गलती माहौल की है। क्लास की है। जिस वर्ग में वह पल रहा है उसे क्या पता हाथ फैलने का तात्पर्य क्या होता है। शायद बड़ा होने पर समझ जाए। वह बड़े प्राइवेट स्कूल्स में पढ़ेगा, अपने के बराबर हैसियत वालों के संपर्क में ही बड़ा होगा और एक दिन आर्थिक तौर पर कामयाब इंसान बन जायेगा। हो सकता है कोई बड़ा साहब बन जाये। कोई बड़ी कंपनी का मालिक बन जाये, सीईओ बन जाये। पर देश दुनिया को समझने के लिए इतना पर्याप्त है ? बड़ा होकर हाथ फैलाने का अर्थ तो शायद समझ जाए पर क्या इस हाथ फैलाने के पीछे का कारण वह जान पायेगा ? जान भी गया तो क्या इससे निजात दिलाने के लिए कुछ कर पायेगा ? शायद नहीं। 

वह बच्चा जिसका नाम आरव था धनिया पाकर आगे गाड़ी की तरफ़ बढ़ गया। दूसरा बच्चा उसके पीछे हाथ फैलाये भागा। गाड़ी का दरवाजा खुला। आरव नाम का लड़का गाड़ी में बैठते हुए कहने लगा- ममा, ही इज सेइंग समथिंग, आई कांट अंडरस्टैंड। 

गाड़ी का दरवाजा बंद हुआ। गाड़ी आगे बढ़ गई। आरव नाम का बच्चा कंफ्यूज सा गाड़ी में चला जा रहा था। दरवाजा बंद हुआ था पर इतना दिखाई दे गया कि आरव अपनी माँ से कुछ जानने का प्रयास कर रहा है। वह हाथ फैलाने वाला बच्चा भी आगे बढ़ गया। मैं सोचता हूँ- आरव इतनी देर में भी क्यों न समझ पाया कि उसकी ही उम्र का बच्चा जो उसके सामने हाथ फैलाये है वह उसके कुछ मांग रहा है। 

मैं कल्पना करता हूँ- यदि सारे बच्चे एक जैसे स्कूल में पढ़ने लगें तो क्या एक, दूसरे को समझने में आसानी नहीं होगी ? हर वर्ग, समुदाय के बच्चे एक जैसे स्कूल में। बच्चे अपने घर की चर्चाएं करेंगे। कोई बताएगा आज मम्मी ने लंच में यह बनाकर दिया। कोई बताएगा आज डैड ने लंच पैक किया क्योंकि आज मॉम को ऑफिस जल्दी निकलना था। बीच में कोई बच्चा बोल पड़ेगा, अरे आपके यहाँ डैड भी किचन में जाते हैं ? जवाब में दूसरा बच्चा कहे- इट्स कॉमन यार। मम्मी बनाये या पापा। 

फिर एक बच्चा बताये की किस तरह उनके यहां सिर्फ औरतें खाना बनाती हैं। इससे एक बच्चा यह समझ पायेगा की डैड भी खाना बनाते हैं तो दूसरा यह जान पायेगा की दुनिया ऐसी भी है कि बहुत सी जगहों पर औरतें किचन में ही रह जाती हैं। 

कोई बच्चा अपनी उदासी का कारण बताते हुए कहे कि आज उसके पापा को किसी ने जाति को लेकर गाली दी। दूसरा बच्चा यह जानकर दुःखी हो। वह बताये कि उसके यहां ऐसा नहीं होता। पर ऐसा कुछ होते हुए हम देखेंगे तो टोकेंगे जरूर। 

मैं यही सोच रहा होता हूँ कि समाज को, अलग-अलग वर्ग को एक दूसरे को बेहतर ढंग से समझने के लिए स्कूल से बेहतर क्या हो सकता है? अचानक वही गाड़ी दुकान के सामने फिर से आकर रुकती है। गाड़ी का कांच नीचे होता है। आरव बाहर झांकता है। उसकी माँ ने पूछा- वह बच्चा कहाँ गया जो अभी यहीं था ? 

मैं अगल बगल देखता हूँ। वह दूसरी दुकान पर एक आदमी के सामने हाथ फैलाये हुए खड़ा था। आदमी अपनी जेब से चिल्लर निकालकर उसे देता है। दुकान के ठीक सामने गाड़ी देख वह बच्चा फिर इधर ही भागकर आ जाता है। गाड़ी का दरवाजा खुला। आरव फिर बाहर आया। इस बार उसके हाथ में एक दो किताबें थी और सौ का नोट भी। वह जैसे ही बाहर आया बच्चे ने आकर फिर से आरव के सामने हाथ फैला दिया। आरव ने उस बच्चे के हाथ में किताबें और पैसे रख दिये और मुस्कुराते हुए बच्चे के बाल में उंगली फिराने की कोशिश की। बाल साफ न होने की वजह से उंगलियां अटक गईं। आरव मुस्कुराते हुए गाड़ी में बैठा और निकल गया। 

वह बच्चा किताबें पलटता मुस्कुरा रहा था। किताबें महज चित्रों वाली थी। जो चित्रों के माध्यम से कहानियां कहती थी। बच्चे की मुस्कान यह बताने के लिए काफी थी कि यह किताबें मिलने की खुशी थी जो बहुत से मिलने वाले पैसों से कहीं ज्यादा बेहतर। 

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