पैलेट गन की शिकार बनी नन्ही सी हिबा का क्या कसूर था?

Written by Mohd Zahid | Published on: November 29, 2018
जम्मू काश्मीर के शोपिया में एक 19 माह की बच्ची "हिबा" अपनी माँ की गोद में जब खेल रही थी तब उस मासूम को यह भी एहसास नहीं रहा होगा कि चंद मिनटों में उस पर वह आफत आने वाली है जिससे उसकी ज़िन्दगी में अँधेरा छा जाएगा।



उस मासूम हिबा को यह एहसास भी नही रहा होगा कि वह कभी इस धरती की "जन्नत" रहे "जहन्नम" में पैदा हुई और बेफिक्र अपनी माँ के साथ खेल ही रही थी कि उसके घर में भारतीय सेना के फेंके एक आँसू गैस गोले से उसका पूरा घर धूएँ से भर गया।

उसकी माँ धूएँ से बचने के लिए हिबा को गोद में लिए घर का दरवाज़ा खोलती ही है कि दरवाज़े पर तैनात भारतीय सेना के बहादुर जवान उनपर पैलट गन से फायर कर देते हैं, माँ उसे किसी तरह बचाती है पर "हिबा" की आँखें बारूद और छर्रे से ज़ख्मी हो जाती हैं।

सोमवार दोपहर को श्रीनगर में श्री महाराजा हरि सिंह (एसएमएचएस) अस्पताल से छुट्टी लेकर घर आने वाली हिबा को बुधवार को एक और सर्जरी से गुजरना पड़ सकता है। एसएमएचएस डॉक्टरों का कहना है कि पीड़ित प्रभावित आंखों से रोशनी जा सकती है ,और वह एक आँख की अंधी हो सकती है।

यह है काश्मीर में आम काश्मीरियों की स्थीति , जो अलगाववादी हैं उनके अतिरिक्त आम काश्मीरियों को भी ऐसी लापरवाही भरी कार्यवाही करके भारत विरोधी बनाया जा रहा है।

इसके पहले भी भारतीय सेना द्वारा काश्मीर में तमाम बच्चों की पैलेट गन से आखें फोड़ी गयीं हैं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारी विरोध के बाद मोदी सरकार ने पैलेट गन पर रोक लगा दी , अब जाने फिर कबसे चुपके से शुरू कर दी गयी ?

दरअसल , काश्मीर की ज़मीन के टुकड़े के लिए इंसानियत, मानवअधिकार का प्रतिदिन बलात्कार किया जा रहा है तो इसकी एक प्रमुख वजह "मुस्लिम विरोध" मात्र है, और यह कठुआ में मासूम सी 8 साल की बच्ची "आसिफ़ा" के साथ हुए गैंग रेप और हत्या का उदाहरण सामने रख कर समझ सकते हैं।

जब देश प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी के लोग बलात्कारी के समर्थन में सड़कों पर तिरंगा लेकर केवल इसलिए उतर आए थे क्युँकि 8 साल की वह "आसिफा" मुसलमान थी।

काश्मीर-पाकिस्तान-मुसलमान से पैदा की गयी घृणा ही भारतीय राजनीति की आज के दौर का आधार है, इसे भारत की सरकारों द्वारा जितना नुकसान पहुचाया जाएगा, शेष भारत में नफरत की राजनीति की फसल लहलहाएगी।

भारत की सेना कश्मीर में घुसते ही यह भूल जाती हैं कि काश्मीर भी भारत का एक अभिन्न हिस्सा है और यहाँ के लोग भी शेष भारतीयों की तरह आम भारतीय।

कभी कभी सोचता हूँ कि ऐसी परिस्थीतियों में कश्मीर के लोग रहते कैसे हैं ? उनकी तो कश्मीरी पंडितों की तरह कोई माई-बाप भी नहीं जो उनका विस्थापन कराकर हराम की रोटी सालों साल खिला सकें, मुआवजा दे सकें, पेन्शन दे सके, दिल्ली जैसी जगह में घर दे सके, नौकरी में आरक्षण दे सके।

करतारपुर में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के सकरात्मक और दोस्ती के प्रस्ताव से युक्त भाषण पर जैसी उग्र प्रतिक्रिया भारतीय मीडिया ने दी, उससे लगता है कि भारत के विदेश मंत्रालय का प्रवक्ता अंजना ओम कश्यप जैसी पत्रकार हैं।

तो समझा जा सकता है कि शेष भारत की राजनीति के लिए काश्मीर में जितना मारकाट होगी, जितनी हिबा अंधी होंगी उतना ही नफरती वोट भाजपा की झोली में आएगा।

खैर "हिबा" के लिए दुआ कीजिए

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